मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

सिगरेट से भी खतरनाक हैं #रासायनिक अगरबत्ती का धुंआ?

केवल भारत में ही नहीं बल्कि संसार भर में आज रासायनिक धूप जलाई जा रही है। इन सुगंधित अगरबत्तियों और धूप बत्तियों से निकलने वाला धुंआ शरीर की कोशिकाओं के लिए सिगरेट के धुंए से अधिक जहरीला साबित हो रहा है। शोधकर्ताओं ने सिगरेट के धुंए की अगरबत्ती के धुंए से तुलना की और पाया कि रासायनिक अगरबत्ती का धुंआ कोशिकाओं में जेनेटिक म्यूटेशन करता है। इससे कोशिकाओं के डीएनए में बदलाव होता है, जिससे कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। इस सर्वेक्षण को ब्रिटेन की एक एजेंसी ने किया है। जिसके पीछे दो कारण हो सकते हैं।

१) अगरबत्ति और धूपबत्ति दोनों का अधिकांश उत्पादन गृह उद्योग में बनता है। सर्वज्ञात है कि सर्वेक्षण करने वाली एजेंसियां मल्टिनेशनल कंपनियों के पैसे से चलती है। ये एजेंसियां पैसे खाकर गृह उद्योग को बंद कराती है और उस उत्पाद के लिए लोगों को मल्टिनेशनल कंपनियों पर निर्भर कराती हैं। क्योकि मल्टिनेशनल कंपनियाँ ही अपने उत्पाद को बड़े स्तर पर झूठ बोल कर बेच सकती है। टी वी आदि मीडिया में झूठे विज्ञापन और खोखले दावे पेश करती है।

२) अगरबत्ति और धूपबत्ति दोनों वस्तुएं हिन्दू और ईस्लाम के धार्मिक संस्कारों में उपयोग में आने वाली वस्तु है। बाजारवाद पर कार्य करने वाली एजेंसियां धार्मिक कृत्यों को तोड़ने और उसे गलत बताने पर ध्यान केन्द्रीत करती है। क्योंकि धार्मिक कृत्य हममें संतोष का भाव उत्पन्न करता है जो कि बाजारवाद का उल्टा है।

               लेकिन इससे हट कर एक सत्य यह है कि रासायनिक अगरबत्तियों की तिलि जो बांस की होती है यह जलने के बाद वायुमंडल में बहुतायत मात्रा में कार्बनडायऑक्साइड छोड़ता है। लेकिन धूपबत्ति में ऐसा नहीं होता। इस कारण अगरबत्ति की तुलना में धूपबत्ति ठीक है। इस सर्वेक्षण को करने वाला एजेंसी – ब्रिटिश लंग फाउंडेशन के मेडिकल एडवाइजर डॉक्टर निक रॉबिन्सन ने अध्ययन पर टिप्पणी करते हुए कहा कि धूप के धुंए सहित कई प्रकार के धुंए जहरीले हो सकते हैं। हालांकि, उन्होंने बताया कि यह शोध छोटे आकार में चूहों पर किया गया था। ऐसे में स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में कोई ठोस निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता। शोध के नतीजों के आधार पर फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए यह अच्छा होगा कि वह धूप के धुंए से बचें। बांस से बनी अगरबत्ती जलने के बाद हवा में कार्बन के पार्टिकल रिलीज करती है, जो सांस के साथ फेफडों में जाकर अटक जाते हैं। अभी तक धूपबत्ती को वायु प्रदूषण के स्रोत के रूप में मानते हुए अधिक शोधकार्य नहीं हुआ था। अगरबत्ती और धूपबत्ती को फेफड़ों के कैंसर, ब्रेन टयूमर और बच्चों के ल्यूकेमिया के विकास के साथ जोड़ा जा रहा है। शोधकर्ताओं ने बताया कि अगरबत्ती के धुंए में अल्ट्राफाइन और फाइन र्पाटिकल्स मौजूद थे। ये सांस के साथ आसानी से शरीर के अंदर पहुंच जाते हैं और स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं। इसके पीछे जो कारण है वह यह कि आज – कल धूपबत्ति में भी भरपूर रासायन का उपयोग किया जा रहा है। इसी के आड़ में ब्रिटिश लंग फाउंडेशन इस पर विवाद खड़ा करना चाहता है। इसके लिए हमें चाहिए कि धूप बनाने की वैदिक विधि को फिर से विकसित किया जाए। धूप बनाने में शुद्ध घृत का उपयोग पहले किया जाता था जो कि जलने के बाद वायुमंडल में अन्य गैसों से ऑक्सिजन परावर्तित करता है।
१० मीली शुद्ध घृत को यदि वायुमंडल में जलाया जाता है तब १६०० किलोग्राम वायु का रुपांतरण ऑक्सिजन में होता है। लेकिन आज – कल गायों की संख्या खटने के कारण शुद्ध घृत नहीं मिलता। इसके स्थान पर सस्ते पेट्रोलियम के उपयोग के कारण शोध में धूप के बुरे असर मिले हैं।

