समझिये...
बिना स्तन कोई स्त्री की कल्पना व्यर्थ है..!
इसे फैशन या दिखावा ना बनायें..!
और अगर दिखाना ही है तो आपका पति है, दूसरे को क्यों दिखाना..?
स्त्री के स्तनों से जुड़ा होता है, स्त्री का सारा व्यक्तित्व...
जब तक स्त्री माँ नहीं बन जाती, तब तक उसकी ऊर्जा पूर्णतः स्तनों तक नहीं पहुँचती..!
शरीर शास्त्री ये प्रश्न उठाते रहते हैं कि पुरूष के शरीर में स्तन क्यों होते हैं..? जबकि उनकी कोई आवश्यकता नहीं दिखाई देती है, क्योंकि पुरूष को बच्चे को दूध तो पिलाना नहीं है..! फिर उनकी क्या आवश्यकता है।
वे ऋणात्मक ध्रुव है, इसलिए तो पुरूष के मन में स्त्री के स्तनों की और इतना आकर्षण है। वे धनात्मक ध्रुव है।
इतने काव्य, साहित्य, चित्र, मूर्तियां सब कुछ स्त्री के स्तनों से जुड़े है। ऐसा लगता है जैस पुरूष को स्त्री के पूरे शरीर की अपेक्षा उसके स्तनों में अधिक रस है और यह कोई नई बात नहीं है, गुफाओं में मिले प्राचीनतम चित्र भी स्तनों के ही है। स्तन उनमें महत्वपूर्ण है, बाकी का सारा शरीर ऐसा मालूम पड़ता है कि जैसे स्तनों के चारों और बनाया गया हो।
स्तन आधार भूत है, क्योंकि स्तन उनके धनात्मक ध्रुव है। और जहां तक योनि का प्रश्न है, वह करीब-करीब संवेदन रहित है। स्तन उसके सबसे संवेदनशील अंग है और स्त्री देह की सारी सृजन क्षमता स्तनों के आस-पास है।
यही कारण है कि हिंदू कहते है कि जबतक स्त्री मां नहीं बन जाती, वह तृप्त नहीं होती..! पुरूष के लिए यह बात सत्य नहीं है, कोई नहीं कहेगा कि पुरूष जब तक पिता न बन जाए तृप्त नहीं होगा..! पिता होना तो मात्र एक संयोग है। कोई पिता हो भी सकता है, नहीं भी हो सकता है। यह कोई बहुत आधारभूत सवाल नहीं है। एक पुरूष बिना पिता बने रह सकता है और उसका कुछ न खोये..!
लेकिन बिना मां बने स्त्री कुछ खो देती है। क्योंकि उसकी पूरी सृजनात्मकता, उसकी पूरी प्रक्रिया तभी जागती है; जब वह मां बन जाती है। जब उसके स्तन उसके अस्तित्व के केंद्र बन जाते है, तब वह पूर्ण होती है। वह स्तनों तक नहीं पहुंच सकती..! यदि उसे पुकारने वाला कोई बच्चा न हो।
तो पुरूष स्त्रियों से विवाह करते है ताकि उन्हें पत्नियाँ मिल सके, और स्त्रियां पुरूषों से विवाह करती है ताकि वे मां बन सकें, इसलिए नहीं कि उन्हें पति मिल सकें। उनका पूरा का पूरा मौलिक रुझान ही एक बच्चा पाने में है, जो उनके स्त्रीत्व को पुकारें।
पश्चिम में बच्चों को सीधे स्तन से दूध न पिलाने का फैशन हो गया है, यह बहुत खतरनाक है। क्योंकि इसका अर्थ यह हुआ कि स्त्री कभी अपनी सृजनात्मकता के केंद्र पर नहीं पहुंच सकेगी। जब एक पुरूष किसी स्त्री से प्रेम करता है तो वह उसके स्तनों को प्रेम कर सकता है, लेकिन उन्हें मां नहीं कह सकता..!
केवल एक छोटा बच्चा ही उन्हें मां कह सकता हैं।
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