बुधवार, 27 सितंबर 2017

सावधान! जहरीला है मनी प्लांट

हर कोई चाहता है कि उसके ड्राइंग रूम और घर में सजावटी और खूबसूरत पौधे हों लेकिन आपको यह जानकार हैरानी होगी कि ये सजावटी पौधे जहरीले भी हो सकते हैं।आम तौर पर ड्राइंग रूम में रखा जाने वाला डंब केन या डायफेनबाचिया (मनी प्लांट) भी एक ऐसा ही पौधा है। इसके संपर्क में आने पर त्वचा और मुंह में जलन के अलावा आंखों को भी नुकसान हो सकता है। इसके चलते जानकार इस पौधे को घर में न लगाने की सलाह देने लगे हैं।भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के कृषि विज्ञान केंद्र के बागवानी विशेषज्ञ डॉ. रंजीत सिंह ने बताया कि इस पौधे में ऑक्सलिक एसिड और एसपरजीन नामक बहुत जहरीला तत्व भी होता है।

मंगलवार, 26 सितंबर 2017

जय माँ बनभौरी ( माता भ्रामरी देवी )


 

ऐतिहासिक शक्तिपीठ माता बनभौरी धाम में माता भ्रामरी देवी की सच्चे मन से मांगी गई हर श्रद्धालु की मन्नत पूरी करती है। बनभौरी धाम में भक्तजन मन्नतों का धागा बांध कर मुरादें मांगते हैं तथा उनके पूरा होने पर फिर सिर झुकाने व दरबार में हाजिरी लगाने मां के चरणों में आते हैं।
देवताओं की सहायता के लिए देवी ने अनेक अवतार लिए। भ्रामरी देवी का अवतार लेकर देवी ने अरुण नामक दैत्य से देवताओं की रक्षा की थी। इसकी कथा इस प्रकार है - पूर्व समय की बात है। अरुण नामक दैत्य ने कठोर नियमों का पालन कर भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या की... तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव प्रकट हुए और अरुण से वर मांगने को कहा... अरुण ने वर मांगा कि 'कोई युद्ध में मुझे नहीं मार सके, न किसी अस्त्र-शस्त्र से मेरी मृत्यु हो, स्त्री-पुरुष के लिए मैं अवध्य रहूं और न ही दो व चार पैर वाला प्राणी मेरा वध कर सकें, साथ ही मैं देवताओं पर विजय प्राप्त कर सकूं।' ब्रह्माजी ने उसे यह सारे वरदान दे दिए। वर पाकर अरुण ने देवताओं से स्वर्ग छीनकर उस पर अपना अधिकार कर लिया। सभी देवता घबराकर भगवान शंकर के पास गए। तभी आकाशवाणी हुई कि सभी देवता देवी भगवती की उपासना करें, वे ही उस दैत्य को मारने में सक्षम हैं। आकाशवाणी सुनकर सभी देवताओं ने देवी की घोर तपस्या की... प्रसन्न होकर देवी ने देवताओं को दर्शन दिए। उनके छह पैर थे। वे चारों ओर से असंख्य भ्रमरों (एक विशेष प्रकार की बड़ी मधुमक्खी) से घिरी थीं। उनकी मुट्ठी भी भ्रमरों से भरी थी। 
भम्ररों से घिरी होने के कारण देवताओं ने उन्हें "भ्रामरी देवी" के नाम से संबोधित किया। देवताओं से पूरी बात जानकार देवी ने उन्हें आश्वस्त किया तथा भ्रमरों को अरुण को मारने का आदेश दिया। पल भर में ही पूरा ब्रह्मांड भ्रमरों से घिर गया। कुछ ही पलों में असंख्य भ्रमर अतिबलशाली दैत्य अरुण के शरीर से चिपक गए और उसे काटने लगे। अरुण ने काफी प्रयत्न किया लेकिन वह भ्रमरों के हमले से नहीं बच पाया और उसने प्राण त्याग दिए। इस तरह देवी भगवती ने भ्रामरीदेवी का रूप लेकर देवताओं की रक्षा की...

बुधवार, 20 सितंबर 2017

आइये जानें भारत विश्व गुरू क्यों था ?

१. शतरंज के खेल की खोज भारत मे हुई थी।

२. भारत ने अपने इतिहास में किसी भी देश पर कब्जा नहीं किया।

३. अमरिका के जेमोलोजिकल संस्थान के अनुसार 1896 तक भारत ही केवल हीरो का स्त्रोत था।

४. भारत 17वीं सदी तक धरती पर सबसे अमीर देश था, इसलिए यह सोने की चीड़िया कहलाता था।

५. भारत में हीं संख्या पद्धति का आविष्कार हुआ और आर्यभट्ट ने शून्य की कल्पना की...

६. नाविक विद्दा की खोज 6000 पूर्व भारत में सिन्ध नदी में हुई थी।

७. विश्व का पहला विश्वविद्दालय तक्षशिला 700 बीसी में भारत में स्थापित किया गया था।

८. संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है।

९. भास्कराचार्य ने पृथ्वी द्वारा सूर्य का ग्रह पथ का समय ३६५.२५८७५६४८४ दिन पांचवी शताब्दी में ही दिया था यानी न्यूटन के दादा के जन्म से पहले...

१०. आयुर्वेद का जन्म भारत में हुआ।

११. अर्थशास्त्र का जन्म भारत में चाण्क्य के द्वारा...

१२. विश्व का सबसे पुराना पुस्तक "वेद" भारत में...

१३. मानव जाती का विकाश भारत में...

१४. सभ्यता संस्कृति का विकास भारत में...

१५. विज्ञान का विकाश भारत में...

१६. वायुयान का आविष्कार शिवकरवापूजी तलपड़े ने 1895 में किया था।

१७. पायथागोरस परिमेय का सुत्र उपनिषदों में पाया गया है।

१८. बैटरी निर्माण बिधि का आविष्का रसर्वप्रथम
महर्षि अगस्त्य ने किया था (अगस्त्य संहिता ) बेंजामिन फ्रेंक्लिनके जन्म से पहले...

१९. सबसे पहले व्याकरण की रचना भारत में महर्षि पाणिनी द्वारा...

२०. लोकतंत्र का जन्म भारत मे...

२१. सबसे पुराना शहर काशी (भारत)

२२. प्लास्टिक सर्जरी का आविष्कारकऋषि सुश्रुत भारत में...

२३. सबसे पुराना धर्म सनातन धर्म भारत में...

जाने गऊ सेवा के चमत्कार

अनादिकाल से मानवजाति गौमाता की सेवा कर अपने जीवन को सुखी, समृद्ध, निरोग, ऐश्वर्यवान एवं सौभाग्यशाली बनाती चली आ रही है. गौमाता की सेवा के माहात्म्य से शास्त्र भरे पड़े है. आईये शास्त्रों की गौ महिमा की कुछ झलकियाँ देखे –

गौ को घास खिलाना कितना पुण्यदायी
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तीर्थ स्थानों में जाकर स्नान दान से जो पुन्य प्राप्त होता है, ब्राह्मणों को भोजन कराने से जिस पुन्य की प्राप्ति होती है, सम्पूर्ण व्रत-उपवास, तपस्या, महादान तथा हरि की आराधना करने पर जो पुन्य प्राप्त होता है, सम्पूर्ण प्रथ्वी की परिक्रमा, सम्पूर्ण वेदों के पढने तथा समस्त यज्ञो के करने से मनुष्य जिस पुन्य को पाता है, वही पुन्य बुद्धिमान पुरुष गौ माता को ग्रास खिलाकर प्राप्त कर लेता है.

गौ सेवा से वरदान की प्राप्ति
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जो पुरुष गौ की सेवा और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है, उस पर संतुष्ट होकर गौ माता उसे अत्यंत दुर्लभ वर प्रदान करती है.

गौ सेवा से मनोकामनाओ की पूर्ति
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गौ की सेवा यानि गाय को चारा डालना, पानी पिलाना, गाय की पीठ सहलाना, रोगी गाय का ईलाज करवाना आदि करने वाले मनुष्य पुत्र, धन, विद्या, सुख आदि जिस-जिस वस्तु की इच्छा करता है, वे सब उसे प्राप्त हो जाती है, उसके लिए कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं होती.

भूमि दोष समाप्त होते है
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गौ का समुदाय जहा बैठकर निर्भयतापूर्वक साँस लेता है, उस स्थान की शोभा को बढ़ा देता है और वह के सारे पापो को खीच लेता है.

सबसे बड़ा तीर्थ गौ सेवा
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देवराज इंद्र कहते है- गौ में सभी तीर्थ निवास करते है. जो मनुष्य गाय की पीठ स्पर्श करता है और उसकी पूछ को नमस्कार करता है वह मानो तीर्थो में तीन दिनों तक उपवास पूर्वक रहकर स्नान कर लेता है.

असार संसार छः सार पदार्थ
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भगवान विष्णु, एकादशी व्रत, गंगा नदी, तुलसी, ब्रह्मण और गाय – ये 6 इस दुर्गम असार संसार से मुक्ति दिलाने वाले है.

मंगल होगा
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जिसके घर बछड़े सहित एक भी गाय होती है, उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते है और उसका मंगल होता है. जिसके घर में एक भी गौ दूध देने वाले न हो उसका मंगल कैसे हो सकता है ? और उसके अमंगल का नाश कैसे हो सकता है ?.

ऐसा न करे
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गौ, ब्राह्मणों तथा रोगियों को जब कुछ दिया जाता है उस समय जो न देने की सलाह देते है वे मरकर प्रेत बनते है.

गोपूजा – विष्णुपूजा
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भगवान् विष्णु देवराज इन्द्र से कहते है कि हे देवराज! जो मनुष्य अस्वस्थ वृक्ष और गौ की सदा पूजा सेवा करता है, उसके द्वारा देवताओं, असुरो और मनुष्यों सहित सम्पूर्ण जगत की भी पूजा हो जाती है. उस रूप में उसके द्वारा की हुई पूजा को मैं यथार्थ रूप से अपनी पूजा मानकर ग्रहण करता हूँ.

गोधूली महान पापों की नाशक है
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गायो के खुरो से उठी हुई धूलि, धान्यो की धूलि तथा पुट के शरीर में लगी धूलि अत्यंत पवित्र एवं महापापो का नाश करने वाले है.

चारो सामान है
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नित्य भागवत का पाठ करना, भगवान् का चिंतन, तुलसी को सींचना और गौ की सेवा करना ये चारो सामान है

गौ को प्रणाम करने से
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धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारो की प्राप्ति होती है. अतः सुख की इच्छा रखने वाले बुद्धिमान पुरुष को गायो को निरंतर प्रणाम करना चाहिए.

गौदुग्ध – धरती का अमृत
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गाय का दूध धरती का अमृत है. विश्व में गौ दुग्ध के सामान पौष्टिक आहार दूसरा कोई नहीं है. गाय के दूध को पूर्ण आहार माना गया है. यह रोग निवारक भी है. गाय के दूध का कोई विकल्प नहीं है. यह एक दिव्य पदार्थ है.
वैसे भी गाय के दूध का सेवन करना गौ माता की महान सेवा करना ही है. क्योकि इससे गोपालन को बढ़ावा मिलता है और अप्रत्यक्ष रूप से गाय की रक्षा ही होती है. गाय के दूध का सेवन कर गौमाता की रक्षा में योगदान तो सभी दे ही सकते है.

पंचगव्य
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गाय के दूध, दही, घी, गोबर रस, गो-मूत्र का एक निश्चित अनुपात में मिश्रण पंचगव्य कहलाता है. पंचगव्य का सेवन करने से मनुष्य के समस्त पाप उसी प्रकार भस्म हो जाते है, जैसे जलती आग से लकड़ी भस्म हो जाते है.
मानव शरीर का ऐसा कोई रोग नहीं है, जिसका पंचगव्य से उपचार नहीं हो सकता. पंचगव्य से पापजनित रोग भी नष्ट हो जाते है.

* गौ के दर्शन, पूजन, नमस्कार, परिक्रमा, गाय को सहलाने, गौग्रास देने तथा जल पिलाने आदि सेवा के द्वारा मनुष्य दुर्लभ सिद्धियाँ प्राप्त होती है.

* गो सेवा से मनुष्य की मनोकामनाएँ जल्द ही पूरी हो जाती है.

गुरुवार, 14 सितंबर 2017

आओ हम हिन्दी अपनाएँ, गैरों को परिचय करवाएँ...

हिन्दी मेरा आन हैं, हिन्दी मेरी पहचान हैं...
हिन्दू हूँ मैं... वतन भी मेरा प्यारा हिन्दुस्तान हैं...

हिन्दी की बिन्दी को मस्तक पे सजा के रखना हैं...
सर आँखो पे बिठाएँगे, यह भारत माँ का गहना हैं...

बढ़े चलो हिन्दी की डगर हो, अकेले फिर भी मगर...
मार्ग की काँटे भी देखना, फूल बन जाएँगे पथ पर...

हिन्दी को आगे बढ़ाना हैं, उन्नति की राह ले जाना हैं...
केवल इक दिन ही नहीं हमने नित हिन्दी दिवस मनाना हैं.

हिन्दी से हिन्दुस्तान हैं, तभी तो यह देश महान हैं...
निज भाषा की उन्नति के लिए अपना सब कुछ कुर्बान हैं.

निज भाषा का नहीं गर्व जिसे क्या प्रेम देश से होगा उसे...
वही वीर देश का प्यारा हैं, हिन्दी ही जिसका नारा हैं...

राष्ट्र की पहचान है जो, भाषाओं में महान है जो...
जो सरल सहज समझी जाए, उस हिन्दी को सम्मान दो...

अग्रेजी का प्रसार भले, हम अपनी भाषा भूल चले...
तिरस्कार माँ भाषा का जिसकी ही गोदि में हैं पले...

भाषा नहीं होती बुरी कोई, क्यों हमने मर्यादा खोई...
क्यों जागृति के नाम पर हमने स्व-भाषा ही डुबोई...

अच्छा बहु भाषा का ज्ञान, इससे ही बनते हैं महान...
सीखो जी भर भाषा अनेक पर राष्ट्र भाषा न भूलो एक...

इक दिन ऐसा भी आएगा, हिन्दी परचम लहराएगा...
इस राष्ट्र भाषा का हर ज्ञाता भारतवासी कहलाएगा...

निज भाषा का ज्ञान ही उन्नति का आधार हैं...
बिन निज भाषा ज्ञान के नहीं होता सद-व्यवहार हैं...

आओ हम हिन्दी अपनाएँ, गैरों को परिचय करवाएँ...
हिन्दी वैज्ञानिक भाषा हैं, यह बात सभी को समझाएँ...

नहीं छोड़ो अपना मूल कभी, होगी अपनी भी उन्नति तभी
सच्च में ज्ञानी कहलाओगें, अपनाओगे निज भाषा जभी...

हिन्दी ही हिन्द का नारा हैं, प्रवाहित हिन्दी धारा हैं...
लाखों बाधाएँ हो फिर भी, नहीं रुकना काम हमारा हैं...

हम हिन्दी ही अपनाएँगे, इसको ऊँचा ले जाएँगे...
हिन्दी भारत की भाषा हैं, हम दुनिया को दिखाएँगे।

जय हिंद जय हिंदी
                            

बुधवार, 13 सितंबर 2017

हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा #हिंदी_दिवस पर सिनेमा और सियासत से लेकर संस्कारों तक हुई हिंदी की दुर्दशा को व्यक्त करती कवि गौरव चौहान, इटावा, उत्तर प्रदेश की कविता

रे भारत मैं तेरी बेटी, तुलसी तेरे आँगन की,
जन जन की भाषा हूँ, परिभाषा हूँ सत्य सनातन की,

सकल विश्व का संवर्धन हूँ, दुविधा का निस्तारण हूँ,
नवजातों के मुख से निकला मैं पहला उच्चारण हूँ,

तुलसी के मानस का दर्पण,गीता का सम्बोधन हूँ,
मैं रहीम की दोहावलि हूँ, कबिरा का उद्बोधन हूँ,

कृष्ण प्रेम हूँ रसखानों का, मीरा की परिपाटी हूँ,
भक्ति मार्ग पर विचरण करते सूरदास की लाठी हूँ,

मैं दिनकर का इंकलाब हूँ, जय शंकर की छाया हूँ,
प्रेमचंद का गाँव, महादेवी की निर्मल काया हूँ,

मातृभूमि का हूँ सिंगार मैं तीन रंग की चोली हूँ,
सत्तावन से सैतालिस तक आज़ादी की बोली हूँ,

मेरी गरिमा,मान मेरा,अपनों ने ही बिसराया है,
नए दौर के चाल चलन ने मुझको ही ठुकराया है,

भारत हुआ इंडिया, सबको बहुत परायी लगती हूँ,
अंग्रेजो की अंग्रेजी से आज सताई लगती हूँ,

नए ज़माने की माताएं, होड़ लगाने वाली हैं,
अंग्रेजी की मैराथन में दौड़ लगाने वाली हैं,

माँ से मम्मा कहलाने में ज्यादा अच्छा लगता है,
और पिता को डैडी कहना ज्यादा सच्चा लगता है,

ट्विंकल ट्विंकल रटा रहे हैं, चन्दा मामा दूर हुए,
जॉनी जॉनी यस पापा भी हर घर में मशहूर हुए,

हल्लो हाय मची पड़ी है, और नमस्ते छूट गया,
जिंगल बैल बजी,दादी का उड़न खटोला टूट गया,

हिंदी फिल्मो से जिनकी मैं रोटी दाल चलाती हूँ,
उन्ही हिरोइन हीरों के हाथो से मारी जाती हूँ,

जिस हिंदी को बोल करोड़ो रुपये रोज कमाते हैं,
वो अपनी दिनचर्या में उस हिंदी को खा जाते हैं,

हिंदी है सम्मान वतन का, बस फ़िल्मी व्यापार नहीं,
जो हिंदी ना बोले उसको अभिनय का अधिकार नही,

ये गौरव चौहान कहे, भारत की सब संतानो से,
निज भाषा की उन्नति सीखो चीन और जापानों से,

मैं हिंदी,घायल हूँ,खुद ही ज़ख्मो को सहलाती हूँ,
मुझको मेरा मान दिला दो, मैं झोली फैलाती हूँ,

सोमवार, 11 सितंबर 2017

दही में नमक डाल कर न खाऐं

कभी भी आप दही को नमक के साथ मत खाईये. दही को अगर खाना ही है, तो हमेशा दही को मीठी चीज़ों के साथ खाना चाहिए, जैसे कि चीनी के साथ, गुड के साथ, बूरे के साथ आदि.

इस क्रिया को और बेहतर से समझने के लिए आपको बाज़ार जाकर किसी भी साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट की दूकान पर जाना है, और वहां से आपको एक लेंस खरीदना है. अब अगर आप दही में इस लेंस से देखेंगे तो आपको छोटे-छोटे हजारों बैक्टीरिया नज़र आएंगे. ये बैक्टीरिया जीवित अवस्था में आपको इधर-उधर चलते फिरते नजर आएंगे. ये बैक्टीरिया जीवित अवस्था में ही हमारे शरीर में जाने चाहिए, क्योंकि जब हम दही खाते हैं तो हमारे अंदर एंजाइम प्रोसेस अच्छे से चलता है.

*हम दही केवल बैक्टीरिया के लिए खाते हैं.* दही को आयुर्वेद की भाषा में जीवाणुओं का घर माना जाता है. अगर एक कप दही में आप जीवाणुओं की गिनती करेंगे तो करोड़ों जीवाणु नजर आएंगे. अगर आप मीठा दही खायेंगे तो ये बैक्टीरिया आपके लिए काफ़ी फायेदेमंद साबित होंगे. *वहीं अगर आप दही में एक चुटकी नमक भी मिला लें तो एक मिनट में सारे बैक्टीरिया मर जायेंगे* और उनकी लाश ही हमारे अंदर जाएगी जो कि किसी काम नहीं आएगी. अगर आप 100 किलो दही में एक चुटकी नामक डालेंगे तो दही के सारे बैक्टीरियल गुण खत्म हो जायेंगे. क्योंकि नमक में जो केमिकल्स है वह जीवाणुओं के दुश्मन है.

आयुर्वेद में कहा गया है कि दही में ऐसी चीज़ मिलाएं, जो कि जीवाणुओं को बढाये ना कि उन्हें मारे या खत्म करे | दही को गुड़ के साथ खाईये. गुड़ डालते ही जीवाणुओं की संख्या मल्टीप्लाई हो जाती है और वह एक करोड़ से दो करोड़ हो जाते हैं. थोड़ी देर गुड मिला कर रख दीजिए. बूरा डालकर भी दही में जीवाणुओं की ग्रोथ कई गुना ज्यादा हो जाती है. मिश्री को अगर दही में डाला जाये तो ये सोने पर सुहागे का काम करेगी. भगवान कृष्ण भी दही को मिश्री के साथ ही खाते थे. पुराने समय के लोग अक्सर दही में गुड़ डाल कर दिया करते थे.

स्वामी विवेकानन्द जी का विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में दिया गया भाषण 

स्वामी विवेकानंद जी ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। विवेकानंद का जब भी जिक्र आता है उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है। पढ़ें विवेकानंद जी का यह भाषण... 

अमेरिका के बहनो और भाइयो 
आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। 

मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्त्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था। और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है। भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है: जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं।वर्तमान सम्मेलन जोकि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है: जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं। 

सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं। 

अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

दलितों का गुनाहगार कौन...?

एकनाथ , तुकाराम , रविदास जैसे अनेकों दलित हिन्दुओं के संत हैं, जो आज भी सभी सनातनियों के आदरणीय हैं, जिन्हे देखकर आज भी सभी हिंदू नतमस्तक होते हैं।

हमारे यहाँ अनेकों दलित राजा हुए हैं ,
जिनके अधीनता सभी हिन्दुओं को स्वीकार्य था।
               
                            अब......

पुराने काल की बात करें तो रामायण लिखने वाले दलित वाल्मिकी , राम के भी पूज्य थे , लव - कुश के गुरु थे, आज भी पूज्य हैं।

महाभारत के लेखक दलित वेदव्यास सबके पूज्य थे , आज भी पूज्य हैं।

भगवान बुद्ध भी आज की भाषा में दलित थे , वो भी भगवान विष्णु के दसवें अवतार थे ।

                            जबकि,

पिछले एक हजार वर्षों से, भारत के शासक हिन्दू नहीं मुस्लिम थे!(पूर्ण भारत पर अधिकार कभी नही कर पाये ! सिर्फ दिल्ली को छोड़कर)

उसके बाद दो सौ वर्षों तक भारत के शासक हिन्दू नहीं ईसाई थे-#अंग्रेज

पिछले सत्तर वर्षों तक,सेकुलर व दलितों के शुभचिन्तक बुद्धिजीवियों /कम्युनिस्टों / समाजवादियों का राज रहा !

दलितों / मजदूरों / किसानों की हमदर्द पार्टियों का शासन रहा मुझे कोई बताये की दलितों का कितना उत्थान हुआ?

अब बताओ दलितों का असली शत्रु कौन ???

दलित मायावती चार बार सीएम रहीं,
दलितों का कितना उत्थान हुआ...??

हजारों - करोड़ का लेदर इण्डस्ट्री उनसे कैसे?
किसने चालाकी से छीना...??

सीवेज ट्रीटमेण्ट की परिपाटी उनसे जबरन किसने करवाई .....?

हरमों का अपशिष्ट उनसे जबरन किसने फेकवाया...??

पाकिस्तान व बांग्लादेश के दलितों का किसने सफाया किया...??

अब आप जरा ठण्ढ़े दिमाग से सोचिएगा....

आरक्षण की व्यवस्था ने, सब दलितों को नौकरी दे दिया क्या..??

बाबा साहेब के संविधान ने क्या सभी दलितों का उत्थान कर दिया...??

तो आज तक आपके उत्थान न होने का जिम्मेदार आप खुद हैं!

क्योंकि आप बड़े वोटर हैं!
आपने हीं इन सबको जिताया है!

और आपसे भी ज्यादा वे बुद्धिजीवी , थिन्क - टैंक हैं!

जो विदेशी फण्डिंग पे आपको बरगलाते हैं!
हिन्दुओं को आपका शत्रु और विदेशी बताते हैं,

और दलित - मुस्लिम का गठजोड़ बनाते हैं ।

सावधान वर्ना उत्थान के बजाए सफाया न हो जाए हिंदुओं का!

क्योंकि काश्मीर से केवल पंडित हीं नहीं , दलित भी साफ हो गए !
बांग्लादेश और पाकिस्तान की तो बात ही न करो !

कोई शक!

जय श्री राम

सोमवार, 4 सितंबर 2017

गुरुकुल कैसे खत्म हो गये ?


गुरुकुल कैसे खत्म हो गये ?

भारतवर्ष में गुरुकुल कैसे खत्म हो गये ? कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद | 1858 में Indian Education Act बनाया गया। इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकोले’ ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W. Litnar और दूसरा था Thomas Munro ! दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। Litnar, जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100% साक्षरता है |

मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी “देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था” को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह “अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था” लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे | मैकाले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है : “कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।” इस लिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया | जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज की तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी | फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया और इस देश के गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया | उनमें आग लगा दी, उसमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा- पीटा, जेल में डाला।

1850 तक इस देश में ’7 लाख 32 हजार’ गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे ’7 लाख 50 हजार’ | मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में ‘Higher Learning Institute’ हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था और ये गुरुकुल समाज के लोग मिलके चलाते थे न कि राजा, महाराजा | इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी। इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया | उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं |

मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि: “इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा | इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।” उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा। लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी | समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। संयुक्तराष्टसंघजो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी !

शिक्षक दिवस पर जनहित में जारी...

गुरु के आगे राजा शीश नवाते थे।

राज-समस्या को गुरु ही सुलझाते थे।

अब राजा के सम्मुख क्या कदर है दोस्तों...

“सर” को नैतिक शिक्षा पर बल देना होगा...

“मैडम”को ममता का आँचल देना होगा...

आँख खुले तो समझो नई सहर है दोस्तों...

गुरु की खोई महिमा को लौटाना होगा...

हर शाला को गुरुकुल पुन: बनाना होगा...

शिक्षक का गुरुकुल ही तो घर है दोस्तों...

गुरु पूर्णिमा Vs शिक्षक दिवस

भारत में हिन्दुओं के विभिन्न पर्व, त्योहारों के विरुद्ध इल्लुमिनाती जैसे बड़े षणयंत्रकारी छिपे रूप में बहुत परिश्रम कर रहे हैं ताकि ये त्योहार हमारे मन से विलोपित होते जाएं या फिर मीडिया के मॉध्यम से ऐसा प्रचार किया गया कि हिन्दू स्वयं अपने त्योहारों का विरोध करने लगे...

जैसे होली पर पानी, दिवाली पर पटाखें, संक्रांति पर पतंग का आदि...

मित्रों गुरु पूर्णिमा को हिन्दू (सनातन, जैन, सिख, बौद्ध) अपने गुरुजनों के चरणों में सर नवाते हैं।

और इस सर नवाने में प्राचीन ऋषि परम्परा, गुरुकुल परम्परा जीवित हो जाती हैं।

शास्त्र जीवित हो जाते हैं, धर्म प्रतिष्ठित हो जाता हैं, जिसका असर शेष 364 दिन तक रहता हैं।

तो गुरु पूर्णिमा का महत्व कम करने के लिए...

1. 1991 में केबल टीवी चैनल आरम्भ हुए और वर्ष 2000 तक जब ये गाँव तंक पहुच गये, तब 2001 से हिन्दू संतो का टीवी पर निरादर आरम्भ हुआ। ध्यान दीजिए... केवल उन संतो का निरादर हुआ, जो कि हिन्दू धर्म को प्रतिष्ठित करने में लगे रहें।

कांग्रेज़ के हित में काम करने वाले या हिन्दुओं को भ्रमित करने वाले चंद्रास्वामी जैसे ढोंगी का विरोध कभी नहीं हुआ... राधे माँ, महामंडलेश्वरअधोक्षणन्द आदि की खोजबीन, प्रमोद कृष्णन, अग्निवेश पाखण्डी का निरादर टीवी पर कभी नहीं किया गया...

किंतु हिन्दू धर्म के प्रति हिन्दुओं के भले के लिये काम करने वाले करपात्री जी, श्रृंगेरी शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जी, पश्चिम यूरोप की ईसाई धर्म-बाइबल-फ्रायड की जड़ उखाड़ने वाले रजनीश, जंगलो में वनवासी बच्चों के लिये स्कुल खोलने वाले, हिन्दू गरीबों के लिये कुटीर उद्योग आसाराम बापू, कुछ प्रयत्न महाराज विद्यासागर के निरादर के लिये 2004 में बड़ा षणयंत्र हुआ पर 2 दिन की खबरों के बाद ही दब गया था।

मित्रों गुरु पूर्णिमा जिस दिन पुरे भारत में विद्यार्थियो को शिक्षक के चरण छूना चाहिए था... उस दिन को त्यौहार के रूप में बनाने की बजाय डॉ॰ राधाकृष्णन के नाम पर Teachers day मनाना आरम्भ किया गया...

जबकि शिक्षा क्षेत्र में इनका कोई योगदान नहीं था और इनके ऊपर आरोप भी लगा था कि अपने ही छात्र की पीएचडी को कॉपी करके पहले स्वयं डॉक्टरेट की डिग्री हासिल कर ली थी।

यदि तत्कालीन किसी गुरु, शिक्षक के नाम पर शिक्षक दिवस मनाना था तो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय जी के नाम पर क्यों नहीं मनाया..?

गुरुकुल कांगड़ी के संस्थापक स्वामी श्रधानन्द जी के नाम पर क्यों नहीं..?

आधुनिक भारतीय वैज्ञानिकों के प्रेरक जगदीश चंद्र बासु, डा० रमन या डा० होमी जहांगीर भाभा के नाम पर क्यों नहीं..?

प्रथम आधुनिक विमान(हवाई जहाज) के अंतराष्ट्रीय वैदिक वैज्ञानिक शिव जी बापू तलपड़े के नाम पर क्यो नहीं..?

पूना के 2 आयुर्वेदिक प्लास्टिक सर्जनों के नाम पर क्यों नहीं..?

मित्रों वो इसलिये नहीं क्योंकि इन महत्वपूर्ण लोगों में से किसी एक के भी नाम से शिक्षक दिवस या गुरु दिवस होता तो हर विद्यार्थी इनके विषय में जानने का प्रयत्न करता और भारत के प्राचीन धर्म ग्रंथों, वेदो, पुराण आदि की तरफ आकर्षित होता...