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गाय के गोबर से धूप बनाने की विधि:-

1 किलो गोबर में 50 ग्राम नागर मोथा, 50 ग्राम लाल चन्दन, 50 ग्राम बुरादा देवदार एवं 50 ग्राम चावल व 20 ग्राम कपूर मिलाकर उससे बत्तियाँ बना लें। बत्तियाँ बनानें के लिए प्लास्टिक की सिरंग को आगे से काट कर उसमें गोबर वाला मिश्रण भरकर दबाकर,बत्ती बाहर निकाल कर सुखा लें। प्रति दिन पूजा एवं मन को शान्ति, वातावरण शुद्ध करने में प्रयोग करें।

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सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

वीर सावरकर के मुस्लिम विचार

आज 26 फरवरी के दिन भारत माँ के महान सपूत वीर सावरकर ने इस संसार को अलविदा कह दिया था। अपने महान तपस्वी जीवन से अनेक अनुभवों को ग्रहण कर युवाओं के लिए वीर सावरकर ने अपनी कलम से जो सन्देश दिए थे, वो न केवल आज भी प्रासंगिक हैं अपितु मार्ग दर्शक भी हैं। आज समाज में जो धार्मिक कट्टरवाद फैल रहा हैं, उग्रवाद एवं देशद्रोही ताकते भारत की एकता और अखंडता को चुनौती दे रही हैं। उनका हल वीर सावरकर की लेखनी में मिलता हैं।


१. मजहवी धारणा- "सामान्यतः मुसलमान अभी अत्यधिक धार्मिकता और राज्य की मजहबी धारणा के ऐतिहासिक चरण से नहीं उबर पाये हैं। उनकी मजहबी राजनीति मानव-जाति को दो भागों में विभाजित करती है- 'मुस्लिम भूमि’ और ‘शत्रु भूमि’ वो सभी देश, जिनमें या तो पूर्ण रूप से मुसलमान ही निवास करते हैं अथवा जहाँ मुसलमानों का शासन है, ‘मुस्लिम देश’ हैं और अन्य देश ‘शत्रु देश’।” (सावरकर एण्ड हिज टाइमपृ. २३०)

२. मुस्लिम धर्मान्धता- "पारसी-ईसाई आदि भारत के लिए कोई समस्या नहीं है। जब हम स्वतन्त्र हो जायें, तब इन्हें बड़ी सरलता से हिन्दी नागरिक की श्रेणी में लाया जा सकेगा। किन्तु मुसलमानों के बारे में बात दूसरी है। जब कभी इंग्लैण्ड भारत से अपनी सत्ता हटा लेगा, तब भारतीय राज्य के प्रति देश के मुसलमान भयप्रद सिद्ध हो सकते हैं। हिन्दुस्थान में मुस्लिम राज्य की स्थापना करने की अपनी धर्मान्ध योजना को अपने मन-मस्तिष्क में संजोय रखने की मुस्लिम जगत की नीति आज भी बनी हुई है।" (३० दिसम्बर १९३९ को हिन्दू महासभा का अध्यक्षीय भाषण)

३. ”मुसलमानों में जात-पात या क्षेत्रीयता का भाव नहीं है, यह कहना सर्वथा भ्रामक है। दुर्रानी मुसलमान व मुगल मुसलमान, दक्खिनी मुसलमान व उत्तरी मुसलमान, शेख मुसलमान व सैयद मुसलमानों के झगड़े का लाभ उठाकर ही मराठों ने मुगलों का तखता पलटा। शिया और सुन्नी दंगे वैष्णव व शैवों के दंगों से हजार गुणा ज्यादा भयंकर है और बार-बार होते रहते हैं।

काबुल में सुन्नी मुसलमानों ने अहमदिया मुसलमानों को पत्थरों से मार डाला। बहाई मुसलमान तो अन्य सभी मुसलमानों को इस दुनियां में फांसी और नर्क के योग्य समझते हैं। अस्पृश्यता भी उनमें कम नहीं हैं। भंगी मुसलमान को पानी भी न छूने देने वाली व मस्जिद में नमाज़ के लिए न जाने देने की घटनायें होती ही रहती हैं।” (मौलाना शौकतअली को लिखे पत्र तीसरा खंडसावरकर समग्र वांड्‌.पृ. ७५८)

४. मुस्लिम मनोवृत्ति- पिछले पचास वर्षों में, मुसलमानों को प्रसन्न कर व उन्हें एक संयुक्त भारतीय राष्ट्र में सम्मिलित करके कम से कम इस हेतु प्रेरित करने के लिए कि सर्वप्रथम वे भारतीय हैं व फिर मुसलमान हैं, कांग्रेस के प्रयासों का बुरी तरह असफल होने का क्या कारण था। ऐसा नहीं है कि मुसलमान एक संयुक्त भारतीय राष्ट्र नहीं बनाना चाहते किन्तु एकता, राष्ट्रीय एकता की कल्पना उसके प्रादेशिक एकता पर आधारित नहीं है। इस विषय पर किसी मुसलमान ने यदि स्पष्ट एवं बोधगम्य रूप से अपना मानस व्यक्त किया है तो वह मोपला आन्दोलन के नेता अली मुसलियार ने हजारों हिन्दू महिलाओं, पुरुषों, बच्चों को धर्मान्तरित करने अथवा तलवार के बल पर समाप्त करने के अति दुष्ट अभियानके समर्थन में उसने घोषित किया कि भारत को एक संयुक्त राष्ट्र होना ही चाहिए और हिन्दू मुसलमान की शाश्वत एकता स्थापित करने का केवल एक ही मार्ग हैं और वह है सारे हिन्दुओं का मुसलमान बन जाना।” (नागपुर में हिन्दू महासभा में अध्यक्षीय भाषण)

५. मुसलमान केवल मुसलमानभारतीय कभी नहीं - मुसलमान प्रथम और अंतिम रूप से मुसलमान रहे, भारतीय कभी नहीं। वे तब तक तटस्थ रहे, जब तक कि दिगम्रमित हिन्दुओं ने अंग्रेजी राज से सभी भारतीय के लिए राजनैतिक अधिकार प्राप्त करने का संघर्ष जारी रखा और लाखों की संखया में जेल गये, हजारों की संख्या में अण्डमान गये, सैकड़ों की संख्या में फाँसी पर झूल गये और जैसे ही एक ओर कांग्रेसी हिन्दुओं द्वारा चलाये जा रहे निःशस्त्र आन्दोलन एवं दूसरी ओर कांग्रेस से बाहर सशस्त्र हिन्दू क्रान्तिकारियों द्वारा अधिक भयावह एवं प्रवासी जीवन-मृत्यु का संघर्ष चलाये जाने से अंग्रेजी शासन पर पर्याप्त रूप से प्रभाव पड़ा और उन्हें भारतीय को महत्वपूर्ण राजनैतिक शक्ति देने को विवश होना पड़ा, तुरन्त ही मुसलमान चाहरदीवारी से कहने लगे कि वे भी भारतीय हैं, उन्हें भी अपना अधिकार मिलना चाहिए। अंततोगत्वा बात यहाँ तक पहुँची कि भारतवर्ष को मुस्लिम भारत’ व हिन्दू भारत’ में विभाजित करने का प्रस्ताव ज़ोर-शोर से रखा गया और इस हेतु मुस्लिम लीग जैसी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था ने मुस्लिम राष्ट्रों के साथ हिन्दुओं के विरुद्ध मित्रता करने की तत्परता बताई।” (नागपुर में हिन्दु महासभा में अध्यक्षीय भाषण)

६. वन्द्रमातरम्‌ का विरोध- "मुस्लिम लीग ‘वन्देमातरम्‌’ को इस्लाम विरोधी घोषित कर चुकी है। राष्ट्रवादी कहे जाने वाले कांग्रेसी मुस्लिम नेता भी ‘वन्देमातरम्‌’ गाने से इन्कार कर अपनी संकीर्ण मनोवृत्ति का परिचय दे चुके हैं। हमारे एकतावादी कांग्रेसी नेता उनकी हर अनुचित व दुराग्रहपूर्ण मांग के सामने झुकते जा रहे हैं। आज वो वन्देमातरम्‌ का विरोध कर रहे हैं, कल ‘हिन्दुस्थान’ या ‘भारत’ नामों पर एतराज़ करेंगे... इन्हें इस्लाम विरोधी करार देंगे। हिन्दी की जगह, उर्दू को राष्ट्रभाषा व देवनागरी की जगह, अरबी लिपि का आग्रह करेंगे। उनका एकमात्र उद्‌देश्य ही भारत को ‘दारूल इस्लाम’ बनाना है। तुष्टीकरण की नीति उनकी भूख और बढ़ाती जायेगी जिसका घातक परिणाम सभी को भोगना होगा।” (अहमदाबाद का हिन्दू महासभा काअध्यक्षीय भाषण)

७.हिन्दू का सैनिकीकरण- "जब तक देश की राजनीति का हिन्दूकरण और हिन्दूओं का सैनिकीकरण नहीं किया जायेगा... तब तक भारत की स्वाधीनता, उसकी सीमायें, उसकी सभ्यता व संस्कृति कदापि सुरक्षित नहीं रह सकेगी। मेरी तो हिन्दू युवकों से यही अपेक्षा है, यही आदेश है कि वो अधिकाधिक संख्या में सेना में भर्ती होकर सैन्य-विद्या का ज्ञान प्राप्त करें, जिससे समय पड़ने पर वे अपने देश का स्वाधीनता की रक्षा में योग दे सकें।” (१९५५ में जोधपुर में सम्पन्न हिन्दू महासभा अधिवेशन में भाषण)

८. हिन्दुस्थान नाम का विरोध- "हर एक देश का नाम उसके राष्ट्रीय बहुमत वाले नाम से ही पुकारा जाना चाहिए। क्या कभी बलूचिस्तान, वजीरिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्किस्थान आदि नामों पर भी आपत्ति की गयी, जबकि इन देशों में गैर-मुस्लिम अल्पमत बस रहा है ? फिर हिन्दुस्थान या हिन्दू राज्य का नाम लेते ही इनकी साँस क्यों उखड़ने लगती है। जैसे कि उन्हें साँप ने ही काट खाया हो...” (विनायक दामोदर सावरकरपृ. २२२)


हिंदुस्तान क्या है? हिन्दू कौन है? कौन नहीं है?

मैं विनायकराव दामोदर सावरकर जी के १९२३ में लिखे एक लेख ‘हिंदुत्व' से कुछ मूल बातों का ज़िक्र यहाँ करूँगा| अगर किसी विचार (हिंदुत्व) का तबादला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हुआ है तो यकीनन ही उसे हमें मूल रूप से समझना चाहिए और उसके बाद ही उसकी स्वीकृति या आलोचना करनी चाहिए|

लेख की शुरुआत में ही सावरकर जी ये बात साफ़ कर देते हैं कि हिन्दू-धर्म एक पेड़ ‘हिंदुत्व’ की शाखा है| उन्होनें इस बात को महत्त्व दिया है की बिना हिंदुत्व को समझे एक ‘हिन्दू’ या ‘हिन्दू-धर्म’ को समझना नामुमकिन है| संस्कृत भाषा में ‘सिंधु’ सिर्फ एक नदी नहीं बल्कि समुद्र भी है – तो सिर्फ इस एक शब्द ‘सिन्धुस्तान’ (हिंदुस्तान) से हम उस देश को परिभाषित कर सकते हैं जिसमें ‘हिन्दू’ जाति के लोग कई हज़ार सालों से बसे हैं| हिन्दू जाति के लोग किसी भी धर्म को मानने वाले या नास्तिक होते हैं|

सावरकर जी के अनुसार हिन्दू होने के लिए किसी भी इंसान को ३ कसौटियों पर खरा उतरना पड़ेगा:

. उसकी रगों में किसी ‘हिन्दू’ का खून दौड़ रहा हो| हिन्दू एक जाति है जिसकी शुरुआत वेद-युग के भी पूर्व हुई है|

ख. हिन्दुस्तान (जो सिंधु नदी से लेकर समुद्रों तक फैला है) को अपनी पितृभूमि समझता हो जहाँ से उसके पूर्वज हों|

ग. सांस्कृतिक तौर पर हिंदुस्तान का हो| हिन्दुस्तान की सर-ज़मीन को पावन धरती की तरह पूजता हो|

हिंदुत्व के भी ३ अनिवार्य पहलू यही हैं – जाति (क.), राष्ट्र (ख.) और संस्कृति (ग.)|

इस बात में कोई भी शंका नहीं है की हर भारतवासी, जो किसी भी मज़हब का मानने वाला हो, की रगों में हिन्दू का खून दौड़ रहा है और उसके पूर्वज हिन्दू थे| हमने इतिहास में पढ़ा है की हम में से कुछ लोगों ने गैर धर्मों को अपनी मर्ज़ी से अपनाया और कुछ ने ऐसा दबाव में आकर किया| पर इस बात में कोई शक नहीं है की सबकी रगों में एक ही ‘जाति’ का खून बहता है| हम में से जो देश-भक्त हैं वो किसी भी धर्म के हो सकते हैं| उदाहरण-स्वरुप १९६५ की लड़ाई में हवलदार अब्दुल हामिद को हिंदुस्तान के प्रति शहादत के लिए परम-वीर चक्र से नवाज़ा गया था|

हम हिन्दुस्तानियों में जो हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिक्ख हैं – उनमें कई सांस्कृतिक समानान्तायें हैं| मिसाल के तौर पर – बैसाखी का त्यौहार मनाने वाले सिर्फ हिन्दू और सिक्ख ही नहीं होते, इसे बौद्ध भी ‘वैशाख’ के नाम से मनाते हैं| हाँलाकि कुछ अपवादों को छोड़कर, जैसे की खोजा मुसलमान, हम हिंदुस्तानियों में जो मुसलमान, पारसी या इसाई हैं – उनमें और बाकियों में कोई सांस्कृतिक सोहबत नहीं है| इस्लाम और इसाई धर्म की पुराण-कथाओं के नायक, उनके वस्त्र और उनकी भाषा हिंदुस्तान के बाकी धर्मों से अलग है| इसमें कोई रहस्य नहीं की इसकी वजह ऐतिहासिक कारण हैं – ये धर्म हिंदुस्तान की ज़मीन से नहीं उपजे हैं बल्कि बाहर से आये हैं| किसी मुसलमान, इसाई या पारसी भारतवासी के लिए पावन-धरती हिंदुस्तान नहीं है बल्कि दूर देशों में है| सावरकर के अनुसार हर मुसलमान भारत और अरब के बीच युद्ध की स्थिति में उस देश के प्रति सहानुभूति दिखायेगा जहाँ पर मक्का-मदीना हो| इन्हीं कारणों से कोई इसाई या मुसलमान ‘हिन्दू’ नहीं कहलाया जा सकता क्योंकि वो उपरोक्त कसौटी पर खरा नहीं उतरता है|

शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

उद्यान में कमल

यदि उद्यान में कमल लगाने की इच्छा हो तो सबसे अधिक संतोषजनक रीति यह है कि  सीमेंट की बावली बनाई जाए। प्रबलित (reinforced) कंक्रीट, या प्रबलित ईटं और सीमेंट, से पेंदा बनाया जाए। इसमें लंबाई और चौड़ाई दोनों दिशा दिशा में लोहे की छड़ें रहें जिसमें इसे चटखने का डर न रहे। दीवारें भी प्रबलित बनाई जाएँ। तीन फुट गहरी बावली से काम चल जाएगा। लंबाई, चौड़ाई जितनी ही अधिक हों उतना ही अच्छा होगा। प्रत्येक पौधे को लगभग 100 वर्ग फुट स्थान चाहिए। इसलिए 100 वर्ग फुट से छोटी बावली बेकार है। बावली की पेंदी में पानी की निकासी के लिए छेद रहें तो अच्छा है जिसमें समय-समय पर बावली खाली करके साफ की जा सके। तब इस छेद से नीची भूमि तक पनाली भी चाहिए।

बावली की पेंदी में 9 से 12 इंच तक मिट्टी की तह बिछा दी जाए और थोड़ा बहुत दिया जाए। इस मिट्टी में सड़े गोबर की खाद मिली हो। मिट्टी के ऊपर एक इंच मोटी बालू डाल दी जाए। यदि बावली बड़ी हो तो पेंदी पर सर्वत्र मिट्टी डालने के बदले 12 इंच गहरे लकड़ी के बड़े-बड़े बक्सों का प्रयेग किया जा सकता है। तब केवल बक्सों में मिट्टी डालना पर्याप्त होगा। इससे लाभ यह होता है कि सूखी पत्ती दूर करने, या फूल तोड़ने के लिए, जब किसी को बावली में घुसना पड़ता है तब पानी गंदा नहीं होता और इसलिए पत्तियों पर मिट्टी नहीं चढ़ने पाती। कमल के बीज को पेंदी की मिट्टी में, मिट्टी के पृष्ठ से दो तीन इंच नीचे, दबा देना चाहिए। बसंत ऋतु के आरंभ में ऐसा करना अच्छा होगा। कहीं से उगता पौधा जड़ सहित ले लिया जाए तो और अच्छा। बावली सदा स्वच्छ जल से भरी रहे।

नई बनी बावली को कई बार पानी से भरकर और प्रत्येक बार कुछ दिनों के बाद खाली करके स्वच्छ कर देना अच्छा है, क्योंकि आरंभ में पानी में कुछ चूना उतर आता है जो पौंधों के लिए हानिकारक होता है। पेंदी की मिट्टी भी चार, छह महीने पहले से डाल दी जाए और पानी भर दिया जाए। पानी पले हरा, फिर स्वच्छ हो जाएगा। बावली में नदी का, अथवा वर्षा का, या मीठे कुएँ का जल भरा जाए। शहरों के बंबे के जल में बहुधा क्लोरीन इतनी मात्रा में रहती है कि पौधे उसमें पनपते नहीं। बावली ऐसे स्थान में रहनी चाहिए कि उसपर बराबर धूप पड़ सके। छाँह में कमल के पौधे स्वस्थ नहीं रहते।

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

अग्रवाल समाज के पितामह, पितृभूमि व समाज पर आधारित महत्वपूर्ण जानकारी

अग्रसेन-अग्रोहा-अग्रवाल              


महाराजा अग्रसेन – अग्रवाल समाज के संस्थापक व समाजवाद के प्रवर्तक। प्रताप नगर के सूर्यवंशी महाराजा वल्ल‍भ के पुत्र। 


महारानी माधवी – महाराजा अग्रसेन की महारानी व नागलोक के राजा कुमुद की पुत्री । 


अग्रसेन जयंती – प्रत्येक वर्ष आसोद सुदी एकम (पहला नवरात्रा) को मनाई जाती है। 


महाराजा अग्रसेन के सिद्धांत – सर्वेभवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामया 


महाराजा अग्रसेन का आदर्श - जीओ और जीने दो...


महाराजा अग्रसेन ने 18 यज्ञ किए व यज्ञ में पशु बलि को बंद किया। महाराजा अग्रसेन ने बड़े पुत्र विभु को राजगद्दी सौंपी।


महाराजा अग्रसेन जलपोत का अनावरण 14 मार्च 1995 को हुआ । 


महाराजा अग्रसेन सुपर  नेशनल हाइवे – दिल्ली से कन्याकुमारी तक


महाराजा अग्रसेन जी पर डाक टिकट 24 सितंबर 1976 को भारत सरकार ने जारी किया।


                                        
अग्रोहा – अग्रवालों की पितृभूमि, हिसार(हरियाणा) जिले में है, अग्रोहा को पांचवा धाम माना गया है।


अग्रोहा की रीति – एक ईंट और एक मुद्रा( रूपया ) 


लाला हरभजन शाह (महम निवासी) – अग्रोहा को दोबारा बसाया। इनको श्रीचंद नामक व्यापारी के पत्र से यह प्रेरणा मिली।


अग्रवालों की कुलदेवी - महालक्ष्मी


अग्रोहा में प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा को महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।


अग्रोहा के दर्शनीय स्थल – शक्ति सरोवर, मंदिर जैसे – महाराजा अग्रसेन, कुलदेवी महालक्ष्मी, माता सरस्वती, शक्ति माता शीला, माता वैष्णोदेवी, हनूमान जी की 90 फीट ऊंची प्रतिमा, अप्पू घर, महाराजा अग्रसेन मेडिकल कॉलेज व अस्‍पताल,  पुराने किले के अवशेष आदि...


स्व . श्री तिलक राज अग्रवाल – शीला माता के भव्य  मंदिर का निर्माण करवाया।
अग्रोहा में मेडिकल कॉलेज व अस्पताल का उद्घाटन 7 अगस्त 1994 को हुआ।


अग्रोहा धाम – राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 10 के हिसार जिले में है।


लाला हरभजन शाह – इन्होंने परलोक के भुगतान पर कर्ज दिया ।
                                               


अग्रवाल - महाराजा अग्रसेन जी के वंशज अग्रवाल कहलाते हैं। यह राष्ट्र का एक महत्वपूर्ण घटक है और इसकी परम्पराएं महान हैं। इसने कभी भी जाति की संकीर्ण भावनाओं को प्रोत्साहन नहीं दिया। अग्रवाल समाज की राष्ट्रीय व सामाजिक सेवाओं का प्रसार मानव मात्र से लेकर पशु-पक्षियों, चर-अचर तथा सृष्टि के समस्तप प्राणियों तक में दिखाई देता है।  इस जाति का संबंध वैश्य समुदाय से है। इस जाति में गौत्र की शानदार परंपरा रही है, इसकी कारण आज भी इस जाति की गणना विश्व की श्रेष्ठ जातियों में होती है। इस समाज की सबसे बड़ी विशेषता उसकी व्यवसाय एवं उद्योग क्षमता है। 

दूसरी – अद्भुत पुरूषार्थ, साहस, हिम्मत व धैर्य...

तीसरी – सरलता, सादगी एवं मितव्ययता है। 

अग्रवाल समाज में लोकोपकार एवं दानशीलता की भावना मां की जन्म घूटी के साथ ही मिलने लगती है। ये हमेशा अपनी साख पर ध्यान रखते हैं। अग्रवालों की यह भी विशेषता रही है कि वह जहां भी जाता है, वहीं का हो जाता है। राष्ट्रीय उत्थान में अग्रवालों का योगदान इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ है। इतिहास साक्षी है कि जब तक वैश्य अग्रवालों के हाथ में कृषि, गौरक्षा और वाणिज्य् का कार्य रहा... भारत सोने की चिड़िया कहलाया... स्वतंत्रता आंदोलन में हजारों अग्रवालों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। यह समाज वीरता एवं त्याग के क्षेत्र में भी अग्रणी रहा है।

🙏🏻 जय श्री अग्रसेन जी महाराज

Electromagnetism

"एलेक्ट्रोमग्नेटिस्म" यूरोप वालों का खोजा हुआ सिद्धांत नहीं, ये हमारे ऋग्वेद में हज़ारों सालों से हैं.

