शनिवार, 14 मार्च 2020

शीतला माता

शीतला माता एक प्रसिद्ध हिन्दू देवी हैं। इनका प्राचीनकाल से ही बहुत अधिक माहात्म्य रहा है। स्कंद पुराण में शीतला देवी का वाहन गर्दभ(गधा) बताया गया है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन(झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन्हें चेचक आदि कई रोगों की देवी बताया गया है। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है। चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत: कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। शीतला-मंदिरों में प्राय: माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है। शीतला माता के संग ज्वरासुर- ज्वर का दैत्य, ओलै चंडी बीबी - हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण- त्वचा-रोग के देवता एवं रक्तवती - रक्त संक्रमण की देवी होते हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नाशक जल होता है।

शीतला माता

Kalighat Shitala.jpg
शीतला माता
संबंधशक्ति अवतार
अस्त्रकलशसूप
झाड़ूनीम के पत्ते
जीवनसाथीशिव
सवारीगर्दभ

स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है:

वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।

मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।

अर्थात

गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी झाडू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।

मान्यता अनुसार इस व्रत को करने से देवी शीतला प्रसन्‍न होती हैं और व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोड़े, नेत्रों के समस्त रोग, शीतला की फुंसियों के चिन्ह तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं।

श्री शीतला चालीसा


दोहा
जय जय माता शीतला तुमही धरे जो ध्यान। 
होय बिमल शीतल हृदय विकसे बुद्धी बल ज्ञान ॥
घट घट वासी शीतला शीतल प्रभा तुम्हार। 
शीतल छैंय्या शीतल मैंय्या पल ना दार ॥

चालीसा
जय जय श्री शीतला भवानी। 
जय जग जननि सकल गुणधानी ॥
गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती। 
पूरन शरन चंद्रसा साजती ॥
विस्फोटक सी जलत शरीरा। 
शीतल करत हरत सब पीड़ा ॥
मात शीतला तव शुभनामा। 
सबके काहे आवही कामा ॥
शोक हरी शंकरी भवानी। 
बाल प्राण रक्षी सुखदानी ॥
सूचि बार्जनी कलश कर राजै। 
मस्तक तेज सूर्य सम साजै ॥
चौसट योगिन संग दे दावै। 
पीड़ा ताल मृदंग बजावै ॥
नंदिनाथ भय रो चिकरावै। 
सहस शेष शिर पार ना पावै ॥
धन्य धन्य भात्री महारानी। 
सुर नर मुनी सब सुयश बधानी ॥
ज्वाला रूप महाबल कारी। 
दैत्य एक विश्फोटक भारी ॥
हर हर प्रविशत कोई दान क्षत। 
रोग रूप धरी बालक भक्षक ॥
हाहाकार मचो जग भारी। 
सत्यो ना जब कोई संकट कारी ॥
तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा। 
कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा ॥
विस्फोटक हि पकड़ी करी लीन्हो। 
मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो ॥
बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा। 
मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा ॥
अब नही मातु काहू गृह जै हो। 
जह अपवित्र वही घर रहि हो ॥
पूजन पाठ मातु जब करी है। 
भय आनंद सकल दुःख हरी है ॥
अब भगतन शीतल भय जै हे। 
विस्फोटक भय घोर न सै हे ॥
श्री शीतल ही बचे कल्याना। 
बचन सत्य भाषे भगवाना ॥
कलश शीतलाका करवावै। 
वृजसे विधीवत पाठ करावै ॥
विस्फोटक भय गृह गृह भाई। 
भजे तेरी सह यही उपाई ॥
तुमही शीतला जगकी माता। 
तुमही पिता जग के सुखदाता ॥
तुमही जगका अतिसुख सेवी। 
नमो नमामी शीतले देवी ॥
नमो सूर्य करवी दुख हरणी। 
नमो नमो जग तारिणी धरणी ॥
नमो नमो ग्रहोंके बंदिनी। 
दुख दारिद्रा निस निखंदिनी ॥
श्री शीतला शेखला बहला। 
गुणकी गुणकी मातृ मंगला ॥
मात शीतला तुम धनुधारी। 
शोभित पंचनाम असवारी ॥
राघव खर बैसाख सुनंदन। 
कर भग दुरवा कंत निकंदन ॥
सुनी रत संग शीतला माई। 
चाही सकल सुख दूर धुराई ॥
कलका गन गंगा किछु होई। 
जाकर मंत्र ना औषधी कोई ॥
हेत मातजी का आराधन। 
और नही है कोई साधन ॥
निश्चय मातु शरण जो आवै। 
निर्भय ईप्सित सो फल पावै ॥
कोढी निर्मल काया धारे। अंधा कृत नित दृष्टी विहारे ॥
बंधा नारी पुत्रको पावे। जन्म दरिद्र धनी हो जावे ॥
सुंदरदास नाम गुण गावत। 
लक्ष्य मूलको छंद बनावत ॥
या दे कोई करे यदी शंका। 
जग दे मैंय्या काही डंका ॥
कहत राम सुंदर प्रभुदासा। 
तट प्रयागसे पूरब पासा ॥
ग्राम तिवारी पूर मम बासा। 
प्रगरा ग्राम निकट दुर वासा ॥
अब विलंब भय मोही पुकारत। 
मातृ कृपाकी बाट निहारत ॥
बड़ा द्वार सब आस लगाई। 
अब सुधि लेत शीतला माई ॥
यह चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय।
सपनेउ दुःख व्यापे नही नित सब मंगल होय ॥

                बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल किंतू।
          जग जननी का ये चरित रचित भक्ति रस बिंतू‌।।

                    ॥ इति ॥

श्री शीतला माता जी की आरती

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता

आदिज्योति महारानी सब फल की दाता | जय

रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता, 

ऋद्धिसिद्धि चंवर डोलावें, जगमग छवि छाता | जय

विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता, 

वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता | जय

इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा, 

सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता | जय

घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता, 

करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता | जय

ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता, 

भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता | जय

जो भी ध्यान लगावैं प्रेम भक्ति लाता, 

सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता | जय

रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता, 

कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता | जय

बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता, 

ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता | जय

शीतल करती जननी तुही है जग त्राता, 

उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता | जय

दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता, 

भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता | जय 


अस्य श्रीशीतलास्तोत्रस्य महादेव ऋषि:

अनुष्टुप् छन्द:, शीतला देवता, 

लक्ष्मी बीजम्, भवानी शक्ति:

सर्व-विस्फोटकनिवृत्तय विनियोग 


अर्थ – इस श्रीशीतला स्तोत्र के ऋषि महादेव जी, छन्द अनुष्टुप, देवता शीतला माता, बीज लक्ष्मी जी तथा शक्ति भवानी देवी हैं. सभी प्रकार के विस्फोटक, चेचक आदि, के निवारण हेतु इस स्तोत्र का जप में विनियोग होता है।

ईश्वर उवाच

वन्देSहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्।

मार्जनीकलशोपेतां    शूर्पालंकृतमस्तकाम्।। 1

अर्थ – ईश्वर बोले – गर्दभ(गधा) पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में मार्जनी(झाड़ू) तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वन्दना करता हूँ।

🙏🏻

वन्देSहं  शीतलां  देवीं  सर्वरोगभयापहाम्।

यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटकभयं महत्।। 2


अर्थ – मैं सभी प्रकार के भय तथा रोगों का नाश करने वाली उन भगवती शीतला की वन्दना करता हूँ, जिनकी शरण में जाने से विस्फोटक अर्थात चेचक का बड़े से बड़ा भय दूर हो जाता है।

🙏

शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्याहपीडित:।

विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति।। 3


अर्थ – चेचक की जलन से पीड़ित जो व्यक्ति “शीतले-शीतले” – ऎसा उच्चारण करता है, उसका भयंकर विस्फोटक रोग जनित भय शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।

🙏

यस्त्वामुदकमध्ये तु  धृत्वा पूजयते नर:।

विस्फोटकभयं  घोरं गृहे तस्य  न जायते।। 4


अर्थ – जो मनुष्य आपकी प्रतिमा को हाथ में लेकर जल के मध्य स्थित हो आपकी पूजा करता है, उसके घर में विस्फोटक, चेचक, रोग का भीषण भय नहीं उत्पन्न होता है।

🙏

शीतले  ज्वरदग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च।

प्रणष्टचक्षुष:   पुंसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम्।। 5


अर्थ – हे शीतले! ज्वर से संतप्त, मवाद की दुर्गन्ध से युक्त तथा विनष्ट नेत्र ज्योति वाले मनुष्य के लिए आपको ही जीवनरूपी औषधि कहा गया है।

🙏

शीतले तनुजान् रोगान्नृणां हसरि दुस्त्यजान्।

विस्फोटककविदीर्णानां   त्वमेकामृतवर्षिणी।। 6


अर्थ – हे शीतले! मनुष्यों के शरीर में होने वाले तथा अत्यन्त कठिनाई से दूर किये जाने वाले रोगों को आप हर लेती हैं, एकमात्र आप ही विस्फोटक – रोग से विदीर्ण मनुष्यों के लिये अमृत की वर्षा करने वाली हैं।

🙏

गलगण्डग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम्।

त्वदनुध्यानमात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम्।।7


अर्थ – हे शीतले! मनुष्यों के गलगण्ड ग्रह आदि तथा और भी अन्य प्रकार के जो भीषण रोग हैं, वे आपके ध्यान मात्र से नष्ट हो जाते हैं।

🙏

न मन्त्रो नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते। 

त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम्।।8


अर्थ – उस उपद्रवकारी पाप रोग की न कोई औषधि है और ना मन्त्र ही है. हे शीतले! एकमात्र आप जननी को छोड़कर (उस रोग से मुक्ति पाने के लिए) मुझे कोई दूसरा देवता नहीं दिखाई देता।

🙏

मृणालतन्तुसदृशीं   नाभिहृन्मध्यसंस्थिताम्।

यस्त्वां संचिन्तयेद्देवि तस्य मृत्युर्न जायते।। 9


अर्थ – हे देवि! जो प्राणी मृणाल – तन्तु के समान कोमल स्वभाव वाली और नाभि तथा हृदय के मध्य विराजमान रहने वाली आप भगवती का ध्यान करता है, उसकी मृत्यु नहीं होती। 

🙏

अष्टकं शीतलादेव्या यो नर: प्रपठेत्सदा।

विस्फोटकभयं  घोरं गृहे तस्य  न जायते।। 10


अर्थ – जो मनुष्य भगवती शीतला के इस अष्टक का नित्य पाठ करता है, उसके घर में विस्फोटक का घोर भय नहीं रहता।

🙏

श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धाभक्तिसमन्वितै:।

उपसर्गविनाशाय  परं  स्वस्त्ययनं  महत्।।11


अर्थ – मनुष्यों को विघ्न-बाधाओं के विनाश के लिये श्रद्धा तथा भक्ति से युक्त होकर इस परम कल्याणकारी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए अथवा श्रवण (सुनना) करना चाहिए।

🙏

शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।

शीतले  त्वं  जगद्धात्री  शीतलायै  नमो नम:।।12


अर्थ – हे शीतले! आप जगत की माता हैं, हे शीतले! आप जगत के पिता हैं, हे शीतले! आप जगत का पालन करने वाली हैं, आप शीतला को बार-बार नमस्कार हैं।

🙏

रासभो   गर्दभश्चैव   खरो    वैशाखनन्दन:।

शीतलावाहनश्चैव       दूर्वाकन्दनिकृन्तन:।।13


एतानि खरनामानि शीतलाग्रे तु य: पठेत्।

तस्य गेहे शिशुनां च शीतलारुड़् न जायते।।14

🙏

13 व 14 का अर्थ – जो व्यक्ति रासभ, गर्दभ, खर, वैशाखनन्दन, शीतला वाहन, दूर्वाकन्द – निकृन्तन – भगवती शीतला के वाहन के इन नामों का उनके समक्ष पाठ करता है, उसके घर में शीतला रोग नहीं होता है।

🙏

शीतलाष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित्।

दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धाभक्तियुताय वै।।15


अर्थ – इस शीतलाष्टक स्तोत्र को जिस किसी अनधिकारी को नहीं देना चाहिए अपितु भक्ति तथा श्रद्धा से सम्पन्न व्यक्ति को ही सदा यह स्तोत्र प्रदान करना चाहिए।


।।इति श्रीस्कन्दमहापुराणे शीतलाष्टकं सम्पूर्णम्।।

2 टिप्‍पणियां: