सेक्स शब्द सुनते ही बहुतों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती हैं, मन के अधकचरे उमंग हिलोरे मारते हैं किंतु सामने चुप्पी ही रहती हैं, लोग इस मुद्दे पर खुलकर सामने नहीं आते, आना भी नहीं चाहिए क्योंकि कुछ चीज़ पर्दे में रहे तो ही उचित हैैं।
किन्तु सेक्स हैं क्या..?
क्या यह उतना ही गन्दा हैं जितना हम समझते हैं..?
गन्दा नहीं हैं तो लगता क्यों हैं..?
सेक्स शब्द अंग्रेजो की देन हैं, जो पिशाच मानसिकता के होते हैं और वासना के मद में सन्न रहते हैं।
हमारे यहां तो "ऋतुदान" होता हैं, वैदिक परंपरा के अनुसार...
ऋतुदान कुछ ऐसा है जैसे कृषि, समय आने पर किसान जमीन में बीज बोता हैं। तय समय पर अंकुर फुट जाते हैं और एक फसल तैयार होती हैं।
पूरी प्रक्रिया में कहीं कुछ गन्दा लगा..?
ऐसे ही सन्तान की इच्छा होने पर ऋतुदान किया जाता हैं, जिसके बाद संतान का जन्म होता हैं।
यह भी तो कृषि ही तो है... स्त्री का गर्भ धरती, वीर्य वह बीज और फसल तैयार होती हैं।
इसमे गन्दा क्या हैं..? मनुष्य को सन्तान चाहिए क्योंकि वंश आगे बढ़ाना हैं, कृषि पेट भरने के लिए करते हैं।
जीवन में दोनों जरूरी हैं।
यह भी यज्ञ हैं, उसकी तरह पवित्र किन्तु आधुनिक लोगों ने इस यज्ञ को सेक्स का नाम दे दिया।
यह अलग विषय कि इसे पर्दे में रखा गया जो कि जरूरी भी हैं क्योंकि समय आने पर ही ऋतुदान उत्तम होता हैं।
ऐसे रोज़-रोज़, दिन-रात इसमें ही लगे रहते हैं... हमसे अच्छे तो पशु हैं क्योंकि वह आज भी वेदोक्त नियम पर चलते हैं।
हम में तो पशुता भी नहीं बची हैं..! आज देखो तो पोर्न के नाम पर लाखों युवा का भविष्य बर्बाद किया जा रहा हैं, पीढ़ियों को नपुंसक बनाया जा रहा हैं। यह सब असमय सेक्स का ही परिणाम हैं।
हमारी वैदिक परंपरा तो ब्रह्मचर्य रखने को कहती हैं और समय आने पर ऋतुदान
कितनी उत्तम सभ्यता हैं, गर्व होता है इसपर...
🙏🏻 सत्य सनातन धर्म की जय ⛳
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