सोमवार, 4 सितंबर 2017

गुरु पूर्णिमा Vs शिक्षक दिवस

भारत में हिन्दुओं के विभिन्न पर्व, त्योहारों के विरुद्ध इल्लुमिनाती जैसे बड़े षणयंत्रकारी छिपे रूप में बहुत परिश्रम कर रहे हैं ताकि ये त्योहार हमारे मन से विलोपित होते जाएं या फिर मीडिया के मॉध्यम से ऐसा प्रचार किया गया कि हिन्दू स्वयं अपने त्योहारों का विरोध करने लगे...

जैसे होली पर पानी, दिवाली पर पटाखें, संक्रांति पर पतंग का आदि...

मित्रों गुरु पूर्णिमा को हिन्दू (सनातन, जैन, सिख, बौद्ध) अपने गुरुजनों के चरणों में सर नवाते हैं।

और इस सर नवाने में प्राचीन ऋषि परम्परा, गुरुकुल परम्परा जीवित हो जाती हैं।

शास्त्र जीवित हो जाते हैं, धर्म प्रतिष्ठित हो जाता हैं, जिसका असर शेष 364 दिन तक रहता हैं।

तो गुरु पूर्णिमा का महत्व कम करने के लिए...

1. 1991 में केबल टीवी चैनल आरम्भ हुए और वर्ष 2000 तक जब ये गाँव तंक पहुच गये, तब 2001 से हिन्दू संतो का टीवी पर निरादर आरम्भ हुआ। ध्यान दीजिए... केवल उन संतो का निरादर हुआ, जो कि हिन्दू धर्म को प्रतिष्ठित करने में लगे रहें।

कांग्रेज़ के हित में काम करने वाले या हिन्दुओं को भ्रमित करने वाले चंद्रास्वामी जैसे ढोंगी का विरोध कभी नहीं हुआ... राधे माँ, महामंडलेश्वरअधोक्षणन्द आदि की खोजबीन, प्रमोद कृष्णन, अग्निवेश पाखण्डी का निरादर टीवी पर कभी नहीं किया गया...

किंतु हिन्दू धर्म के प्रति हिन्दुओं के भले के लिये काम करने वाले करपात्री जी, श्रृंगेरी शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जी, पश्चिम यूरोप की ईसाई धर्म-बाइबल-फ्रायड की जड़ उखाड़ने वाले रजनीश, जंगलो में वनवासी बच्चों के लिये स्कुल खोलने वाले, हिन्दू गरीबों के लिये कुटीर उद्योग आसाराम बापू, कुछ प्रयत्न महाराज विद्यासागर के निरादर के लिये 2004 में बड़ा षणयंत्र हुआ पर 2 दिन की खबरों के बाद ही दब गया था।

मित्रों गुरु पूर्णिमा जिस दिन पुरे भारत में विद्यार्थियो को शिक्षक के चरण छूना चाहिए था... उस दिन को त्यौहार के रूप में बनाने की बजाय डॉ॰ राधाकृष्णन के नाम पर Teachers day मनाना आरम्भ किया गया...

जबकि शिक्षा क्षेत्र में इनका कोई योगदान नहीं था और इनके ऊपर आरोप भी लगा था कि अपने ही छात्र की पीएचडी को कॉपी करके पहले स्वयं डॉक्टरेट की डिग्री हासिल कर ली थी।

यदि तत्कालीन किसी गुरु, शिक्षक के नाम पर शिक्षक दिवस मनाना था तो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय जी के नाम पर क्यों नहीं मनाया..?

गुरुकुल कांगड़ी के संस्थापक स्वामी श्रधानन्द जी के नाम पर क्यों नहीं..?

आधुनिक भारतीय वैज्ञानिकों के प्रेरक जगदीश चंद्र बासु, डा० रमन या डा० होमी जहांगीर भाभा के नाम पर क्यों नहीं..?

प्रथम आधुनिक विमान(हवाई जहाज) के अंतराष्ट्रीय वैदिक वैज्ञानिक शिव जी बापू तलपड़े के नाम पर क्यो नहीं..?

पूना के 2 आयुर्वेदिक प्लास्टिक सर्जनों के नाम पर क्यों नहीं..?

मित्रों वो इसलिये नहीं क्योंकि इन महत्वपूर्ण लोगों में से किसी एक के भी नाम से शिक्षक दिवस या गुरु दिवस होता तो हर विद्यार्थी इनके विषय में जानने का प्रयत्न करता और भारत के प्राचीन धर्म ग्रंथों, वेदो, पुराण आदि की तरफ आकर्षित होता...

किसके इशारे पर हिन्दू श्रेष्ठ वैज्ञानिकों की अनदेखी और एक साधारण चोर कांग्रेसी को जबरदस्ती पुरे भारत के स्कूलों का गुरु बना दिया गया..?

मित्रों इस तरह गुरु पूर्णिमा को शासकीय रूप से उपेक्षित कर दिया गया... जिसको एक राष्ट्रीय त्यौहार होना चाहिए था।

उसको मात्र हिन्दू त्योहार ही रहने दिया और हर बार नई पीढ़ी के बच्चे इससे दूर होते जा रहें हैं, बिना इसका महत्व समझें...

और इस तरह प्राचीन ऋषियों का नाम, प्राचीन ग्रंथ, प्राचीन चरण स्पर्श परम्परा को एक झटके में नेहरू ने विलोपित करवा दिया।

षणयंत्र को समझो हिन्दुओं...

✊🏻 जय हिंदुत्व 🙏🏻 जय श्री राम ⛳

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