आज आपको मॉडर्न स्कूलों में विज्ञान की किताब में एक सिद्धांत पढ़ाया जाता है जिसे "एलेक्ट्रोमग्नेटिस्म" कहा जाता है, आपने
भी विज्ञान की किताब में इस सिद्धांत को पढ़ा
होगा, बताया जाता है की ये सिद्धांत यूरोप के वैज्ञानिको ने खोजा है और मानवता को यूरोप वालों ने बड़ा ज्ञान दिया हैं.
चलिए इस सिद्धांत को भी यूरोप वालो ने अपना बता दिया, इस सिद्धांत के पीछे सारा श्रेय दे दिया गया यूरोप के लोगों को
जिनमे - हंस क्रिस्चियन, आंद्रे मरिए एम्पियर, माइकल फैराडे, जेम्स क्लर्क मैक्सवेल प्रमुख है, बताया जाता है कि एलेक्ट्रोमग्नेटिस्म का अविष्कार इनका किया हुआ है, इन्होने
एलेक्ट्रोमग्नेटिस्म की खोज की और मानवता
की सेवा की
आपको बता दें की ये तमाम लोग 17वी
शताब्दी के बाद के लोग है, यानि 250-300 साल पहले ही ये लोग जन्मे थे, पर ऋग्वेद इसका इतिहास तो 5000 साल से ज्यादा पुराना है, आपको हम ऋग्वेद में एलेक्ट्रोमग्नेटिस्म का
सिद्धांत कहाँ दिया हुआ है वो बताते है,
ऋग्वेद 1.119.10
ऋग्वेद साफ़ कहता है कि - अगर आप 2
चुम्बकीये पोल के बीच में धातु की तार को घुमाएंगे, तो उस से ऊर्जा उत्पन्न होगी, मतलब
अगर आप साउथ पोल और नार्थ पोल के बीच में धातु को घुमाएंगे तो उस से इलेक्ट्रो मैग्नेटिक ऊर्जा उत्पन्न होगी और उस ऊर्जा का इस्तेमाल विभिन्न तरीको से किया जा सकता है, संचार के लिए, सैन्य जरूरतों के लिए...
साफ़ है कि एलेक्ट्रोमग्नेटिस्म की जानकारी और ये सिद्धांत हमारे ऋग्वेद में हज़ारों सालों से
है, पर हमे बताया जाता है की यूरोप वालो ने
एलेक्ट्रोमग्नेटिस्म की खोज की, यूरोप वालों ने
खोज तो जरूर की पर हमारे ही ऋग्वेद से
चुराकर, हमने अपने वेदों का अपमान किया और यूरोप वालों ने सम्मान और सारे सिद्धांत आज उनके नाम से चल रहे है, याद रखें हिटलर
भी भारतीय वेदों और ज्ञान को जानता था और
उसने बाकायदा एक वैज्ञानिको की टीम भारत
और हिमालय तथा तिब्बत में भेजी हुई थी,
जाओ और भारत से विभिन्न सिद्धांत लाओ !

बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने साथ बाज़ ही क्यों रखा कोई और पंछी क्यों नहीं ?

इस का एक मात्र कारण ये था कि गुरु गोबिंद सिंह जी जो भी करते थे, उसके पीछे कोई सन्देश जरुर होता था।
इसके पीछे भी था -  

पहला गुण - बाज़ को कभी गुलाम नहीं रख सकते या तो वो पिंजरा तोड़ देगा या मर जायगा लेकिन गुलाम नहीं रहेगा।

दूसरा गुण - बाज़ कभी किसी का किया हुआ शिकार नहीं खाता।

तीसरा गुण  -  बाज़ बहुत ऊपर उड़ता है लेकिन इतना ऊपर उड़ने के बाद भी उसकी नज़र हमेशा ज़मीन पर ही होती हैं। 

चौथा गुण  -  बाज़ सारी  जिंदगी कभी अपने पास आलस नहीं आने देता।

पांचवां गुण  - बाज़ कभी अपना घर या घोंसला नहीं बनाता, 18वीं सदी में सिक्ख भी ऐसा ही करते थे।

छठवां  गुण - बाज़ दूसरे पंछियो के समान हवा के साथ नहीं बल्कि हवा के विपरीत दिशा में उड़ता हैं।


श्री गुरु गोबिंद साहब की सोच को शत्-शत नमन 🙏🏻⛳

मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

कल बाजार में फल खरीदने गया तो देखा कि एक फल की रेहड़ी की छत से एक छोटा सा बोर्ड लटक रहा था,उस पर मोटे अक्षरों से लिखा हुआ था...

