गुरुवार, 6 सितंबर 2018

आइए जानते हैं... साईं आखिर था कौन..?

पिछले साठ सालों से शिरडी साईं ट्रस्ट एक मुस्लिम फ़क़ीर साईं बाबा उर्फ चांदमियाँ को ना केवल हिंदू ब्राह्मण साबित करने का कुत्सित प्रयास कर रहा है बल्कि अवतार प्रमाणित करने मे लगा हुआ है।
धर्म का मूल उद्देश्य ही सत्य की खोज हैं...
उस आस्था का क्या मूल्य जो झूठ और कपट के सहारे खड़ी हुई हो... सत्य तो यह है कि मौला साई के 99% भक्तों को उनकी असलियत के बारे में कुछ मालूम ही नहीं हैं... मौला साईं के जीवन के बारे में सबसे प्रामाणिक जानकारी उनके सेवक गोविंदराव दाभोलकर की पुस्तक "साई सतचरित्र" मे मिलती हैं... यह पुस्तक स्वयं मौला साईं के द्वारा ही लिखी मानी जाती हैं क्योंकि गोविंद राव ने जब बाबा से उनकी जीवनी लिखने की आज्ञा माँगी तो बाबा ने उन्हे आशीर्वाद देते हुए कहा कि "मैं तुम्हारे अंतकरण में प्रकट होकर स्वयं ही अपनी जीवनी लिखूंगा" गोविंद राव ने मस्जिद में होने वाली घटनाओं को संकलित कर सर्वप्रथम मराठी में पुस्तक लिखी... यही वह पुस्तक है जिसके बल पर चाँदमियाँ को महिमामंडित किया गया हैं, प्रस्तुत लेख मे साईं सतचरित्र पुस्तक के उन तथ्यों को लिखा गया है जो साबित करते हैं कि साई बाबा कट्टर मुस्लिम था। इस लेख का मूल उद्देश्य सत्य को प्रकट करना हैं...
1 :: साई बाबा सारा जीवन मस्जिद में रहें। ( पुस्तक में हर जगह इस बात का उल्लेख है)
नोट :: मौला साई लगभग पेंसठ वर्ष तक शिर्डी मे रहें पर एक भी रात उन्होोंने किसी हिंदू मंदिर मे नहीं गुज़ारी..!
2 :: "अल्लाह मालिक" सदा उनके ज़ुबान पर था, वो सदा अल्लाह मालिक पुकारते रहते... ( पूरी पुस्तक में जगह-जगह इस बात का उल्लेख है)
नोट :: मौला साई के मुख से कभी 'जय श्रीराम, हर हर महादेव या जय माता दी' नहीं निकलता था, ना ही कभी वो का उच्चारण करते थे..!
3 :: रोहीला मुसलमान आठों प्रहार अपनी कर्कश आवाज़ में क़ुरान शरीफ की कल्मे पढ़ता और अल्लाह ओ अकबर के नारे लगाता... परेशान होकर जब गाँव वालों ने बाबा से उसकी शिकायत की तो उन्होंने कहा कि "वे उसकी कलमो के समक्ष उपस्थित होने का साहस करने मे असमर्थ हैं" और बाबा ने गाँव वालों को भगा दिया।( अध्याय 3 पेज 5 )
नोट :: शिरडी साईं ट्रस्ट इन्हीं मौला साईं को अखिल ब्रह्मांड नायक कहता है, जो क़ुरान की कलमो से डर गया।
4 :: तरुण फ़क़ीर को उतरते देख, म्हलसापति ने उन्हें सर्वप्रथम "आओ साईं" कहकर पुकारा...(अध्याय 5 पेज 2 )
नोट :: मौला साईं मुस्लिम फ़क़ीर थे और फ़क़िरो को अरबी और उर्दू मे साईं नाम से पुकारा जाता हैं... साईं शब्द मूल रूप से हिन्दी नहीं हैं..!
5 :: मौला साईं हमेशा कफनी पहनते थे।(अध्याय 5 पेज 6 )
नोट :: कफनी एक प्रकार का पहनावा है, जो मुस्लिम फ़क़ीर पहनते हैं।
6 :: मौला साईं सुन्नत(ख़तना) कराने के पक्ष में थे। (अध्याय 7 पेज 1 )
नोट :: सुन्नत कराना मुस्लिम धर्म की परंपरा है।
7 :: फ़क़िरो के संग बाबा माँस और मछली का सेवन भी कर लेते थे।(अध्यया 7 पेज 3)
नोट :: कोई भी हिंदू संत ऐसा घृणित काम नहीं कर सकता..!
8 :: बाबा ने कहा "मैं मस्जिद में एक बकरा हलाल करने वाला हूँ, हाज़ी सिधिक से पूछो कि उसे क्या रुचिकर होगा... बकरे का माँस, नाध या अंडकोष"(अध्याय 11 पेज 5 )
नोट :: हिंदू संत कभी स्वप्न में भी बकरा हलाल नहीं कर सकता..! न ही ऐसे वीभत्स भोजन खा सकता हैं..!
9 :: एक बार मस्जिद में एक बकरा बलि चढ़ने लाया गया, तब साईं बाबा ने काका साहेब से कहा "मैं स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूँगा"(अध्याय 23 पेज 6)
नोट :: हिंदू संत कभी ऐसा जघ्न्य कृत्य नहीं कर सकते..!
10:: मालेगाँव के फ़क़ीर पीर मोहम्मद का साईं बाबा बहुत आदर करते, वे सदैव उन्हे अपने दाहिने ओर बैठाते... सबसे पहले वो चिलम पीते फिर बाबा को देते... बाबा के पास जो भी दक्षिणा एकत्रित होती, उसमें से रोज पचास रुपये वो पीर मोहम्म्द को देते... जब वो लौटते तो बाबा भी सौ कदम तक उनके साथ जाते...(अध्याय 23 पेज 5 )
नोट :: मौला साईं इतना सम्मान कभी किसी हिंदू संत को नहीं देते थे..! रोज पचास रुपये वो उस समय देते थे, जब बीस रुपया तोला सोना मिलता था।

