सोमवार, 10 मार्च 2025

हे पुरुष, महान मैं नहीं..! तुम हो...

हे पुरुष, महान मैं नहीं..! तुम हो...
तुम न हो तो मेरा श्रृंगार अधूरा रहता हैं..!
तुम न हो तो मुझे माँ का दर्जा भी न मिले..!
तुम्हारी वजह से मुझे भाभी, माँ, मौसी, मामी, चाची ये तमाम रिश्ते मिलते हैं...
सहजता और समर्पण तो कोई तुमसे सीखें, सब कुछ करते तुम हो और नाम हमारा देते हो... कमाते तुम हो और जेब मेरी भरी होती है। सब्ज़ी तुम लाते हो, पेट मेरा भरता है। बैंक बैलेंस तुम्हारा होता हैं, मालकिन मैं होती हूँ। 
मैं तो तुम्हें दिखाकर रो लेती हूँ, पर तुम कभी मेरे सामने नहीं रोते..! 
तुम अंधेरे में भी परछाई बनकर खड़े होते हो। दुनिया को सिर्फ मैं दिखाई देती हूँ लेकिन मेरे अंदर मज़बूती भरने वाले तुम दुनिया को नहीं दिखते..!
मुझे तो श्रृंगार की ज़रूरत पड़ती हैं,तुम तो कुदरती खूबसूरत हो...
तुम इतने महान हो कि अपनी महानता का बखान भी नहीं करते..! 
अगर मैं अपना परिवार छोड़कर तुम्हारे घर आती हूँ तो तुम भी तो छोड़ते हो अपनी बुरी आदतें... तुम भी तो छोड़ते हो अपना अस्तित्व और समाहित हो जाते हो मुझमें, जैसे एक नदी सागर में विलीन होती है। 
मुझे ममता की मूर्त कहा जाता है लेकिन मुझसे ज़्यादा तो ममत्व तुम्हारे अंदर हैं, बस तुम्हें अनुमति नहीं दी गयी कि तुम इसे प्रदर्शित करो। लेकिन मैं स्त्री हूँ ना, मैं समझती हूँ तुम्हारा दर्द, तुम्हारा अवसाद... 
तुमने हमें और महान बताने के लिए हमारा दिवस भी बना दिया... लेकिन सच पूछो तो इस दुनिया में तुमसे अधिक महान कोई नहीं हैं..! 
मेरा कंधा तुम्हारे आसुंओं के लिए हमेशा हैं... मेरी बाहें तुम्हारे दर्द को समेटने के लिए, मेरे होंठ तुम्हारी सफलता को चूमने के लिए, मेरा सर तुम्हें सजदा करने के लिए...
हे ईश्वर! मुझे हर जन्म में एक स्त्री ही बनाना ताकि मैं एक पुरुष को अपनी कोख से पैदा कर सकूँ।
- Jyoti Tripathi

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