शुक्रवार, 30 जून 2017

रक्त दान/Blood Donation से दूसरों के साथ अपना फायदा भी...

💉ब्लड डोनेशन को लेकर सरकार की नीति स्पष्ट न होने के चलते बहुत से लोगों के मन में ब्लड डोनेशन को लेकर दुविधा बनी रहती है। ब्लड डोनेट करना क्यों जरूरी है और जरूरत पड़ने पर क्या करें, बता रहे हैं  मित्र:

क्यों है जरूरी

💉 ब्लड डोनेट कर एक शख्स दूसरे शख्स की जान बचा सकता है।

💉 ब्लड का किसी भी प्रकार से उत्पादन नहीं किया जा सकता और न ही इसका कोई विकल्प है।

💉 देश में हर साल लगभग 250 सीसी की 4 करोड़ यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है। सिर्फ 5,00,000 यूनिट ब्लड ही मुहैया हो पाता है।

💉 हमारे शरीर में कुल वजन का 7% हिस्सा खून होता है।

💉 आंकड़ों के मुताबिक 25 प्रतिशत से अधिक लोगों को अपने जीवन में खून की जरूरत पड़ती है।

*क्या हैं फायदे*

💉 ब्लड डोनेशन से हार्ट अटैक की आशंका कम हो जाती है। डॉक्टर्स का मानना है कि डोनेशन से खून पतला होता है, जो कि हृदय के लिए अच्छा होता है।

💉 एक नई रिसर्च के मुताबिक नियमित ब्लड डोनेट करने से कैंसर व दूसरी बीमारियों के होने का खतरा भी कम हो जाता है, क्योंकि यह शरीर में मौजूद विषैले पदार्थों को बाहर निकालता है।

💉 ब्लड डोनेट करने के बाद बोनमैरो नए रेड सेल्स बनाता है। इससे शरीर को नए ब्लड सेल्स मिलने के अलावा तंदुरुस्ती भी मिलती है।

💉 ब्लड डोनेशन सुरक्षित व स्वस्थ परंपरा है। इसमें जितना खून लिया जाता है, वह 21 दिन में शरीर फिर से बना लेता है। ब्लड का वॉल्यूम तो शरीर 24 से 72 घंटे में ही पूरा बन जाता है।

   *ब्लड डोनेट करने से पहले*
💉ब्लड देने से पहले मिनी ब्लड टेस्ट होता है, जिसमें हीमोग्लोबिन टेस्ट, ब्लड प्रेशर व वजन लिया जाता है। ब्लड डोनेट करने के बाद इसमें हेपेटाइटिस बी व सी, एचआईवी, सिफलिस व मलेरिया आदि की जांच की जाती है। इन बीमारियों के लक्षण पाए जाने पर डोनर का ब्लड न लेकर उसे तुरंत सूचित किया जाता है।

💉 ब्लड की कमी का एकमात्र कारण जागरूकता का अभाव है।

💉 18 साल से अधिक उम्र के स्त्री-पुरुष, जिनका वजन 50 किलोग्राम या अधिक हो, वर्ष में तीन-चार बार ब्लड डोनेट कर सकते हैं।

💉 ब्लड डोनेट करने योग्य लोगों में से अगर मात्र 3 प्रतिशत भी खून दें तो देश में ब्लड की कमी दूर हो सकती है। ऐसा करने से असमय होने वाली मौतों को रोका जा सकता है।

💉 ब्लड डोनेट करने से पहले व कुछ घंटे बाद तक धूम्रपान से परहेज करना चाहिए।

💉 ब्लड डोनेट करने वाले शख्स को रक्तदान के 24 से 48 घंटे पहले ड्रिंक नहीं करनी चाहिए।

💉 ब्लड डोनेट करने से पहले पूछे जाने वाले सभी प्रश्नों के सही व स्पष्ट जवाब देना चाहिए।

       *नोट:*
ब्लड डोनेट करने के बाद आप पहले की तरह ही कामकाज कर सकते हैं। इससे शरीर में किसी भी तरह की कमी नहीं होती।

💉इस मैसेज को हर आदमी व हर ग्रुप में पहुचाऎ ताकि रक्तदान करने वालो की गलतफहमी दूर हो सके तथा रक्तदान नहीं करने वाले भी ज्यादा से ज्यादा रक्तदान करके खुद भी स्वस्थ रहे तथा कई लोगों की जान बचा सके|                  

_मौका दीजिये अपने खून को, किसी की रगों में बहने का......_

_ये लाजवाब तरीका है , कई जिस्मों में ज़िंदा रहने का......._

❣❣❣

💉 *ब्लड ग्रुप की तुलना*  💉

आपका ब्लड कौनसा है और उसकी उपलब्धता कितनी है?

O+       1 in 3        37.4%
(प्रचुरता में उपलब्ध)

A+        1 in 3        35.7%

B+        1 in 12       8.5%

AB+     1 in 29        3.4%

O-        1 in 15        6.6%

A-        1 in 16        6.3%

B-        1 in 67        1.5%

AB-     1 in 167        .6%
*(दुर्लभ)*

*Compatible Blood Types*

O-    ले सकता है      O-

O+   ले सकता है      O+, O-

A-    ले सकता है       A-, O-

A+ले सकता है A+, A-,O+,O-

B- ले सकता है  B-, O-

B+ ले सकता है B+,B-,O+,O-

AB-ले सकता है AB-,B-,A-,O-

AB+ ले सकता है  AB+, AB-, B+, B-, A+,  A-,  O+,  O-

💉*Donate blood*💉
        

बुधवार, 28 जून 2017

पैरों की उंगलियों की शेप्स बताती है आपके स्वभाव के बारें में...

किसी भी व्यक्ति के स्वभाव के बारें में उसके पैर की उंगलियों को देखकर पता लगाया जा सकता है। हर व्यक्ति के पैरों की उंगलियां का शेप अलग होता है। यहां  पांच प्रकार के पैरों की उंगलियों की शेप्स का वर्णन किया जा रहा है।
आप इन शेप्स में से अपने पैर का शेप मैच करके स्वभाव से जुड़ी खास बातें जान सकते हैं। इसी प्रकार आप दूसरों के पैरों का शेप देखकर उनके विषय में भी काफी कुछ जान सकते हैं।
1. जिन लोगों के पैरों में अंगूठे से घटते क्रम में उंगलियां होती हैं, वे लोग दूसरों पर हावी होने का प्रयास करते हैं, तथा ऐसे पैर का शेप व्यक्ति को अधिकार जताने वाला बनाता है। इस प्रकार के पैर वाले लोग यही चाहते हैं कि हर जगह उन्हें पूरा मान-सम्मान मिले और सभी उनकी बात पलना करें। यदि घर-परिवार या समाज में कोई व्यक्ति इनकी इच्छा के अनुसार नहीं चलता है तो इन्हें गुस्सा आता है।
2. जिन लोगों के पैर में अंगूठा और उसके पास की दो उंगलियां बराबर हों और शेष उंगलियां छोटी हों तो व्यक्ति कठिन परिश्रम करने वाला होता है। ऐसे लोग अपने श्रम के बल पर कार्यों में सफलता प्राप्त करते हैं। श्रम के बल पर ही इन्हें मान-सम्मान भी प्राप्त होता है। इस प्रकार के पैर का शेप होने पर व्यक्ति घर-परिवार में भी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह अच्छी तरह से करता है। इन्हें श्रम के बल पर ही कई उपलब्धियां हासिल होती हैं।
3. जिन लोगों के पैरों में अंगूठे के पास वाली उंगली अधिक बड़ी होती हैं और शेष उंगलियां छोटी होती हैं, वे लोग किसी भी काम को यूनिक तरीके से करना पसंद करते हैं। कार्यों के संबंध में इनकी प्लानिंग बहुत अलग और श्रेष्ठ होती है। अपनी योजनाओं के बल इन्हें विशेष स्थान भी मिलता है, तथा घर-परिवार में भी इन लोगों को विशेष सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।
4. जिन लोगों के पैर में अंगूठा लंबा और शेष उंगलियां छोटी हों और उंगलियों की लंबाई बराबर हो तो व्यक्ति कूल माइंड होता है। इन्हें किसी भी काम को ठंडे दिमाग से करना पसंद होता है। ये लोग कभी भी एकदम आवेश में नहीं आते हैं। ये लोग शांति प्रिय होने के कारण ये लोग कभी-कभी आलसी भी हो जाते हैं। इसी आदत की वजह से कार्यों में देरी भी का देते है !
5. जिन लोगों के पैरों में अंगूठे के पास वाली उंगली अधिक लंबी, उसके बाद दूसरे उंगली थोड़ी छोटी और शेष उंगलियां और छोटी हों तो व्यक्ति ऊर्जावान होता है। आमतौर ऐसे लोग क्रेजी होते हैं। ये किसी भी काम को पूरे जोश और ऊर्जा के साथ पूरा करते हैं।  ये लोग जीवन का पूरी तरह आनंद लेते हैं। हमेशा प्रसन्न रहते है।

मंगलवार, 27 जून 2017

आओ मिलकर आग लगाएं,नित नित नूतन स्वांग करें, पौरुष की नीलामी कर दें,आरक्षण की मांग करें,

आओ मिलकर आग लगाएं,नित नित नूतन स्वांग करें,
पौरुष की नीलामी कर दें,आरक्षण की मांग करें,
पहले से हम बंटे हुए हैं,और अधिक बंट जाएँ हम,
100 करोड़ हिन्दू है,मिलकर इक दूजे को खाएं हम,
देश मरे भूखा चाहे पर अपना पेट भराओ जी,
शर्माओ मत,भारत माँ के बाल नोचने आओ जी,
तेरा हिस्सा मेरा हिस्सा,किस्सा बहुत
पुराना है,
हिस्से की रस्साकसियों में भूल नही ये जाना
है,
याद करो ज़मीन के हिस्सों पर जब हम टकराते थे,
गज़नी कासिम बाबर मौका पाते ही घुस आते थे
अब हम लड़ने आये हैं आरक्षण वाली रोटी पर,
जैसे कुत्ते झगड़ रहे हों कटी गाय की बोटी पर,
हमने कलम किताब लगन को दूर बहुत ही फेंका है,
नाकारों को खीर खिलाना संविधान का
ठेका है,
मैं भी पिछड़ा,मैं भी पिछड़ा,कह कर बनो
भिखारी जी,
ठाकुर पंडित बनिया सब के सब कर लो तैयारी
जी,
जब पटेल के कुनबों की थाली खाली हो सकती
है,
कई राजपूतों के घर भी कंगाली हो सकती है,
बनिए का बेटा रिक्शे की मज़दूरी कर सकता है,
और किसी वामन का बेटा भूखा भी मर सकता
है,
आओ इन्ही बहानों को लेकर,सड़कों पर टूट पड़ो,
अपनी अपनी बिरादरी का झंडा लेकर छूट पड़ो,
शर्म करो,हिन्दू बनते हो,नस्लें तुम पर थूंकेंगी,
बंटे हुए हो जाति पंथ में,ये ज्वालायें फूकेंगी,
मैं पटेल हूँ मैं जाट हूँ,लड़ते रहिये शानों से,
फिर से तुम जूते खाओगे गजनी की संतानो से,
ऐसे ही हिन्दू समाज के कतरे कतरे कर डालो,
संविधान को छलनी कर के,गोबर इसमें भर डालो,
राम राम करते इक दिन तुम अस्सलाम हो जाओगे,
बंटने पर ही अड़े रहे तो फिर गुलाम हो जाओगे,

जय जय श्री राम...

सोमवार, 26 जून 2017

क्रिकेट की सच्चाई

भारत में क्रिकेट ब्रिटिश राज्य की निशानी है।


क्रिकेट सिर्फ वही देश खेलते हैं, जो कभी न कभी ब्रिटेन के गुलाम रहे है। यदि अंग्रेजो के पूर्व-गुलाम राष्ट्रों को छोड़ दें तो दुनिया का कौन-सा स्वतंत्र राष्ट्र है, जहाँ क्रिकेट का बोलबाला है..? ‘इंटरनेशनल क्रिकेट कौंसिल’ के जिन दस राष्ट्रों को अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने का अधिकार हैं, वे सब के सब अंग्रेज के भूतपूर्व गुलाम-राष्ट्र हैं।

मेरी जानकारी के हिसाब से अभी तक क्रिकेट केवल वही देश खेलते है, जो कभी अंग्रेजो के गुलाम थे और ये खेल हमको हमारी मानसिक गुलामी से परिचित करवाता है। “क्रिकेट” खेल का जन्मदाता इंग्लैंड देश को माना जाता है। आजादी के बाद भी देशवासी अंग्रेजी मानसिकता से दबे है।

दुनिया के अधिकतर विकसित देश क्रिकेट नहीं खेलते...

विश्व का कोई भी विकसित राष्ट्र क्रिकेट नहीं खेलता... अमेरिका, जापान, रुस, चीन, फ्रान्स, जर्मनी इत्यादि तमाम विकसित राष्ट्रों ने क्रिकेट को कभी नहीं अपनाया, इसका सीधा-सा कारण यही है कि इस खेल में सबसे अधिक समय लगता है और आज के प्रतिस्पर्धा के युग में कोई भी देश अपना ज्यादा समय महज खेल देखने पर व्यय करने को राजी नहीं है।

क्रिकेट ओलंपिक खेलों में शामिल नहीं है।

याद रखना चाहिए कि दुनिया में क्रिकेट को ओलम्पिक में शामिल नहीं किया गया क्योंकि इसे अंतरराष्ट्रीय खेल की मान्यता नहीं है। 

क्रिकेट यानी ब्रिटेन की औपनिवेश रहे देशों के परिचायक अगर बहुत ही सादे शब्दों में कहें तो कभी ब्रिटेन के गुलाम रहे देशों के खेल...

क्रिकेट भारत देश के विकाश में बाधा है।

क्रिकेट मैच के दौरान पूरा भारत देश काम-धाम भूलकर क्रिकेट में मग्न हो जाता है। क्रिकेट खेल में ज्यादा समय बर्बाद होता है। भारत की युवा पीढ़ियों पर क्रिकेट का नशा इस कदर छाया है कि उसके आगे सभी काम ठप्प...

क्रिकेट के कारण भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी और पारंपरिक खेलों (कबड्डी, कुश्ती) पूरी तरह से बर्बाद है।

“हॉकी” भारत का राष्ट्रीय खेल है। हमारे देश के पास दस ओलम्पिक स्वर्ण पदकों का उत्कृष्ट रिकॉर्ड है। क्रिकेट भारत के बाकी सारे खेलों को खा गया है। भारत के खेल तो कुश्ती है, कब्बड्ढी है और राष्ट्रिय खेल हॉकी है। देश में क्रिकेट के अलावा दूसरे सारे खेलों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। क्रिकेट के चस्के ने भारत के पारंपरिक खेलों, अखाड़ों और कसरतों को हाशिए में सरका दिया है।

क्रिकेट के कारण भारतीय खेल हॉकी, कुस्ती, मुक्केबाजी आदि अन्य खेल जिससे शारीर में चुस्ती-फुर्ती आती है और शारीरिक व्यायाम भी होता है, वह खेल मर रहें है और उनके खिलाड़ी उपेक्षित महसूस कर रहें है।

क्रिकेट खेल नहीं, बीमारी है।

क्रिकेट खेल दीमक की तरह भारतीय मस्तिष्क को चाट रहा है। यह क्रिकेट एक ऐसा खेल है, जिसमें 11 खिलाड़ियों की टीम में से सिर्फ एक खेलता है और शेष 10 बैठे रहते हैं। विरोधी टीम के बाकी 11 खिलाड़ी खड़े रहते हैं। उनमें से भी एक रह-रहकर गेंद फेंकता है। कुल 22 खिलाड़ियों में 20 तो ज्यादातर वक्त निठल्ले बने रहते हैं, ऐसे खेल से कौन-सा स्वास्थ्य लाभ होता है? क्रिकेट का रोग इस भारत देश को वर्षों से लगा हुआ है। क्रिकेट हमारी गुलामी की निशानी है, जिसे हम बड़े गर्व से अपनाए रखना चाहते हैं!

क्रिकेट मैच फिक्सिंग का खेल हैं।

टीम इंडिया में मैच फिक्सिंग का मामला 1990 के दशक में सामने आया था। अजहर को भारत में मैच फिक्सिंग का सबसे बड़ा गुनहगार माना गया। आईसीसी, बीसीसीआई और सीबीआई तीनों की जांच रिपोर्ट में अजहर पर उंगली उठाई गई थी। साल 2000 में बीसीसीआई ने उन पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया। अजय शर्मा पर आरोप लगे थे कि उन्होंने ड्रेसिंग रुम में बैठकर कई मैच फिक्स किए थे। दिसंबर 2000 में इनके ऊपर भी बीसीसीआई ने आजीवन पाबंदी लगा दी थी। बीसीसीआई ने मनोज प्रभाकर पर पांच साल की पांबदी लगा दी थी। अजय जडेजा पर मैच फिक्सिंग भी पांच साल की पाबंदी लगा दी गई। विकेटकीपर नयन मोंगिया भी मैच फिक्सिंग में शामिल पाए गए। मोंगिया पर 5 साल की पाबंदी लगा दी गई थी।

क्रिकेट मूर्ख लोगों का खेल

ब्रिटेन के विख्यात लेखक, नोबल पुरस्कार प्राप्त और ब्लैक कॉमेडी के लिए चर्चित साहित्यकार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ की प्रसिद्ध उक्ति सुनी होगी कि “क्रिकेट एक वाहियात और मूर्ख लोगों का खेल है, जिसे 22 मूर्ख खेलते हैं, 22 करोड़ देखते हैं ओर 10 घंटे बर्बाद करते हैं।

भारत देश के क्रिकेटरों द्वारा अमेरिकी कंपनियों की मार्केटिंग, भारत को कंगाल बनाना।

सचिन ने पेप्सी, कोका कोला, बूस्ट, रिनॉल्ड, कोलगेट, फिलिप्स, विसा, केस्ट्रॉल, केनन आदि के ब्रांड रह चुके हैं। यह बात तो सड़क पर चलने वाला साधारण आदमी भी समझता है कि अमेरिका का माल ज्यादा बिकेगा, तो अमेरिका धनवान बनेगा। अमेरिका ताकतवर बनेगा। भारत देश के क्रिकेटरों अपनी प्रसिध्दि से अमेरिका को समृध्द बना रहे हैं। इस बात को आप इस तरह से भी समझ सकते हैं कि भारत देश के क्रिकेटरों भारत को कंगाल बना रहे हैं। भारत में बना हुआ माल अमेरिकी खरीदें ऐसी सेल्समैनशिप भारत देश के क्रिकेटरों ने आज तक नहीं की...

भारत में क्रिकेट का आयोजन आजादी की लड़ाई के शहीदों का अपमान है।

क्या हम इतनी जल्दी भूल गए कि देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करने के लिए लाखों हिंदुस्तानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी, जेल की यातनाएं झेली... तब कहीं 15 अगस्त 1947 को बड़ी मुश्किल से अंग्रेजों को यहाँ से भगाया जा सका...

यह हमारी विडम्बना है कि सचिन, महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली, युवराज सिंह, हरभजन सिंह के जन्मदिवस पर देश भर में केक काटे जाते हैं लेकिन मंगल पांडे, चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह के जन्मदिनों की तारीखें हमारी युवा पीढ़ी को याद नहीं हैं..! आज यदि हम स्वतंत्र हवा में सांस ले पा रहे हैं तो यह उन अनेक वीर भारतवासियों की बदौलत है जिन्होंने अपने वतन को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करने के लिए अपनी जान तक की बाजी लगा दी थी।

क्रिकेट से उजाड़ते हैं ना जाने कितने घर

क्रिकेट मैचों पर लगने वाले सट्टे में हारने से न केवल कितने ही परिवार बर्बाद होते हैं, उस बर्बादी को सहन न कर पाने से कई लोगों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं से उनके परिवार उजड़ जाते हैं।

अंग्रेजो के खेल क्रिकेट ने भारत देश का बेड़ागर्क कर दिया है। अंग्रेजो के खेल क्रिकेट हटाओ, देश बचाओ। जागो भारतीय जागो...

क्रिकेट समय की बर्बादी, गुलामी की निशानी, शहीदों का अपमान और पेप्सी-कोक बेचने का जरिया मात्र है।

शनिवार, 24 जून 2017

कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं।

कहाँ पर बोलना है
और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।

कटा जब शीश सैनिक का
तो हम खामोश रहते हैं।
कटा एक सीन पिक्चर का
तो सारे बोल जाते हैं।।

नयी नस्लों के ये बच्चे
जमाने भर की सुनते हैं।
मगर माँ बाप कुछ बोले
तो बच्चे बोल जाते हैं।।

बहुत ऊँची दुकानों में
कटाते जेब सब अपनी।
मगर मज़दूर माँगेगा
तो सिक्के बोल जाते हैं।।

अगर मखमल करे गलती
तो कोई कुछ नहीँ कहता।
फटी चादर की गलती हो
तो सारे बोल जाते हैं।।

हवाओं की तबाही को
सभी चुपचाप सहते हैं।
च़रागों से हुई गलती
तो सारे बोल जाते हैं।।

बनाते फिरते हैं रिश्ते
जमाने भर से अक्सर।
मगर जब घर में हो जरूरत
तो रिश्ते भूल जाते हैं।।

कहाँ पर बोलना है
और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।

✍🏻 कमल सिंघल🙏🏻

अच्छा हुआ काफ़िर हूँ, मुसलमान नहीं हूँ...

कश्मीर में आतंक का सामान नहीं हूँ।

अच्छा हुआ काफिर हूँ, मुसलमान नहीं हूँ।

1. होता जो मुसलमान, शर्मसार ही होता।
    औरों के साथ मैं भी गुनहगार ही होता।

    बलवे सड़क पे रोज़ सुबह शाम ही होते।
    पत्थर ही मेरे हाथ में इस्लाम के होते...

   इस मुल्क से अलगाव की पहचान नहीं हूं,
  अच्छा हुआ काफिर हूँ, मुसलमान नही हूं।

2. होता जो मुसलमान, अमन-चैन मिटाता...
    रमजान के महीने में भी हथियार उठाता...

    मस्जिद में आता, करके नमाज़े में निकलता,
    फिर भीड़ में भारत के लिए ज़हर उगलता...

   दहशत का कोई मज़हबी अरमान नहीं हूँ।
   अच्छा हुआ काफिर हूँ, मुसलमान नहीं हूँ।

3. होता जो मुसलमान तो फितरत मैं दिखाता...
    भारत🇮🇳 की हार पर मैं पटाखे भी चलाता...

     बजने पे राष्ट्रगान... मैं होता नहीं खड़ा...
     मज़हब को दिखाता मैं अपने मुल्क से बड़ा...

    गद्दार रिवायत का खानदान नहीं हूँ...
   अच्छा हुआ काफ़िर हूँ, मुसलमान नहीं हूँ।

4. होता जो मुसलमान, तो होता यही किस्सा...
    इक शख्स को कुचलती हुयी भीड़ का हिस्सा...

    मस्जिद के सामने ही खुलेआम ये करता...
    मासूमियत को क़त्ल मैं करने से न डरता...

   बिन मूंछ दाढ़ियों का कदरदान नहीं हूँ...
   अच्छा हुआ काफिर हूँ मुसलमान नही हूँ।

5. होता जो मुसलमान, अपना धर्म निभाता...
    भारत में रहके गीत पाकिस्तान के गाता...

    इस्लाम की बुलंदियों का दौर चलाता,
    होते ही जवां हाथ में बन्दूक उठाता...

   कमल हूँ... कोई बेहूदा बुरहान नही हूँ...
   अच्छा हुआ काफिर हूँ, मुसलमान नहीं हूँ।

   📝कवि:- गौरव चौहान 🇮🇳
   ✍🏻प्रेषक:- कमल सिंघल⛳

मंगलवार, 13 जून 2017

मातृभाषा का महत्व

मित्रो इतिहास के प्रकांड पंडित डॉ. रघुबीर प्राय: फ्रांस जाया करते थे।

वे सदा फ्रांस के राजवंश के एक परिवार के यहाँ ठहरा करते थे।

उस परिवार में एक ग्यारह साल की सुंदर लड़की भी थी। वह भी डॉ. रघुबीर की खूब सेवा करती थी। अंकल-अंकल बोला करती थी।

एक बार डॉ. रघुबीर को भारत से एक लिफाफा प्राप्त हुआ। बच्ची को उत्सुकता हुई। देखें तो भारत की भाषा की लिपि कैसी है। उसने कहा अंकल लिफाफा खोलकर पत्र दिखाएँ। डॉ. रघुबीर ने टालना चाहा पर बच्ची जिद पर अड़ गई।

डॉ. रघुबीर को पत्र दिखाना पड़ा। पत्र देखते ही बच्ची का मुँह लटक गया‌ अरे यह तो अंग्रेजी में लिखा हुआ है।

आपके देश की कोई भाषा नहीं है..?

डॉ. रघुबीर से कुछ कहते नहीं बना। बच्ची उदास होकर चली गई, माँ को सारी बात बताई...

दोपहर में हमेशा की तरह सबने साथ-साथ खाना तो खाया, पर पहले दिनों की तरह उत्साह चहक-महक नहीं थी।

गृहस्वामिनी बोली डॉ. रघुबीर, आगे से आप किसी और जगह रहा करें। जिसकी कोई अपनी भाषा नहीं होती, उसे हम फ्रेंच, बर्बर कहते हैं।

ऐसे लोगों से कोई संबंध नहीं रखते...

गृहस्वामिनी ने उन्हें आगे बताया "मेरी माता लोरेन प्रदेश के ड्यूक की कन्या थी। प्रथम विश्व युद्ध के पूर्व वह फ्रेंच भाषी प्रदेश जर्मनी के अधीन था। जर्मन सम्राट ने वहाँ फ्रेंच के माध्यम से शिक्षण बंद करके जर्मन भाषा थोप दी थी।

फलत: प्रदेश का सारा कामकाज एकमात्र जर्मन भाषा में होता था, फ्रेंच के लिए वहाँ कोई स्थान न था।

स्वभावत: विद्यालय में भी शिक्षा का माध्यम जर्मन भाषा ही थी। मेरी माँ उस समय ग्यारह वर्ष की थी और सर्वश्रेष्ठ कान्वेंट विद्यालय में पढ़ती थी।

एक बार जर्मन साम्राज्ञी कैथराइन लोरेन का दौरा करती हुई, उस विद्यालय का निरीक्षण करने आ पहुँची। मेरी माता अपूर्व सुंदरी होने के साथ-साथ अत्यंत कुशाग्र बुद्धि भी थीं। सब ‍बच्चियाँ नए कपड़ों में सजधज कर आई थीं। उन्हें पंक्तिबद्ध खड़ा किया गया था।

बच्चियों के व्यायाम, खेल आदि प्रदर्शन के बाद साम्राज्ञी ने पूछा कि क्या कोई बच्ची जर्मन राष्ट्रगान सुना सकती है?

मेरी माँ को छोड़ वह किसी को याद न था। मेरी माँ ने उसे ऐसे शुद्ध जर्मन उच्चारण के साथ इतने सुंदर ढंग से सुना पाते...

साम्राज्ञी ने बच्ची से कुछ इनाम माँगने को कहा। बच्ची चुप रही। बार-बार आग्रह करने पर वह बोली 'महारानी जी, क्या जो कुछ में माँगू वह आप देंगी..?'

साम्राज्ञी ने उत्तेजित होकर कहा 'बच्ची! मैं साम्राज्ञी हूँ। मेरा वचन कभी झूठा नहीं होता। तुम जो चाहो माँगो। इस पर मेरी माता ने कहा 'महारानी जी, यदि आप सचमुच वचन पर दृढ़ हैं तो मेरी केवल एक ही प्रार्थना है कि अब आगे से इस प्रदेश में सारा काम एकमात्र फ्रेंच में हो, जर्मन में नहीं।'

इस सर्वथा अप्रत्याशित माँग को सुनकर साम्राज्ञी पहले तो आश्चर्यकित रह गई, किंतु फिर क्रोध से लाल हो उठीं। वे बोलीं 'लड़की' नेपोलियन की सेनाओं ने भी जर्मनी पर कभी ऐसा कठोर प्रहार नहीं किया था, जैसा आज तूने शक्तिशाली जर्मनी साम्राज्य पर किया है।

साम्राज्ञी होने के कारण मेरा वचन झूठा नहीं हो सकता, पर तुम जैसी छोटी-सी लड़की ने इतनी बड़ी महारानी को आज पराजय दी है, वह मैं कभी नहीं भूल सकती...
जर्मनी ने जो अपने बाहुबल से जीता था, उसे तूने अपनी वाणी मात्र से लौटा लिया।

मैं भलीभाँति जानती हूँ कि अब आगे लारेन प्रदेश अधिक दिनों तक जर्मनों के अधीन न रह सकेगा।

यह कहकर महारानी अतीव उदास होकर, वहाँ से चली गई। गृहस्वामिनी ने कहा 'डॉ. रघुबीर, इस घटना से आप समझ सकते हैं कि मैं किस माँ की बेटी हूँ।

हम फ्रेंच लोग संसार में सबसे अधिक गौरव अपनी भाषा को देते हैं क्योंकि हमारे लिए राष्ट्र प्रेम और भाषा प्रेम में कोई अंतर नहीं है।

हमें अपनी भाषा मिल गई तो आगे चलकर हमें जर्मनों से स्वतंत्रता भी प्राप्त हो गई।

मित्रो आप समझ रहे हैं ना !

हिन्दू, हिन्दी, हिंदुस्थान...
यही हैं हमारी पहचान...

🙏🏻 जय श्री राम ⛳


शनिवार, 10 जून 2017

जीवन के सफ़र में आज मेरा जन्मदिन...


जीवन का प्रवाह अपनी गति से चलता रहता है। कभी हर्ष तो कभी विषाद, यह सब जीवन में लगे रहते हैं। हर किसी का जीवन जीने का और जिंदगी के प्रति अपना नजरिया होता है। महत्व यह नहीं रखता कि आपने जीवन कितना लम्बा जिया बल्कि कितना सार्थक जिया। आज मैं अपने जीवन के एक नए वर्ष में प्रवेश कर रहा हूँ। जीवन के इस सफर में न जाने कितने पड़ाव आये और जीवन का कारवां बढ़ता चला गया। जीवन के हर मोड़ पर जो चीज महत्वपूर्ण लगती है, वही अगले क्षण गौण हो जाती है। पल-प्रतिपल हमारी प्राथमिकताएं बदलती जाती हैं। सीखने का क्रम इसी के साथ अनवरत चलता रहता है। मुझे लगता है कि व्यक्ति को रूटीनी जीवन जीने की बजाय नित नये एवं रचनात्मक ढंग से सोचना चाहिए। जैसे हर सुबह सूरज की किरणे नई होती हैं, हर पुष्प गुच्छ नई खुशबू से सुवासित होता है, प्रकृति की अदा में नयापन होता है, वैसे ही हर सुबह मानव जीवन को तरोताजा होकर अपने ध्येय की तरफ अग्रसर होना चाहिए। सफलताएं-असफलताएं जीवन में सिक्के के दो पहलुओं की भांति हैं, इन्हें आत्मसात कर आगे बढ़ने में ही जीवन प्रवाह का राज छुपा हुआ है।
जीवन के इस सफर में मैंने बहुत कुछ पाया तो बहुत कुछ पाने की अभिलाषा है। ईश्वर में आस्था, माता-पिता का आशीर्वाद, भाई बहनों का स्नेह और आप जैसे मित्रों का अपनापन और सहयोग जीवन के हर मोड़ को आसान बना देता है और एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता हैं। इन सब के बीच आप मित्रों एवं शुभचिंतकों की हौसला आफजाई भी टॉनिक का कार्य करती है। आप सभी का स्नेह एवं आशीष इसी प्रकार बना रहे तो जीवन का प्रवाह भी खूबसूरत बना रहेगा।

अपना जन्मदिन/Birthday कैसे मनाएं...

हर व्यक्ति को वो चाहे स्त्री हो या पुरुष, छोटा हो या बड़ा अपना जन्मदिवस बहुत ही प्रिय होता हैं। सभी लोगो को अच्छा लगता हैं, जब लोग उनके जन्मदिन पर उन्हें शुभकामनाएँ दें। परिवार के सदस्य, अभिन्न मित्र उस दिन साथ में समय बिताएं। इसीलिए अधिकतर सभी लोग अपना जन्मदिवस बहुत प्रसन्नता से मानते हैं, लेकिन क्या हमें मालूम है कि इस महत्वपूर्ण दिन में हम क्या करें... जिससे ईश्वर की कृपा मिले, जिससे जीवन में सुख-शान्ति, आरोग्य, दीर्घायु, सम्पन्नकता, यश और सफलता की प्राप्ति हो।


वर्तमान युग में अधिकतर लोग पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित होकर अपना जन्मदिन रात में धूम-धड़ाका करके मानते हैं। लोग रात्रि में पहले केक पर मोमबत्ती जलाकर उसे फूंक मार कर बुझा देते हैं, फिर उस केक को जिस पर उनका नाम लिखा होता हैं, उसे काटकर सब लोगो को खिलाते हैैं। उस रात्रि में लोग मौज-मस्ती करके माँस-मदिरा का सेवन करते हैं जो कि सर्वथा गलत हैं। इस संसार में प्रत्येक जातक का जन्म किसी ना किसी उद्देश्य से ही हुआ हैं, ईश्वर ने हम सभी पर बहुत बड़ी कृपा की हैैं कि हमें 84 लाख योनियों में मनुष्य योनि में जन्म दिया हैं। हमें इस बात का अवश्य ही ध्यान देना चाहिए कि ईश्वर ने हमें जितनी आयु दे रखी हैं, उसकी अवधि शने: शने: समाप्त हो रही हैं... इसलिए इस दिन हम ईश्वर से अपनी सभी पिछली जाने-अनजाने में की गई गलतियों के लिए क्षमा माँगते हुए उन्हें अब तक के जीवन के लिए धन्यवाद दें। उनसे प्रार्थना करें कि हमारा आने वाला जीवन और भी अधिक सार्थक और उद्देश्य पूर्ण साबित हो।

आइए जानते हैं जन्मदिवस कैसे और कब बनाना चाहिए :-

1. हम जन्मदिन दिनांक के आधार पर मानते है लेकिन हमें अपना जन्मदिन तिथि के अनुसार मनाना चाहिए। तिथि अनुसार जन्मदिन मनाने से हमें देवताओं का आशीर्वाद मिलता हैं। हम जिस दिन पैदा हुए थे... उस दिन की तिथि, वार, नक्षत्र का स्मरण करते हुए वर्तमान तिथि, वार, नक्षत्र से अपने सफल जीवन के लिए प्रार्थना करें। इससे हमें परम पिता परमेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं। इसलिए हमें जन्मदिन तिथि के अनुसार ही मनाना चाहिए।


हमें यदि अपना जन्म दिन याद हैं तो किसी भी पंडित से मिलकर पंचाग के माध्यम से बहुत आसानी से हम अपनी जन्मतिथि और माह को ज्ञात कर सकते हैं।

लोग कहते जन्म_दिन हैं लेकिन मनाते इसे रात्रि में हैं... ऐसा क्यों..? जन्मदिन को देर रात्रि में नहीं मनाना चाहिए, यह शुभ नहीं होता हैं। रात्रि का सम्बन्ध अंधेरे से है और दिन का रोशनी से तो आखिर क्यों हम अपना जन्म दिन को रात्रि में मनाकर अपने जीवन में खुद ही अंधेरा करते है..! इसलिए जन्मदिन दिन के समय में ही मनाना उचित हैं।

2. जन्मदिवस के दिन/प्रतिदिन प्रात: बेला में उठकर सबसे पहले ईश्वर का ध्यान करते हुए अपनी दोनों हथेलियों को आपस में जोड़ते हुए...

कराग्रे वस्ते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्।।

मन्त्र का जाप करके हथेलियों को तीन बार चूमें ।

फिर सबसे पहले अपने माता -पिता और बड़ों का आशीर्वाद ले... क्योंकि उन्हीं के कारण आज आपका अस्तित्व हैं। उन्ही के आशीर्वाद से आप बड़े से बड़े संकट से बाहर निकलते रहें हैं। फिर स्नान, पूजा करने के बाद आप अपने गुरु का आशीर्वाद भी अवश्य ही लें। वह गुरु आपका अध्यापक / आपको राह दिखाने वाला / आपका अधिकारी / आपका आदर्श, प्रेणना स्रोत्र कोई भी हो सकता हैं। मनु स्मृति में लिखा है कि

मातृदेवो भव: पितृदेवो भव:
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः

चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम्।।

अर्थात जो व्यक्ति नित्य अपने माता-पिता एवं गुरूजनों को प्रणाम करते हैं, उनकी सेवा करते हैं उनकी आयु, विद्या, यश तथा बल यह सभी चार पदार्थ बढ़ते रहते हैं।

3. अपने जन्मदिन के शुभ अवसर पर मंदिर में ईश्वर की पूजा अर्चना करके उनके चरणों में फल, फूल, नारियल, मिठाई, दक्षिणा आदि अर्पण कर अपने जीवन में सुख-शांति और सभी संकटो से मुक्ति के लिए आशीर्वाद माँगना चाहिए।
जन्मदिवस के दिन हमें अपने दाहिने कलाई पर रक्षा मंत्र के साथ किसी पण्डित से रक्षा सूत्र (कलावा) बंधवाकर माथे पर सौभाग्य के लिए तिलक लगवाना चाहिए।
इस दिन अपने घर में कोई धार्मिक अनुष्ठान, हवन आदि करके उसका प्रशाद लोगो में बँटवाना चाहिए।

4. इस दिन अन्न, फल का दान अवश्य ही करना चाहिए, जिससे हम पर माँ अन्नपूर्ण की सदैव कृपा बनी रहें।

5. जन्मदिवस के शुभ अवसर पर घर पर ही सात्विक भोजन/ पकवान बनाकर, सबसे पहले घर के मंदिर में ईश्वर को भोग लगाएं, फिर अपने पितरों को स्मरण करते हुए कम से कम एक ब्राह्मण को बुला कर प्रेम, श्रद्धा और आदर के साथ अपने हाथों से परोस कर भोजन करवाएं। भोजन के अंत में उन्हें खीर, हलवा आदि मीठा अवश्य खिलाएं, फिर उन्हें यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर उनके चरण छूकर उनसे आशीर्वाद लेकर उन्हें विदा करें... इससे जिसका जन्मदिवस है उसे ईश्वर, पितृ और ब्राह्मण सभी की कृपा मिलती है, धर्म की प्राप्ति होती हैं, जीवन से अस्थिरता दूर होती हैं और आने वाला समय शुभ फलों को प्रदान करने वाला होता हैं।

6. अपने जन्मदिन पर तुलादान करें...

अपने वजन के बराबर चारा गौ माता(गाय) को खिलाएं...


7. अपनी जन्म तिथि पर किसी धर्म स्थान / पार्क / नदी / तालाब के किनारे कोई शुभ, उपयोगी पेड़ जैसे आम, आंवला, नीम, पीपल, वट, बेलपत्र, अशोक, अर्जुन, जामुन इत्यादि को लगाएं। शास्त्रों के अनुसार जीवन में पेड़ लगाकर, उसकी सेवा करने से बहुत पुण्य प्राप्त होता है। मान्यता है कि जैसे-जैसे ये पेड़ बढ़ेगा वैसे ही आप के जीवन में सुख और सौभाग्य आएगा।

8. वर्तमान समय में हम केक पर मोमबत्ती बुझा कर अपना नाम काट कर अपने लिए जीवन की राह में अंधेरा कर लेते हैं, खुद ही संकटो को बुलावा देते हैं जबकि हमें जीवन में हर्ष और प्रसन्नता चाहिए ना की अँधेरा... इसीलिए जन्मदिवस के दिन हमे भगवान के सम्मुख दीपक अवश्य जलाना चाहिए जिससे हमारा आने वाला समय हमारे जीवन में सुख-शान्ति, समृद्धि, सफलता और आरोग्य की रोशनी ले कर आएं।🪔


9. जन्मदिन में यदि रात्रि को आयोजन करना है तो अवश्य ही करें... लेकिन ध्यान दे कि दिन के प्रकाश में शुभ शक्तियाँ होती हैं, अत: दिन में जो आयोजन होता हैं उसमें तामसी पदार्थो, माँस , मदिरा आदि का प्रयोग बहुत ही कम होता हैं लेकिन रात्रि अर्थात अंधकार में असुरी शक्तियाँ विचरण करने लगती हैं... अत: रात्रि के आयोजन में सामान्यता: माँस, मदिरा आदि का उपयोग अधिक होता हैं। तब आप ही निर्णय करें कि अपने जन्मदिवस में आप अपनी लम्बी, सफल और समृद्धि से भरी जिंदगी की कामना करते हुए कुछ निर्दोष पशु-पक्षियों की जीवन की लौ बुझा देंगे..!

10. हर व्यक्ति चाहता है कि उसको यश मिले, उसका नाम सब जगह जाना जाएं, लोग उसका नाम आदर के साथ लें और करते हम सब उल्टा ही हैं... हम केक के ऊपर अपना (जिसका जन्मदिवस होता है उसका) नाम लिखवाकर खुद ही उसे चाकू से काटते हैं फिर उस नाम के टुकड़े-टुकड़े करके लोगो में खाने को बाँट देते हैं... यह हिन्दु धर्म के अनुसार बहुत ही अशुभ माना जाता हैं, अत: पहली बात तो यह है कि केक की जगह कोई अच्छी-सी मिठाई /लड्डू आदि हर्ष और प्रसन्नता के लिए बाँटे और यदि केक ही काटना हो तो उस पर अपना नाम लिखवाकर तो उसे कदापि ना कांटे और ना ही नाम को खाएं। केक पर नाम इसलिए भी ना लिखवाएं क्योंकि वहाँ पर उपस्थित सभी लोगो को इतना तो पता ही होता है कि जन्मदिवस किसका हैं...

अगर नाम लिखवा ही है तो किसी जनउपयोगी वस्तु पर अपना नाम लिखवाकर, उसे समाज को समर्पित करें।

11. जन्मदिवस पर आप अनाथ, गरीब और असहायों की अवश्य ही मदद करें... उन्हें फल, खिलौने, कपड़े आदि दें। उन्हें मीठा कुछ अच्छा खिलाएं / दान में दें, इससे आपको उनकी दिल से निकली हुई दुआएं मिलती हैं। याद रखिये हमारे अच्छे कर्मों के कारण मिलने वाली दुआएं, आशीर्वाद हमारे लिए एक रक्षा कवच का कार्य करती है। इनसे घोर से घोर कष्ट, संकट भी कट जाते हैं।

12. अपने जन्मदिवस पर बड़ों का आशीर्वाद एवं छोटों की शुभकामनाएं लें... उनसे गिफ्ट ना लें, नगद राशि तो बिल्कुल भी ना लें... इससे आपके सिर पर भार बढ़ता हैं।आ

जब आप अपने मित्रों को अपने जन्मदिन पर आमंत्रित करते हैं तो उन्हें आपके जन्मदिवस की खुशी से ज्यादा, इस बात की चिंता हो जाती है कि आपके ऊपर उन्हें पैसे खर्च करने पड़ेंगे... कईयों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती लेकिन लोग_निंदा के डर से उसे पैसे खर्च करने पड़ते हैं। इस तरह गिफ्ट के साथ-साथ उनकी हाय भी आपको उपहार स्वरूप मिल जाती हैं।

तो अब जब भी आपका, आपके परिवार के सदस्य या किसी परिचित का जन्मदिवस हो तो यहाँ पर बताई गई बातों पर अवश्य ध्यान दें... इससे ना केवल आप को पूर्ण आत्म शांति ही मिलेगी वरन आप हर वर्ष नयी ऊँचाइयों को भी छूते रहेंगे। 🙏🏻⛳👍🏻

मेरा जन्मदिन... मेरे विचार...

दोस्तों आज मेरा जन्मदिन हैं...
आज सुबह जब मैं जागा तो मेरे फोन पर     अनेको सन्देश थे जिनमें मेरे जन्मदिन पर मुझे शुभकामनायें दी गयी थी । मैं बड़ा खुश था, मुझे लगा मुझे चाहने वाले कितने अच्‌छे हैं हर सन्देश को पढने के बाद मेरा मन काफी प्रफुलित हुआ तथा मैंने मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद किया ।
कुछ पल सोचता रहा कि ईश्वर ने कितने सुंदर ढंग से इस सृष्टि का निर्माण किया है और हमें यह मानव तन मिला है । बस ऐसे ही विचारों का सिलसिला आगे बढ़ता गया और मैंने आत्मविश्लेषण करना शुरू कर दिया ।
मेरे सामने काफी प्रश्न उपस्थित हुए मैने अपने आप को एक असमंजस कि स्तिथि में पाया , इधर मेरे फोन कि घंटी बार बार बज रही थी और उधर मेरा मन मुझसे बार बार प्रश्न कर रहा था । खेर यह सिलसिला काफी देर चलता रहा , मैं ऐसी स्थिति में भी सबकी शुभकामनाओं को सहर्ष स्वीकार करता रहा ।
थोड़ी देर के बाद शुभकामनाओं का सिलसिला कम हुआ ।
बस फिर क्या था । एक के बाद एक प्रश्न ?........? कुल मिलाकर मुझे अपनी जिन्दगी का हर लम्हा याद आया और फिर मैंने खुद से पूछा.. आखिर इस जिन्दगी का मकसद क्या है ? क्या तुम जो कुछ कर रहे हो यह इस जिन्दगी का मकसद हैं ? फिर कहीं याद आया " मानुष जन्म दुर्लभ है होत न बारम्बार " जो दुर्लभ है जो बड़ी मुश्किल से मिला है आखिर उसका लक्ष्य क्या हो सकता है । एक बार अपने वर्तमान परिदृश्य की तरफ झाँका , महसूस किया, क्या आज जो कुछ संसार में हो रहा है मैं भी उसका हिस्सा तो नहीं हूँ ?
आज के समय के सन्दर्भ में मुझे किसी शायर की पंक्तियाँ याद आ गयी :
आदमी की शक्ल से डर रहा है आदमी
अपनों को लुट कर , घर भर रहा है आदमी ।
मर रहा है आदमी और मार रहा है आदमी
समझ में नहीं आता, क्या कर रहा है आदमी ।
ऐसी हालत में मुझे कुछ नहीं सुझा , बस एक प्रार्थना के सिवा " ईश्वर मेरे सारे गुनाहों को माफ़ कर दे " ।
इंसान धरती पर आकर क्या किसी को दे जाता है और क्या ले जाता है ? हम अपनी जिन्दगी का अधिकांश समय बेकार की बातों में गुजार देते है । कितनी बड़ी है दुनियां हम इसका कभी एहसास ही नहीं कर पाते । जब तक हमें महसूस होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है । इसलिए यह निर्णय लिया की जितना हो सके हम मानवीय भावनाएं अपने हृदय में बसाकर मानवता कर कल्याण के लिए कार्य कर पायें । जितना हो सके हम इस धरती पर शांति का वातावरण कायम करने में सहायक बन पायें । अपने पराये का भेद समाप्त कर पूरी मानव जाति में इस ईश्वर के दर्शन कर सकें । तभी इस मानव जीवन की सार्थकता होगी ।

शुक्रवार, 9 जून 2017

हिंदी

भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं।फ़िजीमॉरिशसगयानासूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।[1] 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२.२ करोड़ (422,048,642) लोगों ने हिंदी को अपनी मूल भाषा बताया।[4] भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983[5]मॉरीशस में 685,170; दक्षिण अफ्रीका में 890,292; यमन में 232,760; युगांडा में 147,000;सिंगापुर में 5,000; नेपाल में 8 लाख; न्यूजीलैंड में 20,000; जर्मनी में 30,000 हैं।

इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४.१ करोड़ (141,000,000) लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिंदी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिंदी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिंदी, विभिन्न भारतीय राज्यों की 14 आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग 1 अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है।

हिन्दी राष्ट्रभाषा, राजभाषा, सम्पर्क भाषा, जनभाषा के स्तर को पार कर विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी।

लिपि

मुख्य लेख : देवनागरी

हिंदी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। इसेनागरी नाम से भी पुकारा जाता है। देवनागरी में 11स्वर और 33 व्यंजन होते हैं और इसे बाएं से दायें और लिखा जाता है।

'हिन्दी' शब्द की व्युत्पत्ति

हिन्दी शब्द का सम्बंध संस्कृत शब्द सिन्धु से माना जाता है। 'सिन्धु' सिन्ध नदी को कहते थे और उसी आधार पर उसके आस-पास की भूमि को सिन्धु कहने लगे। यह सिन्धु शब्द ईरानी में जाकर ‘हिन्दू’, हिन्दी और फिर ‘हिन्द’ हो गया बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत के अधिक भागों से परिचित होते गए और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया तथा हिन्द शब्द पूरे भारत का वाचक हो गया। इसी में ईरानी का ईक प्रत्यय लगने से (हिन्द ईक) ‘हिन्दीक’ बना जिसका अर्थ है ‘हिन्द का’। यूनानी शब्द ‘इन्दिका’ या अंग्रेजी शब्द ‘इण्डिया’ आदि इस ‘हिन्दीक’ के ही विकसित रूप हैं। हिन्दी भाषा के लिए इस शब्द का प्राचीनतम प्रयोग शरफुद्दीन यज्+दी’ के ‘जफरनामा’(1424) में मिलता है।

प्रोफेसर महावीर सरन जैन ने अपने " हिन्दी एवं उर्दू का अद्वैत " शीर्षक आलेख में हिन्दी की व्युत्पत्ति पर विचार करते हुए कहा है कि ईरान की प्राचीन भाषा अवेस्ता में 'स्' ध्वनि नहीं बोली जाती थी। 'स्' को 'ह्' रूप में बोला जाता था। जैसे संस्कृत के 'असुर' शब्द को वहाँ 'अहुर' कहा जाता था। अफ़ग़ानिस्तान के बाद सिन्धु नदी के इस पार हिन्दुस्तान के पूरे इलाके को प्राचीन फ़ारसी साहित्य में भी 'हिन्द', 'हिन्दुश' के नामों से पुकारा गया है तथा यहाँ की किसी भी वस्तु, भाषा, विचार को 'एडजेक्टिव' के रूप में 'हिन्दीक' कहा गया है जिसका मतलब है 'हिन्द का'। यही 'हिन्दीक' शब्द अरबी से होता हुआ ग्रीक में 'इन्दिके', 'इन्दिका', लैटिन में 'इन्दिया' तथा अंग्रेज़ी में 'इण्डिया' बन गया। अरबी एवँ फ़ारसी साहित्य में भारत (हिंद) में बोली जाने वाली भाषाओं के लिए 'ज़बान-ए-हिन्दी', पद का उपयोग हुआ है। भारत आने के बाद अरबी-फारसी बोलनेवालों ने 'ज़बान-ए-हिन्दी', 'हिन्दी जुबान' अथवा 'हिन्दी' का प्रयोग दिल्ली-आगरा के चारों ओर बोली जाने वाली भाषा के अर्थ में किया। भारत के गैर-मुस्लिम लोग तो इस क्षेत्र में बोले जाने वाले भाषा-रूप को 'भाखा' नाम से पुकराते थे, 'हिन्दी' नाम से नहीं।

हिन्दी एवं उर्दू

मुख्य लेख : हिन्दी एवं उर्दू

भाषाविद हिन्दी ब्लॉग एवं उर्दू को एक ही भाषा समझते है। हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर अधिकांशत: संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करती है। उर्दू, फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर उस पर फ़ारसीऔर अरबी भाषाओं का प्रभाव अधिक है।व्याकरणिक रूप से उर्दू और हिन्दी में लगभग शत-प्रतिशत समानता है। केवल कुछ विशेष क्षेत्रों में शब्दावली के स्रोत (जैसा कि ऊपर लिखा गया है) में अंतर होता है। कुछ विशेष ध्वनियाँ उर्दू में अरबी और फ़ारसी से ली गयी हैं और इसी प्रकार फ़ारसी और अरबी की कुछ विशेष व्याकरणिक संरचना भी प्रयोग की जाती है। उर्दू और हिन्दी को खड़ी बोली की दो शैलियाँ कहा जा सकता है।

परिवार

हिन्दी हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार परिवार के अन्दर आती है। ये हिन्द ईरानी शाखा की हिन्द आर्यउपशाखा के अन्तर्गत वर्गीकृत है। हिन्द-आर्य भाषाएँ वो भाषाएँ हैं जो संस्कृत से उत्पन्न हुई हैं। उर्दू,कश्मीरीबंगालीउड़ियापंजाबीरोमानीमराठीनेपाली जैसी भाषाएँ भी हिन्द-आर्य भाषाएँ हैं।

हिंदी के विभिन्न नाम या रूप

हिन्दवीरेख्तादक्खिनीखड़ी बोली[6]

इतिहास क्रम

मुख्य लेख : हिन्दी भाषा का इतिहास

हिन्‍दी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। हिन्‍दी भाषा व साहित्‍य के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्‍था 'अवहट्ठ' से हिन्‍दी का उद्भव स्‍वीकार करते हैं। चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने इसी अवहट्ठ को 'पुरानी हिन्‍दी' नाम दिया।

अपभ्रंश की समाप्ति और आधुनिक भारतीय भाषाओं के जन्मकाल के समय को संक्रांतिकाल कहा जा सकता है। हिन्दी का स्वरूप शौरसेनी और अर्धमागधी अपभ्रंशों से विकसित हुआ है। १००० ई. के आसपास इसकी स्वतंत्र सत्ता का परिचय मिलने लगा था, जब अपभ्रंश भाषाएँ साहित्यिक संदर्भों में प्रयोग में आ रही थीं। यही भाषाएँ बाद में विकसित होकर आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के रूप में अभिहित हुईं। अपभ्रंश का जो भी कथ्य रूप था - वही आधुनिक बोलियों में विकसित हुआ।

अपभ्रंश के सम्बंध में ‘देशी’ शब्द की भी बहुधा चर्चा की जाती है। वास्तव में ‘देशी’ से देशी शब्द एवं देशी भाषा दोनों का बोध होता है। प्रश्न यह कि देशीय शब्द किस भाषा के थे ? भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में उन शब्दों को ‘देशी’ कहा है ‘जो संस्कृत के तत्सम एवं सद्भव रूपों से भिन्न है। ये ‘देशी’ शब्द जनभाषा के प्रचलित शब्द थे, जो स्वभावतया अप्रभंश में भी चले आए थे। जनभाषा व्याकरण के नियमों का अनुसरण नहीं करती, परंतु व्याकरण को जनभाषा की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करना पड़ता है, प्राकृत-व्याकरणों ने संस्कृत के ढाँचे पर व्याकरण लिखे और संस्कृत को ही प्राकृत आदि की प्रकृति माना। अतः जो शब्द उनके नियमों की पकड़ में न आ सके, उनको देशी संज्ञा दी गई।

हिन्दी की विशेषताएँ एवं शक्ति

हिंदी भाषा के उज्ज्वल स्वरूप का ज्ञान कराने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी गुणवत्ता, क्षमता, शिल्प-कौशल और सौंदर्य का सही-सही आकलन किया जाए। यदि ऐसा किया जा सके तो सहज ही सब की समझ में यह आ जाएगा कि -

संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।वह सबसे अधिक सरल भाषा है।वह सबसे अधिक लचीली भाषा है।हिंदी दुनिया की सर्वाधिक तीव्रता से प्रसारित हो रही भाषाओं में से एक है.वह एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवादविहीन है।वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है।[7]हिंदी का शब्दकोश बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं.हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपिअत्यन्त वैज्ञानिक है।हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है। वह देशी भाषाओं एवं अपनी बोलियों आदि से शब्द लेने में संकोच नहीं करती। अंग्रेजी के मूल शब्द लगभग १०,००० हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या ढाई लाख से भी अधिक है।हिन्दी बोलने एवं समझने वाली जनता पचास करोड़ से भी अधिक है।हिंदी दुनिया की दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है.हिन्दी का साहित्य सभी दृष्टियों से समृद्ध है।हिन्दी आम जनता से जुड़ी भाषा है तथा आम जनता हिन्दी से जुड़ी हुई है। हिन्दी कभी राजाश्रय की मोहताज नहीं रही।[8]भारत के स्वतंत्रता-संग्राम की वाहिका और वर्तमान में देशप्रेम का अमूर्त-वाहनभारत की सम्पर्क भाषाभारत की राजभाषा

हिन्दी के विकास की अन्य विशेषताएँ

हिन्दी पत्रकारिता का आरम्भ भारत के उन क्षेत्रों से हुआ जो हिन्दी-भाषी नहीं थे/हैं (कोलकातालाहौरआदि।हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का आन्दोलन अहिन्दी भाषियों (महात्मा गांधीदयानन्द सरस्वती आदि) ने आरम्भ किया।हिन्दी भाषा सदा से उत्तर-दक्षिण के भेद से परे चहुंदिशी व्यावहारिक होती चली आई है। उदाहरण के लिये दक्षिण के प्रमुख संतो वल्लभाचार्यविट्ठल,रामानुजरामानन्द आदि महाराष्ट्र के नामदेव तथासंत ज्ञानेश्वरगुजरात के नरसी मेहताराजस्थान केदादूरज्जबमीराबाईपंजाब के गुरु नानकअसमके शंकरदेवबंगाल के चैतन्य महाप्रभु तथा सूफी संतो ने अपने धर्म और संस्कृति का प्रचार हिन्दी में ही किया है। इन्होने एक मात्र सशक्त साधन हिन्दी को ही माना था।हिन्दी पत्रकारिता की कहानी भारतीय राष्ट्रीयता की कहानी है।हिन्दी के विकास में राजाश्रय का कोई स्थान नहीं है; इसके विपरीत, हिन्दी का सबसे तेज विकास उस दौर में हुआ जब हिन्दी अंग्रेजी-शासन का मुखर विरोध कर रही थी। जब-जब हिन्दी पर दबाव पड़ा, वह अधिक शक्तिशाली होकर उभरी है।जब बंगालउड़ीसागुजरात तथा महाराष्ट्र में उनकी अपनी भाषाएँ राजकाज तथा न्यायालयों की भाषा बन चुकी थी उस समय भी संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) की भाषा हिन्दुस्तानी थी (औरउर्दू को ही हिन्दुस्तानी माना जाता था जो फारसीलिपि में लिखी जाती थी)।19वीं शताब्दी तक उत्तर प्रदेश की राजभाषा के रूप में हिन्दी का कोई स्थान नहीं था। परन्तु 20वीं सदी के मध्यकाल तक इसे भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का प्रस्ताव दिया गया।हिन्दी के विकास में पहले साधु-संत एवं धार्मिक नेताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उसके बादहिन्दी पत्रकारिता एवं स्वतंत्रता संग्राम से बहुत मदद मिली; फिर बंबइया फिल्मों से सहायता मिली और अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (टीवी) के कारण हिन्दी समझने-बोलने वालों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हुई है।

हिन्दी का मानकीकरण

मुख्य लेख : हिन्दी वर्तनी मानकीकरण

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हिन्दी और देवनागरी के मानकीकरण की दिशा में निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रयास हुये हैं :-

हिन्दी व्याकरण का मानकीकरणवर्तनी का मानकीकरणशिक्षा मंत्रालय के निर्देश पर केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा देवनागरी का मानकीकरणवैज्ञानिक ढंग से देवनागरी लिखने के लिये एकरूपता के प्रयासयूनिकोड का विकास

हिन्दी की शैलियाँ

हिन्दी क्षेत्र तथा सीमावर्ती भाषाएँ

भाषाविदों के अनुसार हिन्दी के चार प्रमुख रूप या शैलियाँ हैं :

(१) उच्च हिन्दी - हिन्दी का मानकीकृत रूप, जिसकी लिपि देवनागरी है। इसमें संस्कृत भाषा के कई शब्द है, जिन्होंने फ़ारसी और अरबी के कई शब्दों की जगह ले ली है। इसे शुद्ध हिन्दी भी कहते हैं। आजकल इसमें अंग्रेज़ी के भी कई शब्द आ गये हैं (ख़ास तौर पर बोलचाल की भाषा में)। यहखड़ीबोली पर आधारित है, जो दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती थी।(२) दक्खिनी - उर्दू-हिन्दी का वह रूप जो हैदराबादऔर उसके आसपास की जगहों में बोला जाता है। इसमें फ़ारसी-अरबी के शब्द उर्दू की अपेक्षा कम होते हैं।(३) रेख़्ता - उर्दू का वह रूप जो शायरी में प्रयुक्त होता था।(४) उर्दू - हिन्दवी का वह रूप जो देवनागरी लिपि के बजाय फ़ारसी-अरबी लिपि में लिखा जाता है। इसमें संस्कृत के शब्द कम होते हैं, और फ़ारसी-अरबी के शब्द अधिक। यह भी खड़ीबोली पर ही आधारित है।

[9]

हिन्दी और उर्दू दोनों को मिलाकर हिन्दुस्तानी भाषा कहा जाता है। हिन्दुस्तानी मानकीकृत हिन्दी और मानकीकृत उर्दू के बोलचाल की भाषा है। इसमें शुद्ध संस्कृत और शुद्ध फ़ारसी-अरबी दोनों के शब्द कम होते हैं और तद्भव शब्द अधिक। उच्च हिन्दीभारतीय संघ की राजभाषा है (अनुच्छेद ३४३, भारतीय संविधान)। यह इन भारतीय राज्यों की भी राजभाषा है : उत्तर प्रदेशबिहारझारखंडमध्य प्रदेशउत्तरांचलहिमाचल प्रदेशछत्तीसगढ़,राजस्थानहरियाणा और दिल्ली। इन राज्यों के अतिरिक्त महाराष्ट्रगुजरातपश्चिम बंगालपंजाबऔर हिन्दी भाषी राज्यों से लगते अन्य राज्यों में भी हिन्दी बोलने वालों की अच्छी संख्या है। उर्दूपाकिस्तान की और भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर की राजभाषा है, इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश,बिहार,तेलंगाना और दिल्ली में द्वितीय राजभाषा है। यह लगभग सभी ऐसे राज्यों की सह-राजभाषा है; जिनकी मुख्य राजभाषा हिन्दी है।

हिन्दी की बोलियाँ

मुख्य लेख : हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य

हिन्दी का क्षेत्र विशाल है तथा हिन्दी की अनेकबोलियाँ (उपभाषाएँ) हैं। इनमें से कुछ में अत्यंत उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना भी हुई है। ऐसी बोलियों मेंब्रजभाषा और अवधी प्रमुख हैं। ये बोलियाँ हिन्दी की विविधता हैं और उसकी शक्ति भी। वे हिन्दी की जड़ों को गहरा बनाती हैं। हिन्दी की बोलियाँ और उन बोलियों की उपबोलियाँ हैं जो न केवल अपने में एक बड़ी परंपरा, इतिहाससभ्यता को समेटे हुए हैं वरन स्वतंत्रता संग्राम, जनसंघर्ष, वर्तमान के बाजारवाद के खिलाफ भी उसका रचना संसार सचेत है।[10]

हिन्दी की बोलियों में प्रमुख हैं- अवधीब्रजभाषा,कन्नौजीबुंदेलीबघेलीभोजपुरीहरयाणवी,राजस्थानीछत्तीसगढ़ीमालवीझारखंडीकुमाउँनी,मगही आदि। किन्तु हिंदी के मुख्य दो भेद हैं - पश्चिमी हिंदी तथा पूर्वी हिंदी।

हिन्दी और कम्प्यूटर

मुख्य लेख : हिन्दी कम्प्यूटरीहिन्दी टाइपिंग,कम्प्यूटर और हिन्दीहिन्दी कम्प्यूटिंग का इतिहासमोबाइल फोन में हिन्दी समर्थन औरअन्तरजाल पर हिन्दी के उपकरण (सॉफ्टवेयर)

कम्प्यूटर और इन्टरनेट ने पिछ्ले वर्षों मे विश्व मेसूचना क्रांति ला दी है। आज कोई भी भाषा कम्प्यूटर (तथा कम्प्यूटर सदृश अन्य उपकरणों) से दूर रहकर लोगों से जुड़ी नही रह सकती। कम्प्यूटर के विकास के आरम्भिक काल में अंग्रेजी को छोड़कर विश्व की अन्य भाषाओं के कम्प्यूटर पर प्रयोग की दिशा में बहुत कम ध्यान दिया गया जिससे कारण सामान्य लोगों में यह गलत धारणा फैल गयी कि कम्प्यूटर अंग्रेजी के सिवा किसी दूसरी भाषा (लिपि) में काम ही नही कर सकता। किन्तु यूनिकोड (Unicode) के पदार्पण के बाद स्थिति बहुत तेजी से बदल गयी। 19 अगस्त 2009 में गूगल ने कहा की हर 5 वर्षों में हिन्दी की सामग्री में 94% बढ़ोतरी हो रही है।[12] इसके अलावा गूगल ने कहा की वह हिन्दी में खोज को और आसान बनाने जा रही है। जिससे कोई भी आसानी से इंटरनेट पर कुछ भी हिन्दी में खोज सकेगा।[13][14]

हिंदी की इंटरनेट पर अच्छी उपस्थिति है, गूगल जैसे सर्च इंजन हिंदी को प्राथमिक भारतीय भाषा के रूप में पहचानते हैं। इसके साथ ही अब अन्य भाषा के चित्र में लिखे शब्दों का भी अनुवाद हिन्दी में किया जा सकता है।[15] हिन्दी ने प्रौद्योगिकी की भाषा को भी प्रभावित किया है जैसे अवतार शब्द कंप्यूटर विज्ञान, कृत्रिम बुद्धि और यहां तक ​की रोबोटिक्स में भी प्रयोग किया जाता है।

इस समय हिन्दी में सजाल (websites), चिट्ठे (Blogs), विपत्र (email), गपशप (chat), खोज (web-search), सरल मोबाइल सन्देश (SMS) तथा अन्यहिन्दी सामग्री उपलब्ध हैं। इस समय अन्तरजाल पर हिन्दी में संगणन के संसाधनों की भी भरमार है और नित नये कम्प्यूटिंग उपकरण आते जा रहे हैं। लोगों मे इनके बारे में जानकारी देकर जागरूकता पैदा करने की जरूरत है ताकि अधिकाधिक लोग कम्प्यूटर पर हिन्दी का प्रयोग करते हुए अपना, हिन्दी का और पूरे हिन्दी समाज का विकास करें।शब्दनगरी जैसी नयी सेवाओं का प्रयोग करके लोग अच्छे हिन्दी साहित्य का लाभ अब इंटरनेट पर भी उठा सकते हैं।