सोमवार, 28 जनवरी 2019

नाभि में यह भिन्न-भिन्न तेल लगाने से होते हैं यह भिन्न-भिन्न फायदे

नाभी कुदरत की एक अद्भुत देन है
एक 62 वर्ष के बुजुर्ग को अचानक बांई आँख  से कम दिखना शुरू हो गया। खासकर  रात को नजर न के बराबर होने लगी।जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनकी आँखे ठीक है परंतु बांई आँख की रक्त नलीयाँ सूख रही है। रिपोर्ट में यह सामने आया कि अब वो जीवन भर देख  नहीं पायेंगे।.... मित्रो यह सम्भव नहीं है..
मित्रों हमारा शरीर परमात्मा की अद्भुत देन है...गर्भ की उत्पत्ति नाभी के पीछे होती है और उसको माता के साथ जुडी हुई नाडी से पोषण मिलता है और इसलिए मृत्यु के तीन घंटे तक नाभी गर्म रहती है।
गर्भधारण के नौ महीनों अर्थात 270 दिन बाद एक सम्पूर्ण बाल स्वरूप बनता है। नाभी के द्वारा सभी नसों का जुडाव गर्भ के साथ होता है। इसलिए नाभी एक अद्भुत भाग है।
नाभी के पीछे की ओर पेचूटी या navel button होता है।जिसमें 72000 से भी अधिक रक्त धमनियां स्थित होती है
नाभी में देशी गाय का शुध्द घी या तेल लगाने से बहुत सारी शारीरिक दुर्बलता का उपाय हो सकता है।
1. आँखों का शुष्क हो जाना, नजर कमजोर हो जाना, चमकदार त्वचा और बालों के लिये उपाय...
सोने से पहले 3 से 7 बूँदें शुध्द देशी गाय का घी और नारियल के तेल नाभी में डालें और नाभी के आसपास डेढ ईंच  गोलाई में फैला देवें।
2. घुटने के दर्द में उपाय
सोने  से पहले तीन से सात बूंद अरंडी का तेल नाभी में डालें और उसके आसपास डेढ ईंच में फैला देवें।
3. शरीर में कमपन्न तथा जोड़ोँ में दर्द और शुष्क त्वचा के लिए उपाय :-
रात को सोने से पहले तीन से सात बूंद राई या सरसों कि तेल नाभी में डालें और उसके चारों ओर डेढ ईंच में फैला देवें।
4. मुँह और गाल पर होने वाले पिम्पल के लिए उपाय:-
नीम का तेल तीन से सात बूंद नाभी में उपरोक्त तरीके से डालें।
नाभी में तेल डालने का कारण
हमारी नाभी को मालूम रहता है कि हमारी कौनसी रक्तवाहिनी सूख रही है,इसलिए वो उसी धमनी में तेल का प्रवाह कर देती है।
जब बालक छोटा होता है और उसका पेट दुखता है तब हम हिंग और पानी या तैल का मिश्रण उसके पेट और नाभी के आसपास लगाते थे और उसका दर्द तुरंत गायब हो जाता था।बस यही काम है तेल का।
अपने स्नेहीजनों, मित्रों और परिजनों में इस नाभी में तेल और घी डालने के उपयोग और फायदों को शेयर करिये।
करने से होता है , केवल पढ़ने से नहीं
⭕⭕⭕⭕⭕⭕⭕⭕

शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

हमें यह नहीं पता कि क्या ढ़कना है और क्या खुला रखना है ??

हम भारत वासियों को कवर चढ़ाने का बहुत शौक है |

.

बाज़ार से बहुत सुंदर सोफा खरीदेंगे लेकिन फिर उसे भद्दे सफेद जाली के कवर से ढक देंगे |🤔

.

बढ़िया रंग का सुंदर सूटकेस खरीदेंगे, फिर उस पर मिलिट्री रंग का कपड़ा चढ़ा देंगे |🤔

मखमल की रजाई पर फूल वाले फर्द का कवर!!!🤔

फ्रिज पर कवर!🤔

माइक्रोवेव पर कवर!🤔

वाशिंग मशीन पर कवर!🤔

मिक्सी पर कवर!🤔

थर्मस वाली बोतल पर कवर!🤔

TV पर कवर!🤔

कार पर कवर!🤔

कार की कवर्ड सीट पर एक और कवर!🤔

स्टेयरिंग पर कवर!🤔

गियर पर कवर!🤔

फुट मैट पर एक ओर कवर!🤔

सुंदर शीशे वाली डाइनिंग टेबल पर प्लास्टिक का कवर!🤔

स्टूल कवर!🤔

चेयर कवर!🤔

मोबाइल कवर!🤔

बेडशीट के ऊपर बेड कवर!🤔

गैस के सिलिंडर पर कवर!🤔

RO पर कवर!🤔

किताबों पर कवर!🤔

.

काली कमाई पर कवर!!!🤔

गलत हरकतों पर कवर!!!🤔

बुरी नियत पर कवर!!!🤔

लेकिन.....

.

कचरे के डिब्बे पर ढक्कन नदारद!!😁

खुली नालियों के कवर नदारद!!😁

कमोड पर ढक्कन नदारद!!😁

मैनहोल के ढक्कन नदारद!!😁

सर से हेलमेट नदारद!!😁

खुले खाने पर से कवर नदारद!!😁

आधुनिकता में तन से कपडे नदारद!!😁

इन्सानों के दिल से इंसानियत नदारद!!😁

.

क्या ढकना है और क्या खुला रखना है!!!

हम लोग आज तक ये नहीं समझ पाये।

मंगलवार, 1 जनवरी 2019

क्या आप 1 जनवरी के नववर्ष का इतिहास जानते हो..?

नववर्ष उत्सव 4000 वर्ष पहले से बेबीलोन में मनाया जाता था। लेकिन उस समय नए वर्ष का ये त्यौहार 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि (हिन्दुओं का नववर्ष) भी मानी जाती थी। प्राचीन रोम में भी ये तिथि नव वर्षोत्सव के लिए चुनी गई थी लेकिन रोम के तानाशाह जूलियस सीजर को भारतीय नववर्ष मनाना पसन्द नही आ रहा था इसलिए उसने ईसा पूर्व 45 वें वर्ष में जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला वर्ष, यानि, ईसापूर्व 46 इस्वी को 445 दिनों का करना पड़ा था। उसके बाद ईसाई समुदाय उनके देशों में 1 जनवरी से नववर्ष मनाने लगे। हमारे महान भारत में अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की 1757 में  स्थापना की... उसके बाद भारत को 190साल तक गुलाम बनाकर रखा गया। इसमें वो लोग लगे हुए थे जो हमारे ऋषि मुनियों की प्राचीन संस्कृति को मिटाने में कार्यरत थे। लॉड मैकाले ने सबसे पहले भारत का इतिहास बदलने का प्रयास किया जिसमें गुरुकुलों में हमारी वैदिक शिक्षण पद्धति को बदला गया।
हमारा प्राचीन इतिहास बदला गया जिसमें हम अपने मूल इतिहास को भूल गये और हमें अंग्रेजों के गुलाम बनाने वाले इतिहास याद रह गया और आज कई भोले-भाले भारतवासी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष नहीं मानकर, 1 जनवरी को ही नववर्ष मनाने लगे। हद तो तब हो जाती है कि एक-दूसरे को नववर्ष की बधाई देने लग जाते हैं।
क्या ईसाई देशों में हिन्दुओं को हिन्दू नववर्ष की बधाई दी जाती है..?

किसी भी ईसाई देश में हिन्दू नववर्ष नहीं मनाया जाता है फिर हमारे भोले भारतवासी उनका नववर्ष क्यों मनाते हैं..?
यह आने वाला नया वर्ष 2017 अंग्रेजों अर्थात ईसाई धर्म का नया साल है।
मुस्लिम का नया साल होता है और वो हिजरी कहलाता हैं, इस समय 1437 हिजरी चल रही है।
हिन्दू धर्म का इस समय विक्रम संवत 2075 चल रहा है।
इससे सिद्ध हो गया कि हिन्दू धर्म ही सबसे पुराना धर्म हैै।
इस विक्रम संवत से 5000 साल पहले इस धरती पर भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए। उनसे पहले भगवान राम और अन्य अवतार हुए यानि कहाँ करोडों वर्ष पुराना हमारा सनातन धर्म और कहाँ हम 2000 साल पुराना नव वर्ष मना रहे हैंं।
जरा सोचिए…
सीधे-सीधे शब्दों में हिन्दू धर्म ही सब धर्मों की जननी है।
यहाँ किसी धर्म का विरोध नहीं हैं परन्तु  सभी भारतवासियों को बताना चाहते हैं कि इस इंग्लिश कैलेंडर के बदलने से हिन्दू वर्ष नहीं बदलता...
जब बच्चा पैदा होता है तो पंडित जी उसका नामकरण हिन्दू कैलेंडर से नहीं करते, हिन्दू पंचांग से किया जाता हैं।

