साधो रचना राम बनाई ।
इकि बिनसै इक असथिरु
मानै अचरजु लखिओ न जाई ॥
(राग गउड़ी : पृष्ठ-219 श्री गुरु ग्रंथ साहिब)
अत: इस संसार को मिथ्या समझकर राम की शरण में ही रहना श्रेयस्कर है।
जन 'नानक' जग जानी मिथ्या, रही राम सरनाई ॥
मुक्ति तब तक संभव नहीं जब तक प्राणी में राम का वास नहीं होता...
नानक मुकति ताहि तुम मानहु जिह घटि रामु समावै ॥ (पृष्ठ-220 श्री गु. ग्रं. सा.)
अत: इसके लिए आवश्यक है और वेद-पुराण आदि भी इसके साक्षी हैं कि एकमात्र रास्ता है प्राणी राम की शरण में जाकर विश्राम करे तथा राम नाम का सुमिरन करे...
साधो राम सरनि बिसरामा ।
बेद पुरान पड़े को इह गुन सिमरे हरि को नामा ॥
आगे गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं-
कहु नानक सोई नर सुखिआ राम नाम गुन गावै।
प्राणी अंधकार में है और अज्ञानतावश दुख बहुत पाता है, उसे राम भजन की सुध नहीं रहती...
दुआरहि दुआरि सुआन जिउ डोलत नह सुध राम भजन की।।
अत: आवश्यक इस बात की है कि सभी कार्यों के साथ-साथ नित्य प्रति राम नाम का भजन भी करना चाहिए।
कहु नानक भज राम नाम नित जाते हो उद्धार ।।
मानव देह दुर्लभ है। अत: जिसने जन्म दिया है, जीवन दिया है, उससे प्रीति करना जरूरी है, उसके सुकार्यों के गीत गाये जायें, यही जरूरी है।
रे मन राम सिंओ कर प्रीति ।
सखनी गोविन्द गुण सुनो और गावहो रसना गीत।।
(पृष्ठ-631 श्री गुरु ग्रंथ साहिब)
इस क्षणिक संसार से समय नहीं है, समय की गति बहुत तेज है। समय बीतता जा रहा है। इसमें चूकना भारी भूल होगी।
कहै 'नानक' राम भज लै जात अवसर बीति ।।
इतना ही नहीं, इस नश्वर संसार में सब कुछ मिथ्या है, बस केवल राम भजन ही सही है।
अवर सगल मिथिआ ए जानउ भजनु रामु को सही ॥
(पृष्ठ-631 श्री गुरु ग्रंथ साहिब)
राम भक्ति नहीं करने पर मन पीछे पश्चाताप करता है। निंदा करने में ही सारा जीवन बीत गया, यह कुमति नहीं तो क्या है?
मन रे कउनु कुमति तै लीनी ॥
पर दारा निंदिआ रस रचिओ राम भगति नहि कीनी ॥
(पृष्ठ-632 श्री गुरु ग्रंथ साहिब)
राम की महिमा अवर्णनीय है. सही बात यह है कि 'राम' शब्द के सुमिरन मात्र से ही संसारिक बंधनों से छुटकारा मिल जाता है।
महिमा नाम कहा लउ बरनउ राम कहत बंधन तिह तूटा ॥
खैर, अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है। सवेरे का भूला हुआ आदमी अगर शाम को घर लौट जाता है, तो उसे भूला नहीं कहा जायेगा।
अजहू समझि कछु बिगरिओ नाहिनि भजि ले नामु मुरारि ॥
कहु नानक निज मतु साधन कउ भाखिओ तोहि पुकारि ॥
(पृष्ठ-633 श्री गुरु ग्रंथ साहिब)
सचमुच में राम की महिमा को न जानना, माया के हाथ बिकना है।
साधो इहु जगु भरम भुलाना ।
राम नाम का सिमरनु छोडिआ माइआ हाथि बिकाना ॥
(पृष्ठ-684 श्री गुरु ग्रंथ साहिब)
