गुरुवार, 11 जनवरी 2018

प्रेम की परिभाषा

दोस्तों आज मैं "प्रेम" के विषय पर बात करना चाहूँगा।

दोस्तों "प्रेम" ऐसा शब्द है जिसके सुनते ही मन पुलकित हो जाता है और इन्सान प्रेम पाने के लिए अधीर हो उठता है। किसी वस्तु या प्राणी के प्रति आकर्षण की अधिकता व जिसके समीप रहने से सुख की अनुभूति होती हो तथा मन प्रसन्न हो उठे वह प्रेम कहलाता है।

दोस्तों प्रेम इन्सान को महान बनाता है तथा प्रेम करने वाला इन्सान सदैव अच्छे कार्य ही करता है, इस पर संतों का एक दोहा याद आता है...
पोथी पढ़-पढ़ जग मुहा, पंडित भया न कोए..!
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होए... 🥰

अर्थात वेद, शास्त्र और ज्ञान व धर्म की पुस्तकों को पढ़कर कोई इन्सान विद्वान् नहीं बन जाता..! वह यदि प्रेम का पाठ पढ़ ले तो अवश्य विद्वान् बन जायेगा।

दोस्तों यह संदेश संतजी ने किसी ईलू-ईलू वाले प्रेम को करने के लिए नहीं कहा..! उन्होंने संसार से प्रेम करने का संदेश दिया है... क्योंकि जिस वस्तु या प्राणी से प्रेम हो जाता है, उसका अनिष्ट करना तो दूर उसके किसी प्रकार के नुकसान का विचार भी मन में नहीं आता..! जैसे इन्सान अपनी संतान से प्रेम करता है तथा जीवन भर उनके पालन-पोषण के लिए अपने सुखों को त्याग कर मेहनत करता है और अपना सारा जीवन उन पर न्योछावर कर देता है। इसी प्रकार यदि इन्सान सभी प्राणियों से प्रेम करने लगे तो वह किसी को भी हानि पहुँचाने या उनके प्रति अपराध करने का विचार भी मन में नहीं लायेगा। और दोस्तों यदि सम्पूर्ण संसार आपस में प्रेम करें तो संसार से शत्रुता, चोरी, लूट, हत्या जैसे अपराधों का समापन हो जाएगा।

दोस्तों प्रेम करने के कई प्रकार हैं... जैसे शरीरिक, भौतिक और अध्यात्मिक... इनमें सबसे उच्च कोटि का प्रेम अध्यात्मिक प्रेम होता है क्योंकि अध्यात्मिक प्रेम कुछ पाने अथवा सुख के लिए नहीं होता, यह निश्छल व निस्वार्थ होता है और संसार में किसी से भी हो सकता है। अध्यात्मिक प्रेम में इन्सान जिस से भी प्रेम करता हैं, उसे प्रत्येक प्रकार का सुख पहुंचाना तथा उसे प्रत्येक प्रकार से खुशहाल देखना चाहता है फिर चाहे वह पशु, पक्षी या कोई इन्सान हो। अध्यात्मिक प्रेम में सिर्फ त्याग होता है, प्राप्ति की कोई कामना नहीं होती..!

दोस्तों भौतिक प्रेम धन अथवा किसी धातु या धातु से निर्मित वस्तु एंव मकान या किसी साजों-सामान व वाहन से भी हो सकता है। यह प्रेम इन्सान के लिए दुःख का कारण बनता है क्योंकि सभी वस्तुएं नश्वर होती हैं और इन्सान के प्रयोग के लिए होती हैं, इनसे प्रेम कर सहेज कर रख देने से न तो किसी काम आती हैं और न ही सुरक्षित रह पाती हैं, जो इन्सान के लिए दुःख का कारण बनती हैं।

दोस्तों शरीरिक प्रेम अर्थात शरीरिक आकर्षण सदा नुकसान और दुःख का कारण ही बनता है। शरीरिक आकर्षण के दुष्परिणाम इंसान के जीवन का सर्वनाश कर देते हैं क्योंकि इंसान जिसके आकर्षण में फंसता है, उसके गुणों और अवगुणों को परखना अथवा देखना भी आवश्यक नहीं समझता तथा यही कारण उसे जीवन में बर्बादी के रास्ते पर ले जाता है। शरीरिक आकर्षण के दुष्परिणाम इन्सान को जब मालूम पड़ते हैं, जब तक वह अपना सब कुछ लुटा चुका होता है।

इसलिये दोस्तों यदि इन्सान जीवन में प्रेम करता है, तो वह महान कार्य कर रहा है... परन्तु अपने विवेक द्वारा परखना भी आवश्यक होता है कि कहीं प्रेम उसके लिए जीवन की बर्बादी का कारण तो नहीं बनने जा रहा..! जीवन को स्थापित करना तथा उसे सफल बनाना सबसे महत्वपूर्ण कार्य है और संसार व समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त करना भी आवश्यक है, जिसे सभी इंसानों से प्रेम व सद्भाव से ही प्राप्त किया जा सकता है। किसी की उच्च कोटि की मानसिकता और विचारों से प्रेम करना ही इंसानियत से प्रेम है।

1 टिप्पणी:

  1. वैलेंटाइन डे पर युवाओं को सन्देश

    (व्यभिचारी एवं चरित्रहीन व्यक्ति नष्ट हो जाता है।)

    आज समाज में अश्लीलता को आधुनिकता के नाम पर परोसा जा रहा है। इसे एक प्रकार से बौद्धिक आतंकवाद भी कहा जा सकता ह। युवावस्था के अपरिपक्व मस्तिष्क को अफीम के समान व्यभिचार कि लत के लिए प्रेरित कर उसे भोगवाद के अंधे कुँए में धकेल दिया जाता है। जिससे वह जीवन भर कस्तूरी मृग के समान भागता रहता है और अपने लक्ष्य तक कभी न पहुँच सकता। घर से भाग कर बेमेल विवाह करना और फिर तलाक, चरित्रहीनता, समलेंगिकता, लिव इन रिलेशनशिप सभी विषयासक्ति नामक सिक्के के ही अनेक पहलु हैं। खेद है कि समाज में जितनी अधिक भौतिक और आर्थिक प्रगति हो रही है, उतनी अधिक चरित्र हीनता भी बढ़ रही है। हमारे धार्मिक उपदेशों को पुराने और दकियानूसी कह कर जो लोग नकार देते हैं, उन्हीं ग्रंथों में इस बीमारी का हल भी हैं।

    रामायण महाकाव्य का तो सन्देश ही यही है कि जो परनारी पर बुरी दृष्टि डालता है। उसे यथोचित दंड देना चाहिए। रामायण में हमें रावण जैसे परम बलशाली कि श्री राम के हाथों मृत्यु का कारण भी पता चलता है। जब वीरवर हनुमान लंका में प्रवेश कर लंका नगरी का भ्रमण कर रहे होते है तब का एक प्रसंग पढ़िये।
    उषाकाल में वीरवर हनुमान रावण के महल की ओर जाते हुए रावण राज्य के द्विजों को वेद मन्त्रों का स्वाध्याय करते हुऐ एवं अग्निहोत्र करते हुए देखते हैं। तब उनके मन में विचार आया कि उषा काल में जिस नगरी के जन वेदोक्त नित्य कर्म करते है। उस नगरी को जीत पाना कठिन ही नहीं असम्भव भी है।जब वे रावण के महल में पहुँचते है तब उन्हें मद्य, माँस और व्यभिचार में लिप्त रावण और रावण कि स्त्रियों को सोते देखा तो उन्होंने विचार किया कि रावण तो जीवित ही मरे के समान है। इसस

    जवाब देंहटाएं