11 :: एक बार बाबा के भक्त मेघा ने उन्हे गंगा जल से स्नान कराने की सोचा तो बाबा ने कहा "मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो, मैं तो एक फ़क़ीर हूँ... मुझे गंगाजल से क्या प्रायोजन(अध्याय 28 पेज 7 )
नोट :: किसी हिंदू के लिए गंगा स्नान जीवन भर का सपना होता है, गंगा जल का दर्शन भी हिंदुओं मे अति पवित्र माना जाता है।
12 :: कभी बाबा मीठे चावल बनाते और कभी माँस मिश्रित चावल(पुलाव) बनाते थे। (अध्याय 38 पेज 2)
नोट :: माँस मिश्रित चावल अर्थात मटन बिरयानी सिर्फ़ मुस्लिम फ़क़ीर ही खा सकता हैं, कोई हिंदू संत उसे देखना भी पसंद नहीं करेगा।
13 :: एक एकादशी को बाबा ने दादा केलकर को कुछ रुपये देकर कुछ माँस खरीद कर लाने को कहा...(अध्याय 38 पेज 3 )

नोट :: एकादशी हिंदुओं का सबसे पवित्र उपवास का दिन होता है, कई घरों में इस दिन चावल तक नहीं पकता...

14 :: जब भोजन तैयार हो जाता तो बाबा मस्जिद से बर्तन मंगाकर, मौलवी से फातिहा पढ़ने को कहते थे।(अध्याय 38 पेज 3)
नोट :: फातिहा मुस्लिम धर्म का संस्कार है।
15 :: एक बार बाबा ने दादा केलकर को माँस मिश्रित पुलाव चख कर देखने को कहा... केलकर ने मुँहदेखी कह दिया कि अच्छा हैं, तब बाबा ने केलकर की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मे डालकर बोले थोड़ा-सा इसमें से निकालो, अपना कट्टरपन छोड़कर चख कर देखो...(अध्याय 38 पेज 5 )
नोट :: मौला साईं ने परीक्षा लेने के नाम पर जीव हत्या कर, एक ब्राह्मण का धर्म भ्रष्ट कर दिया किंतु कभी अपने किसी मुस्लिम भक्त की ऐसी कठोर परीक्षा नहीं ली।


अन्य तथ्य जो सिद्ध करते हैं, साईं बाबा मुसलमान थे।
1 :: मौला साईं का सेवक अब्दुल बाबा जो लगभग तीस साल तक बाबा के साथ मस्जिद में ही रहा, रोज बाबा को क़ुरान सुनाता था। वो कभी रामायण या गीता नहीं सुनते थे।
2 :: महाराष्ट्र मे शिर्डी साईं मंदिर में गाई जाने वाली आरती का अंश "मंदा त्वांची उदरिले, मोमीन वंशी जन्मुनी लोँका तारिले” उपरोक्त आरती में "मोमिन वंशी जन्मुनी" अर्थात् मुसलमान वंश मे जन्मे शब्द स्पष्ट आया है।(15 साल से मोमीन वंशी गा रहे हैं फिर भी मौला को ब्राह्माण बता रहे हैं)
3 :: मौला साईं ने अपनी मृत्यु के कुछ दिन पहले औरंगाबाद के मुस्लिम फ़क़ीर शमशूद्दीन मियाँ को दो सौ पचास रुपये भिजवाया ताकि उनका मुस्लिम रीति रिवाज़ से अंतिम संस्कार कर दिया जाएं तथा सूचना भिजवाई कि वो अल्लाह के पास जाने वाले हैं।(ये एक तरह से मृत्यु पूर्व बयान जैसा है, जिसे कोर्ट भी सच मानती है। अगर बाबा हिंदू होते तो तेरहवीं करवाते, गंगाजली करवाते...)
4 :: मौला साईं जब तक जीवित रहे, शिरडी मे सूफ़ी फ़क़ीर के नाम से ही जाने जाते थे।
5 :: मौला साईं की मृत्यु के बाद उनकी मज़ार बनाई गई थी, जो 1954 तक थी। फिर उसे समाधी मे बदल दिया गया...


हम न मौला साईं विरोधी हैं, न सांप्रदायिक हैं लेकिन हमारा प्रयास है कि चांदमियां को जानबूझकर हिन्दु न साबित किया जाएं। पिछले पचास साल से पैसा कमाने के लिए जैसा अधर्म शिरडी ट्रस्ट ने किया, वैसा इतिहास में कभी नहीं हुआ..! 


शिर्डी साईं संस्थान के झूठ :-


जिस मौला साईं के जन्म तिथि का कोई अता-पता नहीं, उनकी कपट पूर्वक राम नवमी के दिन जयंती मनाई जा रही है।

 मौला साईं हमेशा "अल्लाह मलिक" पुकारते थे, जबकि "सबका मलिक एक" नानक जी कहते थे।

जो मौला साईं जीवन भर मस्जिद में रहें, उसे मंदिर में बैठा दिया गया... जो मौला साईं व्रत उपवास के विरोधी थे, उनके नाम से साईं व्रत कथा छप रही हैं। जो मौला साईं हमेशा अल्लाह मालिक बोलते थे, उनके साथ और राम को जोड़ दिया। जो मौला साईं रोज कुरान पड़ते थे, उनके मंत्र बनाये जा रहे हैं...पुराण लिखी जा रही है।

जो मौला साईं मांसाहारी थे, उन्हें हिन्दू अवतार बनाया जा रहा है। जिस मौला साईं ने गंगा जल छूने से इंकार कर दिया, उसके नाम से यज्ञ किये जा रहे हैं... गंगा जल से अभिषेक किया जा रहा है। जो खुद निगुरा था, उसे सदगुरु बनाया जा रहा है।
जो मौला साईं खुद अनपढ़ थे, उनके नाम से गीता छापी जा रही है। मरणधर्मा व्यक्ति के मंदिर बनाना हिंदू धर्म मे पाप है। इस देश मे हज़ारों संत हुए किंतु किसी की भी मंदिर नहीं हैं। व्यास जैसे ऋषि जिन्होंने 18 पुराण लिखे, गीता लिखी।अगस्त्य, विश्वामित्र, कपिल मुनि, नारद, दत्तात्रेय, भृिगु, पाराशर, सनक, सनन्दन सनतकुमार, शौनक, वशिष्ट, वामदेव, महर्षि वाल्मीकिल, तुलसीदास, गोरखनाथ, तुकाराम, नामदेव, मीरा, एकनाथ, मुक्ताबाई, नरहरी, नामदेव, सोपान, संत रविदास, चैतन्य महाप्रभु, राम कृष्ण परमहंस आदि-आदि... कितने ही संत हुए किंतु किसी के भी जगह जगह मंदिर नहीं हैं।

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