शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

#असुर कौन होता है..?

कुछ लोगों को यह भ्रम हो गया है की असुर कोई पौराणिक काल में होने वाला काल्पनिक पदार्थ था, जो बीस फ़ीट लम्बा या उसके सिर पर सींग था।

जबकि ऐसा नहीं हैं...

आपने और हमने, हम सब ने एक बात सुनी होगी, कही होगी... "एक ही ज़िन्दगी मिली हैं, जम कर जियो।"

अब 'जम कर जियो' के स्थान पर... जम कर पियो, जम कर सिनेमा देखो, जम कर भोजन करो और रात में जाकर डांस क्लब इत्यादि में डांस करो।

यहाँ ध्यान रखिए... मनोरंजन, भोजन और नृत्य पर आक्षेप नहीं किया जा रहा। यहाँ उस मानसिकता पर आक्षेप किया जा रहा है जो एक ही ज़िंदगी हैं, 'जो मन में आए वह करो' वाली उच्छृंखल मानसिकता पर बात की जा रही है।

अब आते हैं, मूल प्रश्न पर... असुर कौन है ? 

संस्कृत भाषा में असु का अर्थ इंद्रियाँ होता है अर्थात् जो अपनी ही इंद्रियों में रमण करे वह असुर होता है।

और जैसे ही व्यक्ति अपने इंद्रियों के सुख में रमण करने लगता है, उसमें और इंद्रिय सुख भोगने की वासना बढ़ने लगती हैं। और वासना की पूर्ति न होने पर क्रोध और हिंसा रूपी आसुरी सम्पदा का प्रभाव भी पड़ने लगता हैं।

अत: निवेदन है कि आप जीवन एक माने या अनेक पर मन को उच्छृंखल न होने दें और जिस प्रकार भौतिक संसार में हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती हैं, उसी प्रकार आध्यात्मिक जगत ( शरीर के अंदर मन में ) में होने वाली आसुरी सम्पदा को दैवीय सम्पदा से ही नियंत्रित किया जा सकता हैं। 

आइए, हम सब अपने हृदय में रहने वाले उस असुर को जो स्वंयम की वासनाओं को भड़काता रहता हैं, उसे मारें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें