शनिवार, 7 अगस्त 2021

क्या जीवन में एक ही गुरु बनाना चाहिए..?

एक ही क्यों..? यदि ऐसी बन्दिश आप अपने पर लगाते हो तो आप तो पशुओं से भी अधम रह जाओगे। एक प्रेरक प्रसंग आपके समक्ष रख रहा हूँ।

एक बार एक महात्माजी अपने कुछ शिष्यों के सँग खेतों में से कहीं जा रहे थे। तभी उनकी नजर ऊपर आसमान में उड़ते कव्वों के एक झुण्ड पर पड़ी। उनमें से एक कौए की चोंच में एक चिड़िया थी तथा बाकी सब कौए उस कौए को चोंच मार रहे थे।अचानक उस कौए की चोंच से चिड़िया छूट गयी । अन्य कव्वों में से एक आगे बढ़ा और उस चिड़िया को लपक लिया।अब बाकी कव्वों ने उस कव्वे को चोंच मारनी शुरू कर दी ।इस बीच पहला कव्वा आहत होकर नीचे गिर पड़ा। महात्माजी उस कव्वे के पास गए और हाथ जोड़कर नमन करते हुए बोले," है कागराज! आज से आप मेरे गुरु हैं" और अपने शिष्यों से उसका उपचार करने का आदेश दिया। शिष्य आश्चर्यचकित थे कि इतने ज्ञानी गुरुजी ने एक निर्ज्ञानी कव्वे को गुरु बना लिया। कव्वे के उपचार करते हुए उन्होंने अपनी जिज्ञासा प्रकट की तो गुरुजी बोले," शिष्यों! आज इस कौए ने मुझे सिखाया है कि यदि किसी एक वस्तु के लिए एक से अधिक लोग झगड़ रहे हों तो उस वस्तु को छोड़ देना ही अच्छा है। अन्यथा आप जीवन खो दोगे और जिस उद्देश्य के लिए जीवन पाया है उसे पूर्ण न कर सकोगे। अतः जो भी हमें ज्ञान दे वह हमारा गुरु है और उसका हमें सम्मान करना चाहिए।"

इसलिए एक ही गुरु बनाकर सन्तुष्ट मत होईये। ज्ञान प्राप्ति की कोई सीमा नहीं है और मनुष्य शरीर में कोई पूर्णज्ञानी नहीं है। इसलिए जितने आपके गुरु होंगे उतने ही आप अधिक ज्ञानवान होंगे।

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