मंगलवार, 30 मई 2023

मंदिर की पैड़ी पर कुछ देर क्यों बैठा जाता हैं..?

बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पैड़ी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठना चाहिए। 
क्या आप जानते हैं, इस परंपरा के पीछे क्या कारण हैं..?
आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर की, व्यापार की, राजनीति की चर्चा करते हैं परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई हैं। वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ करके हमें एक श्लोक बोलना चाहिए, यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं। 
आप इस श्लोक को जाने और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं... यह श्लोक इस प्रकार हैं :-

अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

इस श्लोक का अर्थ है-

🔱 अनायासेन मरणम्... अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो, हम बीमार होकर बिस्तर पर पड़े-पड़े कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो। चलते-फिरते ही हमारे प्राण निकले।

🔱 बिना देन्येन जीवनम्... अर्थात परवशता का जीवन ना हो, मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो। ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सकें।

🔱 देहांते तव सानिध्यम... अर्थात जब भी मृत्यु हो तब आपके (भगवान के) सम्मुख हो, जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए थे। आपके (ईश्वर के) दर्शन करते हुए प्राण निकले।

🔱 देहि में परमेशवरम्... हे परमेश्वर! ऐसा वरदान हमें देना...

यह प्रार्थना करें गाड़ी, लाडी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन यह नहीं मांगना हैं..! यह तो भगवान आपकी पात्रता के हिसाब से स्वयं ही आपको देते हैं। 
इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए।
यह प्रार्थना है, याचना नहीं हैं..! याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती हैं, वह याचना हैं, भीख हैं।

हम प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ... अर्थना अर्थात निवेदन... ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना हैं..! यह श्लोक बोलना हैं।

सब_से_जरूरी_बात

जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए, उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं। आंखें बंद क्यों करना..? हम तो दर्शन करने आए हैं।

भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, मुखारविंद का, श्रंगार का, संपूर्णानंद लें। आंखों में भर लें, स्वरूप को... दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं, उस स्वरूप का ध्यान करें। मंदिर में नेत्र नहीं बंद करना..!

बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें, तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें। नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।

यहीं शास्त्र हैं, यहीं बड़े बुजुर्गो का कहना हैं।

✊🏻 जय सनातन 🙇🏻 जय श्री राम 🚩

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