हिन्दू धर्म एक समुद्र की तरह है, यहाँ हर तरह की पूजा पद्धति हैं। ये कोई पंथ या संप्रदाय नहीं है, जो एक ही दिशा में बहेगा। हिन्दू धर्म में प्रतिमा स्थापन का विधान है। मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का विधान है, यज्ञ किया जाता है, शक्तियां उतरती है मन्त्रों के द्वारा...
अगर आप मिट्टी का पार्थिव शिव लिंग भी बनाते है, तब भी आवाहन होता है और पूजा करने के बाद विसर्जन होता है। जैसे कि नवरात्री में दुर्गा पूजा और गणेश उत्सव...
बहुत से लोग ये कहते हैं कि हिन्दू धर्म में बहुत से देवी-देवता हैं तो मैं इसके बारे में बोलना चाहूंगा कि हिन्दू धर्म भगवान को एक नहीं, अनंत मानता है। हिन्दू धर्म का मानना हैं, भगवान एक रूप में नहीं बंधे हुए है वो अनंत रूपों को धारण कर सकते हैं और किया हुआ भी है। हिन्दू धर्म एक भगवान कि जगह अनेक नहीं, बल्कि अनंत रूप को मानता है। हिन्दू धर्म इस बात कि पुष्टि करता है कि भगवान अनंत है। आपको जिस किसी एक कि पूजा करनी है वो करो या अनेक की करो...
यदि भगवान की मूर्ति महज मूर्ति है क्योंकि वो पत्थर या मिट्टी की बनी है, तब तो जितने भी धार्मिक ग्रन्थ कागज के बने हुए हैं तो क्या धार्मिक ग्रन्थ पढ़ना केवल कागज की पूजा करना हैं..? ऐसा नहीं है। तब तो जितनी भी पाठ, पूजा, मंत्र, प्रार्थना सब व्यर्थ ही है। अ, आ, इ, क, ख, ग इन्हीं शब्दों से ही तो मिलकर बने हैं सारे मंत्र, तो क्या इसे शब्द की पूजा बोली जाये..? पर ऐसा नहीं है।
मूर्ति, कागज या शब्द भगवान से जुड़ने के बाद भगवान को रिप्रेजेंट करती है। ठीक उसी तरह किसी देश का झंडा, उस देश को रिप्रेजेंट करता है। आप उसे महज कपड़े का टुकड़ा समझकर, उस के साथ ख़राब बर्ताव नहीं कर सकते..! करके देखिये आपके ऊपर देशद्रोह का मुकदमा हो जायेगा।
कुछ लोग ये बोलते हैं कि "एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति" तो वो एक एक्सट्रीम ह्य्पोथेटिकल कंडीशन है। जिसमें ये माना जाता हैं कि सब में ब्रह्म रूप परमात्मा हैं। उसमें ये माना जाता है कि शैतान में भी वही ब्रह्म हैं और भगवान में भी वही ब्रह्म हैं, और मैं भी ब्रह्म हूँ। तभी कुछ लोग बोलते हैं कि "अहम् ब्रह्मास्मि" यानि मैं ब्रह्मस्वरूप हूँ। ये उन लोगों के लिए हैं जो ज्ञानी हैं, जिसकी कुण्डिलिनी जागृत हो चुकी हैं, जो तुर्या अवस्था में हैं।(प्राणियों की चार अवस्थाओं में से अन्तिम अवस्था जो ब्रह्म में होने वाली लीनता या मोक्ष हैं) आम जिंदगी में कोई भगवान और शैतान को एक कैसे मान सकता हैं..!
पूजा करने के यही तीन रास्ते हैं, आप किसी भगवान की मूर्ति का अभिषेक कर रहें हैं या फिर कोई घार्मिक ग्रन्थ पढ़ रहे हैं या फिर कोई मंत्र का जप कर रहे हैं।
निराकार का प्रतीकात्मक सूचक क्या है, खाली आकाश जो चारों तरफ फैला है। तो पूर्वजों ने आसान तरीका मूर्ति पूजा के रूप में चुना, साकार और निराकार वैसे ही है जैसे बर्फ और पानी...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें