एक बात जिस पर विचार होना चाहिए कि सेतु बाँधने से पहले समुद्र को सुखाने के लिए प्रभु राम ने जो अग्नि बाण का संधान किया था, वह किस स्थान पर चला था...?
संघानेउ प्रभु बिसिख कराला।
उठी उदधि उर अंतर ज्वाला।।
मकर उरग झष गन अकुलाने।
जरत जंतु जलनिधि जब जाने।।
और बाण चढाते ही समुद्र में भयंकर ज्वालाए उठने लगीं, समुद्री जीव जंतु जलने लगे तब समुद ने मानव रूप में आकर विनती की और नल नील से पुल बनवाने को कहा और धनुष पर चढे हये भयंकर अग्नि बाण का क्या हो, इसके बारे में प्रभु से प्रार्थना की -
एहि सर मम उत्तर तट बासी।
हतहु नाथ खल नर अघ रासी॥
सुनि कृपाल सागर मन पीरा।
तुरतहिं हरी राम रनधीरा ॥3॥
निवेदन किया की इस बाण से मेरे उत्तर तट पर रहने वाले पाप के राशि दुष्ट मनुष्यों का वध कीजिए। कृपालु और रणधीर श्री रामजी ने समुद्र के मन की पीड़ा सुनकर उसे तुरंत ही हर लिया (अर्थात् बाण को उस दिशा में भेज कर उन दुष्टों का वध कर दिया)
देखि राम बल पौरुष भारी।
हरषि पयोनिधि भयउ सुखारी॥
सकल चरित कहि प्रभुहि सुनावा।
चरन बंदि पाथोधि सिधावा ॥4॥
श्री राम ने ऐसा ही किया उस अग्नि बाण को जैसा समुद्र ने कहा था चला दिया और श्री राम के असीम बल पौरुष को देखकर समुद्र प्रसन्न हुआ-- श्री राम धनुषकोटि पर थे और पास में अरब सागर और जिसके उत्तर में आज के अरब देश और अफ्रीका का उत्तरी हिस्सा होना चाहिए। लगता है उस समय वहाँ सारी मानव जाति को कष्ट पहुचाने वाले मनुष्य रहते थे जिनका उस समय समूल नाश श्री राम के अग्नि बाण ने किया - वाल्मिकी रामायण के अनुसार वहाँ सभी मनुष्य - जीव जंतु-पेड़ पौधे सब कुछ नष्ट हो गया और रेगिस्तान हो गया - पानी सूख गया। तो क्या उस समय अरब देशो में असुर रहते थे जिनका समूल विनाश भगवान राम ने अग्नि बाण से किया और मृत सागर (डेड सी) लाल सागर इसी भयानक त्रासदी के कारण बने है ?
इस पर विद्वान मनिषियों को शोध करना चाहिए...
साभार: ऋषि कण्डवाल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें