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बात सच्ची है, इसलिये कड़वी भी हैं।
माँ जो एक पवित्र भावना है, संवेदना है, कोमल अहसास है।
तपती दोपहरी में मीठे पानी का झरना है, इक खुशबू है माँ जो कभी मिटती नहीं..!
देह मिट भी जाये तो अपने बच्चों की देह में रूह बन कर सिमट जाती है।
उनके लब पर दुआ तो कभी मन में अहसास बन कर ढल जाती है।
आज मैं उस माँ की बात नहीं कर रहा, जो बेसन की रोटी पर खट्टी चटनी जैसी लगती थी।
आज उस माँ की बात भी नहीं, जिसका बेटा परदेश में रोता था तो देश में उसका प्यार भीग जाया करता था।
मैं मेक्सिम गोर्की की माँ की बात भी नहीं कर रहा और ना #जीजा_बाई की जिसने एक बालक को शिवा जी बना दिया।
आज बात है... आज के दौर की, आज की नारी की, आज की माँ की, आधुनिक भारतीय नारी की...
वो अब खुद गीले में सोकर अपने बच्चे को सूखे में सुलाने की भूल नहीं करती, वो अब अपने बच्चे को खुद से दूर झूले में सुलाती है।
नींद में खलल नहीं पड़े, इसलिए बच्चे के मुहँ में दूध की बोतल चिपका दी जाती है।
ये आधुनिक माताएं अपने शौक के लिए, पैसों के लिए अपनी कोख भी किराए पर देने में नहीं चूकती...
अपने स्वार्थों के लिए ये कोख में ही अपनी बेटी का गला घोट डालने में ज़रा संकोच नहीं करती..!
अपने अवसर, अपने करियर की खातिर ये बच्चों को "आया" के हवाले कर चल देती है।
बच्चों से पीछा छुड़ाने के लिए उन्हें बहुत छोटी उमर में ही प्ले स्कूल में छोड़ देती है।
गए वो दिन जब माँ दो-तीन वर्ष की उम्र तक के बच्चों को घर में ही पढ़ाया करती थी।
संस्कारों, जीवन मूल्यों के पाठ अब अधिकतर घरों में नहीं पढ़ाये जाते..!
बच्चों को अब रातों को कोई कहानियाँ नहीं सुनाई जाती और ना कोई लोरी..!
अपने काम अपने शौक और अपने फायदे को देखने वाली इन moms के पास अपने बच्चों के लिए कोई समय नहीं..!
ऐसा नहीं है कि उन्हें अपने बच्चों की चिंता नहीं है, दिन में एक दो बार फोन करके वो "आया" से अपने बच्चों का हाल जरुर पूछ लेती हैं।
बच्चे भी अब माँ से ज्यादा अपनी दूध की बोतल और आया को प्यार करते हैं।
थोड़े बड़े होकर वीडियों गेम और फिर नेट और मोबाईल उनके साथी बन जाते है।
जितनी दूर माँ हो रही है बच्चों से, उतने ही दूर बच्चे भी हो रहे हैं माँ से...
यही वजह है कि जितने झूलाघर रोज खुल रहे हैं, उनसे कहीं ज्यादा वृद्धाश्रम (old age home) बनाये जा रहे हैं।
आधुनिक जीवन शैली और पुरुषों की नक़ल करने के चक्कर में महिलाओं ने खुद को अपने स्त्रियोंचित गुणों से दूर कर लिया है। महिलाओं में पुरुषों की तरह शराब और सिगरेट पीने का चलन भी अब आम बात है।
चिंता ये है कि जो युवतियां अपनी रातें "पब" में शराब और सिगरेट के धुएं में बिताती हैं, क्या कल ये युवतियां एक अच्छी पत्नी या इक अच्छी माँ बन सकेगी..?
क्या फिर कोई मुनव्वर राणा ये कह पायेगे कि “मैं जब तक घर नहीं जाता, मेरी माँ सजदे में रहती है"
ये कैसी महिलाए हैं..? ये कैसी भविष्य की माताएं हैं..?
जिनके दिल में किसी के लिए प्रेम नहीं, वात्सल्य नहीं, ये सिर्फ खुद से प्रेम करती हैं।
खुद के सुखों की खातिर अपना घर परिवार बच्चे सब कुछ इक झटके में तोड़ देती हैं, छोड़ देती है।
{रोज बिखरते परिवार इसका उदाहरण है}
अक्सर मैंने देखा है, शादी पार्टी या कोई होटल या रेस्टोरेंट में आजकल महिलायें कभी भी अपने बच्चों को गोद में नहीं उठाती..!
इनके पति बच्चों को देखते हैं या फिर आया को साथ रखती हैं।
बच्चे रोये या बिलखते रहे इन्हें परवाह नहीं, इनकी साड़ी या मेकअप खराब नहीं होना चाहिए।
अपने बच्चों को अपनी गोद में रखने में इन्हें अब शर्म आती है।
आजकल पिताओं को मैंने बच्चों की ज्यादा परवाह करते देखा है।
यदि वास्तव में माँ की कहानियों और लोरियों में ताकत होती, पकड़ होती तो युवा पीढ़ी इस कदर भटकती नहीं..!
कहीं न कहीं कोई कमी जरुर है जिसे बच्चे बाहर जाकर पूरी कर रहे है, दोस्तों में, नशे में वो सुकून तलाश रहे है जो उन्हें घर में ही मिलना चाहिए था।
माताओं को सोचना होगा, क्यों बेटे-बेटियाँ उनसे दूर हो रहे हैं..?
क्या बेटे के दुःख से उनका आँचल अब भी भीगता है..! या उन्होंने अपने बच्चों की उगंली छोड़ दी है...
यदि माँ की पकड़ ढीली हो गयी तो क्या कोई बेटा परदेश में ये बात महसूस कर सकेगा..! “मैं रोया परदेश में, भीगा माँ का प्यार"
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