शुक्रवार, 17 जनवरी 2025

भारत में रहने वाला हर प्राणी चाहे वो किसी भी पथ/मजहब को मानता हो, क्या वह हिंदू हैं..!

हिन्दूभूमि अर्थात् हिंदुस्तान (अंक -१)
विदेशी दार्शनिकों एवं पर्यटकों की दृष्टि में हिन्दू 

मौलाना जलालुद्दीन रूमी ने पुस्तक " दफ्तर दोयम " में हिंदू देश (भारत) के निवासी मुसलमानों को भी हिन्दू कहकर संबोधित किया है - 
" चार हिंदू दर यके मस्जिद शुदंद , बहरे ताअत रा के ओ साजिद शुदंद  " (मसनवी मौलवी मानवी , नवल किशोर प्रेस 1866 ईसवी ) 
सरलार्थ -- चार हिंदू ( मुसलमान ) एक मस्जिद में गए और इबादत के निमित्त सिजदा करने लगे।
उनकी दृष्टि में हिंदुस्तान का प्रत्येक व्यक्ति , चाहे वह  इस्लाम मजहब को ही क्यों न मानता हो , हिंदू ही था।

" Theogony of the Hindus " के लेखक काउंट जेना लिखते हैं - 
" आर्यावर्त केवल हिंदू धर्म का ही घर नहीं , वरन् संसार की सभ्यता का आदि भंडार है। "
विद्वान काउंट जेना आर्यावर्त (भारत भूमि) को हिंदू धर्म का घर यानी हिंदू भूमि ही मानते  हैं।

दैनिक ट्रिब्यून के 20 फरवरी 1884 के अंक में सर डी ओ ब्राउन ने स्वीकार किया है - 
" यदि हम पक्षपातरहित होकर भली-भांति परीक्षा करें , तो हमें स्वीकार करना पड़ेगा कि हिंदू ही सारे संसार के धर्म और सभ्यता के जन्मदाता हैं। "
यह एक शाश्वत तथ्य है कि भारत ने ही समग्र संसार को अपने ज्ञान की किरणों से आलोकित किया था। उस भारत में रहनेवाले लोगों के लिए ही " हिन्दू " शब्द का प्रयोग किया गया है।

अलबरूनी ने लिखा - 
" हिंदू लोगों में 18 अंकों की संख्या तक के नाम हैं और ये उसे परार्द्ध कहते हैं। "
हम सभी जानते हैं कि " परार्द्ध " शब्द सनातन काल से हमारे संकल्प में व्यक्त होता आ रहा है। यह शब्द ऋषियों द्वारा प्रणीत शब्द है। प्राचीन काल से इस भूमि पर रहनेवाले समाज को ही अलबरूनी ने " हिंदू " शब्द से संबोधित किया गया है।

हजरत मोहम्मद साहब के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम की कविता प्राचीन अरबी काव्य संग्रह " सेअरुल  ओकुल " में लिखी हुई है , जिसमें " हिंदे " तथा " हिंदू " शब्द का प्रयोग हुआ है। उनकी यह कविता नई दिल्ली स्थित मंदिर मार्ग पर श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर (बिड़ला मंदिर) की वाटिका में यज्ञशाला के लाल खंभे (स्तंभ) पर काली स्याही से लिखी हुई है।

ईरान से आए एक पठान , गोकुल ग्राम के निकट एक कुटी में रहते थे , वे " रसखान " के नाम से प्रसिद्ध थे। वे भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे। ईरान से उनके भाई एवं बहन अपनी मां की खराब तबीयत का समाचार देने आए थे , ताकि वे अंतिम समय में अपनी मां से मिल सके। उनके सगे भाई का नाम जाफर अली खान और बहन का नाम ताज बीबी था। रसखान ने वापस जाने से इंकार कर दिया। रसखान ने दोनों को राधा-कृष्ण की मूर्ति के दर्शन कराए , जिनके सामने बैठकर वे छंदों की रचना करते थे। दोनों भाई - बहन पूरी उम्र के लिए यहीं बस गए। उनकी बहन " ताज " कृष्ण-भक्त बन गईं। " ताज " की यह पंक्ति बहुत प्रसिद्ध है -
हौं तो मुगलानी , पर हिंदुआनी ही रहूंगी मैं ।।

इस प्रकार हमारे ध्यान में आता है कि भारत में रहनेवाले लोगों को सारी दुनिया " हिन्दू " के नाम से ही जानती थी। अर्थात् भारत भूमि का परिचय विश्व में हिंदू भूमि के रूप में ही होता था। (क्रमशः)
।। भारत माता की जय ।।

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