मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

विश्व की अब तक की सबसे महंगी जमीन...

#अभूतपूर्व_अद्वितीय_पूज़्यनीय_अद्भुत 

मित्रों... क्या आप जानते हैं कि विश्व में आज तक की सबसे महंगी ज़मीन कहाँ पर बिकी हैं..?

लंदन में..? पैरिस में.. न्यू यॉर्क में..? नहीं...
विश्व में आज तक किसी एक भूमि के टुकड़े का सबसे अधिक दाम चुकाया गया हैं। हमारे भारत में ही पंजाब में स्थित में...
और विश्व की इस सबसे महंगी भूमि को ख़रीदने वाले महान व्यक्ति का नाम था... दीवान टोडर मल

गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे-छोटे साहिबज़ादों बाबा फ़तह सिंह और बाबा ज़ोरावर सिंह की शहादत की दास्तान शायद आप सबने कभी ना कभी, कहीं ना कहीं से सुनी होगी... 
यहीं सिरहिन्द के फ़तहगढ़ साहिब में मुग़लों के तत्कालीन फ़ौजदार वज़ीर खान ने दोनो साहिबज़ादों को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया था।
दीवान टोडर मल जो कि इस क्षेत्र के एक धनी व्यक्ति थे और गुरु गोविंद सिंह जी एवं उनके परिवार के लिए अपना सब कुछ क़ुर्बान करने को तैयार थे, उन्होंने वज़ीर खान से साहिबज़ादों के पार्थिव शरीर की माँग की और वह भूमि जहाँ वह शहीद हुए थे। वहीं पर उनकी अंत्येष्टि करने की इच्छा प्रकट की...
वज़ीर खान ने धृष्टता दिखाते हुए भूमि देने के लिए एक अटपटी और अनुचित माँग रखी... वज़ीर खान ने माँग रखी कि इस भूमि पर सोने की मोहरें बिछाने पर जितनी मोहरें आएँगी, वही इस भूमि का दाम होगा... 
दीवान टोडर मल के अपने सब भंडार ख़ाली करके जब मोहरें भूमि पर बिछानी शुरू कीं तो वज़ीर खान ने धृष्टता की पराकाष्ठा पार करते हुए कहा कि मोहरें बिछा कर नहीं... बल्कि खड़ी करके रखी जाएँगी... ताकि अधिक से अधिक मोहरें वसूली जा सकें... ख़ैर... दीवान टोडर माल ने अपना सब कुछ बेच-बाच कर और मोहरें इकट्ठी कीं और 78000 सोने की मोहरें देकर चार गज़ भूमि को ख़रीदा ताकि गुरु जी के साहिबज़ादों का अंतिम संस्कार वहाँ किया जा सके...
विश्व के इतिहास में ना सिरहिन्द जैसे त्याग की कहीं कोई और मिसाल मिलती हैं, ना ही कहीं पर किसी भूमि के टुकड़े का इतना भारी मूल्य कहीं और आज तक चुकाया गया।

जब बाद में गुरु गोविन्द सिंह जी को इस बारे में पता चला तो उन्होंने दीवान टोडर मल से कृतज्ञता प्रकट की और उनसे कहा की... वे उनके त्याग से बहुत प्रभावित हैं और उनसे इस त्याग के बदले में कुछ माँगने को कहा...

ज़रा सोचिए... 
दीवान टोडर मल ने क्या माँगा होगा... गुरु जी से...
दीवान जी ने गुरु जी से जो माँगा... उसकी_कल्पना_करना_भी_असम्भव_है !

दीवान टोडर मल जी ने गुरु जी से कहा कि यदि कुछ देना ही चाहते हैं तो कुछ ऐसा वर दीजिए की 'मेरे घर पर कोई पुत्र ना जन्म लें और मेरी वंशावली यहीं मेरे साथ ही समाप्त हो जाए। इस अप्रत्याशित माँग पर गुरु जी सहित सब लोग हक्के-बक्के रह गए... गुरु जी ने दीवान जी से इस अद्भुत माँग का कारण पूछा तो दीवान जी का उत्तर ऐसा था जो रोंगटे खड़े कर दें...
दीवान टोडर मल ने उत्तर दिया कि गुरु जी... यह जो भूमि इतना महंगा दाम देकर ख़रीदी गयी और आपके चरणों में न्योछावर की गयी, मैं नहीं चाहता की कल को मेरे वंश आने वाली नस्लों में से कोई कहे कि यह भूमि मेरे पुरखों ने ख़रीदी थी।
यह थी निस्वार्थ त्याग और भक्ति की आज तक की सबसे बड़ी मिसाल...
आज किसी धार्मिक स्थल पर चार ईंटे लगवाने पर भी लोग अपने नाम_की_पट्टी पहले लगवाते हैं... एक_पंखा तक लगवाने पर उसके परों पर #अपने_नाम_छपवाते हैं...
आज देश में एक #फ़र्ज़ी_बलिदानी_परिवार अपने आप को सबसे बड़ा बलिदान का प्रतीक बताते हुए पिछले #सत्तर_वर्षों_से_देशवासियों_को मूर्ख_बना_रहा_है।

हमारे पुरखे जो-जो बलिदान देकर गए हैं, वह अभूतपूर्व है और इन्ही बलिदानों के कारण ही हम लोगों का अस्तित्व अभी तक है... हमारी इतनी औक़ात नहीं कि हम इस बलिदान के हज़ारवें भाग का भी ऋण उतार सकें।

यह सब जिन दिनों में हुआ यह वही दिसम्बर के आखरी सप्ताह के दिन थे जिन दिनों में आज कल हम #मूर्ख_भारतीय जोकर जैसे कपड़े पहन कर क्रिसमस जैसे विदेशी त्योहार मनाते हुए #बेगानी_शादी_में_दीवाने हुए जाते हैं।

रविवार, 8 दिसंबर 2019

#संघ_वाला_जमाई⛳

मेरे मात -पिता के मन में, सखी
जाने क्या थी बात समाई 
देखा उन्होंने मेरे लिए, जो
एक "संघ" वाला जमाई ।

क्या कहूँ बहन मुझे न जाने 
क्या -क्या सहन करना होता हैं!
'इनके' घर आने -जाने का 
कोई निश्चित समय न होता है।

कभी कहें दो लोगों का भोजन 
कभी दस का भी बनवाते है
जब चाहे ये घर पर बहना 
अधिकारियो को ले आते है।

लाठी, नीकर, दरी-चादर बांध 
बस ये तो फरमान सुनाते है 
शिविर में जाना हर माह इन्हें
बिस्तर बांध निकल जाते है।

प्रातः शाखा, शाम को बैठक
कार्यक्रम अनेको होते हैं...
दो बोल प्रेम से जो बोल सके मुझे 
वो बोल ही इनपर न होते है।

इनकी व्यस्त दिनचर्या से बहना 
कभी -कभी तंग बहुत आ जाती हूँ।
ये तो घर पर ज्यादा न रह पाते
मैं मायके भी न जा पाती हूँ ।

#पर...

ख़ुशी मुझे इस बात की है होती
और "गर्व" बहुत ही होता हैं।
मेरे "इनके" अंदर एक चरित्रवान इंसान
"स्वयंसेवक" के रूप में रहता है।

आज के कलुषित वातावरण में भी, जो
नियमो से जीवन जी रहा
"संघ" के कारण अनुशाषित जीवन 
और सार्थक राह पर चल रहा।

उनके कारण मैं भी तो बहन 
कुछ राष्ट्र कार्य कर पाती हूँ।
प्रत्यक्ष नहीं तो परोक्ष रूप से 
इस हवन में आहुति दे पाती हूँ।

इसीलिए नहीं कोई शिकायत 
मैं अपने मात-पिता से करती हूँ।
एक स्वयंसेवक के रूप में "संस्कारी" पाया
बस ह्रदय से धन्यवाद उनका करती हूँ।

🙏🏻भारत माता की जय⛳

शनिवार, 28 सितंबर 2019

हे जगदंबा ! जगत् की समस्त स्त्रियां तुम्हारा ही स्वरूप हैं, लेकिन रुकिए...

नवरात्र आते ही कुछ मूर्खों की टोलियां विधवा विलाप प्रारम्भ कर देती हैं। हर औरत(नारी) देवी दुर्गा की रूप हैं। मंदिर में तो देवी की पूजा करते हैं पर बाहर में स्त्रियों का अपमान करतें हैं।

एक अंश में इनका कथन उचित है क्योंकि कहा भी है कि स्त्रिया: समस्ता: सकला जगत्सु 

अर्थात

"हे जगदंबा ! जगत् की समस्त स्त्रियां तुम्हारा ही स्वरूप हैं।"

लेकिन रुकिए... यहाँ समस्ता का अर्थ सभी नहीं हैं अपितु वे सभी हैं जिस स्त्री में लज्जा है, जो शास्त्रानुरूप आचरण करतीं हैं, जो समग्र शास्त्रों में वर्णित विधिनिषेध का पालन करतीं हैं। इसीलिए सर्वप्रथम देवी के इस रूप के अनुसार आचरण कीजिये। 

या_देवी_सर्वभूतेषु_लज्जा_रूपेण_संस्थिता 

तब ही यह सोचियेगा कि आप देवी की स्वरूप हैं। यदि आपने ऐसा कर लिया तो कोई भी हो, आपका सम्मान अवश्य करेगा।  एक बार अपने वस्त्रों और देवी के वस्त्रों को जरूर देख लीजियेगा... अर्धकटीं न्याय नहीं चलेगा। कुछ इधर का मान लिया, कुछ उधर का और लगे चिल्लाने।


पाश्चात्य संस्कृति का पालन करते हुए समाज में अपना अंग प्रदर्शन कीजियेगा और अपने को भोग की वस्तु के रूप में स्थापित कीजियेगा तो असम्भव ही है कि कोई आपका सम्मान करे। अपनी मर्यादा में रहिए, सम्मान और आपकी पूजा आवश्य होगी। अपनी मर्यादा का अतिक्रमण कर के आप स्वछंद आचरण करके सम्मान चाहियेगा तो फिर वही होगा जो शूर्पणखा के साथ हुआ था।

#लछिमन_अति_लाघवँ_सो_नाक_कान_बिनु_कीन्हि
लक्ष्मण जी ने बड़ी फुर्ती से उसको बिना नाक-कान की कर दिया।

अतः अपने अंदर सीता, पद्मावती के समान व्यवहार आचार विचार लाने का प्रयत्न कीजिये... नहीं तो शूर्पणखा के जैसा हालत होगा तो फिर इधर-उधर सर पीटते रहिये। कोई रावण ही होगा जो आपकी सुनेगा। सनातन में लिंग विषेश का नहीं, चरित्र की पूजा करने का आदेश हैं।

#आचारहीनं_न_पुनन्ति_वेदा

   ।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।

बुधवार, 25 सितंबर 2019

भीष्म पितामह को जल दिए बगैर श्राद्ध का विधान नहीं होता पूरा, जानिए क्यों है ऐसी रीत...

अपनी संस्कृति व परंपराओं का अभिमान, सनातन कुल के परंपरा पुरुषों का मान व सभी को अपने में समा लेने का वरदान, यही वे तीन प्राण तत्व हैं जो भारतीय धर्म-दर्शन को सनातन व अविनाशी बनाते हैं। समय काल- परिस्थिति के अनुसार खुद को ढाल लेने वाले इस जीवन दर्शन को उदात्तता के शिखर तक ले जाते हैं। इसी औदार्य व इसी श्रद्धा से जुड़ती है एक कहानी पितृपक्ष की, जो पाठकों को महाभारत काल तक ले जाती है। कितने गहरे तक जुड़ी है अपने महानायकों के प्रति भारतीय सनातन समाज की श्रद्धा व संवेदनाएं इसकी थाह बताती हैं।


महाभारत के कथानक तथा पौराणिक आख्यानों के अनुसार कुरुकुल के पितृ पुरुष और उस दौर के महानायकों में से एक पितामह भीष्म (देवव्रत) अपनों के बाणों से बिंध कर रण क्षेत्र में शर-शैय्या धारी हुए। स्वयं की इच्छा के अनुसार पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के बाद अर्जुन के तीर से फूटे सोते का जल ग्रहण कर शरशैय्या पर ही मृत्यु का वरण किया। देवव्रत भीष्म चूंकि नि:संतान मरे, अतएव श्राद्ध तिथियों में उनके नाम का तर्पण कौन करेगा यह प्रश्न तत्कालीन समाज व्यवस्था के सामने था। सभी ने उनकी इस व्यथा से अपने को जोड़ा। कर्मकांड के महारथियों ने अपने इस महानायक की खातिर सारी लीकों को तोड़ा और शास्त्रीय व्यवस्था दी कि न सिर्फ पितामह के वंशज बल्कि समस्त भारतीय समाज और उनकी आने वाली पीढिय़ों, जाति-समुदाय, पंथ-गोत्र के दायरों से अलग युगों तक पितामह को स्मरण करेंगी।

एक परंपरा का अनुगमन करते हुए प्रत्येक श्राद्ध वार्षिकी में अपने कुल-गोत्र के पूर्वजों के साथ ही वैयाघ्र गोत्र के महारथी भीष्म के नाम का तर्पण कर यश-कीर्ति के पुण्यफल का वरण करेंगी। युग बीत गए। परिवर्तन की आंधियों के चलते न जाने कितने संस्कारों के घट रीत गए। फिर भी सनातन समाज आज भी हर श्राद्ध पक्ष में अपने पुरखों का जब भी तर्पण करता है तब 'वैयाघ्र पद गोत्राय सांग्कृत्य प्रवराय च-अपुत्राय ददाम्येतद् जलं भीष्माय वर्मणे' के मंत्र से जौ-अक्षत के साथ इस युग पुरुष को उनके अंश स्वरूप उनकी तर्पण की अंजलि हमेशा अर्पण करता है। उल्लेखनीय यह भी कि तर्पण की भीष्माजंलि के बगैर श्राद्ध संस्कारों की पूर्णता नहीं मानी जाती। यह सिर्फ एक रस्म नहीं, है हमारी थाती।

*यह संवेदना ही है सनातन की प्राण शक्ति*

कहते हैं दर्शन शास्त्र के विद्वान प्रो. देवव्रत चौबे 'मन की संवेदनाओं के साथ धार्मिक तत्वों का यह योग ही प्राण शक्ति है सनातन धर्म-दर्शन की। भीष्म तर्पण के विधान के साथ जुड़े भाव का ही दृष्टांत लें तो वे पद की दृष्टि से स्मरण शृंखला में पितृ पद से भी ऊपर देव पद पर प्रतिष्ठित हैं। इसीलिए जहां कुल के दिवंगतों को अपशव्य होकर दक्षिणाभिमुख तिलोदक देते हैं, वहीं पुत्र लाभ से वंचित पितामह को और ऊंचा पीढ़ा देते हुए शव्य (यज्ञोपवीत बाएं कंधे पर) मुद्रा में जल- अक्षत देकर उन्हें देव कोटि की पूर्वाभिमुख श्रद्धा-अंजलि समर्पित करते हैं।

गुरुवार, 29 अगस्त 2019

सभी हिन्दू जाने ब्रहमाजी पर फैलाएं गए झुठ का सच

ब्रह्मा जी को प्रजापति भी कहा जाता है...


कहते हैं कि हिंदू धर्म में ब्रह्मा की पूजा नहीं की जाती..! 

पूरे भारत में सिर्फ एक ही मंदिर है ब्रह्मा जी का‌ पुष्कर में...

लोग इसकी शर्मनाक वजह बताते हैं कि उन्होंने अपनी ही बेटी से रोमांस किया था लेकिन ये सत्य नहीं हैं, 

आइए जानते हैं क्या है उसके पीछे का सच...

इस कहानी के पीछे भागवत के इस श्लोक का लॉजिक दिया जाता है:

वाचं दुहितरं तन्वीं स्वयंभूर्हतीं मन:।
अकामां चकमे क्षत्त्: सकाम् इति न: श्रुतम् ॥

(श्रीमदभागवत् 3/12/28)

इसका मतलब कि ब्रह्मा अपनी जवान बेटी पर मोहित हो गए, हालांकि बेटी जवान हो गई थी लेकिन उस पर काम वासना का असर नहीं हुआ था। फिर भी ब्रह्मा उस पर मोहित हो गए, ऐसा सुना जाता हैं।


इसके सिवा एक जगह और ऐसा ही लिखा आता है, जिसका प्रयोग लोग ब्रह्मा को अपूज्य बताने के दावे में करते हैं...

प्रजापतिवै स्वां दुहितरमभ्यधावत्
दिवमित्यन्य आहुरुषसमितन्ये
तां रिश्यो भूत्वा रोहितं भूतामभ्यैत्
तं देवा अपश्यन्
“अकृतं वै प्रजापतिः करोति” इति
ते तमैच्छन् य एनमारिष्यति
तेषां या घोरतमास्तन्व् आस्ता एकधा समभरन्
ताः संभृता एष् देवोभवत्
तं देवा अबृवन्
अयं वै प्रजापतिः अकृतं अकः
इमं विध्य इति स् तथेत्यब्रवीत्
तं अभ्यायत्य् अविध्यत्
स विद्ध् ऊर्ध्व् उदप्रपतत् ( एतरेय् ब्राहम्ण् 3/333)

इसका मतलब ये है कि प्रजापति अपनी बेटी की तरफ दौड़े... उस लाल लड़की के पीछे भागे... देवताओं ने देखा और कहा कि ये प्रजापति तो गंदा काम कर रहे हैं, तब उन्होंने तमाम बड़े-बड़े शरीर जोड़कर शरीरों का एक भारी ग्रुप बना दिया। उस ग्रुप से कहा कि यह प्रजापति गंदा काम कर रहा है, मार दे इसे... उस ग्रुप ने तथास्तु कहकर प्रजापति को एक तीर मारा,
प्रजापति घायल हो कर वहीं गिर गए।

इस श्लोक का हर जगह प्रयोग किया जाता है, ब्रह्मा जी को बदनाम करने के लिए... लेकिन इसकी गहराई में जाएं बगैर, इसमें कहा गया है कि प्रजापति दौड़ा लाल रंग की लड़की की तरफ... लेकिन ब्रह्मा की बेटी सरस्वती तो धवल यानि सफेद हैं, फिर कौन है ये लाल लड़की..?

उषा लाल हो सकती है, उषा मतलब उगते हुए सूरज के वक्त आसमान में जो लाली होती है लेकिन वो ब्रह्मा की बेटी ही नहीं है..! अब बड़ी मिस्ट्री ये है कि ये साहब प्रजापति हैं कौन..? और कौन है उसकी बेटी..?

अथर्व वेद में ये श्लोक हैं...

सभा च मा समितिश्चावतां प्रजापतेर्दुहितौ संविदाने
येना संगच्छा उप मा स शिक्षात् चारु वदानि पितर: संगतेषु

इसका मतलब हिंदी में ऐसा है कि सभा और समिति ये दो प्रजापति की दुहिता यानि बेटियां हैं। सभा माने ग्रामसभा और समिति माने प्रतिनिधि सभा... इन सभाओं के सभासद राजा के लिये पिता की तरह हैं और राजा को उनकी पूजा करनी चाहिए, उनसे सलाह लेनी चाहिए... 

राजा यानी प्रजापति की जिम्मेदारी है, वह अपनी बेटी समान सभा और समिति का पूरा खयाल रखे लेकिन खयाल रखने के बावजूद वह उन पर हक नहीं जता सकता..! प्रजा को पालने के हक की वजह से राजा को प्रजापति कहा गया हैं। प्रतिनिधि सभा के सभासद राजा चुनने का काम करते हैं।

लगे हाथ एक और वेद का श्लोक देख लिया जाएं...

पिता यस्त्वां दुहितरमधिष्केन् क्ष्मया रेतः संजग्मानो निषिंचन् 
स्वाध्योऽजनयन् ब्रह्म देवा वास्तोष्पतिं व्रतपां निरतक्षन् ॥ (ऋगवेद -10/61/7)
इसका अर्थ ये है कि राजा यानि प्रजापति ने अपनी बेटी यानि प्रजा पर हमला कर दिया। प्रजा ने छेड़ दी क्रांति, राजा की हार हो गई फिर बड़े बुजुर्गों ने उस राजा को खर्चा पानी देकर बैठा दिया और दूसरा राजा चुना। सीधा-सा अर्थ ये कि राजा ने प्रजा से जबरदस्ती की, उसकी उसे सजा मिली।
अब असल बात जो है, वो ये कि प्रजापति दो हैं। एक ब्रह्मा और एक राजा... लोगों ने दोनों की कहानी गड्ड-मड्ड कर सुनानी शुरू कर दी। ये अफवाह पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती गई, लोग बिना किसी रिसर्च के गुमराह होते रहें...

अतः बिना सत्य जाने कोई भी भ्रामिक बात को न मानें।

🙏🏻 जय हो परमपिता परमात्मा 🙇🏻 जय सनातन ⛳

शनिवार, 20 जुलाई 2019

बुद्ध और ब्राह्मण

अपने आपको मूलनिवासी कहने वाले लोग प्राय: ब्राह्मणों को कोसते मिलते हैं, विदेशी कहते हैं, गालियां बकते हैं। पर बुद्ध ने आर्यधर्म को महान कहा है। महात्मा बुद्ध ब्राह्मण, धर्म, वेद, सत्य, अहिंसा , यज्ञ, यज्ञोपवीत आदि में पूर्ण विश्वास रखने वाले थे। महात्मा बुद्ध के उपदेशों का संग्रह धम्मपद के ब्राह्मण वग्गो 18 का में ऐसे अनेक प्रमाण मिलते है कि बुद्ध के ब्राह्मणों के प्रति क्या विचार थे।

१:-न ब्राह्नणस्स पहरेय्य नास्स मुञ्चेथ ब्राह्नणो।
धी ब्राह्नणस्य हंतारं ततो धी यस्स मुञ्चति।।

( ब्राह्मणवग्गो श्लोक ३)

'ब्राह्नण पर वार नहीं करना चाहिये। और ब्राह्मण को प्रहारकर्ता पर कोप नहीं करना चाहिये। ब्राह्मण पर प्रहार करने वाले पर धिक्कार है।'

२:- ब्राह्मण कौन है:-

यस्स कायेन वाचाय मनसा नत्थि दुक्कतं।
संबुतं तीहि ठानेहि तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।
( श्लोक ५)

'जिसने काया,वाणी और मन से कोई दुष्कृत्य नहीं करता,जो तीनों कर्मपथों में सुरक्षित है उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।

३:- अक्कोधनं वतवन्तं सीलवंतं अनुस्सदं।
दंतं अंतिमसारीरं तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।
अकक्कसं विञ्ञापनिं गिरं उदीरये।
याय नाभिसजे किंचि तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।
निधाय दंडभूतेसु तसेसु थावरेसु च।
यो न हंति न घातेति तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।

( श्लोक ७-९)'जो क्रोधरहित,व्रती,शीलवान,वितृष्ण है और दांत है, जिसका यह देह अंतिम है;जिससे कोई न डरे इस तरह अकर्कश,सार्थक और सत्यवाणी बोलता हो;जो चर अचर सभी के प्रति दंड का त्याग करके न किसी को मारता है न मारने की प्रेरणा करता है- उसी को मैं ब्राह्मण कहता हूं।।'

४:- गुण कर्म स्वभाव की वर्णव्यवस्था:-
न जटाहि न गोत्तेन न जच्चा होति ब्राह्मणो।
यम्हि सच्च च धम्मो च से सुची सो च ब्राह्मणो।।
( श्लोक ११)

' न जन्म कारण है न गोत्र कारण है, न जटाधारण से कोई ब्राह्मण होता है। जिसमें सत्य है, जो पवित्र है वही ब्राह्मण होता है।।

५:- आर्य धर्म के प्रति विचार:-

धम्मपद, अध्याय ३ सत्संगति प्रकरण :प्राग संज्ञा:-
साहु दस्सवमरियानं सन् निवासो सदा सुखो।( श्लोक ५)

"आर्यों का दर्शन सदा हितकर और सुखदायी है।"
धीरं च पञ्ञं च बहुस्सुतं च धोरय्हसीलं वतवन्तमरियं।
तं तादिसं सप्पुरिसं सुमेधं भजेथ नक्खत्तपथं व चंदिमा।।

( श्लोक ७)

" जैसे चंद्रमा नक्षत्र पथ का अनुसरण करता है, वैसे ही सत्पुरुष का जो धीर,प्राज्ञ,बहुश्रुत,नेतृत्वशील,व्रती आर्य तथा बुद्धिमान है- का अनुसरण करें।।"
"तादिसं पंडितं भजे"- श्लोक ८

वाक्ताड़न करने वाले पंडित की उपासना भी सदा कल्याण करने वाली है।।"एते तयो कम्मपथे विसोधये आराधये मग्गमिसिप्पवेदितं" ( धम्मपद ११ प्रज्ञायोग श्लोक ५) " तीन कर्मपथों की शुद्धि करके ऋषियों के कहे मार्ग का अनुसरण करे"

धम्मपद पंडित प्रकरण १५/ में ७७ पंडित लक्षणम् में श्लोक १:- "अरियप्पवेदिते धम्मे सदा रमति पंडितो।।" सज्जन लोग आर्योपदिष्ट धर्म में रत रहते हैं।"

परिणाम:- भगवान महात्मा गौतम बुद्ध ने ब्राह्मणों की इतनी स्तुति की है तथा आर्य वैदिक धर्म का खुले रूप से गुणगान किया है। इसलिये बुद्ध के कहे अनुसार बुद्ध अनुयाइयों को भी सनातन परम्पराओ का सम्मान करना चाहिये। वामपंथी जेहादियो के बहकावे में आकर बहकना नहीं चाहिए।

सलंग्न चित्र- महात्मा बुद्ध यज्ञोपवीत धारण किये हुए।
साभार

बुधवार, 17 जुलाई 2019

क्या आप जानते हैं... विवाह, निकाह और मैरिज के बीच का फर्क...

विवाह उपरांत जीवन साथी को छोड़ने के लिए 2 शब्दों का प्रयोग किया जाता हैं।
1-Divorce (अंग्रेजी)
2-तलाक (उर्दू)
यदि आप जानते हैं तो कृपया हिन्दी का शब्द बताए..?

कहानी आजतक के Editor संजय सिन्हा की लिखी हैं...

तब मैं जनसत्ता में नौकरी करता था। एक दिन खबर आई कि एक आदमी ने झगड़ा के बाद अपनी पत्नी की हत्या कर दी। मैंने खब़र में हेडिंग लगाई कि पति ने अपनी बीवी को मार डाला खबर छप गई। किसी को आपत्ति नहीं थी, पर शाम को दफ्तर से घर के लिए निकलते हुए... प्रधान संपादक प्रभाष जोशी जी सीढ़ी के पास मिल गए। मैंने उन्हें नमस्कार किया तो कहने लगे कि संजय जी, पति की बीवी नहीं होती।

“पति की बीवी नहीं होती?” मैं चौंका था!

“बीवी तो शौहर की होती हैं, मियां की होती हैं... पति की तो पत्नी होती हैं।

भाषा के मामले में प्रभाष जी के सामने मेरा टिकना मुमकिन नहीं था। हालांकि मैं कहना चाह रहा था कि भाव तो साफ हैं ना..? बीवी कहें या पत्नी या फिर वाइफ, सब एक ही तो हैं... लेकिन मेरे कहने से पहले ही उन्होंने मुझसे कहा कि भाव अपनी जगह है, शब्द अपनी जगह... कुछ शब्द कुछ जगहों के लिए बने ही नहीं होते, ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी पैदा करता हैं।

प्रभाष जी आमतौर पर उपसंपादकों से लंबी बातें नहीं किया करते थे लेकिन उस दिन उन्होंने मुझे टोका था और तब से मेरे मन में ये बात बैठ गई थी कि शब्द बहुत सोच समझ कर गढ़े गए होते हैं।

खैर, आज मैं भाषा की कक्षा लगाने नहीं आया आज मैं रिश्तों के एक अलग अध्याय को जीने के लिए आपके पास आया हूं लेकिन इसके लिए आपको मेरे साथ निधि के पास चलना होगा।

निधि मेरी दोस्त है कल उसने मुझे फोन करके अपने घर बुलाया था। फोन पर उसकी आवाज़ से मेरे मन में खटका हो चुका था कि कुछ न कुछ गड़बड़ हैं। मैं शाम को उसके घर पहुंचा उसने चाय बनाई और मुझसे बात करने लगी। पहले तो इधर-उधर की बातें हुईं, फिर उसने कहना शुरू कर दिया कि नितिन से उसकी नहीं बन रही और उसने उसे तलाक देने का फैसला कर लिया हैं।

मैंने पूछा कि नितिन कहां है, तो उसने कहा कि अभी कहीं गए हैं‌। बता कर नहीं गए। उसने कहा कि बात-बात पर झगड़ा होता है और अब ये झगड़ा बहुत बढ़ गया हैं। ऐसे में अब एक ही रास्ता बचा है कि अलग हो जाएं, तलाक ले लें।

निधि जब काफी देर बोल चुकी तो मैंने उससे कहा कि तुम नितिन को फोन करो और घर बुलाओ, कहो कि संजय सिन्हा आए हैं।

निधि ने कहा कि उनकी तो बातचीत नहीं होती, फिर वो फोन कैसे करे?

अज़ीब संकट था निधि को मैं बहुत पहले से जानता हूं मैं जानता हूं कि नितिन से शादी करने के लिए उसने घर में कितना संघर्ष किया था‌... बहुत मुश्किल से दोनों के घर वाले राज़ी हुए थे, फिर धूमधाम से शादी हुई थी। ढेर सारी रस्म पूरी की गईं थीं। ऐसा लगता था कि ये जोड़ी ऊपर से बन कर आई हैं, पर शादी के कुछ ही साल बाद दोनों के बीच झगड़े होने लगे दोनों एक-दूसरे को खरी-खोटी सुनाने लगे और आज उसी का नतीज़ा था कि संजय सिन्हा निधि के सामने बैठे थे। उनके बीच के टूटते रिश्तों को बचाने के लिए...

खैर, निधि ने फोन नहीं किया मैंने ही फोन किया और पूछा कि तुम कहां हो। मैं तुम्हारे घर पर हूं, आ जाओ। नितिन पहले तो आनाकानी करता रहा, पर वो जल्दी ही मान गया और घर चला आया।

अब दोनों के चेहरों पर तनातनी साफ नज़र आ रही थी। ऐसा लग रहा था कि कभी दो जिस्म-एक जान कहे जाने वाले... ये पति-पत्नी आंखों ही आंखों में एक-दूसरे की जान ले लेंगे। दोनों के बीच कई दिनों से बातचीत नहीं हुई थी।

नितिन मेरे सामने बैठा था। मैंने उससे कहा कि सुना है कि तुम निधि से तलाक लेना चाहते हो।

उसने कहा, हां! बिल्कुल सही सुना हैं। अब हम साथ नहीं रह सकते।

मैंने कहा कि तुम चाहो तो अलग रह सकते हो, पर #तलाक नहीं ले सकते!

