मंगलवार, 21 जुलाई 2020

जानिए पुत्री को अपने पिता का गोत्र क्यों नहीं प्राप्त होता..? आइए वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें...

हमारे धार्मिक ग्रंथ और हमारी सनातन हिन्दू परंपरा के अनुसार पुत्र (बेटा) को कुलदीपक अथवा वंश को आगे बढ़ाने वाला माना जाता है अर्थात उसे गोत्र का वाहक माना जाता है।

क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों केवल पुत्र को ही वंश का वाहक माना जाता है, पुत्री को नहीं..?

असल में इसका कारण... पुरुष प्रधान समाज अथवा पितृसत्तात्मक व्यवस्था नहीं..! बल्कि हमारे जन्म लेने की प्रक्रिया है।

अगर हम जन्म लेने की प्रक्रिया को सूक्ष्म रूप से देखेंगे तो हम पाते हैं कि...
एक स्त्री में गुणसूत्र (Chromosomes) XX होते है और पुरुष में XY होते है।

इसका मतलब यह हुआ कि... अगर पुत्र हुआ (जिसमें XY गुणसूत्र है) तो उस पुत्र में Y गुणसूत्र पिता से ही आएगा क्योंकि माता में तो Y गुणसूत्र होता ही नहीं..!

और यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र) तो यह गुणसूत्र पुत्री में माता व पिता दोनों से आते है।

XX गुणसूत्र अर्थात पुत्री

अब इस XX गुणसूत्र के जोड़े में एक X गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा X गुणसूत्र माता से आता है।

तथा इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है, जिसे Crossover कहा जाता है।

जबकि... पुत्र में XY गुणसूत्र होता है।

अर्थात... जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि... पुत्र में Y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में Y गुणसूत्र होता ही नहीं है।

और... दोनों गुणसूत्र असमान होने के कारण... इन दोनों गुणसूत्र का पूर्ण Crossover नहीं... बल्कि केवल 5% तक ही Crossover होता है।

और 95% Y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही बना रहता है।

तो इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण Y गुणसूत्र हुआ क्योंकि Y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है कि... यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है।

बस... इसी Y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है, जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था।

इस तरह ये बिल्कुल स्पष्ट है कि हमारी वैदिक गोत्र प्रणाली गुणसूत्र पर आधारित है अथवा Y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है।

उदाहरण के लिए... यदि किसी व्यक्ति का गोत्र शांडिल्य है तो उस व्यक्ति में विद्यमान Y गुणसूत्र शांडिल्य ऋषि से आया है...  या कहें कि शांडिल्य ऋषि उस Y गुणसूत्र के मूल हैं।

अब चूँकि...  Y गुणसूत्र स्त्रियों में नहीं होता है इसीलिए विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है।

वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व स्त्री भाई-बहन कहलाएं क्योंकि उनका पूर्वज (ओरिजिन) एक ही है। 

परन्तु ये थोड़ी अजीब बात नहीं कि जिन स्त्री व पुरुष ने एक-दुसरे को कभी देखा तक नही और दोनों अलग-अलग देशों में परन्तु एक ही गोत्र में जन्मे, तो वो भाई-बहन हो गये..?

इसका मुख्य कारण एक ही गोत्र होने के कारण गुणसूत्रों में समानता है। 

आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार भी...  यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनके संतान... आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी क्योंकि... ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक जैसी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता एवं ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है। 
यही कारण था कि शारीरिक विषमता के कारण अंग्रेज राज परिवार में आपसी विवाह बन्द हुए। 

 इस गोत्र का संवहन यानी उत्तराधिकार पुत्री को एक पिता प्रेषित न कर सके, इसलिये विवाह से पहले कन्यादान कराया जाता है और गोत्र मुक्त कन्या का पाणिग्रहण कर भावी वर अपने कुल गोत्र में उस कन्या को स्थान देता है। यही कारण था कि उस समय विधवा विवाह भी स्वीकार्य नहीं था, क्योंकि कुल गोत्र प्रदान करने वाला पति तो मृत्यु को प्राप्त कर चुका है।

इसीलिए कुंडली मिलान के समय वैधव्य पर खास ध्यान दिया जाता और मांगलिक कन्या होने पर ज्यादा सावधानी बरती जाती है।
आत्मज या आत्मजा का सन्धिविच्छेद तो कीजिये...
आत्म + ज  अथवा  आत्म + जा 
आत्म = मैं, ज या जा = जन्मा या जन्मी, यानी मैं ही जन्मा या जन्मी हूँ।

जैसा कि हम जानते हैं कि... पुत्री में 50% गुणसूत्र माता का और 50% पिता से आता है।

फिर, यदि पुत्री की भी पुत्री हुई तो... वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा...
और फिर... यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा।

इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह % घटकर 1% रह जायेगा.

अर्थात... एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है... और यही है "सात जन्मों के साथ का रहस्य"

लेकिन... यदि संतान पुत्र है तो... पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% (जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है) डीएनए ग्रहण करता है...
और यही क्रम अनवरत चलता रहता है।

जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं... अर्थात, यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है।

इसीलिये अपने ही अंश को पित्तर जन्म जन्मान्तरों तक आशीर्वाद देते रहते हैं और हम भी अमूर्त रूप से उनके प्रति श्रध्येय भाव रखते हुए, आशीर्वाद ग्रहण करते रहते हैं और यही सोच हमें जन्मों तक स्वार्थी होने से बचाती है एवं सन्तानों की उन्नति के लिये समर्पित होने का सम्बल देती है।

एक बात और... माता-पिता यदि कन्यादान करते हैं तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे कन्या को कोई वस्तु समकक्ष समझते हैं..!
 बल्कि इस दान का विधान इस निमित किया गया है कि दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिये और उस कुल की कुलधात्री बनने के लिए उसे गोत्र मुक्त होना चाहिये। डीएनए मुक्त तो हो नहीं सकती क्योंकि भौतिक शरीर में वे डीएनए रहेंगे ही... इसलिये मायका अर्थात माता का रिश्ता बना रहता है।

 गोत्र यानी पिता के गोत्र का त्याग किया जाता है। तभी वह भावी वर को यह वचन दे पाती है कि उसके कुल की मर्यादा का पालन करेगी यानी उसके गोत्र और डीएनए को दूषित नहीं होने देगी, वर्णसंकर नहीं करेगी क्योंकि कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये रज का रजदान करती है और मातृत्व को प्राप्त करती है। यही कारण है कि प्रत्येक विवाहित स्त्री माता समान पूज्यनीय हो जाती है।

यह रजदान भी कन्यादान की ही तरह कोटि यज्ञों के समतुल्य उत्तम दान माना गया है जो एक पत्नी द्वारा पति को दान किया जाता है।

आश्चर्य की बात है कि... हमारी ये परंपराएं हजारों-लाखों साल से चल रही है, जिसका सीधा-सा मतलब है कि हजारों लाखों साल पहले... जब पश्चिमी देशों के लोग नंग-धड़ंग जंगलों में रहा करते थे और चूहा, बिल्ली, कुत्ता वगैरह मारकर खाया करते थे...

उस समय भी हमारे पूर्वज ऋषि-मुनि... इंसानी शरीर में गुणसूत्र के विभक्तिकरण को समझ गए थे... और, हमें गोत्र सिस्टम में बांध लिया था।

इस बातों से एक बार फिर ये स्थापित होता है कि...
हमारा सनातन हिन्दू धर्म पूर्णतः वैज्ञानिक है।

बस, हमें ही इस बात का भान नहीं है।

असल में... अंग्रेजों ने जो हम लोगों के मन में जो कुंठा बोई है... उससे बाहर आकर हमें अपने पुरातन विज्ञान को फिर से समझकर, उसे अपनी नई पीढ़ियों को बताने और समझाने की जरूरत है।

नोट : मैं पुत्र और पुत्री अथवा स्त्री और पुरुष में कोई विभेद नहीं करता और मैं उनके बराबर के अधिकार का पुरजोर समर्थन करता हूँ।

लेख का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ... गोत्र परंपरा एवं सात जन्मों के रहस्य को समझाना मात्र है।

🙏🏻 जय सनातन ⛳

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