शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

सावन माह में शिवलिंग पर दूध क्यों..?

भगवान शिव को दूध चढ़ाना एक पुण्य का काम माना जाता है. शिवलिंग का जलाभिषेक करने के साथ ही दूध से अभिषेक करने की परम्परा का देश भर में पूरी आस्था से पालन किया जाता है. सावन में शिवलिंग पर दूध चढ़ाना तो जैसे अनिवार्य ही समझा जाता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है? असल में इसके दो कारण हैं, आइये इनके बारे में विस्तार से जानते हैं-

पौराणिक कथा

समुद्र मंथन की पूरी कथा विष्णुपुराण और भागवतपुराण में वर्णित है. जिसमें एक कथा मिलती है. इस कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब विष की उत्पत्ति हुई थी तो पूरा संसार इसके तीव्र प्रभाव में आ गया था. जिस कारण सभी लोग भगवान शिव की शरण में आ गए क्योंकि विष की तीव्रता को सहने की ताकत केवल भगवान शिव के पास थी. शिव ने बिना किसी भय के संसार के कल्याण हेतु विष पान कर लिया. विष की तीव्रता इतनी अधिक थी कि भगवान शिव का कंठ नीला हो गया.
विष का घातक प्रभाव शिव और शिव की जटा में विराजमान देवी गंगा पर पड़ने लगा. ऐसे में शिव को शांत करने के जल की शीलता भी काफी नहीं थी. सभी देवताओं ने उनसे दूध ग्रहण करने का निवेदन किया. लेकिन अपने जीव मात्र की चिंता के स्वभाव के कारण भगवान शिव ने दूध से उनके द्वारा ग्रहण करने की आज्ञा मांगी. स्वभाव से शीतल और निर्मल दूध ने शिव के इस विनम्र निवेदन को तत्काल ही स्वीकार कर लिया. शिव ने दूध को ग्रहण किया जिससे उनकी तीव्रता काफी सीमा तक कम हो गई पंरतु उनका कंठ हमेशा के लिए नीला हो गया और उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना जाने लगा.

शिव के शरीर में जाकर विष के अनिष्टकारी प्रभाव को कम करने के कारण दूध भगवान् शिव को अत्यंत प्रिय है, यही कारण है कि शिवलिंग पर दूध जरूर चढ़ाया जाता है.

वैज्ञानिक कारण

भारत की ज्यादातर परम्पराओं और प्रथाओं के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण जरूर मौज़ूद है, जिसकी वजह से ये परम्पराएं और प्रथाएं सदियों से चली आ रहीं हैं. शिवलिंग पर दूध चढ़ाना भी ऐसे ही एक वैज्ञानिक कारण से जुड़ा हुआ है खासतौर पर सावन (श्रावण) के महीने में मौसम बदलने के कारण बहुत सी बीमारियां होने की संभावना रहती है, क्योंकि इस मौसम में वात-पित्त और कफ़ के सबसे ज्यादा असंतुलित होने की संभावना रहती है, ऐसे में दूध का सेवन करने से आप मौसमी और संक्रामक बीमारियों की चपेट में जल्दी आ सकते हैं. इसलिए सावन में दूध का कम से कम सेवन वात-पित्त और कफ की समस्या से बचने का सबसे आसान उपाय है इसलिए पुराने समय में लोग सावन के महीने में दूध शिवलिंग पर चढ़ा देते थे, साथ ही सावन के मौसम में बारिश के कारण जगह-जगह कई तरह की घास-फूस भी उग आती है, जिसका सेवन मवेशी कर लेते हैं, लेकिन यह उनके दूध को ज़हरीला भी बना सकता है. ऐसे में इस मौसम में दूध के इस अवगुण को भी हरने के लिए एक बार फिर भोलेनाथ, शिवलिंग के रूप में समाधान बनकर सामने आते हैं और दूध को शिवलिंग पर अर्पित करके आम लोग मौसम की कई बीमारियों के साथ-साथ दूध के कई अवगुणों से ग्रसित होने से बच पाते हैं.

इन्हीं कारणों से सदियों से शिवलिंग पर दूध चढ़ाया जाता आ रहा है. सतयुग में धरती पर जीवमात्र की रक्षा के लिए भगवान् शिव ने विषपान किया था, शिवलिंग पर जल चढ़ाने की प्रथा के रूप में, दूध के विष बन जाने की सभी संभावनाओं पर विराम लगाते हुए आज भी भगवान् शिव मनुष्यों की सहायता कर रहे हैं.

इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाना केवल आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी उचित है.

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