31 जुलाई उधम सिंह जी के शहादत दिवस पर विशेष...
लोगों में आम धारणा है कि उधम सिंह ने जनरल डायर को मारकर जलियाँवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया था, लेकिन भारत के इस सपूत ने डायर को नहीं बल्कि माइकल ओडवायर को मारा था, जो अमृतसर में बैसाखी के दिन हुए नरसंहार के समय पंजाब प्रांत का गवर्नर था।
ओडवायर के आदेश पर ही जनरल डायर ने जलियाँवाला बाग में सभा कर रहे निर्दोष लोगों पर अंधाधुँध गोलियाँ बरसवाई थी। उधम सिंह इस घटना के लिए ओडवायर को जिम्मेदार मानते थे।
26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में जन्मे उधम सिंह ने जलियाँवाला बाग में हुए नरसंहार का बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी। जिसे उन्होंने अपने सैकड़ों देशवासियों की सामूहिक हत्या के 21 साल बाद खुद अंग्रेजों के घर में जाकर पूरा किया।
उधम सिंह अनाथ थे। सन 1901 में उधम सिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधम सिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था, जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधम सिंह और साधु सिंह के रूप में नए नाम मिले।
अनाथालय में उधम सिंह की जिन्दगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया और वह दुनिया में एकदम अकेले रह गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।
डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी तथा रोलट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियाँवाला बाग में लोगों ने ते
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन एक सभा रखी जिसमें उधम सिंह लोगों को पानी पिलाने का काम कर रहे थे।
इस सभा से तिलमिलाए पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडवायर ने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर को आदेश दिया कि वह भारतीयों को सबक सिखा दें। इस पर जनरल डायर ने 90 सैनिकों को लेकर जलियाँवाला बाग को घेर लिया और मशीनगनों से अंधाधुंध गोलीबारी कर दी जिसमें सैकड़ों भारतीय मारे गए।
जान बचाने के लिए बहुत से लोगों ने पार्क में मौजूद कुएँ में छलाँग लगा दी। बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि 120 शव तो सिर्फ कुएँ से ही मिले।
आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या 379 बताई गई जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोग मारे गए थे। स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार मरने वालों की संख्या 1500 से अधिक थी, जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से अधिक थी।
राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर उधम सिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओडवायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली।
उधम सिंह अपने काम को अंजाम देने के उद्देश्य से 1934 में लंदन पहुँचे। वहाँ उन्होंने एक कार और एक रिवाल्वर खरीदी तथा उचित समय का इंतजार करने लगे। भारत के इस योद्धा को जिस मौके का इंतजार था, वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला जब माइकल ओडवायर लंदन के काक्सटन हाल में एक सभा में शामिल होने के लिए गया।
उधम सिंह ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवाल्वर के आकार में काटा और उनमें रिवाल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए। सभा के अंत में मोर्चा संभालकर उन्होंने ओडवायर को निशाना बनाकर गोलियाँ दागनी शुरू कर दीं।
ओडवायर को दो गोलियाँ लगीं और वह वहीं ढेर हो गया। अदालत में उधम सिंह से पूछा गया कि जब उनके पास और भी गोलियाँ बचीं थीं, तो उन्होंने उस महिला को गोली क्यों नहीं मारी जिसने उन्हें पकड़ा था। इस पर उधम सिंह ने जवाब दिया हाँ ऐसा कर मैं भाग सकता था, लेकिन भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है। 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में उधम सिंह को फाँसी पर चढ़ा दिया गया जिसे उन्होंने हॅँसते-हँसते स्वीकार कर लिया।
उधम सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते...
31 जुलाई 1974 को ब्रिटेन ने उधम सिंह के अवशेष भारत को सौंप दिए। ओडवायर को जहाँ उधम सिंह ने गोली से उड़ा दिया, वहीं जनरल डायर कई तरह की बीमारियों से घिर कर तड़प-तड़प कर बुरी मौत मारा गया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें