शनिवार, 4 सितंबर 2021

तो आज उर्दू हमारी राजभाषा होती...

हिंदी पखवाड़ा चल रहा है... ऐसे में एक शख्स को याद करना बेहद जरूरी है, जो नहीं होते तो आज उर्दू हमारी राजभाषा होती। वो थे - भारतेंदु हरिश्चंद्र ⛳

1192 में दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज तृतीय की पराजय के बाद से ही उत्तर में हिन्दी की स्थिति ज्यादा मजबूत नही रह गयी थी उसकी जगह फारसी ले चुकी थी। सिर्फ राजपूताना शेष था जो अब भी हिन्दी मे कार्य कर रहा था मगर धीरे धीरे वह मुगलो के हाथ मे आ गया और आधिकारिक स्तर पर हिन्दी अब बस एक समय की बात होकर रह गयी।

1757 में मुगलो की सत्ता उजड़ गयी और मराठो का प्रादुर्भाव हुआ, मराठो की राजभाषा संस्कृत तथा मराठी थी और फारसी को वे स्वीकारना नही चाहते थे। अंततः पुनः देवनागरी लिपि में हिंदुस्थानी लिखी जाने लगी, हिंदुस्थानी में हिंदी और उर्दू दोनों शब्दों का मेल था।

मगर देवनागरी का प्रयोग उस समय बहुत कठिन बात थी, इसलिए सिर्फ मराठा राजाओ और पेशवाओ को पत्र लिखते समय ही इसका प्रयोग होता था बाकी उर्दू और फारसी चलती रही। 1818 में मराठा साम्राज्य गिर गया और अंग्रेजो का शासन आया तो अंग्रेजी चरम पर पहुँच गयी।

हिन्दी पहले ही उर्दू से जूझ रही थी अब अंग्रेजी भी सिर पर खड़ी हो गयी। अंततः 9 सितंबर 1850 को वाराणसी के एक धनाढ्य अग्रवाल परिवार में भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म हुआ। 15 वर्ष के होने तक उन्होंने हिन्दी व्याकरण के सभी शब्दो को खोज लिया।

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिन्दी के प्रचार के लिये पानी की तरह पैसा बहाया, हिन्दू राजाओ से अपील भी की कि वे अपने राजकार्य हिन्दी मे करे। इस बीच उन्होंने दो नाटक लिखे "अंधेर नगरी" और "भारत की दुर्दशा", ये वे लेख थे जिन्होंने हिन्दी की क्रांति में मुख्य भूमिका निभाई।

एक बार काशी नरेश ने भारतेंदु से कहा, ‘बबुआ! घर को देखकर काम करो।’ इस पर उनका उत्तर था,‘हुजूर! इस धन ने मेरे पूर्वजों को खाया है, अब मैं इसे खाऊंगा।’

इन लेखों के माध्यम से उन्होंने हिन्दू धर्म मे लोगो की आस्था पुनः जगा दी और आखिरकार 1885 में उनकी मृत्यु हो गयी। वे जब स्वर्ग सिधारे उनके पास कोई विशेष संपत्ति नही रह गयी थी हिन्दी के उत्थान में उन्होंने अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया था। भारतेंदु उन्हें उपाधि मिली थी, जिसका अर्थ था भारत का चंद्रमा।

भारतेंदु हरिश्चंद्र के बाद तो मानो हिन्दी कवियों का मेला लग गया, मैथिलीशरण गुप्त और माखनलाल चतुर्वेदी ने हिन्दी को पूरे भारत मे पहचान दिला दी। 1911 में बॉलीवुड की प्रथम फ़िल्म हरिश्चंद्र आयी, दादा साहेब फाल्के ने इसकी डबिंग पूर्ण हिन्दी में करके सूर्यवंश कालीन भारत जगा दिया। आज का बॉलीवुड जो भी हो तब के बॉलीवुड ने हिन्दी प्रचार में चार चाँद लगा दिए थे।

अंततः 1947 तक वीर सावरकर, महात्मा गांधी, गुरु गोलवलकर, पंडित नेहरू और सुभाषचंद्र बोस जैसे दिग्गज नेता अपने अपने कार्यक्षेत्र में हिन्दी ला चुके थे। ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्त होते ही सारे राजकार्य हिन्दी मे आरंभ हो गए, हालांकि अब फिर से इसके साथ छेड़छाड़ जारी है उर्दू शब्दो को फिर से इसमें मिलाकर एक प्रयास जारी है कि हिन्दी को कभी प्राचीन भाषा का दर्जा ना मिले।

जिस बॉलीवुड ने हिन्दी को खड़ा करने में मुख्य भूमिका निभाई उस पर अंडरवर्ल्ड का साया पड़ने लगा, अब तो ये बात फैलाई जाने लगी कि भारत के पास अपनी कोई भाषा नही थी मुगलो ने आकर पढ़ना लिखना सीखाया। बहरहाल चुनौतियां हर युग मे है, हमारा युग भारतेंदु हरिश्चंद्र जितना बुरा भी नही है। जब जब हिन्दी पर संकट मंडराएगा भारतेंदु अवश्य जन्म लेंगे।

आप बस ये ध्यान रखे कि कोई नागरिक ये ना कहे कि उर्दू भारत की मूल भाषा है या फिर हिन्दी पुरानी है तो उसमे उर्दू शब्द क्यो है? हिन्दी मे जबरदस्ती परिवर्तन किये गए है इसलिए उसका स्वरूप बिगड़ा, पृथ्वीराज के काल तक शुद्ध हिन्दी ही हमारी राष्ट्रभाषा थी।


लेखक - परख सक्सेना

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