एक मानव विज्ञानी, उबंटू जनजाति की आदतों और रीति-रिवाजों का अध्ययन, इस समाज के लोगों के साथ रहकर कर रहे थे। जब उनका अध्ययन समाप्त हो गया तो वो एअरपोर्ट जाने के लिये टैक्सी का इन्तजार कर रहे थे। अपनी स्टडी के दौरान वो वहां के बच्चों के साथ घुल मिल गये थे।
जाते-जाते उस मानव विज्ञानी ने उस जनजाति के बच्चों के साथ एक खेल खेलने का प्लान बनाया।
चूँकि वह बाहर से आये थे इसलिए वह शहर से बहुत सारा कैंडी और मिठाई लेकर आये थे। उन सबको उन्होंने एक सुंदर रिबन लगी टोकरी में डाल दिया और पास ही एक पेड़ के नीचे रख दिया और बच्चों को एक लाइन दिखाते हुए कहा कि आप लोग इस लाइन के पास खड़े रहो, जैसे ही मैं कहूँगा – जाओ... तब आप लोगों को जाना है और जो सबसे पहले जायेगा, उसे पूरी टोकरी की कैंडी मिल जायेगी...
जब उन्होंने कहा, “जाओ” बच्चों के कार्यकलाप देख, वह मानव विज्ञानी दंग रह गए। सभी बच्चों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़ लिया और एक समूह के रूप में टोकरी की तरफ दौड़ पड़े... सबने कैंडी लिया और एक-दूसरे के साथ मिल बांटकर मजे के साथ खाने लगे।
मानव विज्ञानी बहुत हैरान था। उसने उन बच्चों से पूछा – ‘आप लोग सब एक ही साथ क्यों गए..? जबकि शर्त के अनुसार जो पहले जाता, उसे पूरी टोकरी मिल जाती...
एक छोटी बच्ची ने सरलतापूर्वक कहा: "हममें से कोई एक कैसे खुश हो सकता हैं..! जबकि अन्य सभी दुखी हो"
मानव विज्ञानी चुपचाप और स्तब्ध था। वह वहां उनके बीच कई महीने से रहता चला आ रहा था लेकिन उनके वास्तविक परम्परा और संस्कार का पता उसे आज चला था, वो भी बच्चों के द्वारा... वास्तव में उसे उनकी असली सार का पता चल गया था।
"उबंटू" एक नैतिक अवधारणा, एक दर्शन और जीवन का एक तरीका हैं, जो हमारे पश्चिमी पूंजीवादी समाज में फैल रही संकीर्णता और व्यक्तिवाद का विरोध करता है। उबंटू की भावना है- "सामूहिक कल्याण की कीमत पर, व्यक्तिगत लाभ नहीं उठाना"
"उबंटू" यानी "मैं हूँ, क्योंकि हम हैं।"
आइये हम सब भी उबंटू बोले और इसे जिए...🧑🏻🤝🧑🏻⛳