गुरुवार, 10 अगस्त 2017

माना गांधी ने कष्ट सहे थे अपनी पूरी निष्ठा से...


वर्षों बाद किसी एक कवि ने दबे सच को फिर से उजागर करने की कोशिश की है ! आप सभी साहित्य प्रेमी पाठकों के लिए कवि की मूल कविता नीचे विस्तार से लिखी गयी है !
___________________________

माना गांधी ने कष्ट सहे थे अपनी पूरी निष्ठा से ।
और भारत प्रख्यात हुआ है उनकी अमर प्रतिष्ठा से ॥

किन्तु अहिंसा सत्य कभी अपनों पर ही ठन जाता है ।
घी और शहद अमृत हैं पर मिलकर के विष बन जाता है ॥

अपने सारे निर्णय हम पर थोप रहे थे गांधी जी ।
तुष्टिकरण के खुनी खंजर घोंप रहे थे गांधी जी ॥

महाक्रांति का हर नायक तो उनके लिए खिलौना था ।
उनके हठ के आगे जम्बूदीप हमारा बौना था ॥

इसिलिये भारत अखण्ड भारत अखण्ड का दौर गया ।
भारत से पंजाब सिंध रावलपिंडी लाहौर गया ॥

तब जाकर के सफल हुए जालिम जिन्ना के मंसूबे ।
गांधी जी अपनी जिद में पुरे भारत को ले डूबे ॥

भारत के इतिहासकार थे चाटुकार दरबारों में ।
अपना सब कुछ बेच चुके थे नेहरू के परिवारों में ॥

भारत का सच लिख पाना था उनके बस की बात नहीं ।
वैसे भी सूरज को लिख पाना जुगनू की औकात नहीं ॥

आजादी का श्रेय नहीं है गांधी के आंदोलन को ।
इन यज्ञों का हव्य बनाया शेखर ने पिस्टल गन को ॥

जो जिन्ना जैसे राक्षस से मिलने जुलने जाते थे ।
जिनके कपड़े लन्दन पेरिस दुबई धुलने जाते थे ॥

कायरता का नशा दिया है गांधी के पैमाने ने ।
भारत को बर्बाद किया नेहरू के राजघराने ने ॥

हिन्दू अरमानों की जलती एक चिता थे गांधी जी ।
कौरव का साथ निभाने वाले भीष्म पिता थे गांधी जी ॥

अपनी शर्तों पर इरविन तक को भी झुकवा सकते थे ।
भगत सिंह की फांसी दो पल में ही रुकवा सकते थे ॥

मन्दिर में पढ़कर कुरान वो विश्व विजेता बने रहे ।
ऐसा करके मुस्लिम जनमानस के नेता बने रहे ॥

एक नवल गौरव गढ़ने की हिम्मत तो करते बापू ।
मस्जिद में गीता पढ़ने की हिम्मत तो करते बापू ॥

रेलों में हिन्दू काट काट कर भेज रहे पाकिस्तानी ।
टोपी के लिए दुखी थे पर चोटी की एक नहीं मानी ॥

मानों फूलों के प्रति ममता खतम हो गई माली में ।
गांधी जी दंगों में बैठे थे छिपकर नोहाखाली में ॥

तीन दिवस में श्री राम का धीरज संयम टूट गया ।
सौवीं गाली सुन कान्हा का चक्र हाथ से छूट गया ॥

गांधी जी की पाक परस्ती पर भारत लाचार हुआ ।
तब जाकर नाथू उनका वध करने को तैयार हुआ ॥

गये प्रार्थना सभा में गांधी को करने अंतिम प्रणाम ।
ऐसी गोली मारी उनको याद आ गए श्री राम ॥

मूक अहिंसा के कारण भारत का आँचल फट जाता ।
गांधी जीवित होते तो फिर देश दुबारा बंट जाता ॥

थक गए हैं हम प्रखर सत्य की अर्थी को ढोते ढोते ।
कितना अच्छा होता जो नेता जी राष्ट्रपिता होते ॥

नाथू को फाँसी लटकाकर गांधी जो को न्याय मिला ।
और मेरी भारत माँ को बंटवारे का अध्याय मिला ॥

लेकिन जब भी कोई भीष्म कौरव का साथ निभाएगा ।
तब तब कोई अर्जुन रण में उन पर तीर चलाएगा ॥

अगर गोडसे की गोली उतरी न होती सीने में ।
तो हर हिन्दू पढ़ता नमाज फिर मक्का और मदीने में ॥

भारत की बिखरी भूमि अब तलक समाहित नहीं हुई ।
नाथू की रखी अस्थि अब तलक प्रवाहित नहीं हुई ॥

इससे पहले अस्थिकलश को सिंधु की लहरें सींचे ।
पूरा पाक समाहित कर लो भगवा झंडे के नीचें ॥
______________________________

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें