सावन का महीना सनातन धर्म में देवाधिदेव भगवान शंकर की उपासना का महीना होता है। साल में दो शिवरात्रि आती हैं, एक फाल्गुन के महीने की महाशिवरात्रि कहलाती है, इसी दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए ये पर्व पूरे भारत में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। एक शिवरात्रि सावन के महीने में आती हैं... एक समय की बात है इंद्र अपने ऐरावत हाथी पर कहीं जा रहे थे, तभी दुर्वासा ऋषि उन्हें रास्ते मे मिले... दुर्वासा ऋषि ने इंद्र को एक माला भेंट की जिसे घमण्ड में चूर इंद्र ने अपने ऐरावत हाथी को पहना दिया और ऐरावत ने वो माला अपनी सूंड से उतारकर पैरों से कुचल दी। जिसे देख दुर्वासा ऋषि क्रोध में भर गए और उन्होंने इंद्र को ये श्राप दिया कि तेरा राज्य नष्ट हो जाए... जिसके कारण दैत्यों ने हमला करके इंद्र का राज्य स्वर्ग उससे छीन लिया। इससे परेशान होकर, जब इंद्र विष्णु भगवान के पास गए... तब भगवान विष्णु ने इंद्र से सागर मंथन के लिए कहा... वे बोले कि देवता और असुर दोनों मिलकर सागर का मंथन करो... इस मंथन से जब अमृत निकलेगा तो उसे तुम सभी देवता पी लेना... जिससे तुम सभी अमरत्व को प्राप्त हो जाओगे और असुरों से पराजित नहीं होंगे। भगवान विष्णु इतना कहकर खुद राजा बलि के पास गए... उन्हें देखकर राजा बलि अत्यंत प्रसन्न हुए क्योंकि वे भगवान विष्णु के सच्चे भक्त थे। भगवान विष्णु ने राजा बलि के सामने सागर मंथन का प्रस्ताव रखते हुए कहा कि सभी देवता और असुर मिलकर सागर मंथन करेंगे और उसमें से जो भी रत्न, अन्य सभी वस्तुएं और अमृत निकलेगा तो इन सभी वस्तुओं को देव और असुर आपस मे बांट लेंगे।विष्णु जी के द्वारा दिये गए प्रस्ताव को राजा बलि ने सहर्ष स्वीकार किया। इसके बाद वासुकी नाग की रस्सी बनाकर और मंदराचल पर्वत की मंथनी बनाकर देवों और असुरों के बीच सागर मंथन शुरू हुआ। सबसे पहले मंथन में से कालकूट नाम का महाभयंकर विष निकला जिसके प्रभाव से देवता और असुर दोनों ही बुरी तरह से विचलित हो गए... सभी की सांसें टूटने लगी। ये विष इतना ज्यादा भयंकर था कि इसका तोड़ स्वयं ब्रह्मा जी के पास भी नहीं था। जब सभी देवता और असुर इसकी ज्वाला से जलने लगे... तब ब्रह्मा जी ने शंकर भगवान का ध्यान किया। केवल वो ही ऐसे थे, जो इसका उपचार कर सकते थे। जब ब्रह्मा जी समेत सभी देवों-असुरों ने मिलकर शिवजी से विनती की तब भगवान ने सृष्टि के कल्याण के लिए इस महाभयंकर कालकूट विष का पान कर लिया, जिसकी वजह से प्रभु का कंठ नीला पड़ गया और तभी से महादेव नीलकंठ के नाम से जाने गए। सावन महीने की त्रयोदशी के दिन भगवान शंकर ने इस विष को ग्रहण किया, तभी से प्रत्येक वर्ष सावन महीने की त्रयोदशी को शिवरात्रि मनाई जाती है। चूंकि कालकूट विष इतना ज्यादा भयंकर था कि उसके प्रभाव से भगवान शिव के कंठ में जलन होने लगी और वे विचलित होकर तांडव करने लगे तब हज़ारों साल समाधि के बाद भगवान ने उस विष की ज्वाला को शांत किया। इसी कारण शिवरात्रि के दिन शिवजी को जल, दूध और दही इत्यादि चढ़ाया जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान ने विष को अपने कण्ठ में ग्रहण किया था, उसी कालकूट विष की अग्नि के प्रभाव को कम करने और भगवान को आराम पहुंचे, इसके लिए ही भगवान को सब वस्तुए चढ़ाई जाती हैं।
🙌🏻 हर हर महादेव ⛳
शुक्रवार, 21 जुलाई 2017
आइए जानते हैं... क्यों मनाई जाती हैं, सावन महीने की शिवरात्रि..?
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