कुछ लोग अपने जाति को समस्या मानते हैं। उनके लिए यह विशेष पोस्ट...
हिन्दू जनमानस जाति विषय पर बैकफुट आ जाते हैं। उन्हें पता नहीं होता क्या उत्तर दें।
जाति का सीधा सीधा अर्थ है आपके कुल से। आपकी पहचान से है। आपकी पहचान समस्या कैसे हो सकती है? और यह देश लूटा गया और हारा गया इसलिए नहीं कि, क्योंकि यहाँ पर सब आपस में बंटे हुए थे। बल्कि इसलिए क्योंकि सामने से जो आसमानी किताब से प्रेरित अब्राहमिक लोग यहाँ पर आए, उनके लिए तुम या तो 'काफिर' हो या 'हेमेटिक'। दूसरे शब्दों में कहें तो वे 'फनाटिक्स' हैं। तुम उनके लिए मात्र गुलामी कर सकते हो। वह युद्ध में हारा तो माफी मांगेगा। लेकिन फिर वह पुनः आप पर आघात करेगा। यही हुआ है। हमारी आपकी उदारता ने हमें पराजित किया। हमारी सरलता ने किया। जाति ने नहीं। 17 बार किसी को हराकर कोई क्षमा करता है?
सत्य तो यह है इसाई लोग जहाँ जहाँ गए, उन्होंने वहां की समस्त सभ्यता को नष्ट कर दिया। यूरोप की सारी सभ्यताएँ ईसाइयों ने नष्ट किया। और मिडल ईस्ट, ईरान की सारी सभ्यताएँ इस्लाम ने नष्ट किया। दोनो भाई है। दोनों की उतपत्ति एक ही जगह से हुई है।
उन समस्त यूरोप में जाति तो नहीं थी? फिर वह सारी सभ्यताएँ समूल नष्ट कैसे हो गई?
मुस्लिम के 300 वर्ष शासन के बाद भी भारत आज जीवित है आखिर क्यों? भारत में ऐसी कौनसी व्यवस्था थी जिससे हम बचे? और उसके बाद आते हैं ईसाई लोग। ईसाइयों की 200 वर्ष शासन काल के बाद भी हम और हमारी सभ्यता दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता आज ही जीवित है, और डंके की चोट पर अपनी बात रख रहा है। ऐसा क्या था भारत में? जिससे हम बचे रहे? यही हमारी जाति व्यवस्था तो वो शक्ति है। यह #लोक_संस्कृति से विकसित एक ब्रह्मास्त्र है। इसाई ब्रिटिश के 100 वर्ष शाशन के बाद भी, यहाँ कोई कन्वर्ट नहीं हो रहा था। ऐसा क्या था? इस बात को समझने के लिए आपको मैक्समूलर के कथन को समझना होगा, "हिंदुओं को कन्वर्ट करने में सबसे बड़ी बाधा यहाँ की कास्ट सिस्टम है।" फिर इसके बाद 1872 दूसरा पादरी "एम ए शेररिंग" आता है। वह कास्ट को निशाना बनाता है। कास्ट बुरा है। बीमारी है। कास्ट ब्राह्मणों की वजह से बना है। आपको अपने जाति को लेकर जो अवधारणा है, वह सब इसी एम ए शेरिंग की देन है। उसकी बात आजकल हर "टॉम डिक एंड हेरी" अपने भाषण में कहते है।
इसी जाति के वजह से भारत दुनियां की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति थी। 1750 ई तक 24% जीडीपी थी। सबसे ज्यादा समृद्ध। तो यहाँ पर शोषित और वंचित कौन था? कोई नहीं। यहाँ तक कि इसका कोई भी एक भी रिकॉर्ड ही नही है। अपितु, जितने भी विदेशी यात्री भारत आए हैं। सब ने भारत को हमेशा समृद्ध ही कहा है। कई फ़्रांस यात्री 17वीं शताब्दी में भारत आए उन्होंने ही ऐसा कहा है। Dr. BRA भी एक भी उदाहरण नहीं दे पाए।
मूल समस्या तब आयी जब इस देश के #लोक_संस्कृति से विकसित जाति के परम्परागत व्यवसाय को नष्ट कर दिया गया। 1750 ई के बाद, मात्र 200 वर्ष में 45 USD त्रिलयन लूटा गया, जो आज अमेरिका की इकोनॉमी के दो गुना है। यही से अभाव की मनोस्थिति उत्पन्न हुई। और इसी अभाव को समस्त इसाई मिशनरी, मैकाले इसाई शिक्षा पद्धति से अपने एट्रोसिटी लिटरेचर से प्रभावित किया। नहीं तो आप देख लीजिए, 1871 ई वी मे जनगणना में कोई Lower caste नहीं है। ईसाइयों के लूट से यहाँ पर एक वर्ग उतपन्न हुआ जिसको डिप्रेस्ड क्लास बोला गया, बाद में 1901 में उन्हें ही Untouchables बोला गया। जिसकी परिभाषा यह थी कि जिनके हाथों से न केवल ब्राह्मण अपितु शुद्र जातियां भी पानी नहीं लेती थी। ये लोग या तो कसाई थे या मांस व्यापारी, जो लोग गो हत्या भी करते थे। विश्व के किसी भी कोने में ऐसे व्यवसाय में लगे लोगों से समाज सदैव दूरी बनाए रखता है। आप चाहे तो विश्व का इतिहास पढ़ लें। स्वयम बौद्ध इतिहास इसी से पूरा भरा पड़ा है।
और रही बात 'जाति' वैज्ञानिक सोच नहीं। इससे समानता नहीं बनती।।ऐसा कहने वाला व्यक्ति विज्ञान से अनभिज्ञ होता है। विज्ञान का आधार ही भेद है। विभिन्नता है। यदि वह भेद नहीं कर सकता तो कैसा वैज्ञानिक है। साथ साथ वह सबके भेद को जानते हुए भी एक ही मानता है। भेद को स्वीकारता है। उदाहरण स्वरूप: Chemistry का आधार ही भेद है और वहीं पर Physics सभी वस्तुओं को एक समान दृष्टि से देखता है। कहने का अर्थ यह हुआ, भेद को स्वीकार कर, समरूप दृष्टिकोण ही विज्ञान है। यही हमारे वेद का आधार है।
साथ साथ विज्ञान वही है, जो आपको आजीविका दे। क्या आपके जाति ने आपके लिए आजीविका नहीं देती है? आप उसी जाति के विध्वंस के बारे में सोचते हैं?
तो अभी आप निर्णय ले! जाति का महत्व क्या है।
मैं नहीं कहता कि आप इसे कट्टर रूप से माने ही। लेकिन, आप अभाव एवं प्रभाव की वजह से अपने कुल को दोष देना बंद कीजिए।
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डॉ देवदास सिंघानिया पीएचडी
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