बुधवार, 12 अप्रैल 2023

क्या है रक्षासूत्र(मौली) जानिए पूरी जानकारी...

मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा हैं। यज्ञ के दौरान इसे बांधे जाने की परंपरा तो पहले से ही रही है, लेकिन इसको संकल्प सूत्र के साथ ही रक्षा-सूत्र के रूप में तब से बांधा जाने लगा, जबसे असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था। इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता है, जबकि देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए यह बंधन बांधा था। मौली को हर हिन्दू बांधता है। इसे मूलत: रक्षा सूत्र कहते हैं।
मौली बांधने का मंत्र :
‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।’
मौली का अर्थ : 'मौली' का शाब्दिक अर्थ है 'सबसे ऊपर' मौली का तात्पर्य सिर से भी है। शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान है इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।  मौली के भी प्रकार हैं। 

कैसी होती है मौली..? :
मौली कच्चे धागे या सूत से बनाई जाती है जिसमें मूलतः 3 रंग के धागे होते हैं लाल, पीला और हरा, लेकिन कभी -कभी यह 5 धागों की भी बनती है जिसमें नीला और सफेद भी होता है। 3 और 5 का मतलब कभी त्रिदेव तो कभी पंचदेव का प्रतीक...
 
कब बांधी जाती है मौली :
*पर्व-त्योहार के अलावा किसी अन्य दिन कलावा बांधने के लिए मंगलवार और शनिवार का दिन शुभ माना जाता है।
हर मंगलवार और शनिवार को पुरानी मौली को उतारकर नई मौली बांधना उचित माना गया है। 
*उतारी हुई पुरानी मौली को पीपल के वृक्ष के पास रख दें या किसी बहते हुए जल में बहा दें।
*प्रतिवर्ष की संक्रांति के दिन, यज्ञ की शुरुआत में, कोई इच्छित कार्य के प्रारंभ में, मांगलिक कार्य, विवाह आदि हिन्दू संस्कारों के दौरान मौली बांधी जाती है।

सनातन परंपरा में मौली शुभता का प्रतीक है, मौली बांधने से टल जाती है कई बाधाएं... मौली बांधना जिसे रक्षा सूत्र भी कहते है, हर धार्मिक कार्य या पूजा के आरम्भ में तिलक के साथ यह अनिवार्य माना जाता है। मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है।


मोली बांधने के नियम :

- शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए और विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में कलावा बांधने का नियम है। 
- जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों, उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए।
- मौली 3, 5 या 7 बार ही लपेटना चाहिए। एक बात का विशेष ध्यान रखें, कभी भी अपनी लंबाई से लंबी मौली ना बांधे।
- नई मौली को बांधने से पहले पुरानी मौली खोल देनी चाहिए।
- पूजा करते समय नवीन वस्त्रों के न धारण किए होने पर मोली हाथ में धारण अवश्य करना चाहिए। 

शुभता का प्रतीक है मौली 

व्यापार और घर में भी वस्तुओं पर मौली का प्रयोग नए वाहन, नए सामान, व्यापार में कलम, बही-खाते, तिजोर, पूजन साम्रग्री आदि पर मौली बांधना शुभता और लाभ का प्रतीक माना जाता है।

संकटों से रक्षा करती है मौली 

मौली को कलाई में बांधने पर कलावा या उप मणिबंध करते हैं। हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं। भाग्य व जीवन रेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। इन तीनों रेखाओं में दैहिक, दैविक व भौतिक जैसे त्रिविध तापों को देने व मुक्त करने की शक्ति रहती है।

इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु व ब्रह्मा हैं। इसी तरह शक्ति, लक्ष्मी व सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता है। जब हम कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं तो यह तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती है।

मौली(कलावा) बांधने के सिर्फ धार्मिक हीं नहीं बल्कि वैज्ञानिक महत्व भी हैं।

- मोली बांधने से शरीर में वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है और शरीर स्वस्थ रहता है।
- डायबीटिज, ब्लड प्रेशर, लकवा और हार्ट अटैक जैसे रोगों में मौली बांधना लाभकारी होता है।
- इसके साथ ही यदि किसी यजमान के मौली बंधी हुई है और वो किसी अनुष्ठान में पूजन कर रहा हो तो सूतक का दोष लगने पर भी यह रक्षा सूत्र उस अनुष्ठान से बाधा टल जाती है।

मनोवैज्ञानिक लाभ : मौली बांधने से उसके पवित्र और शक्तिशाली बंधन होने का अहसास होता रहता है और इससे मन में शांति और पवित्रता बनी रहती है। व्यक्ति के मन और मस्तिष्क में बुरे विचार नहीं आते और वह गलत रास्तों पर नहीं भटकता है। कई मौकों पर इससे व्यक्ति गलत कार्य करने से बच जाता है।