यदि उद्यान में कमल लगाने की इच्छा हो तो सबसे अधिक संतोषजनक रीति यह है कि सीमेंट की बावली बनाई जाए। प्रबलित (reinforced) कंक्रीट, या प्रबलित ईटं और सीमेंट, से पेंदा बनाया जाए। इसमें लंबाई और चौड़ाई दोनों दिशा दिशा में लोहे की छड़ें रहें जिसमें इसे चटखने का डर न रहे। दीवारें भी प्रबलित बनाई जाएँ। तीन फुट गहरी बावली से काम चल जाएगा। लंबाई, चौड़ाई जितनी ही अधिक हों उतना ही अच्छा होगा। प्रत्येक पौधे को लगभग 100 वर्ग फुट स्थान चाहिए। इसलिए 100 वर्ग फुट से छोटी बावली बेकार है। बावली की पेंदी में पानी की निकासी के लिए छेद रहें तो अच्छा है जिसमें समय-समय पर बावली खाली करके साफ की जा सके। तब इस छेद से नीची भूमि तक पनाली भी चाहिए।
बावली की पेंदी में 9 से 12 इंच तक मिट्टी की तह बिछा दी जाए और थोड़ा बहुत दिया जाए। इस मिट्टी में सड़े गोबर की खाद मिली हो। मिट्टी के ऊपर एक इंच मोटी बालू डाल दी जाए। यदि बावली बड़ी हो तो पेंदी पर सर्वत्र मिट्टी डालने के बदले 12 इंच गहरे लकड़ी के बड़े-बड़े बक्सों का प्रयेग किया जा सकता है। तब केवल बक्सों में मिट्टी डालना पर्याप्त होगा। इससे लाभ यह होता है कि सूखी पत्ती दूर करने, या फूल तोड़ने के लिए, जब किसी को बावली में घुसना पड़ता है तब पानी गंदा नहीं होता और इसलिए पत्तियों पर मिट्टी नहीं चढ़ने पाती। कमल के बीज को पेंदी की मिट्टी में, मिट्टी के पृष्ठ से दो तीन इंच नीचे, दबा देना चाहिए। बसंत ऋतु के आरंभ में ऐसा करना अच्छा होगा। कहीं से उगता पौधा जड़ सहित ले लिया जाए तो और अच्छा। बावली सदा स्वच्छ जल से भरी रहे।
नई बनी बावली को कई बार पानी से भरकर और प्रत्येक बार कुछ दिनों के बाद खाली करके स्वच्छ कर देना अच्छा है, क्योंकि आरंभ में पानी में कुछ चूना उतर आता है जो पौंधों के लिए हानिकारक होता है। पेंदी की मिट्टी भी चार, छह महीने पहले से डाल दी जाए और पानी भर दिया जाए। पानी पले हरा, फिर स्वच्छ हो जाएगा। बावली में नदी का, अथवा वर्षा का, या मीठे कुएँ का जल भरा जाए। शहरों के बंबे के जल में बहुधा क्लोरीन इतनी मात्रा में रहती है कि पौधे उसमें पनपते नहीं। बावली ऐसे स्थान में रहनी चाहिए कि उसपर बराबर धूप पड़ सके। छाँह में कमल के पौधे स्वस्थ नहीं रहते।
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