ग्रहदोष भी हिन्दू पंचाग से देखे जाते हैं और विवाह, जन्मकुंडली आदि का मिलान भी हिन्दू पंचाग से ही होता हैं।

सारे व्रत त्यौहार हिन्दू पंचाग से आते हैं। मरने के बाद तेरहवाँ भी हिन्दू पंचाग से ही देखा जाता है।

मकान का उद्घाटन, जन्मपत्री, स्वास्थ्य रोग और अन्य सभी समस्याओं का निराकरण भी हिन्दू कैलेंडर {पंचाग} से ही होता है।
आप जानते हैं कि रामनवमी, जन्माष्टमी, होली, दीपावली, राखी, भाई दूज, करवा चौथ, एकादशी, शिवरात्री, नवरात्रि, दुर्गापूजा सभी विक्रमी संवत कैलेंडर से ही निर्धारित होते हैं।
इंग्लिश कैलेंडर में इनका कोई स्थान नहीं होता।
सोचियेे... फिर आपके इस सनातन धर्म के जीवन में इंग्लिश नववर्ष या कैलेंडर का स्थान है कहां..!
अतः हिन्दू अपने सनातन धर्म के नव वर्ष को ही मनायें।
अपनी संस्कृति से अपरिचित भ्रमित हिंदुओं द्वारा ही 31 दिसंबर की रात्रि में एक-दूसरे को “हैपी न्यू ईयर” कहते हुए नववर्ष की शुभकामनाएं दी जाती हैं।
वास्तविकता में भारतीय संस्कृति के अनुसार चैत्र-प्रतिपदा ही हिंदुओं के नववर्ष का दिन है, लेकिन भारतीय वर्षारंभ के दिन चैत्र प्रतिपदा पर एक-दूसरे को शुभकामनायें देने वाले हिंदुओं के दर्शन अब दुर्लभ हो गए हैं।
ऋषि-मुनियों के देश भारत में 31 दिसम्बर को त्यौहार के नाम पर शराब और कबाब उड़ाना, डांस पार्टी आयोजित करके बेशर्मी का प्रदर्शन करनाा, क्या हम हिंदुओं को शोभा देता है..?
भारतवासी जरा सोचे...
जिन अंग्रेजो ने हमें 200 साल तक गुलाम बनाये रखा, हमारे पूर्वजों पर अत्याचार किया, सोने की चिड़िया कहलाने वाले हमारे भारत को लूटकर ले गए, हमारी वैदिक शिक्षा पद्धति को खत्म कर दिया उनका नया वर्ष मनाना कहाँ तक उचित है..?
जो अंग्रेज हमारे भारत पर 200 साल राज करने के बाद भी, हमारा एक भी त्यौहार नहीं मनाते तो हम उनका त्यौहार क्यों मना रहे हैं..?
31 दिसम्बर की रात नए साल के स्वागत के लिए लोग जमकर दारू पीते हैं। हंगामा करते हैं, रात को दारू पीकर गाड़ी चलाने से दुर्घटना की सम्भावना, रेप जैसी वारदात, पुलिस व प्रशासन बेहाल और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का विनाश होता है और 1 जनवरी से आरंभ हुई ये घटनाएं सालभर में बढ़ती ही रहती हैं, जबकि भारतीय नववर्ष नवरात्रों के व्रत से शुरू होता है घर-घर में माता रानी की पूजा होती है। शुद्ध सात्विक वातावरण बनता है।
चैत्र प्रतिपदा के दिन से महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् की शुरुवात, भगवान झूलेलाल का जन्म, नवरात्रे प्रारंम्भ, ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना इत्यादि का संबंध है।
ऐसे भोगी देश का अन्धानुकरण न करके युवा पीढ़ी अपने देश की महान संस्कृति को पहचाने।
1 जनवरी में नया कलैण्डर आता है, लेकिन चैत्र में नया पंचांग आता है उसी से सभी भारतीय पर्व, विवाह और अन्य महूर्त देखे जाते हैं। इसके बिना हिन्दू समाज जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता... इतना महत्वपूर्ण हैै, ये कैलेंडर यानि पंचांग

स्वयं सोचे कि क्यों मनाये हम एक जनवरी को नया वर्ष..?
केवल कैलेंडर बदलें अपनी संस्कृति नहीं...

रावण रूपी पाश्‍चात्य संस्कृति के आक्रमणों को नष्ट कर, चैत्र प्रतिपदा के दिन नववर्ष का विजयध्वज अपने घरों व मंदिरों पर फहराएं।

हिन्दू नववर्ष मनाकर खुद में आत्मसम्मान भर ले हम...🙏🏻⛳