योग विज्ञान के अनुसार सिर के सबसे ऊपरी बिंदु पर एक छेद या मार्ग होता है, जिसे "ब्रह्मरंध्र" या "सहस्त्रार चक्र" कहते हैं। भारतीय ऋषि मुनि बताते रहें हैं कि इसी मार्ग से जीव गर्भ में पल रहे भ्रूण में प्रवेश करता है।रंध्र एक संस्कृत शब्द है मगर दूसरी भारतीय भाषाओं में भी इसका इस्तेमाल होता है। रंध्र का मतलब है- मार्ग, जैसे कोई छोटा छिद्र या सुरंग। यह शरीर का वह स्थान होता है, जिससे होकर जीवन भ्रूण में प्रवेश करता है।हठयोग में, मस्तिष्क के ऊपरी मध्य भाग में माना जानेवाला वह छिद्र या रंध्र जहाँ सुषुम्ना, इंगला और पिंगला ये तीनों नाड़ियाँ मिलती है। कहते है कि पुणात्मा लोगों और योगियों के प्राण इसी रंध्र को भेदकर निकलते हैं। ब्रह्म-रंध्र को शरीर का दसवाँ द्वार कहा जाता है। अन्य द्वार इन्द्रियाँ है जो खुली रहती है। किन्तु यह दसवाँ द्वार सदा बन्द रहता है। तपस्या द्वारा इसे खोला जाता है। इसके खुलने पर सहस्रार चक्र से अमृत रस निकलने लगता है जिससे योगी को अमर काया प्राप्त हो जाती है।
जब बच्चा पैदा होता है तो उसके सिर पर एक नर्म जगह होती है, जहां तब तक हड्डियां विकसित नहीं हुई होतीं, जब तक बच्चा एक खास उम्र में नहीं पहुंच जाता।
जीवन प्रक्रिया में इतनी जागरूकता होती है कि वह अपने विकल्पों को खुला रखता है। वह देखता है कि यह शरीर उस जीवन को बनाए रखने में सक्षम है या नहीं। इसलिए वह उस द्वार को एक खास समय तक खुला रखता है ताकि अगर उसे लगे कि यह शरीर उसके अस्तित्व के लिए ठीक नहीं है तो वह उसी रास्ते से चला जाए। वह शरीर में मौजूद किसी अन्य मार्ग से नहीं जाना चाहता, वह जिस तरह आया था, उसी तरह जाना चाहता है। एक अच्छा मेहमान हमेशा मुख्य द्वार से आता है और उसी से वापस जाता है। अगर वह मुख्य द्वार से आकर पिछले दरवाजे से चला जाए तो इसका मतलब है कि वह आपका घर साफ करके गया है! आप भी जब शरीर छोड़ते हैं, तो पूरी जागरूकता के साथ आप चाहे शरीर के किसी भी भाग से जाएं, उसमें कोई बुराई नहीं। लेकिन अगर आप ब्रह्मरंध्र से शरीर छोड़ सकें, तो यह शरीर छोड़ने का सबसे अच्छा तरीका है।
हो सकता है जीव लौट जाए और शिशु मृत पैदा हो
कई मेडिकल मामले हैं, जहां मेडिकल साईंस के सभी मानदंडों से भ्रूण के स्वस्थ होने और सब कुछ ठीक होने के बावजूद बच्चा मृत पैदा होता है।
इसकी वजह सिर्फ यह है कि भीतर मौजूद जीवन अब भी चयन कर रहा होता है। जब किसी भ्रूण के अंदर जीव प्रवेश करता है और शिशु बनने की प्रक्रिया में उस भ्रूण को ठीक नहीं पाता है, तो वह उससे बाहर निकल जाता है। इसीलिए एक द्वार खुला रखा जाता है।
यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में एक गर्भवती स्त्री के आस-पास अलग तरह का माहौल बनाने के लिए कई सावधानियां रखी जाती थीं। आजकल हम उन चीजों को आधुनिक बनने और मौडर्न बनने के चक्कर में छोड़ते जा रहे हैं, मगर इन सब के पीछे यही उम्मीद होती थी कि आपकी कोख में आने वाला आपसे बेहतर और स्वस्थ हो। इसलिए एक गर्भवती स्त्री को आराम और खुशहाली की एक खास स्थिति में रखा जाता था। उसके आस-पास सही तरह की सुगंध, ध्वनियों और भोजन की व्यवस्था की जाती थी। ताकि उसका शरीर सही किस्म के प्राणी का स्वागत करने के लिए अनुकूल स्थिति में हों।
ब्रह्मरंध्र एक प्रकार से जीवात्मा का कार्यालय है इस दृश्य जगत में जो कुछ है और जहाँ तक हमारी दृष्टि नहीं पहुँच सकती उन सबकी प्राप्ति की प्रयोगशाला है। भारतीय तत्त्वदर्शन के अनुसार यहाँ 17 तत्त्वों से संगठित ऐसे विलक्षण ज्योति पुँज विद्यमान् हैं जो दृश्य जगत में स्थूल नेत्रों से कहीं भी नहीं देखे जा सकते।
साभार : 🙏
#धर्मो_रक्षति_रक्षितः
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