"घर मे कोई नहीं है, मेरी बूढ़ी माँ बीमार है, मुझे थोड़ी थोड़ी देर में उन्हें खाना, दवा और टायलट कराने के लिए घर जाना पड़ता है, अगर आपको जल्दी है तो अपनी मर्ज़ी से फल तौल लें रेट साथ में लिखें हैं। पैसे कोने पर गत्ते के नीचे रख दें। धन्यवाद"
अगर आपके पास पैसे नहीं हो तो मेरी तरफ से ले लेना, इजाजत है..!!
मैंने इधर उधर देखा, पास पड़े तराजू में दो किलो सेब तोले दर्जन भर केले लिए, बैग में डाले, प्राइज़ लिस्ट से कीमत देखी, पैसे निकाल कर गत्ते को उठाया वहाँ सौ पच्चास और दस दस के नोट पड़े थे, मैंने भी पैसे उसमें रख कर उसे ढक दिया। बैग उठाया और अपने फ्लैट पे आ गया, रात को खाना खाने के बाद मैं और भाई उधर निकले तो देखा एक कमज़ोर सा आदमी, दाढ़ी आधी काली आधी सफेद, मैले से कुर्ते पजामे में रेहड़ी को धक्का लगा कर बस जाने ही वाला था, वो हमें देख कर मुस्कुराया और बोला "साहब! फल तो खत्म हो गए"
उसका नाम पूछा तो बोला: "सीताराम"
फिर हम सामने वाले ढाबे पर बैठ गए। चाय आयी, कहने लगा "पिछले तीन साल से मेरी माता बिस्तर पर हैं, कुछ पागल सी भी हो गईं है और अब तो फ़ालिज भी हो गया है, मेरी कोई संतान नहीं है, बीवी मर गयी है, सिर्फ मैं हूँ और मेरी माँ.! माँ की देखभाल करने वाला कोई नहीं है इसलिए मुझे ही हर वक़्त माँ का ख्याल रखना पड़ता है"
एक दिन मैंने माँ के पाँव दबाते हुए बड़ी नरमी से कहा, *माँ ! तेरी सेवा करने को तो बड़ा जी चाहता है पर जेब खाली है और तू मुझे कमरे से बाहर निकलने नही देती, कहती है तू जाता है तो जी घबराने लगता है, तू ही बता मै क्या करूँ?" न मेरे पास.कोई जमा पूंजी है।*
ये सुन कर माँ ने हाँफते काँपते उठने की कोशिश की। मैंने तकिये की टेक लगवाई, उन्होंने झुर्रियों वाला चेहरा उठाया अपने कमज़ोर हाथों को ऊपर उठाया मन ही मन राम जी की स्तुति की फिर बोली...
*"तू रेहड़ी वहीं छोड़ आया कर हमारी किस्मत हमें इसी कमरे में बैठ कर मिलेगा"*
"मैंने कहा माँ क्या बात करती हो, वहाँ छोड़ आऊँगा तो कोई चोर उचक्का सब कुछ ले जायेगा, आजकल कौन लिहाज़ करता है? और बिना मालिक के कौन फल खरीदने आएगा?"
कहने लगीं "तू राम का नाम लेने के बाद बाद रेहड़ी को फलों से भरकर छोड़ कर आजा बस, ज्यादा बक बक नहीं कर, शाम को खाली रेहड़ी ले आया कर, अगर तेरा रुपया गया तो मुझे बोलियो"
*ढाई साल हो गए हैं भाई साहब सुबह रेहड़ी लगा आता हूँ शाम को ले जाता हूँ, लोग पैसे रख जाते हैं फल ले जाते हैं, एक धेला भी ऊपर नीचे नहीं होता,* बल्कि कुछ तो ज्यादा भी रख जाते हैं, कभी कोई माँ के लिए फूल रख जाता है, कभी कोई और चीज़! परसों एक बच्ची पुलाव बना कर रख गयी साथ में एक पर्ची भी थी "अम्मा के लिए"
एक डॉक्टर अपना कार्ड छोड़ गए पीछे लिखा था माँ की तबियत नाज़ुक हो तो मुझे काल कर लेना मैं आ जाऊँगा, कोई खजूर रख जाता है, रोजाना कुछ न कुछ मेरे हक के साथ मौजूद होता है।
*न माँ हिलने देती है न मेरे राम कुछ कमी रहने देते हैं माँ कहती है तेरा फल मेरा राम अपने फरिश्तों से बिकवा देता है।

आखिर में इतना ही कहूँगा की अपने मां बाप की खिदमत करो, और देखो दुनिया की कामयाबियाँ कैसे हमारे कदम चूमती हैं ।