रविवार, 19 मई 2019

हिन्दुओं में विवाह रात्रि में क्यों होने लगे ?

क्या कभी आपने सोचा है कि हिन्दुओं में रात्रि को विवाह क्यों होने लगे हैं, जबकि हिन्दुओं में रात में शुभकार्य करना अच्छा नहीं माना जाता है ?
रात को देर तक जागना और सुबह को देर तक सोने को, राक्षसी प्रवृति बताया जाता हैं। रात में जागने वाले को निशाचर कहते हैं।
केवल तंत्र सिद्धि करने वालों को ही रात्रि में हवन यज्ञ की अनुमति है।
वैसे भी प्राचीन समय से ही सनातन धर्मी हिन्दू दिन के प्रकाश में ही शुभ कार्य करने के समर्थक रहे हैं। तब हिन्दुओं में रात की विवाह की परम्परा कैसे पड़ी ?
कभी हम अपने पूर्वजों के सामने यह सवाल क्यों नहीं उठाते हैं या स्वयं इस प्रश्न का हल क्यों नहीं खोजते हैं ?
दरअसल भारत में सभी उत्सव, सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं संस्कार दिन में ही किये जाते थे। सीता और द्रौपदी का स्वयंवर भी दिन में ही हुआ था। शिव विवाह से लेकर संयोगिता स्वयंवर आदि सभी शुभ कार्यक्रम दिन में ही होते थे।
प्राचीन काल से लेकर मुगलों के आने तक भारत में विवाह दिन में ही हुआ करते थे। मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत पर हमले करने के बाद ही, हिन्दुओं को अपनी कई प्राचीन परम्पराएं तोड़ने को विवश होना पड़ा था।
मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा भारत पर अतिक्रमण करने के बाद भारतीयों पर बहुत अत्याचार किये गये। यह आक्रमणकारी हिन्दुओं के विवाह के समय वहां पहुंचकर लूटपाट मचाते थे। अकबर के शासन काल में, जब अत्याचार चरमसीमा पर थे, मुग़ल सैनिक हिन्दू लड़कियों को बलपूर्वक उठा लेते थे और उन्हें अपने आकाओं को सौंप देते थे।
भारतीय ज्ञात इतिहास में सबसे पहली बार रात्रि में विवाह सुन्दरी और मुंदरी नाम की दो ब्राह्मण बहनों का हुआ था, जिनका विवाह दुल्ला भट्टी ने अपने संरक्षण में ब्राह्मण युवकों से कराया था।
उस समय दुल्ला भट्टी ने अत्याचार के खिलाफ हथियार उठाये थे। दुल्ला भट्टी ने ऐसी अनेकों लड़कियों को मुगलों से छुड़ाकर, उनका हिन्दू लड़कों से विवाह कराया। उसके बाद मुस्लिम आक्रमणकारियों के आतंक से बचने के लिए हिन्दू रात के अँधेरे में विवाह करने पर मजबूर होने लगे लेकिन रात्रि में विवाह करते समय भी यह ध्यान रखा जाता है कि गीत-संगीत, जयमाला आदि भले ही रात्रि में हो जाए लेकिन वैदिक मन्त्रों के साथ फेरे प्रातः पौ फटने के बाद ही हों।
पंजाब से प्रारम्भ हुई परंपरा को पंजाब में ही समाप्त किया गया।
फिल्लौर से लेकर काबुल तक महाराजा रंजीत सिंह का राज हो जाने के बाद उनके सेनापति हरीसिंह नलवा ने सनातन वैदिक परम्परा अनुसार दिन में खुले आम विवाह करने और उनको सुरक्षा देने की घोषणा की थी।
हरीसिंह नलवा के संरक्षण में हिन्दुओं ने दिनदहाड़े बैंडबाजे के साथ विवाह शुरू किये।
तब से पंजाब में फिर से दिन में विवाह का प्रचालन शुरू हुआ। पंजाब में अधिकांश विवाह आज भी दिन में ही होते हैं।
महाराष्ट्र एवम् अन्य राज्य भी धीरे धीरे अपनी जड़ों की ओर लोटने लगे हैं ।
हरीसिंह नलवा ने मुसलमान बने हिन्दुओं की घर वापसी कराई, हिन्दू धर्म की परम्पराओं को फिर से स्थापित किया।
साक्षी सूर्य के प्रतीक स्वरूप अग्नि को ही माना जाता हैं, इसीलिए अग्नि के ही चारों ओर फेरे लिए जाने की विधि है।
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार भी गायत्री परिवार में विवाह दिन में ही सम्पन्न किये जाते हैं।
आज भी हम भारत के लोग, खासकर उत्तर प्रदेश एवं बिहार के लोग, जबकि 400 साल हो गए मुगल यहां से चले गए, किन्तु आज भी उसे परंपरा मानकर उसे चला रहे हैं! असल में हम गुलामी की मानसिकता से उबरना ही नहीं चाहते हैं।
आप सभी से विनम्र निवेदन है कि इस प्रथा पर आप सब एक बार अवश्य विचार करें एवं अपनी धुरी पर अवश्य वापस लौटें।

मंगलवार, 14 मई 2019

नोटबन्दी की कहानी

दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला खुलेगा 2019 के बाद जो शायद दुनिया मे कही नही हुआ होगा और इस महाघोटाले का मुख्य अभियुक्त हैं, चिदंबरम...
इसको पढ़िए की क्यों किया गया अचानक नोटबन्दी का फैसला और क्यों टूट गयी पाकिस्तान की अर्थव्यस्था। सबूत भी बाहर आएंगे जांच हो रही हैैं, इसको पढ़के आपके पैर के नीचे से ज़मीन खिसक जाएगी‌।

पीएम मोदी ने नोटबंदी करके इस घोटाले को रोक तो दिया, मगर उसके बाद ये बात निकल कर सामने आयी कि देश में बिलकुल असली जैसे दिखने वाले एक ही नंबर के कई नोट चल रहे थे. ये ऐसे नोट थे, जिन्हे पहचानना लगभग नामुमकिन था क्योकि ये उसी कागज़ पर छपे थे जिसपर भारत सरकार नोट छपवाती हैं।

समाचार के अनुसार डे ला रू जोकि एक ब्रिटिश कंपनी है, इसके साथ मिलकर तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम एक बड़ा खेल खेल रहे थे, जिसमे उनके एडिशनल सचिव अशोक चावला और वित्त सचिव अरविंद मायाराम भी शामिल थे‌।

कैसा खेला गया घोटाले का खेल?

कहा जा रहा है कि घोटाले का प्रारम्भ 2005 में तब हुई जब वित्त मंत्रालय में अरविन्द मायाराम वित्त सचिव के पद पर थे और अशोक चावला एडिशनल सचिव के पद पर थे। कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद 2006 में सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मींटिंग कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड एक कंपनी बनाई गयी, जिसके मैनेजिंग डायरेक्टर अरविंद मायाराम थे और चेयरमैन अशोक चावला थे। यानी दो सरकारी अधिकारी पद पर रहते हुए इस कंपनी को चला रहे थे।

बिना एसीसी के अनुमोदन के एमडी और चेयरमैन की नियुक्ति...

इस प्रकार नियुक्तियों के लिए अपॉइंटमेंट्स कमिटी ऑफ़ कैबिनेट (ACC) के सामने विषय को रखकर उसके अनुमोदन की आवश्यकता होती है, किन्तु चिदंबरम ने भला कब नियम-कायदों की परवाह की..? जो अब करते अर्थात् ACC के सामने इन नियुक्तियों का विषय लाया ही नहीं गया और ऐसे ही इनकी नियुक्ति कर दी गयी।

इसके बाद असली खेल शुरू हुआ. इस घोटाले में चिदंबरम के दाएं व बाएं हाथ बताये जाने वाले अशोक चावला व अरविंद मायाराम ने भारतीय रिज़र्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड (BRBNMPL), जोकि नोटों की छपाई का काम देखती हैं। उससे कहा कि उनकी कंपनी के साथ मिलकर सिक्योरिटी पेपर प्रिंटिंग के सप्लायर को ढूंढो, जिसके बाद पहले से ब्लैकलिस्टेड की जा चुकी डे ला रू कंपनी से नोटों की छपाई में इस्तमाल होने वाले सिक्योरिटी पेपर को लेना जारी रखा गया‌।

क्या इसके लिए चिदंबरम को घूस दी गयी थी? इस ब्रिटिश कंपनी द्वारा या पाकिस्तान के आईएसआई द्वारा चिदंबरम को पैसा दिया जा रहा था? ये जांच का विषय हैं! बहरहाल पहले जानते हैं कि डे ला रू को क्यों बैन किया गया था और पाक आईएसआई का इस घोटाले में क्या भूमिका है?

डे ला रू कंपनी का खेल...

दरअसल वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान नकली मुद्रा रैकेट का पता लगाने के लिए सीबीआई ने भारत नेपाल सीमा पर विभिन्न बैंकों के करीब 70 शाखाओ पर छापेमारी की, तो बैंकों से ही नकली करेंसी पकड़ी गयी। जब पूछताछ के गयी तो उन बैंक शाखाओं के अधिकारियों ने सीबीआई से कहा कि जो नोट सीबीआई ने छापें में बरामद किये हैं वो तो स्वयं रिजर्व बैंक से ही उन्हें मिले हैं।

ये एक बेहद गंभीर खुलासा था क्योंकि इसके अनुसार आरबीआई भी नकली नोटों के खेल में संलिप्त लग रहा था! हांलाकि इतनी अहम खबर को इस देश की मीडिया ने दिखाना आवश्यक नहीं समझा क्योकि उस समय कांग्रेस सत्ता में थी‌।

इस खुलासे के बाद सीबीआई ने भारतीय रिजर्व बैंक के तहखानो में भी छापेमारी की और आश्चर्यजनक तरीके से भारी मात्रा में 500 और 1000 रुपये के जाली नोट पकडे गए। आश्चर्य की बात ये थी कि लगभग वैसे ही समान जाली मुद्रा पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा भारत में तस्करी से पहुँचाया जाता था।

अब प्रश्न उठा कि यह जाली नोट आखिर भारतीय रिजर्व बैंक के तहखानो में कैसे पहुंच गए? आखिर ये सब देश में चल क्या रहा था?

जांच के लिए शैलभद्र कमिटी का गठन हुआ और 2010 में कमिटी उस वक़्त चौंक गयी जब उसे ज्ञात हुआ कि भारत सरकार द्वारा ही समूचे राष्ट्रकी आर्थिक संप्रभुता को दांव पर रख कर कैसे अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी को 1 लाख करोड़ की छपाई का ठेका दिया गया था!

जाँच हुई तो ज्ञात हुआ कि डे ला रू कंपनी में ही घोटाला चल रहा था। एक षड्यंत्र के तहत भारतीय करेंसी छापने में उपयोग होने वाले सिक्योरिटी पेपर की सिक्योरिटी को घटाया जा रहा था ताकि पाकिस्तान सरलता से नकली भारतीय करेंसी छाप सके और इसका उपयोग भारत में आतंकवाद फैलाने में किया जा सके।

इस समाचार के सामने आते ही भारत सरकार द्वारा डे ला रू कंपनी पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया‌। मगर अरविन्द मायाराम ने इस ब्लैकलिस्टेड कंपनी से सिक्योरिटी पेपर लेना जारी रखा। इसे लेने के लिए उसने गृह मंत्रालय से अनुमति ली। कहा गया कि ये फाइल चिदंबरम को दिखाई ही नहीं गयी, जबकि ये बात मानने लायक ही नहीं क्योकि वित्त मंत्रालय से यदि गृहमंत्रालय को कोई भी पत्र भेजा जाता है तो पहले अप्रूवल के लिए वित्तमंत्री के सामने पेश किया जाता हैं।

क्या है पाक आईएसआई की भूमिका?

समाचार के अनुसार डे ला रू कंपनी से भारत को दिए जाने वाले सिक्योरिटी पेपर के सिक्योरिटी फीचर को कम किया जा रहा था, ये कंपनी पाकिस्तान के लिए भी सिक्योरिटी पेपर छापने का काम करती हैं। जिसके बाद ये आरोप लगे कि इस कंपनी द्वारा भारत का सिक्योरिटी पेपर पाकिस्तान को गुपचुप तरीके से दिया जा रहा था ताकि भारत के नकली नोट छापने में पाक को सरलता हो।

यहाँ पाक आईएसआई का नाम सामने आया कि आईएसआई की ओर से कंपनी के कर्मचारियों को घूस दी जाती थी। मगर इस खेल में अरविंद मायाराम क्यों शामिल थे? क्यों वो ब्लैकलिस्टेड कंपनी से पेपर लेते रहे?

मोदी सरकार ने लिया एक्शन...

जब 2014 में मोदी सरकार सत्ता में आयी, तब गृहमंत्री राजनाथ सिंह को ये बात पता चली की इतना बड़ा गोलमाल चल रहा था। इसके बाद उन्होंने सिक्योरिटी पेपर डे ला रू कंपनी से लेना बंद करवाया। ये भी सामने आया कि इस कंपनी से सिक्योरिटी पेपर काफी महंगे दाम पर खरीदा जा रहा था, यानी ये कंपनी देश को लूट रही थी और देश का वित्तमंत्रालय इस काम में विदेशी कंपनी की मदद कर रहा था।

मायाराम के इस कालेकारनामे की खबर पीएमओ को हुई तो पीएमओ ने गंभीरता पूर्वक इस मामले को उठाया और मुख्य सतर्कता आयुक्त द्वारा इसकी जांच करवाई। मुख्य सतर्कता आयुक्त द्वारा वित्तमंत्रालय से इससे जुडी फाइल मांगी गयी। इस वक़्त वित्तमंत्री अरुण जेटली बन चुके थे, मगर इसके बावजूद वित्तमंत्रालय द्वारा फाइल देने में देर की गयी।

इसके बाद ये मामला पीएमओ से होता हुआ सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संज्ञान में आया और फिर मोदी ने खुद एक्शन लिया, तब जाकर मुख्य सतर्कता आयुक्त के पास फाइल पहुंची‌। क्या जेटली ने फाइलें देने में देर करवाई या फिर कोंग्रेसी चाटुकारों ने जो वित्तमंत्रालय तक में बैठे हैं? ये बात साफ़ नहीं हो पायी।

नोटबंदी ना करते मोदी तो नकली करेंसी का ये खेल चलता ही रहता। डे ला रू से सिक्योरिटी पेपर लेना बंद किया। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने और पीएम मोदी ने की नोटबंदी, जिसके कारण पाकिस्तान द्वारा नकली करेंसी की छपाई बेहद कम हुई और यही कारण है कि कांग्रेस के दस वर्षों में आतंकवादी घटनाएं जो आम हो गयी थी, वो मोदी सरकार के काल में ना के बराबर हुई।

कश्मीर के अलावा देश के किसी भी राज्य में बम ब्लास्ट नहीं हो पाए। आतंकियों तक पैसा पहुंचना जो बंद हो गया था‌। पीएम मोदी ने जांच करवाई और मायाराम के खिलाफ मुख्य सतर्कता आयुक्त और सीबीआई द्वारा आरोप तय किये गए‌।

आपको यहां ये भी बता दें कि जिस मायाराम के खिलाफ चार्ज फ्रेम किये गए हैं, उसी को राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने आर्थिक सलाहकार के पद पर नियुक्त कर लिया। यानी एक घपलेबाज को अपना आर्थिक सलाहकार बना लिया।

वही अशोक चावला का नाम चिदंबरम के एयरसेल-मैक्सिस घोटाले में भी सामने आया। जिसके बाद ने नेशनल स्‍टॉक एक्‍सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड के बोर्ड ऑफ डायरेक्‍टर्स के चेयरमैन व पब्लिक इंटरेस्‍ट डायरेक्‍टर पद से अशोक चावला को इस्तीफा देना पड़ा‌।

जुलाई 2018 में सीबीआई ने चिदंबरम को एयरसेल-मैक्सिस मामले में आरोपी बनाया था। सीबीआई ने चिदंबरम, उनके बेटे कार्ति और 16 अन्‍य के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी, जिसमें आर्थिक मामलों के पूर्व केंद्रीय सचिव अशोक कुमार झा, तत्‍कालीन अतिरिक्‍त सचिव अशोक चावला, संयुक्‍त सचिव कुमार संजय कृष्‍णा और डायरेक्‍टर दीपक कुमार सिंह, अंडर सेक्रेटरी राम शरण शामिल हैं।

इस पूरे मामले से ये बात तो साफ़ हो जाती है कि चिदंबरम ने देश में केवल एक या दो नहीं बल्कि जहाँ-जहाँ से हो सका, वहां-वहां से देश को लूटा। चदम्बरम व उसके बेटे कार्ति चिदंबरम ने मिलकर खूब लूटा और इस खेल में ना केवल नौकरशाह शामिल रहे बल्कि न्यायपालिका में भी कई चिदंबरम भक्त बैठे हैं, जो आज भी उसे जेल जाने से बचाते आ रहे हैं‌।

कहा जा रहा है कि सभी में लूट का माल मिलकर बंटता था और यदि चिदंबरम जेल गए तो सीबीआई व ईडी की कम्बल कुटाई उनसे एक दिन भी नहीं झेली जायेगी और वो सब उगल देंगे‌। यदि ऐसा हुआ तो सभी जेल जाएंगे। यही कारण है कि चिदंबरम को हर बार अग्रिम जमानत दे दी जाती हैं।

मगर ये भी तय माना जा रहा है कि यदि मोदी इस बार भी चुनाव जीतकर पीएम बन गए तो चिदंबरम का जेल जाना तय है और फिर कई अन्य गड़े मुर्दे भी बाहर आएंगे। देश को कैसे-कैसे और किस-किस ने लूटा, सबको एक-एक करके सजा होगी। कोंग्रेसी चाटुकार नौकरशाहों समेत माँ-बेटे व कई कोंग्रेसी नेता सलाखों के पीछे पहुंचेंगे।

सोमवार, 6 मई 2019

अक्षय तृतीया विशेष: शस्त्र और शास्त्र के अनूठे समन्वयक थे भगवान परशुराम

भगवान परशुराम का समूचा जीवन अनुपम प्रेरणाओं व उपलब्धियों से परिपूर्ण है। वे न सिर्फ ब्रह्मास्त् समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में पारंगत थे, बल्कि शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र की रचना उन्होंने ही की थी।


अक्षय तृतीया की पावन तिथि को इस धराधाम पर अवतरित भगवान परशुराम ऐसी अमर विभूति हैं, जिनके प्रतिपादित सिद्धांत आज भी अपनी प्रासंगिकता रखते हैं। अपने युग की सबसे बड़ी धार्मिक क्रांति के पुरोधा भगवान परशुराम की मान्यता थी कि स्वस्थ समाज की संरचना के लिए ब्रह्मशक्ति और शस्त्र शक्ति दोनों का समन्वय आवश्यक है। पौराणिक परंपरा के अष्ट चिरंजीवियों (अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, भगवान परशुराम तथा महर्षि मार्कण्डेय) की कड़ी में गिने जाने वाले महर्षि परशुराम को भगवान विष्णु के छठा अवतार माने जाते है।

भृगुकुल शिरोमणि परशुराम जी ऋषियों के ओज और क्षत्रियों के तेज दोनों का अद्भुत संगम माने जाते हैं। इनके माता-पिता ऋषि जमदग्नि व रेणुका दोनों ही विलक्षण गुणों से सम्पन्न थे। जहां जमदग्नि जी को आग पर नियंत्रण पाने का वरदान प्राप्त था, वहीं माता रेणुका को पानी पर नियंत्रण पाने का। देवराज इंद्र के वरदान के फलस्वरूप ऋषि दम्पती की पांचवीं संतान के रूप में बैसाख माह की तृतीया को जन्मे परशुराम जी का प्रारंभिक नाम राम था, जो कालान्तर में महादेव से परशु प्राप्त होने के बाद परशुराम हो गया। राम बालपन से ही बेहद साहसी, पराक्रमी, त्यागी व तपस्वी स्वभाव के थे। उन्होंने बहुत कम आयु में अपने पिता से धनुर्विद्या सीख ली थी। कहते हैं... महादेव शिव के प्रति विशेष श्रद्धा भाव के चलते एक बार बालक राम भगवान शंकर की आराधना करने कैलाश जा पहुंचे। वहां देवाधिदेव ने उनकी भक्ति और शक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अनेक अस्त्र-शस्त्रों सहित दिव्य परशु प्रदान किया। इस अमोघ परशु को धारण करने के बाद बालक राम परशुराम के नाम से विख्यात हो गये।

परशुराम जी की गणना महान पितृभक्तों में होती है। श्रीमद्भागवत में एक दृष्टान्त है कि एक बार माता रेणुका स्नान करने व हवन हेतु जल लाने गंगा तट गयीं। उस वक्त वहां गन्धर्वराज चित्ररथ अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे। रेणुका उनकी जलक्रीड़ा देखने में ऐसी निमग्न हो गयीं कि उन्हें समय का बोध ही न रहा। जमदग्नि ऋषि को जब अपनी पत्नी के उस मर्यादा विरोधी आचरण का पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर अपने पुत्रों को मां का शीश काटने की आज्ञा दी। प्रथम चारों पुत्रों ने पिता की आज्ञा नहीं मानी, किन्तु परशुराम ने पिता की आज्ञा पालन कर मां का सिर काट दिया। कहते हैं कि अपनी आज्ञा की अवहेलना से क्रोधित हो जमदग्नि ने जहां अपने चार पुत्रों को जड़ हो जाने का श्राप दिया, वहीं परशुराम से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा। तब परशुराम ने पिता से वरदान में माता तथा अपने चारों भाइयों का पुनर्जीवन मांग कर न सिर्फ अपने हृदय की विशालता का परिचय दिया अपितु अपने पिता को भी उनकी भूल का भान करा दिया।


परशुराम जी का समूचा जीवन अनुपम प्रेरणाओं व उपलब्धियों से परिपूर्ण है। वे न सिर्फ ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में पारंगत थे अपितु योग, वेद और नीति तथा तंत्र कर्म में भी निष्णात थे। शिव पंचचत्वारिंशनाम स्तोत्र की रचना परशुराम जी ने ही की थी। कहते हैं वो पशु-पक्षियों तक की भाषा समझते थे और उनसे बात कर सकते थे। खूंखार वन्यजीव उनके स्पर्श मात्र से ही उनके मित्र बन जाते थे। इन्हें श्रेष्ठ राजनीति मूल्यों का प्रतिष्ठाता माना गया है जो शासन में मानवीय गरिमा की सर्वोच्चता के पक्षधर थे। अन्याय के विरुद्ध आवेशपूर्ण आक्रामकता के विशिष्ट गुण के कारण उन्हें भगवान विष्णु के 'आवेशावतार' की संज्ञा दी गयी है। न्याय के प्रति उनका समर्पण इतना था कि उन्होंने हमेशा अन्यायी को खुद ही दंडित किया। दुनिया भर में शस्त्रविद्या के महान गुरु के नाम से विख्यात भगवान परशुराम ने महाभारत युग में भी अपने ज्ञान से कई महारथियों को शस्त्र विद्या प्रदान की थी।

जिस प्रकार देवनदी गंगा को धरती पर लाने का श्रेय राजा भगीरथ को जाता है, ठीक उसी प्रकार पहले ब्रह्मकुंड (परशुराम कुंड) से और फिर लौहकुंड (प्रभु कुठार) पर हिमालय को काटकर ब्रह्मपुत्र जैसे उग्र महानद को धरती पर लाने का श्रेय परशुराम जी को ही जाता है। यह भी कहा जाता है कि गंगा की सहयोगी नदी रामगंगा को वे अपने पिता जमदग्नि की आज्ञा से धरा पर लाये थे। तमाम पौराणिक उद्धरणों के अनुसार केरल, कन्याकुमारी व रामेश्वरम की संस्थापना भगवान परशुराम ने ही की थी। उन्होंने जिस स्थान पर तपस्या की थी, वह स्थान आज तिरुअनंतपुरम के नाम से प्रसिद्ध है। केरल में आज भी पुरोहित वर्ग संकल्प मंत्र में परशुराम क्षेत्र का उच्चारण कर उक्त समूचे क्षेत्र को परशुराम की धरती की मान्यता देता है। विदेहराज जनक की राजसभा में सीता स्वयंवर के दौरान श्रीराम द्वारा शिवधनुष तोड़ने पर परशुरामजी का क्रोध व राम के अनुज लक्ष्मण से उनका संवाद सनातनधर्मियों में सर्वविदित है; मगर उनकी महानता इस बात में है कि ज्यों ही उन्हें अवतारी श्रीराम के शौर्य, पराक्रम व धर्मनिष्ठा का बोध हुआ और उनको योग्य क्षत्रिय कुलभूषण प्राप्त हो गया तो उन्होंने स्वत: दिव्य परशु सहित अपने समस्त अस्त्र-शस्त्र राम को सौंप दिये और महेन्द्र पर्वत पर तप करने के लिए चले गये। कांवड़ यात्रा का शुभारंभ परशुराम जी ने किया था। अंत्योदय की बुनियाद भी परशुराम जी ने ही डाली थी। समाज सुधार और समाज के शोषित-पीडि़त वर्ग को कृषिकर्म से जोड़कर उन्हें स्वावलंबन का पाठ पढ़ाने में भी परशुराम जी की महती भूमिका रही है।


पाप संहारक परशुराम

सर्वविदित है कि परशुराम जी का क्षत्रियों के विरुद्ध अस्त्र उठाना उनकी उस अन्याय के विरुद्ध प्रबल प्रतिक्रिया थी जो महिष्मती राज्य के उस काल के हैहयवंशीय क्षत्रिय शासक आम प्रजा पर कर रहे थे, निर्दोष पिता की हत्या ने उनकी क्रोधाग्नि में घी का काम किया।

कहते हैं, उन दिनों महिष्मती राज्य का हैहय क्षत्रिय कार्तवीर्य सहस्रार्जुन राजमद में मदान्ध था। समूची प्रजा उसके क्रूर अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर कर ही थी। भृगुवंशीय ब्राह्मणों (परशुरामजी के वंशजों) ने जब उसे रोकने का प्रयत्न किया तो अहंकार में भरे सहस्रार्जुन ने उनके आश्रम पर धावा बोलकर उसे तहस-नहस कर दिया। इस पर भी क्रोध शांत न हुआ तो उसने परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्नि पर हमला बोलकर उन्हें 21 स्थानों से काटकर मार डाला। तब परशुराम जी ने अपने परशु से कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन को उसके समूचे कुल समेत मृत्युलोक पहुंचा दिया। 

संग्रह का नहीं, दान का महापर्व

अक्षय तृतीया को ईश्वरीय तिथि माना जाता है। इस दिन बिना पंचाग देखे कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन सतयुग एवं त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में भगवान परशुराम, नर-नारायण एवं हयग्रीव आदि तीन अवतार अक्षय तृतीया के दिन ही प्रकट हुए थे। तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के पट भी अक्षय तृतीया को खुलते हैं। वृंदावन के बांके बिहारी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया को होते हैं। तृतीया तिथि मां गौरी की तिथि है जो बल-वुद्धिवर्धक मानी गयी है। जीवन में सुख, शांति, सौभाग्य तथा समृद्धि हेतु इस दिन शिव-पार्वती और नर-नारायण का पूजन शुभ फलदायी माना गया है।

भारतीय मनीषियों की मान्यता है कि वैशाख मास के शुक्लपक्ष की तृतीया में ऐसी दिव्य ऊर्जा है कि इस दिन किया जाने वाला जप-तप, दान, हवन, तीर्थस्थान का पुण्यफल अक्षय हो जाता है। वैशाख मास में भगवान सूर्य की तेज धूप तथा प्रचंड गर्मी से प्रत्येक जीवधारी भूख-प्यास से व्याकुल हो उठता है, इसलिए प्यासे को पानी पिलाना व यथा सामर्थ्य दान-पुण्य करना इस तिथि का सर्वप्रथम संदेश है।