एक दिन डिस्कवरी पर जेनेटिक बीमारियों से सम्बन्धित एक ज्ञानवर्धक कार्यक्रम देख रहा था... उस प्रोग्राम में एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने कहा कि जेनेटिक बीमारी न हो, इसका एक ही इलाज है और वो है "सेपरेशन ऑफ़ जींस" मतलब अपने नजदीकी रिश्तेदारो में विवाह नहीं करना चाहिए, क्योंकि नजदीकी रिश्तेदारों में जींस सेपरेट (विभाजन) नहीं हो पाता और जींस लिंकेज्ड बीमारियाँ जैसे हिमोफिलिया, कलर ब्लाईंडनेस और एल्बोनिज्म होने की १००% संभावना होती हैं।
फिर मुझे बहुत ख़ुशी हुई, जब उसी कार्यक्रम में ये दिखाया गया कि आखिर हिन्दूधर्म में हजारों सालों पहले जींस और डीएनए के बारे में कैसे लिखा गया हैं...
उस वैज्ञानिक ने कहा कि आज पूरे विश्व को मानना पड़ेगा की हिन्दूधर्म ही विश्व का एकमात्र ऐसा धर्म है जो "विज्ञान पर आधारित" हैं।
हिंदुओं में गोत्र का विशेष महत्व है। वेदों के अनुसार मनुष्य जाति विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप और अगस्त्य जैस महान ऋषियों की वशंज हैं।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक ऋषि की अपनी प्रतिष्ठा है। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति एक ही गोत्र में शादी करते हैं तो वह एक ही परिवार के माने जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार एक ही वंश में जन्मे लोगों का विवाह हिंदू धर्म में पाप माना जाता है। ऋषियों के अनुसार ये गौत्र परंपरा का उल्लंघन माना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक गोत्र में शादी करने से विवाह दोष लगता है। गोत्र परंपरा का नाता रक्त संबंधों से होता है। ऐसे में एक ही कुल में शादी करने से न सिर्फ होने वाली संतान में शारीरिक दोष बल्कि चरित्र और मानसिक दोष भी हो सकते हैं।
एक ही गोत्र में कई अलग-अलग कुल होते हैं, इसलिए अलग-अलग समुदायों की अपनी परंपराएं हैं। कहीं 4 गोत्र टाले जाते हैं तो किसी वंश में 3 गोत्र टालने का भी नियम है। इससे विवाह में किसी तरह का दोष नहीं लगता है।
परंपराओं के अनुसार पहला गोत्र स्वयं का होता है। दूसरा मां का और तीसरा दादी का गोत्र होता है। कई लोग नानी के गोत्र का भी पालन करते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें