शनिवार, 7 अगस्त 2021

प्रश्न :- गुरु बनाना क्यों जरूरी है, भक्ति तो घर पर भी कर सकते हैं..?

उत्तर :- प्रश्न ही गलत है...

प्रश्न पर विचार करें... गुरु बनाना 
अब सोचे... आप क्या गुरु को बनायेंगे, गुरु आपको बनायेगा। आपकी बनाई चीज आपसे छोटी ही होगी, याद रखें। तो किसी को गुरु बनाने की बात छोड़े... क्योंकि अध्यात्म कि ये राह कोई सांसारिक पाने खोने का मार्ग नहीं है , संसार की शिक्षा पाने के लिए आप किसी को शिक्षक चुन सकते हो, क्योंकी वहां दुकानें लगी हैं, एजुकेशन की...

यहां तो ये सवाल खड़ा करें कि मैं कैसे खुद को इतना योग्य बनाऊं की कोई गुरु मुझे चुन लें। मैं कैसे इतना पात्र बनूं की किसी जागृत गुरु का शिष्य होने योग्य हो पाऊं।

याद रखें जब शिष्य तैयार होता हैं तो गुरु खुद आता है। रामकृष्ण तैयार थे, तब उनके गुरु तोतापुरी आए गए... मार्ग दिखाकर फिर अपनी राह निकाल लिए... 
जब विवेकानन्द तैयार थे तो परमहंस ने उनको चुन लिया।

रज्जब शादी करने घोड़ी पे चढ़ा था कि दादू का गांव में आगमन हुआ और आवाज दी... अरे रज्जब तूने गजब किया, आया था हरि भजन को और पड़त नरक की ठौर...
बात ख़तम हो गई। वहीं रज्जब गुरु शरणागति को उपलब्ध हुआ।

और प्रश्न का दूसरा हिस्सा भी गलत है, भक्ति कि नहीं जाती, हो जाती हैं। जैसे मीरा को हो गई... फिर जब सांसारिक लोग ऐसे मस्तो की मस्ती देखते हैं, तो लालच आते है कि अरे सब कुछ पाया, ऐसी मस्ती नहीं मिली..! तो क्या पता भक्ति करने से मिल जाएं।
लेकिन जब संसारी आकर्षित होकर आता है तो उन्हीं के लिए कई और लालची लोग धर्मगुरु बनकर खड़े हो जाते हैं और फिर शुरू होता हैं... मांग और आपूर्ति का बाजार, धर्म का बाजार... इसलिए इन सबसे बचें। 

भक्ति करने कराने की बात नहीं, भक्ति तो घट जाती हैं। जब संसार में दौड़ कर समझ पक जाएं कि यहां कुछ हाथ आता नहीं, माटी का पलंग ही आखिरी मंजिल है। तब भक्ति, वैराग्य या ध्यान की ओर सही कदम बढ़ेंगे और जब शुरुआत सही होगी तो उसी राह पे वो परमात्मा खुद किसी ना किसी गुरु रूप में मार्ग दिखाने आए ही जायेंगे।

🙏🏻 ॐ शांति ⛳

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