सही बात तो यह है कि राम रूप रटन की प्राप्ति प्राणी के अंदर से हो सकती है, क्योंकि ज्ञान की आंख से देखना है।
रट नाम राम बिन मिथ्या मानो, सगरो इह संसारा ।।
(पृष्ठ-703 श्री गुरु ग्रंथ साहिब)
दूसरी तरफ वे कहते हैं, बाह्य आडंबर तीर्थ स्थान सब बेकार है, जब तक राम की शरणागति प्राप्त न की जाये।
कहा भयो तीरथ व्रत कीण, राम शरणु नहीं आवे ॥
(पृष्ठ-831 श्री गुरु ग्रंथ साहिब)
सच्चाई तो यह है कि राम भजन बिना मानव जीवन व्यर्थ है।
जा मै भजनु राम को नाही ।
तिह नर जनमु अकारथु खोइआ यह राखहु मन माही ॥
(पृष्ठ-902 श्री गुरु ग्रंथ साहिब)
कुमति से सुमति की ओर लानेवाला केवल राम नाम ही है।
जाते दुरमति सगल बिनासै राम भगति मनु भीजै ॥
इसलिए हमें राम नाम में तल्लीन रहना चाहिए।
राम नाम नर निसि वासर में, निमख एक उरधारै ॥ (पृष्ठ-902 श्री गुरु ग्रंथ साहिब)
राम नाम सुखदाता है... शबरी, गनिका, पंचाली आदि की कहानियां साक्षी हैं। राम नाम के अलावा संकट में कोई सहायक नहीं है।
इतना ही नहीं... श्री गुरु ग्रंथ साहेब में श्री गुरु तेग बहादुर जी महाराज राम नाम की महिमा का पूर्ण रूप से स्वीकार करते हैं।
रामु सिमरि रामु सिमरि इहै तेरै काजि है।
माइआ को संगु तिआगु प्रभ जू की सरनि लागु॥
रामु भजु रामु भजु जनमु सिरातु है॥
(पृष्ठ-1352 श्री गुरु ग्रंथ साहिब)
इस तरह हम देखते हैं कि श्री गुरु तेग बहादुर जी महाराज के भक्ति साहित्य में राम नाम की महिमा का पूर्ण रूप से वर्णन हुआ है, जिसके भजन से ही प्राणी का कल्याण संभव हैै।
मध्य युग के कवि सेनापति ने अपने काव्य में गुरु तेगबहादुर जी के विराट व्यक्तित्व को सृष्टि के संरक्षक के रूप में स्मरण किया है।
प्रकट भयो गुरु तेगबहादुर ।
सकल सृष्टि पै ढापी चादर ।।
करम धरम जिनि पति राखी ।
अटल करी कलजुग मै साखी ।।
सकल सृष्टि जाका जस भयो ।
जिह ते सरब धर्म वचियो ।।
तीन लोक मै जै जै भई ।
सतिगुरु पैज राखि इम लई ।।
गुरु पंथ - संगत का दास
साधो राम सरनि बिसरामा
साधो राम सरनि बिसरामा ॥
बेद पुरान पड़े को इह गुन सिमरे हरि को नामा ॥1॥रहाउ॥
लोभ मोह माइआ ममता फुनि अउ बिखिअन की सेवा ॥
हरख सोग परसै जिह नाहनि सो मूरति है देवा ॥1॥
सुरग नरक अंम्रित बिखु ए सभ तिउ कंचन अरु पैसा ॥
उसतति निंदा ए सम जा कै लोभु मोहु फुनि तैसा ॥2॥
दुखु सुखु ए बाधे जिह नाहनि तिह तुम जानउ गिआनी ॥
नानक मुकति ताहि तुम मानउ इह बिधि को जो प्रानी ॥3॥7॥220॥
रे मन राम सिउ करि प्रीति
रे मन राम सिउ करि प्रीति ॥
स्रवन गोबिंद गुनु सुनउ अरु गाउ रसना गीति ॥1॥रहाउ॥
करि साध संगति सिमरु माधो होहि पतित पुनीत ॥
कालु बिआलु जिउ परिओ डोलै मुखु पसारे मीत ॥1॥
आजु कालि फुनि तोहि ग्रसि है समझि राखउ चीति ॥
कहै नानकु रामु भजि लै जातु अउसरु बीत ॥2॥1॥631।
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