किसके इशारे पर हिन्दू श्रेष्ठ वैज्ञानिकों की अनदेखी और एक साधारण चोर कांग्रेसी को जबरदस्ती पुरे भारत के स्कूलों का गुरु बना दिया गया..?

मित्रों इस तरह गुरु पूर्णिमा को शासकीय रूप से उपेक्षित कर दिया गया... जिसको एक राष्ट्रीय त्यौहार होना चाहिए था।

उसको मात्र हिन्दू त्योहार ही रहने दिया और हर बार नई पीढ़ी के बच्चे इससे दूर होते जा रहें हैं, बिना इसका महत्व समझें...

और इस तरह प्राचीन ऋषियों का नाम, प्राचीन ग्रंथ, प्राचीन चरण स्पर्श परम्परा को एक झटके में नेहरू ने विलोपित करवा दिया।

षणयंत्र को समझो हिन्दुओं...

✊🏻 जय हिंदुत्व 🙏🏻 जय श्री राम ⛳

शनिवार, 2 सितंबर 2017

ईद के दिन भी सुस्त पड़ा है, क्यों मन में उल्लास नही ?

इस चित्र को ध्यान से देखें और कविता को ध्यान से पढ़ें मेरी आंखों में तो आंसू आ गए...
रोना मना है - ईद है
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बड़े  चाव  से  एक  मियाँ ने, घर  में  बकरा  पाला जी ।
बेटी   पानी   देती   उसको, देता  मियाँ   निवाला  जी ॥

स्वार्थ भरा था प्यार मियाँ का, पर बेटी का निश्छल था ।
सिर्फ ईद का इंतजार ही, बड़े  मियाँ को पल - पल था ॥

ऐसी  आयी  ईद  कि  आँगन, आज  लहू  से सन बैठा ।
रोज़  निवाला  देने  वाला,  मियाँ  भी  दानव बन बैठा ॥

इक झटके में बकरे का सिर,धड़ से अलग  किया देखो।
भोली  बेटी  समझ न पायी, ये  क्या किया मियाँ देखो ॥

रोज़  की  भाँति  आयी  है, बकरे  को  देने  पानी  जी ।
कलम  भी  रोई  मेरी  लिखकर, ऐसी मर्म कहानी जी ॥

आज  जरा  सा  भी  देखो,  पानी  का बर्तन नही रीता ।
सोंच  रही बालक बुद्धि , क्यों बकरा पानी नही  पीता ॥

ईद के दिन भी सुस्त पड़ा है, क्यों मन में उल्लास नही ?
कटे  शीश से पूछ रही,  क्या  मुन्ना  तुझको प्यास नही ?

शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

आओ जाने... भारत में अँग्रेजी भाषा के लिए दिये जाने वाले झूठे कुतर्को का सत्य...

1)English अंतराष्ट्रीय भाषा है..?

2) English विज्ञान और तकनीकी की भाषा है..?

3) English जाने बिना देश का विकास नहीं हो सकता..?

4) English बहुत समृद्ध भाषा है..?

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मित्रो पहले आप एक खास बात जाने ! कुल 70 देश है पूरी दुनिया मे जो भारत से पहले और भारत से बाद आजाद हुए हैं भारत को छोड़ कर उन सब मे एक बार सामान्य हैं कि आजाद होते ही उन्होने अपनी
मातृ भाषा को अपनी राष्ट्रीय भाषा घोषित कर दिया ! लेकिन शर्म की बात है भारत आजादी के 65 साल बाद भी नहीं कर पाया आज भी भारत मे सरकारी सतर की भाषा अँग्रेजी है !

अँग्रेजी के पक्ष में तर्क और उसकी सच्चाई :

1). अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है:: दुनिया में इस समय 204देश हैं और मात्र 12 देशों में अँग्रेजी बोली, पढ़ी और समझी जाती है। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। पूरी दुनिया में जनसंख्या के हिसाब से सिर्फ 3% लोग अँग्रेजी बोलते हैं। इस हिसाब से तो अंतर्राष्ट्रीय भाषा चाइनिज हो सकती है क्यूंकी ये दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है और दूसरे नंबर पर हिन्दी हो सकती है।

2. अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है:: किसी भी भाषा की समृद्धि इस बात से तय होती है की उसमें कितने शब्द हैं और अँग्रेजी में सिर्फ 12,000 मूल शब्द हैं बाकी अँग्रेजी के सारे शब्द चोरी के हैं या तो लैटिन के, या तो फ्रेंचके, या तो ग्रीक के, या तो दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ देशों की भाषाओं के हैं। आपने भी काफी बार किसी अँग्रेजी शब्द के बारे मे पढ़ा होगा ! ये शब्द यूनानी भाषा से लिया गया है ! ऐसी ही बाकी शब्द है !

उदाहरण: अँग्रेजी में चाचा, मामा, फूफा, ताऊ सब UNCLE चाची, ताई, मामी, बुआ सब AUNTY क्यूंकी अँग्रेजी भाषा में शब्द ही नहीं है। जबकि गुजराती में अकेले 40,000 मूल शब्द हैं। मराठी में 48000+ मूल शब्द हैं जबकि हिन्दी में 70000+ मूल शब्द हैं। कैसे माना जाए अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है ?? अँग्रेजी सबसे लाचार/पंगु/ रद्दी भाषा है क्योंकि इस भाषा के नियम कभी एक से नहीं होते। दुनिया में सबसे अच्छी भाषा वो मानी जाती है जिसके नियम हमेशा एक जैसे हों, जैसे: संस्कृत। अँग्रेजी में आज से 200 साल पहले This की स्पेलिंग Tis होती थी।

अँग्रेजी में 250 साल पहले Nice मतलब बेवकूफ होता था और आज Nice मतलब अच्छा होता है। अँग्रेजी भाषा में Pronunciation कभी एक सा नहीं होता। Today को ऑस्ट्रेलिया में Todie बोला जाता है जबकि ब्रिटेन में Today. अमेरिका और ब्रिटेन में इसी बात का झगड़ा है क्योंकि अमेरीकन अँग्रेजी में Zका ज्यादा प्रयोग करते हैं और ब्रिटिश अँग्रेजी में S का, क्यूंकी कोई नियम ही नहीं है और इसीलिए दोनों ने अपनी अपनी अलग अलग अँग्रेजी मान ली।

3. अँग्रेजी नहीं होगी तो विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई नहीं हो सकती:: दुनिया में 2 देश इसका उदाहरण हैं की बिना अँग्रेजी के भी विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई होटी है- जापान और फ़्रांस । पूरे जापान में इंजीन्यरिंग, मेडिकल के जीतने भी कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं सबमें पढ़ाई”JAPANESE” में होती है, इसी तरह फ़्रांस में बचपन से लेकर उच्चशिक्षा तक सब फ्रेंच में पढ़ाया जाता है।
हमसे छोटे छोटे, हमारे शहरों जितने देशों में हर साल नोबल विजेता पैदा होते हैं लेकिन इतने बड़े भारत में नहीं क्यूंकी हम विदेशी भाषा में काम करते हैं और विदेशी भाषा में कोई भी मौलिक काम नहीं किया जा सकता सिर्फ रटा जा सकता है। ये अँग्रेजी का ही परिणाम है की हमारे देश में नोबल पुरस्कार विजेता पैदा नहीं होते हैं क्यूंकी नोबल पुरस्कार के लिए मौलिक काम करना पड़ता है और कोई भी मौलिक काम कभी भी विदेशी भाषा में नहीं किया जा सकता है। नोबल पुरस्कार के लिए P.hd, B.Tech, M.Tech की जरूरत नहीं होती है। उदाहरण: न्यूटन कक्षा 9 में फ़ेल हो गया था, आइंस्टीन कक्षा 10 के आगे पढे ही नही और E=hv बताने वाला मैक्स प्लांक कभी स्कूल गया ही नहीं। ऐसी ही शेक्सपियर, तुलसीदास, महर्षि वेदव्यास आदि के पास कोई डिग्री नहीं थी, इन्होने सिर्फ अपनी मात्र भाषा में काम किया।
जब हम हमारे बच्चों को अँग्रेजी माध्यम से हटकर अपनी मात्र भाषा में पढ़ाना शुरू करेंगे तो इस अंग्रेज़ियत से हमारा रिश्ता टूटेगा।

क्या आप जानते हैं जापान ने इतनी जल्दी इतनी तरक्की कैसे कर ली ? क्यूंकी जापान के लोगों में अपनी मात्र भाषा से जितना प्यार है उतना ही अपने देश से प्यार है। जापान के बच्चों में बचपन से कूट- कूट कर राष्ट्रीयता की भावना भरी जाती है।

* जो लोग अपनी मात्र भाषा से प्यार नहीं करते वो अपने देश से प्यार नहीं करते सिर्फ झूठा दिखावा करते हैं। *

दुनिया भर के वैज्ञानिकों का मानना है की दुनिया में कम्प्युटर के लिए सबसे अच्छी भाषा ‘संस्कृत’ है। सबसे ज्यादा संस्कृत पर शोध इस समय जर्मनी और अमेरिका चल रही है। नासा ने ‘मिशन संस्कृत’ शुरू किया है और अमेरिका में बच्चों के पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल किया गया है। सोचिए अगर अँग्रेजी अच्छी भाषा होती तो ये अँग्रेजी को क्यूँ छोड़ते और हम अंग्रेज़ियत की गुलामी में घुसे हुए है। कोई भी बड़े से बड़ा तीस मार खाँ अँग्रेजी बोलते समय सबसे पहले उसको अपनी मात्र भाषा में सोचता है और फिर उसको दिमाग में Translate करता है फिर दोगुनी मेहनत करके अँग्रेजी बोलता है। हर व्यक्ति अपने जीवन के अत्यंत निजी क्षणों में मात्र भाषा ही बोलता है। जैसे: जब कोई बहुत गुस्सा होता है तो गाली हमेशा मात्र भाषा में ही देता हैं।

॥ मात्रभाषा पर गर्व करो…..अँग्रेजी की गुलामी छोड़ो॥

अभी जो आपने ऊपर पढ़ा ये राजीव दीक्षित जी के (अँग्रेजी भाषा की गुलामी ) वाले व्यख्यान का सिर्फ 10 % लिखा है !

जय हिंद जय भारत
हिंदी हिंदू हिंदुस्तान
अमर शहीद राजीव दीक्षित जी को शत् शत् नमन्