शुक्रवार, 5 दिसंबर 2025

ईश्वर का प्रसाद है "दुःख"



जब भगवान सृष्टि की रचना कर रहे थे, तो उन्होंने जीव को कहा कि तुम्हें मृत्युलोक जाना पड़ेगा, मैं सृष्टि की रचना करने जा रहा हूँ। ये सुन जीव की आँखों में आँसू आ गए, वो बोला -"प्रभु! कुछ तो ऐसा करो कि मैं लौटकर आपके पास ही आऊँ।" भगवान को दया आ गई... उन्होंने दो कार्य किये, जीव के लिए... पहला संसार की हर चीज़ में अतृप्ति मिला दी और जीव से कहा- "तुझे दुनिया में कुछ भी मिल जाये परन्तु तू तृप्त नहीं होगा..! तृप्ति तभी मिलेगी, जब तू मेरे पास आएगा और दूसरा सभी के हिस्से में थोड़ा-थोडा दुःख मिला दिया है ताकि तू लौट कर मेरे ही पास पहुँचे। इस तरह हर किसी के जीवन में थोड़ा दुःख हैं। जीवन का दुःख या विषाद, हमें ईश्वर के पास ले जाने के लिए हैं, लेकिन हम चूक जाते हैं। हमारी समस्या क्या है कि हर किसी को दुःख आता हैं। हम भागते हैं...ज्योतिष के पास, अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के पास... कुछ होने वाला नहीं..! थोड़ी देर का मानसिक संतोष बस, यदि दुखों से घबरायें नहीं और ईश्वर का प्रसाद समझ कर आगे बढ़े तो बात बन जाती हैं। यदि हुम ईश्वर से विलग होने के दिनों को याद कर ले तो बात बन जाती हैं और जीव दुखों से भी पार हो जाता हैं। दुःख तो ईश्वर का प्रसाद हैं। दुखों का मतलब हैं, ईश्वर का बुलावा हैं। वो हमें याद कर रहा हैं। पहले भी ये विषाद और दुःख बहुत से संतो के लिए ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बन चुका हैं। हमें ये बात अच्छे से समझनी चाहिए कि संसार में हर चीज़ में अतृप्ति है और दुःख-विषाद ईश्वर प्राप्ति का साधन हैं।
                           🙏🏻 जय श्री हरि ⛳

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