शनिवार, 29 जुलाई 2017

क्या है सेतु समुद्रम परियोजना (Bridge Samudraam shipping canal project) 

सेतु समुद्रम परियोजना

2005 में भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम परियोजना का ऐलान किया गया। भारत सरकार सेतु समुद्रम परियोजना के तहत तमिलनाडु के रामेश्वर के तटवर्ती क्षेत्र में तमिलनाडु को श्रीलंका से जोड़ने की योजना पर काम कर रही है। इससे व्यापारिक फ़ायदा उठाने की बात कही जा रही है।

इसके तहत रामसेतु के कुछ इलाके को गहरा कर समुद्री जहाजों के लायक़ बनाया जाएगा। इसके लिए सेतु की चट्टानों को तोड़ना जरूरी है। इस परियोजना से रामेश्वरम देश का सबसे बड़ा शिपिंग हार्बर बन जाएगा। तूतिकोरन हार्बर एक नोडल पोर्ट में तब्दील हो जाएगा और तमिलनाडु के कोस्टल इलाकों में कम से कम 13 छोटे एयरपोर्ट बन जाएँगे।

परियोजना के पूरा होने के बाद पश्चिमी समुद्र तट और बंगाल की खाड़ी के बीच सीधा जलपोत परिवहन मार्ग खुल जाएगा। वर्तमान में जलपोत लगभग 650 कि.मी. (359 समुद्री मील) की लंबी दूरी तय करते हुए श्रीलंका का चक्कर लगा कर ही पश्चिमी तट से बंगाल की खाड़ी तक आवाज़ाही कर पाते हैं। नया रास्ता खुल जाने से यह दूरी कोई 400 कि.मी घट जाएगी। फलस्वरूप, समुद्र तटीय प्रदेशों, ख़ासकर तमिलनाडु को व्यापक आर्थिक व औद्योगिक लाभ मिलने की संभावना है।

माना जा रहा है कि सेतु समुद्रम परियोजना पूरी होने के बाद सारे अंतरराष्ट्रीय जहाज़ कोलंबो बंदरगाह का लंबा मार्ग छोड़कर इसी नहर से गुजरेंगें, अनुमान है कि 2000 या इससे अधिक जलपोत प्रतिवर्ष इस नहर का उपयोग करेंगे। मार्ग छोटा होने से सफर का समय और लंबाई तो छोटी होगी ही, संभावना है कि जलपोतों का 22 हज़ार करोड़ का तेल बचेगा। 19वें वर्ष तक परियोजना 5000 करोड़ से अधिक का व्यवसाय करने लगेगी जबकि इसके निर्माण में 2000 करोड़ की राशि खर्च होने का अनुमान है।

परियोजना से नुकसान

रामसेतु मानव निर्मित है या प्राकृतिक, इस विवाद से परे हटकर भू-विशेषज्ञों ने इसे न तोड़ने की हिदायत दी है। उन्होंने आगाह किया है कि एडम ब्रिज को तोड़ना प्राकृतिक तबाही का कारण बन सकता है। सेतु समुद्रम परियोजना विरोधी अंदोलन के तहत एक जुट पर्यावरण वैज्ञानिकों और भू-वेत्ताओं ने कहा है कि मन्नार की खाड़ी और पाक जलसंधि टेक्टोनिक यानी आंतरिक हलचलों के लिहाज़ से काफ़ी कमज़ोर है। भूकंप से जुड़े खतरों को लेकर भी काफ़ी संवेदनशील है। जियोलोजिकल सर्वे आफ इंडिया के पूर्व निदेशक के.गोपालकृष्णन ने कहा है कि केंद्र सरकार और सेतु समुद्रम परियोजना प्राधिकण को अधिकारियों ने समझाने की कोशिश की है कि यह महज एक बालू का टीला है, जो समय के साथ यहां-वहां हो सकता है। लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं। कृष्णन ने कहा कि ऐसे साक्ष्य मौजूद हैं जो साबित करते हैं कि रामसेतु भूगर्भीय, आंतरिक संरचना और सामुद्रिक विभाजक का काम करता है। विभिन्न भूगर्भीय और सामुद्रिक हलचलों को नियंत्रित करता है। उन्होंने कहा कि राम सेतु समुद्र को तोड़े जाने से समुद्र के भीतर भूस्खलन और भूकंप जैसी घटनाएं हो सकती हैं। दुर्लभ जीव-जंतुओं के आवास समाप्त हो जाएंगे। और भारत से लगे समुद्रों में मानसून चक्र भी प्रभावित होगा। नतीजतन बाढ़ और सूखे जैसी आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है। हर साल बंगाल की खाड़ी में आने वाले खतरनाक तूफ़ानों से राम सेतु ही बचाता है जिस कारण मन्नार की खाड़ी में असंतुलन की स्थिति नहीं आती है। इसलिए हम लोग भी वैज्ञानिकों के अनुसंधान से यह निष्कर्ष पा रहे हैं कि रामसेतु के कारण सुनामी को भी कमज़ोर होना पड़ा है। नहीं तो अब तक के अनुभवों के मुकाबले सुनामी के कारण भयंकर क्षति हो जाती। रामसेतु को तोड़े जाने से ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगली सुनामी से केरल में तबाही का जो मंजर होगा उससे बचाना मुश्किल हो जाएगा। हज़ारों मछुआरे बेरोज़गार हो जाएँगे।

इस क्षेत्र में मिलने वाले दुर्लभ शंख व शिप जिनसे 150 करोड़ रुपए की वार्षिक आय होती है, से लोगों को वंचित होना पड़ेगा। जल जीवों की कई दुर्लभ प्रजातियाँ नष्ट हो जाएँगी। भारत के पास यूरेनियम के सर्वश्रेष्ठ विकल्प थोरियम का विश्व में सबसे बड़ा भंडार है। यदि रामसेतु को तोड़ दिया जाता है तो भारत को थोरियम के इस अमूल्य भंडार से हाथ धोना पड़ेगा।

सेतु समुद्रम पर विवाद

भगवान राम ने जहाँ धनुष मारा था उस स्थान को 'धनुषकोटि' कहते हैं। राम ने अपनी सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करने के लिए उक्त स्थान से समुद्र में एक ब्रिज बनाया था इसका उल्लेख 'वाल्मिकी रामायण' में मिलता है।

केन्द्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल किए गए एक हलफनामें कहा था कि रामसेतु को खुद भगवान राम ने अपने एक जादुई बाण से तोड़ दिया था, इसके सुबूत के तौर पर सरकार ने 'कंबन रामायण' और 'पद्मपुराण' को पेश किया। सरकार ने रामसेतु के वर्तमान हिस्से के बारे में कहा कि यह हिस्सा मानव निर्मित न होकर भौगोलिक रूप से प्रकृति द्वारा निर्मित है। इसमें रामसेतु नाम की कोई चीज़ नहीं है।

विवाद का कारण

वानर सेना द्वारा रामसेतु का निर्माण

इससे पूर्व जब भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने सितंबर 2007 में उच्चतम न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामें में रामायण में उल्‍लेखित पौराणिक चरित्रों के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिए थे, जिसे हिन्दू भावनाओं को ठेस पहुँचाना माना गया।

एएसआई के हलफनामें में उसके निदेशक (स्मारक) सी. दोरजी ने कहा था कि राहत की माँग कर रहे याचिकाकर्ता मूल रूप से वाल्मीकि रामायण, तुलसीदास की रचित राम चरित्र मानस और पौराणिक ग्रंथों पर विश्वास कर रहे हैं, जो प्राचीन भारतीय साहित्य का महत्त्वपूर्ण अंग है, लेकिन इन्हें ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं कहा जा सकता और उनमें वर्णित चरित्रों तथा घटनाओं को भी प्रामाणिक सिद्ध नहीं किया जा सकता।

इससे पूर्व अहमदाबाद के मैरीन ऐंड वाटर रिसोर्सेज ग्रुप स्पेस एप्लिकेशन सेंटर ने कहा कि माना जाता है कि एडम्स ब्रिज या रामसेतु भगवान राम ने समुद्र पारकर श्रीलंका जाने के लिए बनाया था, जो मानव निर्मित नहीं है। सरकार और एएसआई ने भी इस मामले में इसी अध्ययन से मिलते जुलते विचार प्रकट किए हैं।

गौरतलब है कि रामसेतु की रक्षार्थ याचिकाकर्ता ने अदालत से रामसेतु को संरक्षित एवं प्राचीन स्मारक घोषित करने का अनुरोध किया था। यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया था कि रामेश्वरम को श्रीलंका से जोड़ने वाले सेतु समुद्रम के निर्माण के समय रामसेतु को नष्ट न किया जाए। इस याचिका पर 14 सितम्बर 20007 को उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई।

नया हलफनाम

विवाद के चलते भारत सरकार ने हलमनामें को वापस लेते हुए 29 फ़रवरी 2008 को उच्चतम न्यायालय में नया हलफनामा पेश कर कहा कि रामसेतु के मानव निर्मित अथवा प्राकृतिक बनावट सुनिश्चित करने के लिए कोई वैज्ञानिक विधि मौजूद नहीं है।

इस विवाद के चलते उधर तमिलनाडु की करुणानिधि सरकार ने रामसेतु को तोड़कर सेतु समुद्रम परियोजना को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए कमर कस ली। हालाँकि उच्चतम न्यायालय ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि खनन गतिविधियों के दौरान रामसेतु को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हो, लेकिन इस आदेश का पालन किस हद तक किया जा रहा है यह राज्य सरकार ही बता सकती है।

सरकारी दावे का खंडन

रामकथा के लेखक नरेंद्र कोहली के अनुसार, सरकार यह झूठ प्रचारित कर रही है कि राम ने लौटते हुए सेतु को तोड़ दिया था। जबकि रामायण के मुताबिक राम लंका से वायुमार्ग से लौटे थे, तो सोचे वह पुल कैसे तुड़वा सकते थे। रामायण में सेतु निर्माण का जितना जीवंत और विस्तृत वर्णन मिलता है, वह कल्पना नहीं हो सकता। यह सेतु कालांतर में समुद्री तूफ़ानों आदि की चोटें खाकर टूट गया, मगर इसके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता।

लालबहादुर शास्त्री विद्यापीठ के लेक्चरर डॉ. राम सलाई द्विवेदी का कहना है कि वाल्मीकि रामायण के अलावा कालिदास ने 'रघुवंश' के तेरहवें सर्ग में राम के आकाश मार्ग से लौटने का वर्णन किया है। इस सर्ग में राम द्वारा सीता को रामसेतु के बारे में बताने का वर्णन है। इसलिए यह कहना ग़लत है कि राम ने लंका से लौटते हुए सेतु तोड़ दिया था।

भारतीय नौ सेना की चिंता

सेतुसमुद्रम परियोजना को लेकर चल रही राजनीति के बीच कोस्ट गार्ड के डायरेक्टर जनरल आर.एफ. कॉन्ट्रैक्टर ने कहा था कि यह परियोजना देश की सुरक्षा के लिए एक ख़तरा साबित हो सकती है।

वाइस एडमिरल कॉन्ट्रैक्टर ने कहा था कि इसकी पूरी संभावना है कि इस चैनल का इस्तेमाल आतंकवादी कर सकते हैं। वाइस एडमिरल कॉन्ट्रैक्टर का इशारा श्रीलांकाई तमिल उग्रवादियों तथा अन्य आतंकवादियों की ओर है,जो इसका इस्तेमाल भारत में घुसने के लिए कर सकते हैं।

सेतु समुद्रम परियोजना का वैकल्पिक मार्ग

सेतु समुद्रम परियोजना के वैकल्पिक मार्ग भी उपलब्ध हैं, और जानकारों का कहना है कि रामेश्वरम और धनुकोष्टि के बीच फैले रेत के टीलों को हटाकर नया रास्ता बनाया जा सकता है। सेतु समुद्रम के वैकल्पिक मार्ग के रूप में वैज्ञानिकों ने पांच परियोजनाएं सुझाईं थी जिनमें रामसेतु पर कोई आंच न आती लेकिन सरकार यह छठा सुझाव लेकर रामसेतु तोड़ने की हठधर्मिता कर रही है। एक सवाल यह भी उठता है कि प्रधानमंत्री ने मार्च 2005 में तूती कोसिन बंदरगाह से 16 प्रश्नों का जवाब मांगा था लेकिन फिर ऐसा क्या हो गया कि जवाब देखने के पहले ही 2 जुलाई 2005 को परियोजना के उद्घाटन करने पहुंच गए। वहीं बताया तो यह भी जा रहा है कि इसके लिये पम्बन और धनुकोष्टि के बीच 15 किमी की मुख्य भूमि में खुदाई कर स्वेज और पनामा की तरह जलमार्ग बनाया जा सकता है वह भी बगैर किसी प्रागैतिहासिक धरोहर को नष्ट किये। यहां सवाल किस सरकार ने योजना बनाई और कौन आगे बढ़ा रही है का नहीं है बल्कि ऐतिहासिक धरोहर को बचाने का है। चाहे यह धरोहर प्रकृति निर्मित हो या फिर मानव निर्मित।

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