गुरु के आगे राजा शीश नवाते थे।
राज-समस्या को गुरु ही सुलझाते थे।
अब राजा के सम्मुख क्या कदर है दोस्तों...
“सर” को नैतिक शिक्षा पर बल देना होगा...
“मैडम”को ममता का आँचल देना होगा...
आँख खुले तो समझो नई सहर है दोस्तों...
गुरु की खोई महिमा को लौटाना होगा...
हर शाला को गुरुकुल पुन: बनाना होगा...
शिक्षक का गुरुकुल ही तो घर है दोस्तों...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें