शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

Electromagnetism

"एलेक्ट्रोमग्नेटिस्म" यूरोप वालों का खोजा हुआ सिद्धांत नहीं, ये हमारे ऋग्वेद में हज़ारों सालों से हैं.

आज आपको मॉडर्न स्कूलों में विज्ञान की किताब में एक सिद्धांत पढ़ाया जाता है जिसे "एलेक्ट्रोमग्नेटिस्म" कहा जाता है, आपने
भी विज्ञान की किताब में इस सिद्धांत को पढ़ा
होगा, बताया जाता है की ये सिद्धांत यूरोप के वैज्ञानिको ने खोजा है और मानवता को यूरोप वालों ने बड़ा ज्ञान दिया हैं.
चलिए इस सिद्धांत को भी यूरोप वालो ने अपना बता दिया, इस सिद्धांत के पीछे सारा श्रेय दे दिया गया यूरोप के लोगों को
जिनमे - हंस क्रिस्चियन, आंद्रे मरिए एम्पियर, माइकल फैराडे, जेम्स क्लर्क मैक्सवेल प्रमुख है, बताया जाता है कि एलेक्ट्रोमग्नेटिस्म का अविष्कार इनका किया हुआ है, इन्होने
एलेक्ट्रोमग्नेटिस्म की खोज की और मानवता
की सेवा की
आपको बता दें की ये तमाम लोग 17वी
शताब्दी के बाद के लोग है, यानि 250-300 साल पहले ही ये लोग जन्मे थे, पर ऋग्वेद इसका इतिहास तो 5000 साल से ज्यादा पुराना है, आपको हम ऋग्वेद में एलेक्ट्रोमग्नेटिस्म का
सिद्धांत कहाँ दिया हुआ है वो बताते है,
ऋग्वेद 1.119.10
ऋग्वेद साफ़ कहता है कि - अगर आप 2
चुम्बकीये पोल के बीच में धातु की तार को घुमाएंगे, तो उस से ऊर्जा उत्पन्न होगी, मतलब
अगर आप साउथ पोल और नार्थ पोल के बीच में धातु को घुमाएंगे तो उस से इलेक्ट्रो मैग्नेटिक ऊर्जा उत्पन्न होगी और उस ऊर्जा का इस्तेमाल विभिन्न तरीको से किया जा सकता है, संचार के लिए, सैन्य जरूरतों के लिए...
साफ़ है कि एलेक्ट्रोमग्नेटिस्म की जानकारी और ये सिद्धांत हमारे ऋग्वेद में हज़ारों सालों से
है, पर हमे बताया जाता है की यूरोप वालो ने
एलेक्ट्रोमग्नेटिस्म की खोज की, यूरोप वालों ने
खोज तो जरूर की पर हमारे ही ऋग्वेद से
चुराकर, हमने अपने वेदों का अपमान किया और यूरोप वालों ने सम्मान और सारे सिद्धांत आज उनके नाम से चल रहे है, याद रखें हिटलर
भी भारतीय वेदों और ज्ञान को जानता था और
उसने बाकायदा एक वैज्ञानिको की टीम भारत
और हिमालय तथा तिब्बत में भेजी हुई थी,
जाओ और भारत से विभिन्न सिद्धांत लाओ !

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