सामर्थवान मनुष्य जब किसी दुर्बल से हारता है तो उसका दंभ (ego) टूट जाता है और वह कुंठीत हो जाता है। ठीक वैसे ही चमत्कारिक तरीके से मिली जीत, हमें अतिउत्साही (overconfident) बना देती है। ये सब naturally हैं, जिसे हम अपने सकारात्मक या नकारात्मक विचारों से खुद मे स्थापित कर लेते है।
चूंकि खरगोश एक तेज दौड़ने वाला प्राणी होता है, कछुए की तुलना मे तो कई गुना अधिक सामर्थवान लेकिन हार चुका था, कुंठित हो गया।
खरगोश दोबारा प्रतियोगिता चाहता था... इसलिए कछुए से बोला - एक बार फिर से शर्त लगाता हूं... क्या तुम फिर से तैयार हो, इस चुनौती के लिए..?
अप्रत्याशित जीत से कछुआ भी अतिउत्साही था... जीत के नशे मे चूर कछुए ने हामी भर दी।
दौड़ शुरू हुई...
इस बार खरगोश ने कोई गलती नहीं की... वह पूरी ताकत से दौड़ा और जीत गया। लेकिन अतिउत्साह के कारण कछुआ अपना सम्मान गवां चुका था, जिसे वह फिर से पाना चाहता था।
कछुए ने हार नहीं मानी और चालाकी के साथ पुनः दौड़ के लिए खरगोश से कहा तो... खरगोश गर्व से बोला "तुम मुझसे अब कभी नहीं जीत सकते... मैं वह गलती दोबारा नहीं दोहराऊंगा और मैं हर बार तुमसे प्रतियोगिता के लिए तैयार हूं।"
कछुए ने दूसरे मार्ग से प्रतियोगिता की शर्त रखी... अहंकार में खरगोश ने विवेक खो दिया और शर्त स्वीकार कर ली।
तीसरी बार दौड़ प्रारंभ हुई खरगोश आगे था लेकिन रास्ते में नदी आ गई, खरगोश तैरना नहीं जानता था, वह किनारे पर कसमसाकर रह गया।
चालाक कछुआ धीरे-धीरे आया और नदी पार कर गया और वह खुद को उस सम्मान के लिए पुनर्स्थापित कर चुका था।
इस पूरी घटना को पेड़ पर बैठा एक चील देख रहा था उसने दोनों को समझा - "तुम दोनो यूनिक (अपने आप में खास) हो... ईश्वर ने सबको अलग गुण दिए हैं, उसका उपयोग सही दिशा में करो... दोनों मित्र बनो, आपातकाल में आवश्यकता होगी।
लेकिन दोनों न माने और चले गए...
एक समय जंगल में आग लग गई। सभी जानवर भागने लगे...
कछुआ नदी से बहुत दूर था। चाहकर भी बहुत जल्दी पानी तक नहीं जा सकता था, आग बढ़ती जा रही थी।
वही खरगोश की सीमाएं भी नदी के किनारे तक ही सीमीत थी।
तभी आकाश मे उड़ते चील ने उन्हें कहा "अब वक्त आ चुका हैं, एक-दूसरे की मदद से इस आग का सामना करो।
तब खरगोश जो की तेज दौड़ सकता था, उसने कछुए को अपनी पीठ पर बैठाकर आग को उन तक पहुंचने से पहले, नदी के किनारे तक ले आया।
अब बारी कछुए की थी... नदी मे पहुंचकर कछुए ने खरगोश को अपनी पीठ पर बैठाकर पार करवाया और अब दोनों आग से सुरक्षित थे।
हमें भी अपनी दबी मानसिकता, कुंठाओ से बाहर निकलना होगा, विवेक रखना होगा, सबको समान दृष्टि से देखना होगा।
ईश्वर ने सभी को अलग-अलग प्रतिभाएं दी हैं, सभी दूनिया मे यूनिक हैं, सभी के गुण अलग हैैं।
हमें इस वक्र मानसिकता से बाहर निकलकर एक टीम भावना के साथ आपादा का सामना करना चाहिए...
अपने लोगों में छिपी प्रतिभााओं को बाहर निकालें...
अगर हम ऐसा कर सकेें तो जीत हर बार हमारी ही होगी, पूरे सम्मान के साथ, गरिमा के साथ...
इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही संदेश हमारा...