प्राचीनकाल मैं वस्तु-विनिमय प्रणाली प्रचलित थी. इस प्रणाली को पण कहा जाता था. यह काम करने वाले पणी कहलाते थे. वेदों में भी इस शब्द का उल्लेख है. वस्तु विनिमय का सारा काम वैश्य करते थे. इसी कारण वैश्यों को पणी कहा जाता था . यही पणी शब्द बिगड़ते-बिगड़ते बनिया हो गया.
समय के साथ-साथ इस शब्द का प्रयोग डरपोक व्यक्ति के रूप में होने लगा. तब अग्रवाल समाज के महत्वपूर्ण लोगो ने इस दिशा मैं आवाज भी उठाई. इसी सन्दर्भ में एक रोचक प्रसंग हैं...
यह मार्च 1966 की बात है. लोकसभा का सत्र चल रहा था. लोकसभा में वैश्य समाज से सम्बन्ध रखने वाले सांसद कमलनयन बजाज सदन की कार्यवाही में भाग ले रहे थे. उन्हें किसी ने गलत मंशा से बनिया कह कर पुकारा. बजाज जी ने निर्भीक हाजिरजवाबी से जो उत्तर भरी लोकसभा में दिया उसे सुनकर सब निरुतर हो गए. उन्होंने कहा... मुझे बनिया होने पर गर्व हैं...
बनिया वह है जो सबको अपना बना सकता है.
बनिया वह है जो सबका बन सकता है.
बनिया वह है जिसकी सबके साथ बन सकती है.
बनिया वह है जो सब कुछ बन सकता है.
बनिया वह है जो सब कुछ बना सकता है.
हमारे शास्त्रों में बनिए को महाजन कहा गया है अर्थात जो जनो में महान है वो बनिया है.
आप इस शब्द को अपमान के साथ प्रयोग नहीं कर सकते.
इस प्रकार एक बनिए ने सारी लोकसभा को अपनी हाजिरजवाबी से निरुत्तर करते हुए अपनी जाति की सुन्दर व्याख्या प्रस्तुत की...
🙏जय श्री अग्रसेन जी महाराज🚩
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