बुधवार, 13 अक्टूबर 2021

दशहरा पर्व से जुड़ीं परंपराएं एवं कैसे करें शस्त्र पूजन, आप भी जानिए...

प्राचीनकाल से दशहरा (विजयादशमी) पर अपराजिता-पूजा, शमी पूजन, शस्त्र पूजन व सीमोल्लंघन की परंपरा रही है।
 
अपराजिता-पूजा : अपराजिता देवी सकल सिद्धियों की प्रदात्री साश्रात माता दुर्गा का ही अवतार हैं। भगवान श्री राम ने माता अपराजिता का पूजन करके ही रावण से युद्ध करने के लिए विजयदशमी को प्रस्थान किया था। ज्योतिषियों के अनुसार माता अपराजिता की पूजा का समय दोपहर के तत्काल बाद का होता है।
 
शमी पूजन : विजयादशमी के दिन शस्त्रों की पूजा के अलावा शमी के पौधे की पूजा का बेहद ही खास महत्व है। विजयादशमी के दिन प्रदोषकाल में शमी वृक्ष का पूजन अवश्य किया जाना चाहिए। खासकर क्षत्रियों में इस पूजन का महत्व ज्यादा है। कहा तो यह भी जाता है कि महाभारत के युद्ध में पांडवों ने इसी वृक्ष के ऊपर अपने हथियार छुपाए थे और बाद में उन्हें कौरवों से जीत प्राप्त हुई थी।
शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी। 
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया। तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।

शस्त्र पूजन : दशहरा के मौके पर शस्त्रधारियों के लिए हथियारों के पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन शस्त्रों की पूजा घरों और सैन्य संगठनों द्वारा की जाती है। नौ दिनों की उपासना के बाद 10वें दिन विजय कामना के साथ शस्त्रों का पूजन किया जाता है। विजयादशमी पर शक्तिरूपा दुर्गा, काली की पूजा के साथ शस्त्र पूजा की परंपरा हिंदू धर्म में लंबे समय से रही है। छत्रपति शिवाजी ने इसी दिन मां दुर्गा को प्रसन्न कर भवानी तलवार प्राप्त की थी।

सीमोल्लंघन : इतिहास में क्षत्रिय राजा इसी अवसर पर सीमोल्लंघन किया करते थे। हालांकि अब यह परंपरा समाप्त हो चुकी है, लेकिन शास्त्रीय आदेश के अनुसार यह प्रगति का प्रतीक है। यह मानव को एक परिधि से संतुष्ट न होकर सदा आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें