पूंजीवाद शोषण की व्यवस्था नहीं है। पूंजीवाद एक व्यवस्था है श्रम को पूंजी में कन्वर्ट करने की। श्रम को पूंजी में रूपांतरित करने की व्यवस्था है। लेकिन जब आपका श्रम रूपांतरित होता है, जब आपको या मुझे दो रुपए मेरे श्रम के मिल जाते हैं तो मैं देखता हूं जिसने मुझे दो रुपए दिए उसके पास कार भी है, बंगला भी खड़ा होता जाता है। स्वभावत: तब मुझे खयाल आता है कि मेरा कुछ शोषण हो रहा है। और मेरे पास कुछ भी नहीं था उसका शोषण हुआ।
शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020
पूंजीवाद
किसी गांव में दस हजार गरीब हो और दो आदमी उनमें से मेहनत करके अमीर हो जाएं तो बाकी नौ हजार नौ सौ निन्यानवे लोग कहेंगे कि इन दो आदमियों ने अमीर होकर हमको गरीब कर दिया। और कोई यह नहीं पूछता कि जब ये दो आदमी अमीर नहीं थे तब तुम अमीर थे? तुम्हारे पास कोई संपत्ति थी, जो इन्होंने चूस ली। नहीं तो शोषण का मतलब क्या होता है? अगर हमारे पास था ही नहीं तो शोषण कैसे हो सकता है? शोषण उसका हो सकता है जिसके पास हो। अमीर के न होने पर हिन्दुस्तान में गरीब नहीं था? हां, गरीबी का पता नहीं चलता था। क्योंकि पता चलने के लिए कुछ लोगों का अमीर हो जाना आवश्यक है। तब गरीबी का बोध होना शुरू होता है। बड़े आश्चर्य की बात है, जो लोग मेहनत करें, बुद्धि लगाएं, श्रम करें और अगर थोड़ी-बहुत संपत्ति इकट्ठा कर लें तो ऐसा लगता है कि इन लोगों ने बड़ा अन्याय किया होगा।
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