शनिवार, 12 अगस्त 2017

योगेश्वर श्रीकृष्ण को हम भोगी क्यों प्रचारित करते हैं..?

श्री कृष्ण के चरित्र के प्रति अज्ञानता ही हमारी भ्रांति का कारण हैं।


कृष्ण वह हैं जिन्होंने जन साधारण को दमन का प्रतिकार करना सिखाया, कालिया नाग मर्दन से लेकर महाभारत के युद्ध तक उन्होंने यही सिखाया कि भय और कायरता का त्याग कर दो, अपने अधिकार के लिये यदि युद्ध करना पड़े तो युद्ध करो परंतु अन्याय को स्वीकार मत करो..!


त्रेतायुग में जो मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये वही श्री कृष्ण द्वापर में आकर जैसे को तैसा करना सिखाते हैं अर्थात् वे कहना चाहते हैं कि यदि तुम युग परिवर्तन के साथ स्वयं को परिवर्तित नहीं करते तो नष्ट हो जाओगे...

दुराचार का विरोध न करना भी दुराचार का समर्थन होता हैं। द्रौपदी के चीरहरण में उसकी रक्षा के लिये स्वयं प्रकट होते हैं।

भक्त भीष्म पितामह के लिये अपना वचन तोड़कर शस्त्र धारण कर यह बताते है कि धर्म की रक्षा के लिये किसी वचन का टूट जाना पाप नहीं है..!


'वचन' के बंधन से भी महत्वपूर्ण है 'कर्तव्य' जिस वचन के बंधन के कारण जो कार्य भीष्म नहीं कर पाते, अपना वचन तोड़कर शस्त्र उठाकर श्रीकृष्ण हमें यही सिखाते है कि हमारी प्राथमिकता क्या होनी चाहिये..!


पांच वर्ष की आयु में स्त्रियों के कपड़े चुराना उनकी वासना नहीं बल्कि फूहड़ता और नग्नता का सहज विरोध था।

उन स्त्रियों को उनके "शील" का आभास कराना था जो यमुना में वस्त्रहीन होकर स्नान कर रही थी।


माखनचुराना उनकी बालक्रीड़ा थी। कृष्ण सबके मनमोहन थे, सभी चाहते थे कि श्री कृष्ण उनके घर आये और उनका माखन खाये... जो भक्त की भावना की रक्षा करें, वही तो भगवान हैं। इसलिये ही भगवान सभी के घर का माखन चुराने पहुंच जाया करते है, कोई ऊंच-नीच नहीं..! किसी के प्रति कोई भेद-भाव नहीं..! सबको एक-समान प्रेम बाटने का कार्य श्रीकृष्ण बखूबी करते हैं।


सहस्त्रों बंधक स्त्रियों को बंधनमुक्त कराते हैं और उन स्त्रियों की इच्छानुसार ही उन्हें ससम्मान अपनी पत्नी के रुप में स्वीकार कर उन्हें समाज में प्रतिष्ठित जीवन प्रदान करते हैं।


रासलीला के समय श्रीकृष्ण जिन गोपियों के साथ नृत्य करते हैं, वह कोई और नहीं बल्कि वे तपस्वी हैं, जो वर्षों से श्रीकृष्ण को पाने की भक्ति कर रहे होते है, उनकी अभिलाषा को श्रीकृष्ण पूरा करते हैं। इस रासलीला में श्रीकृष्ण का सानिध्य पाने स्वर्ग के देवता भी गोपियों का रुप लेकर पहुंच जाते हैं। भगवान शंकर भी गोपी का रुप धारण कर रासलीला में मे सम्मिलित होते हैं।

यह उनकी योगमाया ही हैं कि जितनी गोपियां उतने कृष्ण...

सभी को यही लगता है कि उनके प्यारे कृष्ण नाच रहे हैं। 

कृष्ण और गोपियों का प्रेम निःस्वार्थ वासनारहित प्रेम है।

संपूर्ण रासलीला के समय भगवान का ब्रह्मचर्य नहीं टूटता हैं।


श्रीकृष्ण के चरित्र को भक्त कवियों ने अपने मन की रूचि के अनुसार अभिव्यक्त किया है... सूरदास उन्हें बालक ही मानते हैं और उनकी बालक्रीड़ाओं से ही अपने हृदय का सुख पाते हैं... रसखान उन्हें प्रेमी के रूप में तो मीरा उन्हें अपनी विरह वेदना के आश्रय के रूप में प्रतिबिंबित करती हैं... इन्ही कारणों से श्रीकृष्ण का वास्तविक चरित्र अदृश्य हो जाता हैं।


श्रीकृष्ण पुत्र के रूप में, शिष्य के रूप में, ग्रामवासियों के लिये नेतृत्व करते हुये नायक और संरक्षक के रूप में तथा कुरुक्षेत्र में गुरू के रूप में जो कर्तव्यनिष्ठता का जो उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, वे सभी माखनचोर कहते ही भुला दिये जाते हैं।


🙏🏻 जय श्री कृष्ण ⛳

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