शनिवार, 16 अगस्त 2025

शक्ति जिम्मेदारी का भाव लेकर आये तो वो श्री हरि कृष्ण कहलाती हैं...

जब बलराम कान्हा से बोले कि कान्हा दुनिया हमें कायर कहेगी... जब हमारे आगे कोई टिक ही नहीं सकता तो युद्ध से इन्कार क्यों..? 

जब तुम्हारा चक्र चलेगा तो कौन-सी सेना हैं, जो उसका सामना कर पायेगी..? 

तब कान्हा बोले कि दाऊ, हर गर्दन चक्र सुदर्शन चलाने के लिए नहीं होती..!

शक्ति है तो इसका अर्थ यह नहीं कि हर किसी से लड़ते फिरें...

मैं रणछोड़ कहलाना पसंद करूँगा अगर ऐसा कहलाने पर कई लोगों की जान बचती हो... 

इसी तरह जब महर्षि उत्ँग ने जब क्रोधित होकर कृष्ण को श्राप देने का प्रयास किया... तब भी श्री क्रष्ण क्रोधित नहीं हुए, उन्होंने बस इतना कहा कि ऋषिवर मुझे श्राप देकर आपको संतुष्टि मिलती है तो जरूर दे दो पर आपको यह बता दूँ कि उससे आपके ही तपोबल का नाश होगा क्योंकि आपके श्राप का मान तो मैं रख लूँगा पर उससे आपको कोई दीर्घकालिक लाभ नहीं होने वाला..!

क्षमा बड़न को चाहिये छोटन को उत्पात...
का प्रभु हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात...

जब महर्षि भृगु ने सोते हुए हरि की छाती पर लात से प्रहार किया तो श्री हरि बोले कि महर्षि मेरी छाती वज्र की तरह कठोर है तो कहीं आपके पैर में चोट तो नहीं आयी..?

तो श्री हरि कृष्ण जो कि विष्णु रूप हैं, जो कभी जीत का भाव न हार का भाव मन में लाते हैं..!

तो अगर उनका जन्मदिन मना ही रहे हैं तो सीखें
कि दुनिया उन्हें क्या कहेगी, इसका उन्होंने कभी ख्याल नहीं किया..! जिस-जिस ने उनका मजाक उड़ाया, उनका अपमान किया या उनको अपशब्द कहे... उसको उन्होंने उसके ही हाल पर छोड़कर आगे की राह पकड़ ली...

शक्ति जिम्मेदारी का भाव लेकर आये तो वो श्री हरि कृष्ण कहलाती हैं...

चाहते तो कौन-सा योद्धा था, जो महाभारत में उनके सामने टिकता पर उनसे अटकने में कभी समय खर्च नहीं किया..! जब लड़े तो अपने कद के योद्धाओं से लड़े, अन्यथा हँस कर आगे बढ़ गये...

#मनकीबात

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