जनेऊ निम्न प्रकार के बताए गए हैं...
(1) ब्राह्मण जनेऊ में सात ग्रन्थियां लगायी जाती हैं। ब्राम्हणों के यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि होती है। तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है। (2) 6 सूत्रों वाला जनेऊ क्षत्रिये के लिये, इसमें गोत्र के जितने प्रवर होंगे उतने ग्रन्थियां लगेंगी। (3)9 सूत्रों वाला जनेऊ यह वैश्य वर्ग के द्विजों केलिये होता है। (4) कुछ ब्राह्मणों में ऐसी भी मान्यता है कि ब्रह्मचारी तीन और विवाहित छह धागों की जनेऊ पहनता है। यज्ञोपवीत के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के बतलाए गए हैं। इस प्रकार से भिन्न भिन्न वेद शाखाओं में भिन्न भिन्न तरह के परम्पराओं का जनेऊ के सम्बन्ध में मान्यताएं हैं। अर्थात परम्परा भेद होता है। जिसकी जो परपरा होती है वो उसी के अनुसार जनेऊ धारण करता है।यज्ञोपवीत की लंबाई 96 अंगुल होती है। अर्थात कमर से नीचे जहां तक सिद्धे में हमारी हथेली जाए।उपनयन संस्कार (जनेऊ धारण करना) का अधिकार केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य को दिया गया था। शूद्रों को उपनयन संस्कार का अधिकार नहीं है। ब्राह्मण सूत का जनेऊ क्षत्रिय सन का जनेऊ और वैश्य उन का जनेऊ पहनते हैं। ब्राह्मण केलिये जनेऊ वसन्त ,क्षत्रिय केलिये ग्रीष्म और वैश्य केलिये शरद ऋतु रखा गया है। इस प्रकार और बाटे भी हैं लेकिन अगर समुचित रूप से कहें तो जनेऊ के तीन प्रकार होते हैं जो ब्राह्मण जनेऊ वैश्य जनेऊ और क्षत्रिय जनेऊ के रूप में है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें