आज 'जय भीम, जय मीम' का नारा लगाने वाले दलित भाइयों को आज के कुछ राजनेता कठपुतली के समान प्रयोग कर रहे हैं। यह मानसिक गुलामी का लक्षण है। दलित-मुस्लिम गठजोड़ के रूप में बहकाना भी इसी कड़ी का भाग हैं। दलित समाज में संत रविदास का नाम प्रमुख समाज सुधारकों के रूप में स्मरण किया जाता हैं। संत रविदास जाटव या चमार कुल से सम्बंधित माने जाते थे। चमार शब्द चंवर का अपभ्रंश है।
चर्ममारी राजवंश का उल्लेख महाभारत जैसे प्राचीन भारतीय वांग्मय में मिलता है। प्रसिद्ध विद्वान डॉ विजय सोनकर शास्त्री ने इस विषय पर गहन शोध कर चर्ममारी राजवंश के इतिहास पर पुस्तक लिखा है। इसी तरह चमार शब्द से मिलते-जुलते शब्द चंवर वंश के क्षत्रियों के बारे में कर्नल टाड ने अपनी पुस्तक ‘राजस्थान का इतिहास’ में लिखा है। चंवर राजवंश का शासन पश्चिमी भारत पर रहा है। इसकी शाखाएं मेवाड़ के प्रतापी सम्राट महाराज बाप्पा रावल के वंश से मिलती हैं। संत रविदास जी महाराज लम्बे समय तक चित्तौड़ के दुर्ग में महाराणा सांगा के गुरू के रूप में रहे हैं। संत रविदास जी महाराज के महान, प्रभावी व्यक्तित्व के कारण बड़ी संख्या में लोग इनके शिष्य बने। आज भी इस क्षेत्रा में बड़ी संख्या में रविदासी पाये जाते हैं।
उस काल का मुस्लिम सुल्तान सिकंदर लोधी अन्य किसी भी सामान्य मुस्लिम शासक की तरह भारत के हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की उधेड़बुन में लगा रहता था। इन सभी आक्रमणकारियों की दृष्टि ग़ाज़ी उपाधि पर रहती थी। सुल्तान सिकंदर लोधी ने संत रविदास जी महाराज मुसलमान बनाने की जुगत में अपने मुल्लाओं को लगाया। सिकन्दर लोदी के समय सदना पीर प्रसिध्द था लेकिन हिन्दु संत रविदास के सामने तो तुच्छ था।
एक दिन सधना पीर ने सोचा कि आजकल रविदास का बड़ा नाम हो रहा है... मीराबाई जैसी रानी भी इनको मानती है। पीर ने सोचा की मैं रविदास को समझाऊंगा कि काफिरो की परंपरा छोड़ दें और कलमा पढ़ ले, जिससे हजारो हिन्दू मुस्लमाऩ हो जायेगें और अपनी जमात बढ़ जायेगी... लेकिन सँत रविदास कहा कम थे, उन्होने बोला कि मुल्ले सुऩ -
खुदा कलाम कुराऩ बताओ, फिर क्यों जीव मारकर खाओं...?
खुदा नाम बलिदाऩ चढाओं, सो अल्लाह को दोष लगाओं...
दिनभर रोजा ऩमाज गुजारे, संध्या समय पुऩः मुर्गी मारें...
भक्ति करे फिर खून बहावे, पामर किस विधि दोष मिटावे..?
जिसमें जीव हिंसा लिखी, वह नहीं खुदा कलाम...
दया करे सब जीव पर, सो ही अहले इस्लाम...
निराकार तुम खुदा बताओं, कुरान खुदा का कलाम ठहराओं..!
कलाम कहे तो बनै साकारा, फिर कहाँ रहा खुदा निराकारा..?
संत रविदास की रहस्यमयी बातें सुनकर सदना पीर को सदबुध्दि प्राप्त हुई और उसऩे संत रविदास से दीक्षा ली और ऩाम रखा गया रामदास
सिकंदर लोदी अपने षड्यंत्रा की यह दुर्गति होने पर चिढ़ गया और उसने संत रविदास जी को बंदी बना लिया और उनके अनुयायियों को हिन्दुओं में सदैव से निषिद्ध खाल उतारने, चमड़ा कमाने, जूते बनाने के काम में लगाया। इसी दुष्ट ने चंवर वंश के क्षत्रियों को अपमानित करने के लिये नाम बिगाड़ कर चमार सम्बोधित किया। चमार शब्द का पहला प्रयोग यहीं से शुरू हुआ। संत रविदास जी महाराज की ये पंक्तियाँ सिकंदर लोधी के अत्याचार का वर्णन करती हैं।
वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान
फिर मैं क्यों छोड़ूँ इसे पढ़ लूँ झूट क़ुरान
वेद धर्म छोड़ूं नहीं कोशिश करो हजार
तिल-तिल काटो चाही गोदो अंग कटार
चंवर वंश के क्षत्रिय संत रविदास जी के बंदी बनाने का समाचार मिलने पर दिल्ली पर चढ़ दौड़े और दिल्लीं की नाकाबंदी कर ली। विवश हो कर सुल्तान सिकंदर लोदी को संत रविदास जी को छोड़ना पड़ा। इस झपट का ज़िक्र इतिहास की पुस्तकों में नहीं है, मगर संत रविदास जी के ग्रन्थ रविदास रामायण की यह पंक्तियाँ सत्य उद्घाटित करती हैं...
बादशाह ने वचन उचारा, मत प्यादरा इस्लाम हमारा।
खंडन करै उसे रविदासा, उसे करौ प्राण कौ नाशा...
जब तक राम नाम रट लावे, दाना-पानी यह नहीं पावे।
जब इस्लाम धर्म स्वीरकारे, मुख से कलमा आप उचारै।
पढ़ें नमाज जभी चितलाई, दाना-पानी तब यह पाईं...
जैसे उस काल में इस्लामिक शासक हिंदुओं को मुसलमान बनाने के लिए हर संभव प्रयास करते रहते थे वैसे ही आज भी कर रहे हैं। उस काल में दलितों के प्रेरणास्रोत्र संत रविदास सरीखे महान चिंतक थे। जिन्हें अपने प्रान न्योछावर करना स्वीकार था, मगर वेदों को त्याग कर क़ुरान पढ़ना स्वीकार नहीं किया।
मगर इसे ठीक विपरीत आज के दलित राजनेता अपने तुच्छ लाभ के लिए अपने पूर्वजों की संस्कृति और तपस्या की अनदेखी कर रहे हैं।
दलित समाज के कुछ राजनेता जिनका काम ही समाज के छोटे-छोटे खंड बाँट कर अपनी दुकान चलाना है, अपने हित के लिए हिन्दू समाज के टुकड़े-टुकड़े करने का प्रयास कर रहे हैं।
आईये संत रविदास जी की सुने, जिन्होंने अनेक प्रलोभन के बाद भी पैशाचिकता के पथ इस्लाम को स्वीकार नहीं किया।
🙏🏻 जय सनातन ⛳ जय रैदास 🪔
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