क्यों!

क्योंकि तुमने #निकाह तो किया ही नहीं हैं!

अरे यार, हमने शादी तो की हैं...

हां, शादी की हैं। शादी में पति-पत्नी के बीच इस तरह अलग होने का कोई प्रावधान नहीं हैं। अगर तुमने मैरिज़ की होती तो तुम डाइवोर्स ले सकते थे!अगर तुमने निकाह किया होता तो तुम तलाक ले सकते थे‌! लेकिन क्योंकि तुमने शादी की है, इसका मतलब ये हुआ कि हिंदू धर्म और हिंदी में कहीं भी पति-पत्नी के एक हो जाने के बाद अलग होने का कोई प्रावधान हैं ही नहीं...

मैंने इतनी-सी बात पूरी गंभीरता से कही थी, पर दोनों हंस पड़े थे। दोनों को साथ-साथ हंसते देख कर मुझे बहुत खुशी हुई थी। मैंने समझ लिया था कि रिश्तों पर पड़ी बर्फ, अब पिघलने लगी हैं। वो हंसे, लेकिन मैं गंभीर बना रहा।

मैंने फिर निधि से पूछा कि ये तुम्हारे कौन हैं?

निधि ने नज़रे झुका कर कहा कि पति हैं। मैंने यही सवाल नितिन से किया कि ये तुम्हारी कौन हैं? उसने भी नज़रें इधर-उधर घुमाते हुए कहा कि बीवी हैं।

मैंने तुरंत टोका ये तुम्हारी बीवी नहीं हैं। ये तुम्हारी बीवी इसलिए नहीं हैं क्योंकि तुम इनके शौहर नहीं।
तुम इनके शौहर नहीं, क्योंकि तुमने इनसे साथ निकाह नहीं किया। तुमने शादी की हैं‌। शादी के बाद ये तुम्हारी पत्नी हुईं। हमारे यहां जोड़ी ऊपर से बन कर आती हैं। तुम भले सोचो कि शादी तुमने की हैं, पर ये सत्य नहीं हैं। तुम शादी का एलबम निकाल कर लाओ, मैं सबकुछ अभी इसी वक्त साबित कर दूंगा।

बात अलग दिशा में चल पड़ी थी। मेरे एक-दो बार कहने के बाद निधि शादी का एलबम निकाल लाई। अब तक माहौल थोड़ा ठंडा हो चुका था, एलबम लाते हुए उसने कहा कि कॉफी बना कर लाती हूं।

मैंने कहा कि अभी बैठो, इन तस्वीरों को देखो कई तस्वीरों को देखते हुए मेरी निगाह एक तस्वीर पर गई। जहां निधि और नितिन शादी के जोड़े में बैठे थे और पांव पूजन की रस्म चल रही थी। मैंने वो तस्वीर एलबम से निकाली और उनसे कहा कि इस तस्वीर को गौर से देखो...

उन्होंने तस्वीर देखी और साथ-साथ पूछ बैठे कि इसमें खास क्या है?

मैंने कहा कि ये पैर पूजन का रस्म हैं। तुम दोनों इन सभी लोगों से छोटे हो, जो तुम्हारे पांव छू रहे हैं।

हां तो...

ये एक रस्म है ऐसी रस्म संसार के किसी धर्म में नहीं होती, जहां छोटों के पांव बड़े छूते हों लेकिन हमारे यहां शादी को ईश्वरीय विधान माना गया है, इसलिए ऐसा माना जाता है कि शादी के दिन पति-पत्नी दोनों विष्णु और लक्ष्मी के रूप हो जाते हैं। दोनों के भीतर ईश्वर का निवास हो जाता हैं। अब तुम दोनों खुद सोचो कि क्या हज़ारों-लाखों साल से विष्णु और लक्ष्मी कभी अलग हुए हैं। दोनों के बीच कभी झिकझिक हुई भी हो तो क्या कभी तुम सोच सकते हो कि दोनों अलग हो जाएंगे? नहीं होंगे हमारे यहां इस रिश्ते में ये प्रावधान हैं ही नहीं... तलाक शब्द हमारा नहीं हैं, डाइवोर्स शब्द भी हमारा नहीं हैं...

यहीं दोनों से मैंने ये भी पूछा कि बताओ कि हिंदी में तलाक को क्या कहते हैं?

दोनों मेरी ओर देखने लगे उनके पास कोई जवाब था ही नहीं... फिर मैंने ही कहा कि दरअसल हिंदी में तलाक का कोई  विकल्प हैं ही नहीं। हमारे यहां तो ऐसा माना जाता है कि एक बार एक हो गए तो सात जन्मों के लिए एक हो गए... तो प्लीज़ जो हो ही नहीं सकता, उसे करने की कोशिश भी मत करो या फिर पहले एक दूसरे से निकाह कर लो, फिर तलाक ले लेना...

अब तक रिश्तों पर जमी बर्फ काफी पिघल चुकी थी।

निधि चुपचाप मेरी बातें सुन रही थी...
फिर उसने कहा...भैया! मैं कॉफी लेकर आती हूं।

वो कॉफी लाने गई। मैंने नितिन से बातें शुरू कर दीं। बहुत जल्दी पता चल गया कि बहुत ही छोटी-छोटी बातें हैं, बहुत ही छोटी-छोटी इच्छाएं हैं, जिनकी वज़ह से झगड़े हो रहे हैं।

खैर, कॉफी आई। मैंने एक चम्मच चीनी अपने कप में डाली। नितिन के कप में चीनी डाल ही रहा था कि निधि ने रोक लिया। भैया इन्हें शुगर हैं, चीनी नहीं लेंगे।

लो जी, घंटा भर पहले ये इनसे अलग होने की सोच रही थीं और अब इनके स्वास्थ्य की सोच रही हैं।

मैं हंस पड़ा मुझे हंसते देख निधि थोड़ा झेंपी कॉफी पी कर मैंने कहा कि अब तुम लोग अगले हफ़्ते निकाह कर लो, फिर तलाक में मैं तुम दोनों की मदद करूंगा।

शायद अब दोनों समझ चुके थे।

हिन्दी एक भाषा ही नहीं - संस्कृति हैं। 

इसी तरह हिन्दू भी धर्म नहीं - सभ्यता हैं।

मंगलवार, 9 जुलाई 2019

A.M. और P.M. का मतलब... क्या आप सच में जानते हैं..?

हमे बचपन से ये रटवाया गया, विश्वास दिलवाया गया कि इन दो शब्दो, A.M. और P.M. का मतलब होता है :

A.M. : एंटी मेरिडियन (ante meridian)
P.M. : पोस्ट मेरिडियन (post meridian)

एंटी यानि पहले, लेकिन किसके ?
और पोस्ट यानि बाद में, लेकिन फिर वही सवाल, किसके ? ये कभी साफ नही किया गया क्योंकि ये चुराय गये शब्द का लघुतम रूप था

""किसके = जहां कारक खुद गौण है""

हमारे प्राचीन संस्कृत भाषा ने इस संशय को अपनी आंधियो में उड़ा दिया और अब, सबकुछ साफ साफ दृष्टिगत है

कैसे ?
देखिये ....

A.M. =  आरोहनम मार्तण्डस्य Aarohanam Martandasya

P.M. = पतनम मार्तण्डस्य Patanam Martandasya

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सूर्य, जो कि हर आकाशीय गणना का मूल है, उसीको गौण कर दिया, कैसे गौण किया ये सोचनीय है और बेतुका भी। भ्रम इसलिये पैदा होता है कि अंग्रेजी के ये शब्द संस्कृत के उस 'मतलब' को नही इंगित करते जो कि वास्तविक में है ...

#आरोहणम्_मार्तडस्य् Arohanam Martandasaya यानि सूर्य का आरोहण (चढ़ाव) और
#पतनम्_मार्तडस्य् Patanam Martandasaya यानि सूर्य का ढलाव

दिन के बारह बजे के पहले सूर्य चढ़ता रहता है आरोहनम मार्तण्डस्य (AM), बारह के बाद सूर्य का अवसान, पतन होता है 'पतनम मार्तण्डस्य' (PM)
अब तो सबकुछ साफ साफ हैं...⛳

गुरुवार, 6 जून 2019

बच्चा पैदा करने के लिए क्या आवश्यक है..?

पुरुष का वीर्य और औरत का गर्भ...

लेकिन रुकिए... सिर्फ गर्भ..!

नहीं... नहीं..!

एक ऐसा शरीर जो इस क्रिया के लिए तैयार हो...
जबकि वीर्य के लिए 13 साल और 70 साल का वीर्य भी चलेगा।
लेकिन गर्भाशय का मजबूत होना अति आवश्यक हैं...
इसलिए सेहत भी अच्छी होनी चाहिए।
एक ऐसी स्त्री का गर्भाशय जिसको बाकायदा हर महीने समयानुसार माहवारी (Period) आती हो।
जी हाँ !
वही माहवारी जिसको सभी स्त्रियाँ हर महीने बर्दाश्त करती हैं।
बर्दाश्त इसलिए क्योंकि महावारी (Period) उनकी Choice नहीं है।
यह कुदरत के द्वारा दिया गया एक नियम हैं।
वही महावारी जिसमें शरीर पूरा अकड़ जाता है,
कमर लगता है टूट गयी हो,
पैरों की पिण्डलियाँ फटने लगती हैं,
लगता है पेड़ू में किसी ने पत्थर ठूँस दिये हों,
दर्द की हिलोरें सिहरन पैदा करती हैं।
ऊपर से लोगों की घटिया मानसिकता की वजह से इसको छुपा छुपा के रखना अपने आप में किसी जँग से कम नहीं।

बच्चे को जन्म देते समय असहनीय दर्द को बर्दाश्त करने के लिए मानसिक और शारीरिक दोनो रूप से तैयार हों।
चालीस हड्डियाँ एक साथ टूटने जैसा दर्द सहन करने की क्षमता से परिपूर्ण हों।

गर्भधारण करने के बाद शुरू के 3 से 4 महीने जबरदस्त शारीरिक और हार्मोनल बदलाव के चलते उल्टियाँ, थकान, अवसाद के लिए मानसिक रूप से तैयार हों।
5वें से 9वें महीने तक अपने बढ़े हुए पेट और शरीर के साथ सभी काम यथावत करने की शक्ति हो।

गर्भधारण के बाद कुछ विशेष परिस्थितियों में तरह तरह के
हर दूसरे तीसरे दिन इंजेक्शन लगवानें की हिम्मत रखती हों।
(जो कभी एक इंजेक्शन लगने पर भी घर को अपने सिर पर उठा लेती थी।)
प्रसव पीड़ा को दो-चार, छः घंटे के अलावा, दो दिन, तीन दिन तक बर्दाश्त कर सकने की क्षमता हो। 

और अगर फिर भी बच्चे का आगमन ना हो तो गर्भ को चीर कर बच्चे को बाहर निकलवाने की हिम्मत रखती हों।

अपने खूबसूरत शरीर में Stretch Marks और Operation का निशान ताउम्र अपने साथ ढोने को तैयार हों। कभी-कभी प्रसव के बाद दूध कम उतरने या ना उतरने की दशा में तरह-तरह के काढ़े और दवाई पीने का साहस रखती हों।
जो अपनी नीन्द को दाँव पर लगा कर
दिन और रात में कोई फर्क ना करती हो।
3 साल तक सिर्फ बच्चे के लिए ही जीने की शर्त पर गर्भधारण के लिए राजी होती हैं।

एक गर्भ में आने के बाद एक स्त्री की यही मनोदशा होती हैं... 
जिसे एक पुरुष शायद ही कभी समझ पाये..!
औरत तो स्वयं अपने आप में एक शक्ति है, बलिदान है।
इतना कुछ सहन करतें हुए भी वह तुम्हारें अच्छे-बुरे, पसन्द-नापसन्द का ख्याल रखती है।
अरे जो पूजा करनें योग्य है जो पूजनीय हैं,
उसे हम बस अपनी उपभोग समझते हैं।
उसके ज़िन्दगी के हर फैसले, खुशियों और धारणाओं पर
हम अपना अँकुश रख कर खुद को मर्द समझते हैं।
इस घटिया मर्दानगी पर अगर इतना ही घमण्ड है हमें
तो बस एक दिन खुद को उनकी जगह रख कर देखें
अगर ये दो कौड़ी की मर्दानगी बिखर कर चकनाचूर न हो जाये तो कहना।
याद रखें...
जो औरतों की इज्ज़त करना नहीं जानतें...
वो कभी मर्द हो ही नहीं सकतें...


रविवार, 19 मई 2019

हिन्दुओं में विवाह रात्रि में क्यों होने लगे ?

क्या कभी आपने सोचा है कि हिन्दुओं में रात्रि को विवाह क्यों होने लगे हैं, जबकि हिन्दुओं में रात में शुभकार्य करना अच्छा नहीं माना जाता है ?
रात को देर तक जागना और सुबह को देर तक सोने को, राक्षसी प्रवृति बताया जाता हैं। रात में जागने वाले को निशाचर कहते हैं।
केवल तंत्र सिद्धि करने वालों को ही रात्रि में हवन यज्ञ की अनुमति है।
वैसे भी प्राचीन समय से ही सनातन धर्मी हिन्दू दिन के प्रकाश में ही शुभ कार्य करने के समर्थक रहे हैं। तब हिन्दुओं में रात की विवाह की परम्परा कैसे पड़ी ?
कभी हम अपने पूर्वजों के सामने यह सवाल क्यों नहीं उठाते हैं या स्वयं इस प्रश्न का हल क्यों नहीं खोजते हैं ?
दरअसल भारत में सभी उत्सव, सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं संस्कार दिन में ही किये जाते थे। सीता और द्रौपदी का स्वयंवर भी दिन में ही हुआ था। शिव विवाह से लेकर संयोगिता स्वयंवर आदि सभी शुभ कार्यक्रम दिन में ही होते थे।
प्राचीन काल से लेकर मुगलों के आने तक भारत में विवाह दिन में ही हुआ करते थे। मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत पर हमले करने के बाद ही, हिन्दुओं को अपनी कई प्राचीन परम्पराएं तोड़ने को विवश होना पड़ा था।
मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा भारत पर अतिक्रमण करने के बाद भारतीयों पर बहुत अत्याचार किये गये। यह आक्रमणकारी हिन्दुओं के विवाह के समय वहां पहुंचकर लूटपाट मचाते थे। अकबर के शासन काल में, जब अत्याचार चरमसीमा पर थे, मुग़ल सैनिक हिन्दू लड़कियों को बलपूर्वक उठा लेते थे और उन्हें अपने आकाओं को सौंप देते थे।
भारतीय ज्ञात इतिहास में सबसे पहली बार रात्रि में विवाह सुन्दरी और मुंदरी नाम की दो ब्राह्मण बहनों का हुआ था, जिनका विवाह दुल्ला भट्टी ने अपने संरक्षण में ब्राह्मण युवकों से कराया था।
उस समय दुल्ला भट्टी ने अत्याचार के खिलाफ हथियार उठाये थे। दुल्ला भट्टी ने ऐसी अनेकों लड़कियों को मुगलों से छुड़ाकर, उनका हिन्दू लड़कों से विवाह कराया। उसके बाद मुस्लिम आक्रमणकारियों के आतंक से बचने के लिए हिन्दू रात के अँधेरे में विवाह करने पर मजबूर होने लगे लेकिन रात्रि में विवाह करते समय भी यह ध्यान रखा जाता है कि गीत-संगीत, जयमाला आदि भले ही रात्रि में हो जाए लेकिन वैदिक मन्त्रों के साथ फेरे प्रातः पौ फटने के बाद ही हों।
पंजाब से प्रारम्भ हुई परंपरा को पंजाब में ही समाप्त किया गया।
फिल्लौर से लेकर काबुल तक महाराजा रंजीत सिंह का राज हो जाने के बाद उनके सेनापति हरीसिंह नलवा ने सनातन वैदिक परम्परा अनुसार दिन में खुले आम विवाह करने और उनको सुरक्षा देने की घोषणा की थी।
हरीसिंह नलवा के संरक्षण में हिन्दुओं ने दिनदहाड़े बैंडबाजे के साथ विवाह शुरू किये।
तब से पंजाब में फिर से दिन में विवाह का प्रचालन शुरू हुआ। पंजाब में अधिकांश विवाह आज भी दिन में ही होते हैं।
महाराष्ट्र एवम् अन्य राज्य भी धीरे धीरे अपनी जड़ों की ओर लोटने लगे हैं ।
हरीसिंह नलवा ने मुसलमान बने हिन्दुओं की घर वापसी कराई, हिन्दू धर्म की परम्पराओं को फिर से स्थापित किया।
साक्षी सूर्य के प्रतीक स्वरूप अग्नि को ही माना जाता हैं, इसीलिए अग्नि के ही चारों ओर फेरे लिए जाने की विधि है।
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार भी गायत्री परिवार में विवाह दिन में ही सम्पन्न किये जाते हैं।
आज भी हम भारत के लोग, खासकर उत्तर प्रदेश एवं बिहार के लोग, जबकि 400 साल हो गए मुगल यहां से चले गए, किन्तु आज भी उसे परंपरा मानकर उसे चला रहे हैं! असल में हम गुलामी की मानसिकता से उबरना ही नहीं चाहते हैं।
आप सभी से विनम्र निवेदन है कि इस प्रथा पर आप सब एक बार अवश्य विचार करें एवं अपनी धुरी पर अवश्य वापस लौटें।

