रविवार, 30 अगस्त 2020

#क्या_कभी_सोचा_है_गणेश_प्रतिमा_का_विसर्जन_क्यों..?

गणेश जी को कभी भी विदा नहीं करना चाहिए क्योंकि विघ्न हरता ही अगर विदा हो गए तो तुम्हारे विघ्न कौन हरेगा..?

#ओम_एकदंताय_नमो_नमः

अधिकतर लोग एक दूसरे की देखा-देखी गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर रहे हैं और 3, 5, 7 या 11 दिन की पूजा के उपरांत उनका विसर्जन भी करेंगे। आप सब से निवेदन है कि आप गणपति की स्थापना करें, पर विसर्जन नहीं... 
विसर्जन केवल महाराष्ट्र में ही होता हैं, क्योंकि गणपति वहाँ एक मेहमान बनकर गये थे। वहाँ लाल बाग के राजा कार्तिकेय ने अपने भाई गणेश जी को अपने यहाँ बुलाया और कुछ दिन वहाँ रहने का आग्रह किया था। जितने दिन गणेश जी वहां रहें, उतने दिन माता लक्ष्मी और उनकी पत्नी रिद्धि व सिद्धि वहीं रही... इनके रहने से लालबाग धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया, तो कार्तिकेय जी ने उतने दिन का गणेश जी को लालबाग का राजा मानकर सम्मान दिया। यही पूजन गणपति उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।
 
अब रही बात देश की अन्य स्थानों की... तो गणेश जी हमारे घर के मालिक हैं और घर के मालिक को कभी विदा नहीं किया जाता..! वहीं अगर हम गणपति जी का विसर्जन करते हैं तो उनके साथ लक्ष्मी जी व रिद्धि-सिद्धि भी चली जायेगी तो जीवन में बचा ही क्या..?

हम बड़े शौक से कहते हैं... गणपति बाप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ इसका मतलब हमने एक वर्ष के लिए गणेश जी लक्ष्मी जी आदि को जबरदस्ती पानी मे बहा दिया तो आप खुद सोचो... कि आप किस प्रकार से नवरात्रि पूजा करोंगे..? किस प्रकार दीपावली पूजन करोंगे..? आप कैसे पूजन करने का अधिकार रखते हो, जब आपने उन्हें एक वर्ष के लिए उन्हें भेज ही दिया...

इसलिए गणेश जी की स्थापना करें पर विसर्जन कभी न करें।

हे मेरे प्रभु गणेशा! आप रहना साथ हमेशा... 🙏🏻⛳

शनिवार, 29 अगस्त 2020

#सार्वजनिक_जीवन_में_मर्यादा_से_रहें

जिस प्रकार किसी को मनचाही स्पीड में गाड़ी चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि रोड सार्वजनिक है। ठीक उसी प्रकार किसी भी लड़की को मनचाही अर्धनग्नता युक्त वस्त्र पहनने का अधिकार नहीं है क्योंकि जीवन सार्वजनिक है। एकांत रोड में स्पीड चलाओ, एकांत जगह में अर्द्धनग्न रहो। मगर सार्वजनिक जीवन में नियम मानने पड़ते हैं।

भोजन जब स्वयं के पेट मे जा रहा हो तो केवल स्वयं की रुचि अनुसार बनेगा, लेकिन जब वह भोजन परिवार खायेगा तो सबकी रुचि व मान्यता देखनी पड़ेगी।

लड़कियों का अर्धनग्न वस्त्र पहनने का मुद्दा उठाना उतना ही जरूरी है, जितना लड़को का शराब पीकर गाड़ी चलाने का मुद्दा उठाना जरूरी है। दोनों में एक्सीडेंट होगा ही...

अपनी इच्छा केवल घर की चहारदीवारी में उचित है। घर से बाहर सार्वजनिक जीवन मे कदम रखते ही सामाजिक मर्यादा लड़का हो या लड़की उसे रखनी ही होगी।

जितना गलत बुर्का है, उतना ही गलत अर्धनग्नता युक्त वस्त्र है। बड़ी उम्र की लड़कियों का बच्चों-सी फ़टी निक्कर पहनकर, छोटी टॉप पहनकर फैशन के नाम पर घूमना भारतीय संस्कृति का अंग नहीं है।

जीवन भी गिटार या वीणा जैसा वाद्य यंत्र है, ज्यादा कसना भी गलत है और ज्यादा ढील छोड़ना भी गलत है।

सँस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को है, गाड़ी के दोनों पहिये में सँस्कार की हवा चाहिए, एक भी पंचर हुआ तो जीवन डिस्टर्ब होगा।

नग्नता यदि मॉडर्न होने की निशानी है, तो सबसे मॉडर्न जानवर है जिनके संस्कृति में कपड़े ही नहीं है। अतः जानवर से रेस न करें, सभ्यता व संस्कृति को स्वीकारें...
कुत्ते को अधिकार है कि वह कहीं भी यूरिंन पास कर सकता है, सभ्य इंसान को यह अधिकार नहीं है। उसे सभ्यता से बन्द टॉयलेट उपयोग करना होगा। इसी तरह पशु को अधिकार है नग्न घूमने का, लेकिन सभ्य स्त्री को उचित वस्त्र का उपयोग सार्वजनिक जीवन मे करना ही होगा।
अतः विनम्र अनुरोध है, सार्वजनिक जीवन मे मर्यादा न लांघें, सभ्यता से रहें। 🙏🏻⛳

मरदूद शायर लानत #इंदौरी ने नरक से यह ताज़ा ग़ज़ल भेजी है-

यहां तो यमदूत पीट रहे हैं, जन्नत इसका नाम थोड़ी है..!
चित्रगुप्त हिसाब कर रहे हैं, किसी हूर का निज़ाम थोड़ी है!

ओसामा है, कसाब है और अफ़ज़ल भी है यहां,
यह कोई ख़ुदा या फ़रिश्तों का मुक़ाम थोड़ी है..!

घूमते हैं यहाँ हर तरफ़ लिजलिजे सूअर🐷
यहाँ बहत्तर हूरों के हुस्न का जाम थोड़ी है!

भरे पड़े हैं यहाँ तमाम ग़द्दार मेरे ही जैसे...
यहाँ किसी मुल्क का शरीफ़ अवाम थोड़ी है!

मुल्क से ग़द्दारी पे सौ-सौ बार मुझको “लानत”
उसी की सजा है, ख़िदमत का इनाम थोड़ी है।
👴🏻

😜😂😂

बुधवार, 19 अगस्त 2020

#ब्रह्म_रंध्र का रहस्योद्घाटन:

योग विज्ञान के अनुसार सिर के सबसे ऊपरी बिंदु पर एक छेद या मार्ग होता है, जिसे "ब्रह्मरंध्र" या "सहस्त्रार चक्र" कहते हैं। भारतीय ऋषि मुनि बताते रहें हैं कि इसी मार्ग से जीव गर्भ में पल रहे भ्रूण में प्रवेश करता है।रंध्र एक संस्कृ‍त शब्द है मगर दूसरी भारतीय भाषाओं में भी इसका इस्तेमाल होता है। रंध्र का मतलब है- मार्ग, जैसे कोई छोटा छिद्र या सुरंग। यह शरीर का वह स्थान होता है, जिससे होकर जीवन भ्रूण में प्रवेश करता है।हठयोग में, मस्तिष्क के ऊपरी मध्य भाग में माना जानेवाला वह छिद्र या रंध्र जहाँ सुषुम्ना, इंगला और पिंगला ये तीनों नाड़ियाँ मिलती है। कहते है कि पुणात्मा लोगों और योगियों के प्राण इसी रंध्र को भेदकर निकलते हैं। ब्रह्म-रंध्र को शरीर का दसवाँ द्वार कहा जाता है। अन्य द्वार इन्द्रियाँ है जो खुली रहती है। किन्तु यह दसवाँ द्वार सदा बन्द रहता है। तपस्या द्वारा इसे खोला जाता है। इसके खुलने पर सहस्रार चक्र से अमृत रस निकलने लगता है जिससे योगी को अमर काया प्राप्त हो जाती है।
जब बच्चा पैदा होता है तो उसके सिर पर एक नर्म जगह होती है, जहां तब तक हड्डियां विकसित नहीं हुई होतीं, जब तक बच्चा एक खास उम्र में नहीं पहुंच जाता।
जीवन प्रक्रिया में इतनी जागरूकता होती है कि वह अपने विकल्पों को खुला रखता है। वह देखता है कि यह शरीर उस जीवन को बनाए रखने में सक्षम है या नहीं। इसलिए वह उस द्वार को एक खास समय तक खुला रखता है ताकि अगर उसे लगे कि यह शरीर उसके अस्तित्व के लिए ठीक नहीं है तो वह उसी रास्ते से चला जाए। वह शरीर में मौजूद किसी अन्य मार्ग से नहीं जाना चाहता, वह जिस तरह आया था, उसी तरह जाना चाहता है। एक अच्छा मेहमान हमेशा मुख्य द्वार से आता है और उसी से वापस जाता है। अगर वह मुख्य द्वार से आकर पिछले दरवाजे से चला जाए तो इसका मतलब है कि वह आपका घर साफ करके गया है! आप भी जब शरीर छोड़ते हैं, तो पूरी जागरूकता के साथ आप चाहे शरीर के किसी भी भाग से जाएं, उसमें कोई बुराई नहीं। लेकिन अगर आप ब्रह्मरंध्र से शरीर छोड़ सकें, तो यह शरीर छोड़ने का सबसे अच्छा तरीका है।
हो सकता है जीव लौट जाए और शिशु मृत पैदा हो
कई मेडिकल मामले हैं, जहां मेडिकल साईंस के सभी मानदंडों से भ्रूण के स्वस्थ होने और सब कुछ ठीक होने के बावजूद बच्चा मृत पैदा होता है।
इसकी वजह सिर्फ यह है कि भीतर मौजूद जीवन अब भी चयन कर रहा होता है। जब किसी भ्रूण के अंदर जीव प्रवेश करता है और शिशु बनने की प्रक्रिया में उस भ्रूण को ठीक नहीं पाता है, तो वह उससे बाहर निकल जाता है। इसीलिए एक द्वार खुला रखा जाता है।
यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में एक गर्भवती स्त्री के आस-पास अलग तरह का माहौल बनाने के लिए कई सावधानियां रखी जाती थीं। आजकल हम उन चीजों को आधुनिक बनने और मौडर्न बनने के चक्कर में छोड़ते जा रहे हैं, मगर इन सब के पीछे यही उम्मीद होती थी कि आपकी कोख में आने वाला आपसे बेहतर और स्वस्थ हो। इसलिए एक गर्भवती स्त्री को आराम और खुशहाली की एक खास स्थिति में रखा जाता था। उसके आस-पास सही तरह की सुगंध, ध्वनियों और भोजन की व्यवस्था की जाती थी। ताकि उसका शरीर सही किस्म के प्राणी का स्वागत करने के लिए अनुकूल स्थिति में हों।
ब्रह्मरंध्र एक प्रकार से जीवात्मा का कार्यालय है इस दृश्य जगत में जो कुछ है और जहाँ तक हमारी दृष्टि नहीं पहुँच सकती उन सबकी प्राप्ति की प्रयोगशाला है। भारतीय तत्त्वदर्शन के अनुसार यहाँ 17 तत्त्वों से संगठित ऐसे विलक्षण ज्योति पुँज विद्यमान् हैं जो दृश्य जगत में स्थूल नेत्रों से कहीं भी नहीं देखे जा सकते।
साभार : 🙏
#धर्मो_रक्षति_रक्षितः