गणेश जी पेशवाओं के ईष्ट देवता थे। पेशवाई के दौरान मराठा साम्राज्य में गणेश पूजा का शाही महत्व था। अंग्रेजों के उदय के साथ गणेश पूजा पारिवारिक उत्सव बन कर रह गया लेकिन लोकमान्य तिलक ने शिवाजी जयंती और गणेश चतुर्थी को फिर से समाज के बीच में स्थापित कर दिया।
क्या शिवाजी जयंती देश की राजनीतिक एकता में बाधक होगी..?
ऐसे सवालों के साथ तिलक के ऊपर संपादकीय लिखे गए।
महाराष्ट्र के बाहर शिवाजी महाराज की स्वीकार्यता होगी..!
इस पर संदेह जताया गया।
आज सौ साल के बाद देखिए...
गणेश चतुर्थी महाराष्ट्र के बाहर निकल एक आखिल भारतीय त्योहार बन चुका है। हिन्दू जनमानस में शिवाजी महाराज का क्या दर्जा है, लिखने की जरूरत नहीं...
ऐसा होता है जब आप अपनी संस्कृति पर टिके रहते हैं, उसे लेकर आगे बढ़ते हैं... धीरे-धीरे वो समाज की मुख्यधारा बन जाती है।
वहीं दूसरी तरफ बंगाल को देखिए... एक ऐसा राज्य जिसे अंग्रेजों ने सीधे मुगलों से जीता, जहां राम नाम को राजनीतिक तौर पर बाहरी बताया गया और जिस दूर्गा पूजा को बंगाल की संस्कृति माना गया, वो दूर्गा पूजा आधी बंग भूमि (बांग्लादेश) से भी समाप्त हो गई।
गणेश चतुर्थी और दूर्गा पूजा हमें बताते हैं, राजनीतिक तौर पर सजग रहने का क्या संस्कृतिक महत्व होता है।
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