मंगलवार, 14 मई 2019

नोटबन्दी की कहानी

दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला खुलेगा 2019 के बाद जो शायद दुनिया मे कही नही हुआ होगा और इस महाघोटाले का मुख्य अभियुक्त हैं, चिदंबरम...
इसको पढ़िए की क्यों किया गया अचानक नोटबन्दी का फैसला और क्यों टूट गयी पाकिस्तान की अर्थव्यस्था। सबूत भी बाहर आएंगे जांच हो रही हैैं, इसको पढ़के आपके पैर के नीचे से ज़मीन खिसक जाएगी‌।

पीएम मोदी ने नोटबंदी करके इस घोटाले को रोक तो दिया, मगर उसके बाद ये बात निकल कर सामने आयी कि देश में बिलकुल असली जैसे दिखने वाले एक ही नंबर के कई नोट चल रहे थे. ये ऐसे नोट थे, जिन्हे पहचानना लगभग नामुमकिन था क्योकि ये उसी कागज़ पर छपे थे जिसपर भारत सरकार नोट छपवाती हैं।

समाचार के अनुसार डे ला रू जोकि एक ब्रिटिश कंपनी है, इसके साथ मिलकर तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम एक बड़ा खेल खेल रहे थे, जिसमे उनके एडिशनल सचिव अशोक चावला और वित्त सचिव अरविंद मायाराम भी शामिल थे‌।

कैसा खेला गया घोटाले का खेल?

कहा जा रहा है कि घोटाले का प्रारम्भ 2005 में तब हुई जब वित्त मंत्रालय में अरविन्द मायाराम वित्त सचिव के पद पर थे और अशोक चावला एडिशनल सचिव के पद पर थे। कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद 2006 में सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मींटिंग कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड एक कंपनी बनाई गयी, जिसके मैनेजिंग डायरेक्टर अरविंद मायाराम थे और चेयरमैन अशोक चावला थे। यानी दो सरकारी अधिकारी पद पर रहते हुए इस कंपनी को चला रहे थे।

बिना एसीसी के अनुमोदन के एमडी और चेयरमैन की नियुक्ति...

इस प्रकार नियुक्तियों के लिए अपॉइंटमेंट्स कमिटी ऑफ़ कैबिनेट (ACC) के सामने विषय को रखकर उसके अनुमोदन की आवश्यकता होती है, किन्तु चिदंबरम ने भला कब नियम-कायदों की परवाह की..? जो अब करते अर्थात् ACC के सामने इन नियुक्तियों का विषय लाया ही नहीं गया और ऐसे ही इनकी नियुक्ति कर दी गयी।

इसके बाद असली खेल शुरू हुआ. इस घोटाले में चिदंबरम के दाएं व बाएं हाथ बताये जाने वाले अशोक चावला व अरविंद मायाराम ने भारतीय रिज़र्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड (BRBNMPL), जोकि नोटों की छपाई का काम देखती हैं। उससे कहा कि उनकी कंपनी के साथ मिलकर सिक्योरिटी पेपर प्रिंटिंग के सप्लायर को ढूंढो, जिसके बाद पहले से ब्लैकलिस्टेड की जा चुकी डे ला रू कंपनी से नोटों की छपाई में इस्तमाल होने वाले सिक्योरिटी पेपर को लेना जारी रखा गया‌।

क्या इसके लिए चिदंबरम को घूस दी गयी थी? इस ब्रिटिश कंपनी द्वारा या पाकिस्तान के आईएसआई द्वारा चिदंबरम को पैसा दिया जा रहा था? ये जांच का विषय हैं! बहरहाल पहले जानते हैं कि डे ला रू को क्यों बैन किया गया था और पाक आईएसआई का इस घोटाले में क्या भूमिका है?

डे ला रू कंपनी का खेल...

दरअसल वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान नकली मुद्रा रैकेट का पता लगाने के लिए सीबीआई ने भारत नेपाल सीमा पर विभिन्न बैंकों के करीब 70 शाखाओ पर छापेमारी की, तो बैंकों से ही नकली करेंसी पकड़ी गयी। जब पूछताछ के गयी तो उन बैंक शाखाओं के अधिकारियों ने सीबीआई से कहा कि जो नोट सीबीआई ने छापें में बरामद किये हैं वो तो स्वयं रिजर्व बैंक से ही उन्हें मिले हैं।

ये एक बेहद गंभीर खुलासा था क्योंकि इसके अनुसार आरबीआई भी नकली नोटों के खेल में संलिप्त लग रहा था! हांलाकि इतनी अहम खबर को इस देश की मीडिया ने दिखाना आवश्यक नहीं समझा क्योकि उस समय कांग्रेस सत्ता में थी‌।

इस खुलासे के बाद सीबीआई ने भारतीय रिजर्व बैंक के तहखानो में भी छापेमारी की और आश्चर्यजनक तरीके से भारी मात्रा में 500 और 1000 रुपये के जाली नोट पकडे गए। आश्चर्य की बात ये थी कि लगभग वैसे ही समान जाली मुद्रा पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा भारत में तस्करी से पहुँचाया जाता था।

अब प्रश्न उठा कि यह जाली नोट आखिर भारतीय रिजर्व बैंक के तहखानो में कैसे पहुंच गए? आखिर ये सब देश में चल क्या रहा था?

