गुरुवार, 29 अगस्त 2019

सभी हिन्दू जाने ब्रहमाजी पर फैलाएं गए झुठ का सच

ब्रह्मा जी को प्रजापति भी कहा जाता है...


कहते हैं कि हिंदू धर्म में ब्रह्मा की पूजा नहीं की जाती..! 

पूरे भारत में सिर्फ एक ही मंदिर है ब्रह्मा जी का‌ पुष्कर में...

लोग इसकी शर्मनाक वजह बताते हैं कि उन्होंने अपनी ही बेटी से रोमांस किया था लेकिन ये सत्य नहीं हैं, 

आइए जानते हैं क्या है उसके पीछे का सच...

इस कहानी के पीछे भागवत के इस श्लोक का लॉजिक दिया जाता है:

वाचं दुहितरं तन्वीं स्वयंभूर्हतीं मन:।
अकामां चकमे क्षत्त्: सकाम् इति न: श्रुतम् ॥

(श्रीमदभागवत् 3/12/28)

इसका मतलब कि ब्रह्मा अपनी जवान बेटी पर मोहित हो गए, हालांकि बेटी जवान हो गई थी लेकिन उस पर काम वासना का असर नहीं हुआ था। फिर भी ब्रह्मा उस पर मोहित हो गए, ऐसा सुना जाता हैं।


इसके सिवा एक जगह और ऐसा ही लिखा आता है, जिसका प्रयोग लोग ब्रह्मा को अपूज्य बताने के दावे में करते हैं...

प्रजापतिवै स्वां दुहितरमभ्यधावत्
दिवमित्यन्य आहुरुषसमितन्ये
तां रिश्यो भूत्वा रोहितं भूतामभ्यैत्
तं देवा अपश्यन्
“अकृतं वै प्रजापतिः करोति” इति
ते तमैच्छन् य एनमारिष्यति
तेषां या घोरतमास्तन्व् आस्ता एकधा समभरन्
ताः संभृता एष् देवोभवत्
तं देवा अबृवन्
अयं वै प्रजापतिः अकृतं अकः
इमं विध्य इति स् तथेत्यब्रवीत्
तं अभ्यायत्य् अविध्यत्
स विद्ध् ऊर्ध्व् उदप्रपतत् ( एतरेय् ब्राहम्ण् 3/333)

इसका मतलब ये है कि प्रजापति अपनी बेटी की तरफ दौड़े... उस लाल लड़की के पीछे भागे... देवताओं ने देखा और कहा कि ये प्रजापति तो गंदा काम कर रहे हैं, तब उन्होंने तमाम बड़े-बड़े शरीर जोड़कर शरीरों का एक भारी ग्रुप बना दिया। उस ग्रुप से कहा कि यह प्रजापति गंदा काम कर रहा है, मार दे इसे... उस ग्रुप ने तथास्तु कहकर प्रजापति को एक तीर मारा,
प्रजापति घायल हो कर वहीं गिर गए।

इस श्लोक का हर जगह प्रयोग किया जाता है, ब्रह्मा जी को बदनाम करने के लिए... लेकिन इसकी गहराई में जाएं बगैर, इसमें कहा गया है कि प्रजापति दौड़ा लाल रंग की लड़की की तरफ... लेकिन ब्रह्मा की बेटी सरस्वती तो धवल यानि सफेद हैं, फिर कौन है ये लाल लड़की..?

उषा लाल हो सकती है, उषा मतलब उगते हुए सूरज के वक्त आसमान में जो लाली होती है लेकिन वो ब्रह्मा की बेटी ही नहीं है..! अब बड़ी मिस्ट्री ये है कि ये साहब प्रजापति हैं कौन..? और कौन है उसकी बेटी..?

अथर्व वेद में ये श्लोक हैं...

सभा च मा समितिश्चावतां प्रजापतेर्दुहितौ संविदाने
येना संगच्छा उप मा स शिक्षात् चारु वदानि पितर: संगतेषु

इसका मतलब हिंदी में ऐसा है कि सभा और समिति ये दो प्रजापति की दुहिता यानि बेटियां हैं। सभा माने ग्रामसभा और समिति माने प्रतिनिधि सभा... इन सभाओं के सभासद राजा के लिये पिता की तरह हैं और राजा को उनकी पूजा करनी चाहिए, उनसे सलाह लेनी चाहिए... 

राजा यानी प्रजापति की जिम्मेदारी है, वह अपनी बेटी समान सभा और समिति का पूरा खयाल रखे लेकिन खयाल रखने के बावजूद वह उन पर हक नहीं जता सकता..! प्रजा को पालने के हक की वजह से राजा को प्रजापति कहा गया हैं। प्रतिनिधि सभा के सभासद राजा चुनने का काम करते हैं।

लगे हाथ एक और वेद का श्लोक देख लिया जाएं...

पिता यस्त्वां दुहितरमधिष्केन् क्ष्मया रेतः संजग्मानो निषिंचन् 
स्वाध्योऽजनयन् ब्रह्म देवा वास्तोष्पतिं व्रतपां निरतक्षन् ॥ (ऋगवेद -10/61/7)
इसका अर्थ ये है कि राजा यानि प्रजापति ने अपनी बेटी यानि प्रजा पर हमला कर दिया। प्रजा ने छेड़ दी क्रांति, राजा की हार हो गई फिर बड़े बुजुर्गों ने उस राजा को खर्चा पानी देकर बैठा दिया और दूसरा राजा चुना। सीधा-सा अर्थ ये कि राजा ने प्रजा से जबरदस्ती की, उसकी उसे सजा मिली।
अब असल बात जो है, वो ये कि प्रजापति दो हैं। एक ब्रह्मा और एक राजा... लोगों ने दोनों की कहानी गड्ड-मड्ड कर सुनानी शुरू कर दी। ये अफवाह पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती गई, लोग बिना किसी रिसर्च के गुमराह होते रहें...

अतः बिना सत्य जाने कोई भी भ्रामिक बात को न मानें।

🙏🏻 जय हो परमपिता परमात्मा 🙇🏻 जय सनातन ⛳