जांच के लिए शैलभद्र कमिटी का गठन हुआ और 2010 में कमिटी उस वक़्त चौंक गयी जब उसे ज्ञात हुआ कि भारत सरकार द्वारा ही समूचे राष्ट्रकी आर्थिक संप्रभुता को दांव पर रख कर कैसे अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी को 1 लाख करोड़ की छपाई का ठेका दिया गया था!

जाँच हुई तो ज्ञात हुआ कि डे ला रू कंपनी में ही घोटाला चल रहा था। एक षड्यंत्र के तहत भारतीय करेंसी छापने में उपयोग होने वाले सिक्योरिटी पेपर की सिक्योरिटी को घटाया जा रहा था ताकि पाकिस्तान सरलता से नकली भारतीय करेंसी छाप सके और इसका उपयोग भारत में आतंकवाद फैलाने में किया जा सके।

इस समाचार के सामने आते ही भारत सरकार द्वारा डे ला रू कंपनी पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया‌। मगर अरविन्द मायाराम ने इस ब्लैकलिस्टेड कंपनी से सिक्योरिटी पेपर लेना जारी रखा। इसे लेने के लिए उसने गृह मंत्रालय से अनुमति ली। कहा गया कि ये फाइल चिदंबरम को दिखाई ही नहीं गयी, जबकि ये बात मानने लायक ही नहीं क्योकि वित्त मंत्रालय से यदि गृहमंत्रालय को कोई भी पत्र भेजा जाता है तो पहले अप्रूवल के लिए वित्तमंत्री के सामने पेश किया जाता हैं।

क्या है पाक आईएसआई की भूमिका?

समाचार के अनुसार डे ला रू कंपनी से भारत को दिए जाने वाले सिक्योरिटी पेपर के सिक्योरिटी फीचर को कम किया जा रहा था, ये कंपनी पाकिस्तान के लिए भी सिक्योरिटी पेपर छापने का काम करती हैं। जिसके बाद ये आरोप लगे कि इस कंपनी द्वारा भारत का सिक्योरिटी पेपर पाकिस्तान को गुपचुप तरीके से दिया जा रहा था ताकि भारत के नकली नोट छापने में पाक को सरलता हो।

यहाँ पाक आईएसआई का नाम सामने आया कि आईएसआई की ओर से कंपनी के कर्मचारियों को घूस दी जाती थी। मगर इस खेल में अरविंद मायाराम क्यों शामिल थे? क्यों वो ब्लैकलिस्टेड कंपनी से पेपर लेते रहे?

मोदी सरकार ने लिया एक्शन...

जब 2014 में मोदी सरकार सत्ता में आयी, तब गृहमंत्री राजनाथ सिंह को ये बात पता चली की इतना बड़ा गोलमाल चल रहा था। इसके बाद उन्होंने सिक्योरिटी पेपर डे ला रू कंपनी से लेना बंद करवाया। ये भी सामने आया कि इस कंपनी से सिक्योरिटी पेपर काफी महंगे दाम पर खरीदा जा रहा था, यानी ये कंपनी देश को लूट रही थी और देश का वित्तमंत्रालय इस काम में विदेशी कंपनी की मदद कर रहा था।

मायाराम के इस कालेकारनामे की खबर पीएमओ को हुई तो पीएमओ ने गंभीरता पूर्वक इस मामले को उठाया और मुख्य सतर्कता आयुक्त द्वारा इसकी जांच करवाई। मुख्य सतर्कता आयुक्त द्वारा वित्तमंत्रालय से इससे जुडी फाइल मांगी गयी। इस वक़्त वित्तमंत्री अरुण जेटली बन चुके थे, मगर इसके बावजूद वित्तमंत्रालय द्वारा फाइल देने में देर की गयी।

इसके बाद ये मामला पीएमओ से होता हुआ सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संज्ञान में आया और फिर मोदी ने खुद एक्शन लिया, तब जाकर मुख्य सतर्कता आयुक्त के पास फाइल पहुंची‌। क्या जेटली ने फाइलें देने में देर करवाई या फिर कोंग्रेसी चाटुकारों ने जो वित्तमंत्रालय तक में बैठे हैं? ये बात साफ़ नहीं हो पायी।

नोटबंदी ना करते मोदी तो नकली करेंसी का ये खेल चलता ही रहता। डे ला रू से सिक्योरिटी पेपर लेना बंद किया। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने और पीएम मोदी ने की नोटबंदी, जिसके कारण पाकिस्तान द्वारा नकली करेंसी की छपाई बेहद कम हुई और यही कारण है कि कांग्रेस के दस वर्षों में आतंकवादी घटनाएं जो आम हो गयी थी, वो मोदी सरकार के काल में ना के बराबर हुई।

कश्मीर के अलावा देश के किसी भी राज्य में बम ब्लास्ट नहीं हो पाए। आतंकियों तक पैसा पहुंचना जो बंद हो गया था‌। पीएम मोदी ने जांच करवाई और मायाराम के खिलाफ मुख्य सतर्कता आयुक्त और सीबीआई द्वारा आरोप तय किये गए‌।

आपको यहां ये भी बता दें कि जिस मायाराम के खिलाफ चार्ज फ्रेम किये गए हैं, उसी को राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने आर्थिक सलाहकार के पद पर नियुक्त कर लिया। यानी एक घपलेबाज को अपना आर्थिक सलाहकार बना लिया।

वही अशोक चावला का नाम चिदंबरम के एयरसेल-मैक्सिस घोटाले में भी सामने आया। जिसके बाद ने नेशनल स्‍टॉक एक्‍सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड के बोर्ड ऑफ डायरेक्‍टर्स के चेयरमैन व पब्लिक इंटरेस्‍ट डायरेक्‍टर पद से अशोक चावला को इस्तीफा देना पड़ा‌।

जुलाई 2018 में सीबीआई ने चिदंबरम को एयरसेल-मैक्सिस मामले में आरोपी बनाया था। सीबीआई ने चिदंबरम, उनके बेटे कार्ति और 16 अन्‍य के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी, जिसमें आर्थिक मामलों के पूर्व केंद्रीय सचिव अशोक कुमार झा, तत्‍कालीन अतिरिक्‍त सचिव अशोक चावला, संयुक्‍त सचिव कुमार संजय कृष्‍णा और डायरेक्‍टर दीपक कुमार सिंह, अंडर सेक्रेटरी राम शरण शामिल हैं।

इस पूरे मामले से ये बात तो साफ़ हो जाती है कि चिदंबरम ने देश में केवल एक या दो नहीं बल्कि जहाँ-जहाँ से हो सका, वहां-वहां से देश को लूटा। चदम्बरम व उसके बेटे कार्ति चिदंबरम ने मिलकर खूब लूटा और इस खेल में ना केवल नौकरशाह शामिल रहे बल्कि न्यायपालिका में भी कई चिदंबरम भक्त बैठे हैं, जो आज भी उसे जेल जाने से बचाते आ रहे हैं‌।

कहा जा रहा है कि सभी में लूट का माल मिलकर बंटता था और यदि चिदंबरम जेल गए तो सीबीआई व ईडी की कम्बल कुटाई उनसे एक दिन भी नहीं झेली जायेगी और वो सब उगल देंगे‌। यदि ऐसा हुआ तो सभी जेल जाएंगे। यही कारण है कि चिदंबरम को हर बार अग्रिम जमानत दे दी जाती हैं।

मगर ये भी तय माना जा रहा है कि यदि मोदी इस बार भी चुनाव जीतकर पीएम बन गए तो चिदंबरम का जेल जाना तय है और फिर कई अन्य गड़े मुर्दे भी बाहर आएंगे। देश को कैसे-कैसे और किस-किस ने लूटा, सबको एक-एक करके सजा होगी। कोंग्रेसी चाटुकार नौकरशाहों समेत माँ-बेटे व कई कोंग्रेसी नेता सलाखों के पीछे पहुंचेंगे।