गुरुवार, 31 अगस्त 2017

पितृ-पक्ष - श्राद्ध

स सृष्टि में हर चीज का अथवा प्राणी का जोड़ा है। जैसे - रात और दिन, अँधेरा और उजाला, सफ़ेद और काला, अमीर और गरीब अथवा नर और नारी इत्यादि बहुत गिनवाये जा सकते हैं। सभी चीजें अपने जोड़े से सार्थक है अथवा एक-दूसरे के पूरक है। दोनों एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। इसी तरह दृश्य और अदृश्य जगत का भी जोड़ा है। दृश्य जगत वो है, जो हमें दिखता है और अदृश्य जगत वो है, जो हमें नहीं दिखता..! ये भी एक-दूसरे पर निर्भर है और एक-दूसरे के पूरक हैं। पितृ-लोक भी अदृश्य-जगत का हिस्सा है और अपनी सक्रियता के लिये दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर है।

•• धर्म ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता हैं।
•• पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है। श्राद्ध का अर्थ है, श्रद्धा से जो कुछ दिया जाएं। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।
•• श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।
•• श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं--

♍1- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं। दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।
♍2- श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।
♍3- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।
♍4- ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बिना करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं, जब तक ब्राह्मण मौन रह कर भोजन करें।
♍5- जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। 
♍6- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं। ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है।
♍7- श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटरसरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं।
♍8- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है।
♍9- चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है।
♍10- जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते।
♍11- श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है।
♍12- शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग)में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है। अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए।
♍13- श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं। श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है।
♍14- रात्रि को राक्षसी समय माना गया है। अत: रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है।
♍15- श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं- गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।
♍16- तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं।
♍17- रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।
♍18- चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।
♍19- भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
1- नित्य, 2- नैमित्तिक, 3- काम्य, 4- वृद्धि, 5- सपिण्डन, 6- पार्वण, 7- गोष्ठी, 8- शुद्धर्थ, 9- कर्मांग, 10- दैविक, 11- यात्रार्थ, 12- पुष्टयर्थ
♍20- श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार :
तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।
भोजन व पिण्ड दान-- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं।
वस्त्रदान-- वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।
दक्षिणा दान-- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती, उसका फल नहीं मिलता..!
♍21 - श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें। श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं।
♍22- पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है। इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें।
♍23- तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें। इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें।
♍24- कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं। पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं।
♍25- ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं। ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।
♍26- पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडो (परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए। एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राध्दकर्म करें या सबसे छोटा पुत्र करें।
♍ॐ पितृ देवाय नमः♍

गुरुवार, 24 अगस्त 2017

मोबाइल से जुडी विचित्र जानकारी

मोबाइल  से  जुडी  कई  ऐसी  बातें  जिनके  बारे  में  हमें  जानकारी  नहीं  होती  लेकिन  मुसीबत  के  वक्त  यह  मददगार  साबित  होती  है ।

         इमरजेंसी नंबर ---

            दुनिया  भर  में  मोबाइल  का  इमरजेंसी  नंबर  112  है । अगर  आप  मोबाइल  की  कवरेज  एरिया  से  बाहर  हैं
तो  112  नंबर  द्वारा  आप  उस  क्षेत्र  के  नेटवर्क  को  सर्च  कर  लें। ख़ास  बात  यह  है  कि  यह  नंबर  तब  भी  काम  करता  है  जब  आपका  की  पैड  लौक  हो।

             जानकारी अभी  बाकी  है---

               मोबाइल  जब  बैटरी  लो  दिखाए  और  उस  दौरान  जरूरी  कॉल  करनी  हो, ऐसे  में  आप  *3370#  डायल  करें । आपका  मोबाइल  फिर  से   चालू  हो  जायेगा और  आपका  सेलफोन  बैटरी  में  50  प्रतिशत  का  इजाफा  दिखायेगा। मोबाइल  का  यह  रिजर्व  दोबारा  चार्ज  हो  जायेगा  जब आप  अगली  बार  मोबाइल  को  हमेशा  की  तरह  चार्ज  करेंगे।

           मोबाइल  चोरी  होने पर---

              मोबाइल  फोन  चोरी  होने  की स्थिति  में  सबसे  पहले  जरूरत  होती  है,  फोन  को  निष्क्रिय  करने  की  ताकि  चोर  उसका  दुरुपयोग  न  कर  सके । अपने  फोन  के  सीरियल  नंबर  को  चेक  करने  के  लिए  *#06#  दबाएँ । इसे  दबाते  ही  आपकी  स्क्रीन  पर  15  डिजिट  का  कोड  नंबर  आयेगा। इसे  नोट  कर  लें  और  किसी  सुरक्षित  स्थान  पर रखें। जब  आपका  फोन  खो  जाए  उस  दौरान  अपने  सर्विस  प्रोवाइडर  को  ये  कोड  देंगे  तो  वह  आपके  हैण्ड  सेट  को  ब्लोक  कर  देगा।

             कार की चाबी खोने पर ---

             अगर  आपकी  कार  की  रिमोट  की लेस  इंट्री  है। और  गलती  से  आपकी  चाभी  कार  में  बंद  रह  गयी  है। और दूसरी  चाभी  घर  पर  है। तो  आपका  मोबाइल  काम  आ  सकता  है। घर  में  किसी  व्यक्ति  के  मोबाइल  फोन  पर  कॉल  करें। घर  में  बैठे  व्यक्ति  से  कहें  कि  वह  अपने  मोबाइल  को  होल्ड  रखकर  कार  की  चाभी  के  पास  ले जाएँ और  चाभी  के  अनलॉक बटन  को  दबाये। साथ  ही  आप  अपने  मोबाइल  फोन  को  कार  के  दरवाजे  के  पास  रखें....। दरवाजा खुल जायेगा।

है न विचित्र किन्तु सत्य......!!!

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पत्नी चालीसा

!! पत्नी चालीसा !!

पत्नी सेवा सच्ची सेवा।
जो करे वो खाये मेवा🍩।

जो पत्नी के
पाँव      दबावै    !
बस   ❄  वैकुंठ
परम पद पावै।

जो पत्नी    की
करे      गुलामी    
ना     ❎   आये
कोई   परेशानी    ।

जो  पत्नी       की
धोवे    🃏
साङी  ....👚
उसकी    किस्मत  
जग    🌏   से न्यारी…

भूत   😈 👺 👹 पिशाच निकट   नहिं   आवै।
जो  पत्नी   के
कीर्तन          गावै ।

अतः पत्नी  
खुश        तो
लाईफ    💥   खुश   ।

ध्यान       रहे
पत्नी    सेवा   ही
सभी तीर्थो का पुण्य है।

हाथ जोड़ कर कीजिये,पत्नी जी का ध्यान ।
घर में खुशहाली रहे ,हो जाये कल्यान ।।
घरवाली को नमन कर , माला लेकर हाथ ।
मुख से पत्नी-वन्दना बोलो मेरे साथ ।।

जय पत्नी देवी कल्यानी ।
माया तेरी ना पहचानी ।।
तुमसे सारे देवता हारे ।
डर से थर-थर कांपें सारे ।।
नहिं चरित्र तुम्हरा कोई जाना ।
नर क्या ईश्वर ना पहचाना ।।
अपरम्पार तुम्हारी माया ।
कोई इसका पार न पाया ।।
लगो देखने में तुम गुड़िया ।
हो लेकन आफत की पुड़िया ।।
हे मेरे बच्चों की माता ।
तुम हो मेरी भाग्यविधाता ।।
है बेलन हथियार तुम्हारा ।
जब चाहा सिर पर दे मारा ।।
ऐसी तेरी निकले बोली ।
जैसे हो बंदूक की गोली ।।
हम तुमसे डरते हैं ऐसे ।
चोर पुलिस से डरता जैसे ।।
ऐसा है आतंक तुम्हारा ।
बिच्छू जैसा डंक तुम्हारा ।।
करे पती जो पत्नी-सेवा ।
मिलती उसको सच्ची मेवा ।।
पत्नी-वन्दना जो कोई गावे ।
जीवन में कोई कष्ट न पावे । ।
प्रभु दीक्षित कर पत्नी-वन्दन ।
पत्नी का कर लो अभिनन्दन ।।

वन्दहु पत्नी मुख-कमल,गुणअवगुण की खान ।
मिले नहीं बिन आपके पतियों को सम्मान ।।

।। बोलो पत्नी रानी की जय ।।

पत्नी के फायदे!


पहले मैं बहुत परेशान रहता था हमेशा सोता रहता था। मुझसे काम नही हो पाता था। घर वालों के ताने सुनकर रो दिया करता था। फिर मैंने इस नए प्रोडक्ट के बारे में सुना, जिसका नाम है 'पत्नी'। यह सच में बहुत लाजवाब है। अब मैं अपनी नींद केवल 2-3 घंटे में ही पूरी कर लेता हूँ और हर तरह का काम कर लेता हूँ। दुनिया भर के ताने और गलियाँ हँसते - हँसते सह लेता हूँ। कितनी भी मुसीबत आए हमेशा खुश रहता हूँ। दुःख सुख की फिक्र से ऊपर उठ गया हूँ। नरक और स्वर्ग यहीं है इसका भेद समझ गया हूँ। मुझे अपने दुश्मनों से भी प्यार हो गया है। सच में पत्नी असरदार है। इसलिए अपनी पत्नी की फोटो हमेशा अपने पास रखो और जब भी तुम्हें किसी प्रकार की कोई घबराहट हो तो अपनी पत्नी की फोटो देख लो। तुम ज़रूर कामयाब हो जाओगे क्योंकि अगर तुम अपनी पत्नी को सह सकते हो तो सच में तुम कुछ भी कर सकते हो।

किसने तुमको छला है बोलो, क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम ?

पहला दृश्य --

एक कवि नदी के किनारे खड़ा था !
तभी वहाँ से एक लड़की का शव नदी में तैरता हुआ जा रहा था तो तभी कवि ने उस शव से पूछा ----

कौन हो तुम ओ सुकुमारी,
बह रही नदियां के जल में ?

कोई तो होगा तेरा अपना,
मानव निर्मित इस भू-तल मे !

किस घर की तुम बेटी हो,
किस क्यारी की कली हो तुम ?

किसने तुमको छला है बोलो,
क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम ?

किसके नाम की मेंहदी बोलो,
हांथो पर रची है तेरे ?

बोलो किसके नाम की बिंदिया,
मांथे पर लगी है तेरे ?

लगती हो तुम राजकुमारी,
या देव लोक से आई हो ?

उपमा रहित ये रूप तुम्हारा,
ये रूप कहाँ से लायी हो?
..........

दूसरा दृश्य----

कवि की बाते सुनकर लड़की की आत्मा बोलती
है.....

कवि राज मुझ को क्षमा करो,
गरीब पिता की बेटी हुँ !

इसलिये मृत मीन की भांती,
जल धारा पर लेटी हुँ !

रूप रंग और सुन्दरता ही,
मेरी पहचान बताते है !

कंगन,चूड़ी,बिंदी,मेंहदी,
सुहागन मुझे बनाते है !

पति के सुख को सुख समझा,
पति के दुख में दुखी थी मैं !

जीवन के इस तन्हा पथ पर,
पति के संग चली थी मैं !

पति को मैने दीपक समझा,
उसकी लौ में जली थी मैं !

माता-पिता का साथ छोड
उसके रंग में ढली थी मैं !

पर वो निकला सौदागर ,
लगा दिया मेरा भी मोल !

दौलत और दहेज़ की खातिर
पिला दिया जल में विष घोल !

दुनिया रुपी इस उपवन में,
छोटी सी एक कली थी मैं !

जिस को माली समझा ,
उसी के द्वारा छली थी मैं !

ईश्वर से अब न्याय मांगने,
शव शैय्या पर पड़ी हूँ मैं !

दहेज़ की लोभी इस संसार मैं,
दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ  मैं !

दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ मैं !!

.....................

{[<बेटियां शीतल हवा होती है।। इन्हें बचा कर रखे>]}

अनुरोध है इस कविता को शेयर जरुर करे !!

मंदी में पत्नी के लिए लिखी कविता...

👳मंदी में पति👳की लिखी इक
कवीता अपनी पत्नी को ।

🌊🌊🌊🌊🌊🌊🌊🌊🌊🌊🌊

प्रिय क्यूँ तुम नए-नए
सूट सिलाती हो !

पुरानी साडी में भी तुम
अप्सरा सी नजर आती हो !!!

इन ब्यूटी पार्लरों के
चक्करों में ना पडा करो !

अपने चांद से चेहरे को
क्रीम पाउडर से यूँ ना ढका करो !!

रेस्टोरेंट होटल के खाने में क्या रखा है !

तुम्हारे हाथों से बना घर का खाना,
इनसे लाख गुना अच्छा है !!!

इन सैर सपाटों में वो बात कहाँ !

तुम्हारे मायके जैसा
ऐशो-आराम कहाँ !!!

नौकरों से खिटपिट में,
मत सेहत तुम अपनी खराब करो !

झाडू-पौछा लगा
हल्का सा व्यायाम करो !!!

सोने-चांदी में मिलती
अब सो सो खोट है !

तुम्हारी सुन्दरता ही
24 कैरेट प्योर गोल्ड है !!!

माया-माया मत किया कर पगली,
यह तो महा ठगिनी है !

मेरे इस घर-आंगन की तो,
तू ही असली धन लक्ष्मी है !!

        😀 *हैप्पी मंदी* 😜

बुधवार, 23 अगस्त 2017

जीवन में पैतीस पार का मर्द...

दिल को छुए तो होशला अफजाई चाहूँगा मित्रो...
जीवन में पैतीस पार का मर्द...
कैसा होता है ?
थोड़ी सी सफेदी कनपटियों के पास,
खुल रहा हो जैसे आसमां बारिश के बाद,
जिम्मेदारियों के बोझ से झुकते हुए कंधे,
जिंदगी की भट्टी में खुद को गलाता हुआ,
अनुभव की पूंजी हाथ में लिए,
परिवार को वो सब देने की जद्दोजहद में,
जो उसे नहीं मिल पाया था,
बस बहे जा रहा है समय की धारा में,
एक खूबसूरत सी बीवी,
दो प्यारे से बच्चे,
पूरा दिन दुनिया से लड़ कर थका हारा,
रात को घर आता है, सुकून की तलाश में,
लेकिन क्या मिल पाता है सुकून उसे,
दरवाजे पर ही तैयार हैं बच्चे,
पापा से ये मंगाया था, वो मंगाया था,
नहीं लाए तो क्यों नहीं लाए,
लाए तो ये क्यों लाए वो क्यों नहीं लाए,
अब वो क्या कहे बच्चों से,
कि जेब में पैसे थोड़े कम थे,
कभी प्यार से, कभी डांट कर,
समझा देता है उनको,
एक बूंद आंसू की जमी रह जाती है,
आँख के कोने में,
लेकिन दिखती नहीं बच्चों को,
उस दिन दिखेगी उन्हें, जब वो खुद,
बन जाएंगे माँ बाप अपने बच्चों के,
खाने की थाली में दो रोटी के साथ,
परोस दी हैं पत्नी ने दस चिंताएं,
कभी,
तुम्हीं नें बच्चों को सर चढ़ा रखा है,
कुछ कहते ही नहीं,
कभी,
हर वक्त डांटते ही रहते हो बच्चों को,
कभी प्यार से बात भी कर लिया करो,
लड़की सयानी हो रही है,
तुम्हें तो कुछ दिखाई ही नहीं देता,
लड़का हाथ से निकला जा रहा है,
तुम्हें तो कोई फिक्र ही नहीं है,
पड़ोसियों के झगड़े, मुहल्ले की बातें,
शिकवे शिकायतें दुनिया भर की,
सबको पानी के घूंट के साथ,
गले के नीचे उतार लेता है,
जिसने एक बार हलाहल पान किया,
वो सदियों नीलकंठ बन पूजा गया,
यहाँ रोज़ थोड़ा थोड़ा विष पीना पड़ता है,
जिंदा रहने की चाह में,
फिर लेटते ही बिस्तर पर,
मर जाता है एक रात के लिए,
क्योंकि सुबह फिर जिंदा होना है,
काम पर जाना है, कमा कर लाना है,
ताकि घर चल सके, ताकि घर चल सके....
ताकि घर चल सके।।।।

मंगलवार, 22 अगस्त 2017

पिता..!

पिता जीवन है, संबल है, शक्ति है !
पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है !!
पिता अंगुली पकडे बच्चे का सहारा है !
पिता कभी मीठा कभी खारा है !!
पिता पालन है, पोषण है, अनुशासन है !
पिता धौंस से चलने वाला प्रेम का प्रशासन है !!
पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है !
पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है !!
पिता अप्रदर्शित अनंत प्यार है !
पिता है तो घर में इंतजार है !!
पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं !
पिता है तो बाज़ार के सारे खिलौने अपने हैं !!
पिता से परिवार में प्रतिपल राग है !
पिता से ही माँ की बिंदी और सुहाग है !!
पिता परमात्मा की जगत के प्रति आसक्ति है !
पिता गृहस्थाश्रम में उच्च स्थिति की भक्ति है !!
पिता अपनी इच्छाओं का हनन और परिवार की पूर्ति है !
पिता रक्त में दिए हुए संस्कारों की मूर्ति है !!
पिता एक जीवन को जीवन का दान है !
पिता दुनियाँ दिखाने का अहसान है !!
पिता सुरक्षा है, अगर सर पर हाथ है !
पिता नहीं तो जीवन अनाथ है !!
पिता नहीं तो जीवन अनाथ है !!........ 

तो पिता से बड़ा तुम अपना नाम करो !
पिता का अपमान नहीं, उन पर अभिमान करो !!
क्योकि माँ बाप की कमी को कोई पाट नहीं सकता !
और ईश्वर भी इनके आशीषों को काट नहीं सकता !!
विश्व में किसी भी देवता का स्थान दूजा है !
माँ बाप की सेवा ही सबसे बड़ी पूजा है !!
विश्व में किसी भी तीर्थ की यात्रा व्यर्थ है !
यदि बेटे के होते माँ बाप असमर्थ है !!
वो खुश नसीब हैं माँ बाप जिनके साथ होते हैं !
क्योकि माँ बाप के आशीषों के हज़ारो हाथ होते हैं ।

अगर लिखना है - तो सोचना सीखो...

☑ अगर 'पूजा' कर रहे हो - तो 'विश्वास' करना सीखो !
☑ 'बोलने' से पहले - 'सुनना' सीखो !
☑ अगर 'खर्च' करना है - तो 'कमाना' सीखो !
☑ अगर 'लिखना' है - तो 'सोचना' सीखो !
☑ 'हार' मानने से पहले - फिर से 'कोशिश' करना सीखो !
☑ 'मरने' से पहले - खुल के 'जीना' सीखो !

कल की लड़की आज बहु बन गई...


एक लड़की ससुराल चली गई।

कल की लड़की आज बहु बन गई.

कल तक मौज करती लड़की,

अब ससुराल की सेवा करना सीख गई.

कल तक तो फ्रॉक पहनती लड़की,

आज साड़ी पहनना सीख गई.

पिहर में जैसे बहती नदी,

आज ससुराल की नीर बन गई.

रोज मजे से पैसे खर्च करती लड़की,

आज साग-सब्जी का भाव करना सीख गई.

कल तक FULL SPEED स्कुटी चलाती लड़की,

आज BIKE के पीछे बैठना सीख गई.

कल तक तो तीन वक्त पूरा खाना खाती लड़की,

आज ससुराल में तीन वक्त

का खाना बनाना सीख गई.

हमेशा जिद करती लड़की,

आज पति को पूछना सीख गई.

कल तक तो मम्मी से काम करवाती लड़की,

आज सासुमां के काम करना सीख गई.

कल तक भाई-बहन के साथ

झगड़ा करती लड़की,

आज ननद का मान करना सीख गई.

कल तक तो भाभी के साथ मजाक करती लड़की,

आज जेठानी का आदर करना सीख गई.

पिता की आँख का पानी,

ससुर के ग्लास का पानी बन गई.

फिर लोग कहते हैं कि बेटी ससुराल जाना सीख गई.

(यह बलिदान केवल लड़की ही कर

सकती है,इसिलिए हमेशा लड़की की झोली ,

वात्सल्य से भरी रखना...)

बात निकली है तो दूर तक जानी चाहिये!!!

शेयर जरुर करें और लड़कियो को सम्मान दे!

जो लोग पत्नी का मजाक उड़ाते है। बीवी के नाम पर कई msg भेजते है उन सभी के लिये

Please Read This....

A Lady's Simple Questions & Surely It Will Touch A Man's heart...

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देह मेरी ,

हल्दी तुम्हारे नाम की ।

हथेली मेरी ,

मेहंदी तुम्हारे नाम की ।

सिर मेरा ,

चुनरी तुम्हारे नाम की ।

मांग मेरी ,

सिन्दूर तुम्हारे नाम का ।

माथा मेरा ,

बिंदिया तुम्हारे नाम की ।

नाक मेरी ,

नथनी तुम्हारे नाम की ।

गला मेरा ,

मंगलसूत्र तुम्हारे नाम का ।

कलाई मेरी ,

चूड़ियाँ तुम्हारे नाम की ।

पाँव मेरे ,

महावर तुम्हारे नाम की ।

उंगलियाँ मेरी ,

बिछुए तुम्हारे नाम के ।

बड़ों की चरण-वंदना

मै करूँ ,

और'सदा-सुहागन'का आशीष

तुम्हारे नाम का ।

और तो और -

करवाचौथ/बड़मावस के व्रत भी

तुम्हारे नाम के ।

यहाँ तक कि

कोख मेरी/ खून मेरा/ दूध मेरा,

और बच्चा ?

बच्चा तुम्हारे नाम का ।

घर के दरवाज़े पर लगी

'नेम-प्लेट'तुम्हारे नाम की ।

और तो और -

मेरे अपने नाम के सम्मुख

लिखा गोत्र भी मेरा नहीं,

तुम्हारे नाम का ।

सब कुछ तो

तुम्हारे नाम का...

नम्रता से पुछती हुँ ?

आखिर तुम्हारे पास...

क्या है मेरे नाम का?

सोमवार, 21 अगस्त 2017

माँ जैसे विषय पर लिखना, बोलना, बनाना, बताना, जताना क़ानूनन बन्द होना चाहिये...

बर्तनों की आवाज़ देर रात तक आ रही थी...
रसोई का नल चल रहा था...

माँ रसोई में थी...

तीनों बहुऐं अपने-अपने कमरे में सोने जा चुकी थी...
माँ रसोई में थी...

माँ का काम बकाया रह गया था...
पर काम तो सबका था...
पर माँ तो अब भी सबका काम अपना ही मानती हैं...

दूध गर्म करके...
ठंडा करके...
जावण देना था...
ताकि सुबह बेटों को ताजा दही मिल सकेें...

सिंक में रखे बर्तन माँ को कचोटते हैं...
चाहे तारीख बदल जाएं, सिंक साफ होना चाहिये...

बर्तनों की आवाज़ से...
बहू-बेटों की नींद खराब हो रही हैं...


बड़ी बहू ने बड़े बेटे से कहा...
"तुम्हारी माँ को नींद नहीं आती क्या..? 

ना खुद सोती है और ना ही हमें सोने देती हैं..."


मंझली ने मंझले बेटे से कहा "अब देखना सुबह चार बजे फिर खटर-पटर चालू हो जायेगी, तुम्हारी माँ को चैन नहीं है क्या..?"


छोटी ने छोटे बेटे से कहा "प्लीज़ जाकर ये ढ़ोंग बन्द करवाओ कि रात को सिंक खाली रहना चाहिये..."


माँ अब तक बर्तन माँज चुकी थी।
झुकी कमर...
कठोर हथेलियां...
लटकी-सी त्वचा...
जोड़ों में तकलीफ...
आँख में पका मोतियाबिन्द...
माथे पर टपकता पसीना...
पैरों में उम्र की लड़खडाहट...
मगर....
दूध का गर्म पतीला...
वो आज भी अपने पल्लू से उठा लेती हैं...
और...
उसकी अंगुलियां जलती नहीं है, क्योंकि
वो मां हैं।


दूध ठण्ड़ा हो चुका...
जावण भी लग चुका...
घड़ी की सुईयां थक गई...
मगर...
माँ ने फ्रिज में से भिंडी निकाल ली...
और...
काटने लगी...
उसको नींद नहीं आती है, क्योंकि
वो माँ है ।


कभी-कभी सोचता हूं कि माँ जैसे विषय पर लिखना, बोलना, बनाना, बताना, जताना क़ानूनन बन्द होना चाहिये...
क्योंकि यह विषय निर्विवाद हैं...
क्योंकि यह रिश्ता स्वयं कसौटी हैं।


रात के बारह बजे सुबह की भिण्ड़ी कट गई...
अचानक याद आया कि गोली तो ली ही नहीं...
बिस्तर पर तकिये के नीचे रखी थैली निकाली...
मूनलाईट की रोशनी में...
गोली के रंग के हिसाब से मुंह में रखी और
गटक कर पानी पी लिया...

बगल में एक नींद ले चुके बाबूजी ने कहा "आ गई"
"हाँ, आज तो कोई काम ही नहीं था..."
माँ ने जवाब दिया...

और...
लेट गई, कल की चिन्ता में...
पता नहीं नींद आती होगी या नहीं पर...

सुबह वो थकान रहित होती हैं, क्योंकि
वो माँ है।

सुबह का अलार्म बाद में बजता हैं...
माँ की नींद पहले खुलती हैं...
याद नहीं कि कभी भरी सर्दियों में भी...
माँ गर्म पानी से नहायी हो...
उन्हे सर्दी नहीं लगती, क्योंकि
वो माँ है।

अखबार पढ़ती नहीं, मगर उठा कर लाती हैं...
चाय पीती नहीं, मगर बना कर लाती हैं...
जल्दी खाना खाती नहीं, मगर बना देती है...
क्योंकि वो माँ है।

माँ पर बात जीवनभर खत्म ना होगी..!
शेष अगली बार...

और हाँ, अगर पढ़ते-पढ़ते आँखों में आँसु आ जाये तो कृप्या खुलकर रोइये और आंसू पोछकर एक बार अपनी माँ को जादू की झप्पी जरूर दीजिये...
क्योंकि वो किसी और की नहीं... 

आपकी ही माँ हैं... 😌 माँ 🙇🏻


क्या वेदों में पशुबलि, माँसाहार आदि का विधान है?

क्या वेदों में पशुबलि, माँसाहार आदि का विधान है?

भाग 1

डॉ विवेक आर्य

वेदों के विषय में सबसे अधिक प्रचलित अगर कोई शंका है तो  वह हैं कि क्या वेदों में पशुबलि, माँसाहार आदि का विधान है?

इस भ्रान्ति के होने के मुख्य-मुख्य कुछ कारण है। सर्वप्रथम तो पाश्चात्य विद्वानों जैसे मैक्समुलर[i], ग्रिफ्फिथ[ii] आदि द्वारा यज्ञों में पशुबलि, माँसाहार आदि का विधान मानना, द्वितीय मध्य काल के आचार्यों जैसे सायण[iii], महीधर[iv] आदि का यज्ञों में पशुबलि का समर्थन करना, तीसरा ईसाईयों, मुसलमानों आदि द्वारा माँस भक्षण के समर्थन में वेदों कि साक्षी देना[v], चौथा साम्यवादी अथवा नास्तिक विचारधारा[vi] के समर्थकों द्वारा सुनी-सुनाई बातों को बिना जाँचें बार बार रटना।

किसी भी सिद्धांत अथवा किसी भी तथ्य को आँख बंद कर मान लेना बुद्धिमान लोगों का लक्षण नहीं है। हम वेदों के सिद्धांत कि परीक्षा वेदों कि साक्षी द्वारा करेगे जिससे हमारी भ्रान्ति का निराकरण हो सके।

शंका 1 क्या वेदों में मांस भक्षण का विधान हैं?

उत्तर:- वेदों में मांस भक्षण का स्पष्ट निषेध किया गया हैं। अनेक वेद मन्त्रों में स्पष्ट रूप से किसी भी प्राणि को मारकर खाने का स्पष्ट निषेध किया गया हैं। जैसे

हे मनुष्यों ! जो गौ आदि पशु हैं वे कभी भी हिंसा करने योग्य नहीं हैं - यजुर्वेद १।१

जो लोग परमात्मा के सहचरी प्राणी मात्र को अपनी आत्मा का तुल्य जानते हैं अर्थात जैसे अपना हित चाहते हैं वैसे ही अन्यों में भी व्रतते हैं-यजुर्वेद ४०। ७

हे दांतों तुम चावल खाओ, जौ खाओ, उड़द खाओ और तिल खाओ। तुम्हारे लिए यही रमणीय भोज्य पदार्थों का भाग हैं । तुम किसी भी नर और मादा की कभी हिंसा मत करो।- अथर्ववेद ६।१४०।२

वह लोग जो नर और मादा, भ्रूण और अंड़ों के नाश से उपलब्ध हुए मांस को कच्चा या पकाकर खातें हैं, हमें उनका विरोध करना चाहिए- अथर्ववेद ८।६।२३

निर्दोषों को मारना निश्चित ही महापाप है, हमारे गाय, घोड़े और पुरुषों को मत मार। -अथर्ववेद १०।१।२९

इन मन्त्रों में स्पष्ट रूप से यह सन्देश दिया गया हैं कि वेदों के अनुसार मांस भक्षण निषेध हैं।

शंका २ क्या वेदों के अनुसार यज्ञों में पशु बलि का विधान है?

यज्ञ कि महता का गुणगान करते हुए वेद कहते है कि सत्यनिष्ठ विद्वान लोग यज्ञों द्वारा ही पूजनीय परमेश्वर की पूजा करते है।[vii]

यज्ञों में सब श्रेष्ठ धर्मों का समावेश होता है। यज्ञ शब्द जिस यज् धातु से बनता है उसके देवपूजा, संगतिकरण और दान है। इसलिए यज्ञों वै श्रेष्ठतमं कर्म[viii] एवं यज्ञो हि श्रेष्ठतमं कर्म[ix] इत्यादि कथन मिलते है। यज्ञ न करने वाले के लिए वेद कहते है कि जो यज्ञ मयी नौका पर चढ़ने में समर्थ नहीं होते वे कुत्सित, अपवित्र आचरण वाले होकर यही इस लोक में नीचे-नीचे गिरते जाते है।[x]

एक और वेद यज्ञ कि महिमा को परमेश्वर कि प्राप्ति का साधन बताते है दूसरी और वैदिक यज्ञों में पशुबलि का विधान भ्रांत धारणा मात्र है।

यज्ञ में पशु बलि का विधान मध्य काल कि देन है। प्राचीन काल में यज्ञों में पशु बलि आदि प्रचलित नहीं थे। मध्यकाल में जब गिरावट का दौर आया तब मांसाहार, शराब आदि का प्रयोग प्रचलित हो गया। सायण, महीधर आदि के वेद भाष्य में मांसाहार, हवन में पशुबलि, गाय, अश्व, बैल आदि का वध करने की अनुमति थी जिसे देखकर मैक्समुलर , विल्सन[xi] , ग्रिफ्फिथ आदि पाश्चात्य विद्वानों ने वेदों से मांसाहार का भरपूर प्रचार कर न केवल पवित्र वेदों को कलंकित किया अपितु लाखों निर्दोष प्राणियो को मरवा कर मनुष्य जाति को पापी बना दिया। मध्य काल में हमारे देश में वाम मार्ग का प्रचार हो गया था जो मांस, मदिरा, मैथुन, मीन आदि से मोक्ष की प्राप्ति मानता था। आचार्य सायण आदि यूँ तो विद्वान थे पर वाम मार्ग से प्रभावित होने के कारण वेदों में मांस भक्षण एवं पशु बलि का विधान दर्शा बैठे। निरीह प्राणियों के इस तरह कत्लेआम एवं भोझिल कर्मकांड को देखकर ही महात्मा बुद्ध[xii] एवं महावीर ने वेदों को हिंसा से लिप्त मानकर उन्हें अमान्य घोषित कर दिया जिससे वेदों की बड़ी हानि हुई एवं अवैदिक मतों का प्रचार हुआ जिससे क्षत्रिय धर्म का नाश होने से देश को गुलामी सहनी पड़ी। इस प्रकार वेदों में मांसभक्षण के गलत प्रचार के कारण देश की कितनी हानि हुई इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। एक ओर वेदों में जीव रक्षा और निरामिष भोजन का आदेश है तो दूसरी ओर उसके विपरीत उन्हीं वेदों में पशु आदि कि यज्ञों में बलि तर्क संगत नहीं लगती है। स्वामी दयानंद[xiii] ने वेदभाष्य में मांस भक्षण ,पशुबलि आदि को लेकर जो भ्रान्ति देश में फैली थी उसका निवारण कर साधारण जनमानस के मन में वेद के प्रति श्रद्दा भाव उत्पन्न किया। वेदों में यज्ञों में पशु बलि के विरोध में अनेक मन्त्रों का विधान है जैसे:-

यज्ञ के विषय में अध्वर शब्द का प्रयोग वेद मन्त्रों में हुआ है जिसका अर्थ निरुक्त[xiv] के अनुसार हिंसा रहित कर्म है।

हे ज्ञान स्वरुप परमेश्वर, तू हिंसा रहित यज्ञों (अध्वर) में ही व्याप्त होता है और ऐसे ही यज्ञों को सत्य निष्ठ विद्वान लोग सदा स्वीकार करते है। -ऋग्वेद 1/1 /4

यज्ञ के लिए अध्वर शब्द का प्रयोग ऋग्वेद 1/1/8, ऋग्वेद 1/14/21,ऋग्वेद 1/128/4 ऋग्वेद 1/19/1,, ऋग्वेद 3/21/1, सामवेद 2/4/2, अथर्ववेद 4/24/3, अथर्ववेद 1/4/2 इत्यादि मन्त्रों में इसी प्रकार से हुआ है। अध्वर शब्द का प्रयोग चारों वेदों में अनेक मन्त्रों में होना हिंसा रहित यज्ञ का उपदेश है।

हे प्रभु! मुझे सब प्राणी मित्र की दृष्टि से देखे, मैं सब प्राणियों को मित्र कि प्रेममय दृष्टि से देखूं , हम सब आपस में मित्र कि दृष्टि से देखें।- यजुर्वेद 36 /18

यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म के नाम से पुकारते हुए उपदेश है कि पशुओं कि रक्षा करे। - यजुर्वेद 1 /1

पति पत्नी के लिए उपदेश है कि पशुओं कि रक्षा करे। - यजुर्वेद 6/11

हे मनुष्य तुम दो पैर वाले अर्थात अन्य मनुष्यों एवं चार पैर वाले अर्थात पशुओं कि भी सदा रक्षा कर। - यजुर्वेद 14 /8

चारों वेदों में दिए अनेक मन्त्रों से यह सिद्ध होता है कि यज्ञों में हिंसा रहित कर्म करने का विधान है एवं मनुष्य का अन्य पशु पक्षियों कि रक्षा करने का स्पष्ट आदेश है।

शंका 3 क्या वेदों में वर्णित अश्वमेध, नरमेध, अजमेध, गोमेध में घोड़ा, मनुष्य, गौ कि यज्ञों में बलि देने का विधान नहीं है ? मेध का मतलब है मारना जिससे यह सिद्ध होता है?

उत्तर: मेध शब्द का अर्थ केवल हिंसा नहीं है. मेध शब्द के तीन अर्थ है १. मेधा अथवा शुद्ध बुद्धि को बढ़ाना २. लोगो में एकता अथवा प्रेम को बढ़ाना ३. हिंसा। इसलिए मेध से केवल हिंसा शब्द का अर्थ ग्रहण करना उचित नहीं है।

जब यज्ञ को अध्वर अर्थात ‘हिंसा रहित‘ कहा गया है, तो उस के सन्दर्भ में ‘ मेध‘ का अर्थ हिंसा क्यों लिया जाये? बुद्धिमान व्यक्ति ‘मेधावी‘ कहे जाते है और इसी तरह, लड़कियों का नाम मेधा, सुमेधा इत्यादि रखा जाता है, तो क्या ये नाम क्या उनके हिंसक होने के कारण रखे जाते है या बुद्धिमान होने के कारण?

अश्वमेध शब्द का अर्थ यज्ञ में अश्व कि बलि देना नहीं है अपितु शतपथ १३.१.६.३ और १३.२.२.३ के अनुसार राष्ट्र के गौरव, कल्याण और विकास के लिए किये जाने वाले सभी कार्य “अश्वमेध” है[xv]।

गौ मेध का अर्थ यज्ञ में गौ कि बलि देना नहीं है अपितु अन्न को दूषित होने से बचाना, अपनी इन्द्रियों को वश में रखना, सूर्य की किरणों से उचित उपयोग लेना, धरती को पवित्र या साफ़ रखना -‘गोमेध‘ यज्ञ है। ‘ गो’ शब्द का एक और अर्थ है पृथ्वी। पृथ्वी और उसके पर्यावरण को स्वच्छ रखना ‘गोमेध’ कहलाता है।[xvi]

नरमेध का अर्थ है मनुष्य कि बलि देना नहीं है अपितु मनुष्य की मृत्यु के बाद उसके शरीर का वैदिक रीति से दाह संस्कार करना नरमेध यज्ञ है। मनुष्यों को उत्तम कार्यों के लिए प्रशिक्षित एवं संगठित करना नरमेध या पुरुषमेध या नृमेध यज्ञ कहलाता है।

अजमेध का अर्थ बकरी आदि कि यज्ञ में बलि देना नहीं है अपितु अज कहते है बीज, अनाज या धान आदि कृषि की पैदावार बढ़ाना है। अजमेध का सिमित अर्थ अग्निहोत्र में धान आदि कि आहुति देना है।[xvii]

References
[i] Vedic Hymns - Maxmuller Part 1(1891) Part 2 (1897)

[ii] The Rig Vedas –Ralph T H Griffith 1896

[iii] ऋग्वेद भाष्य - सायणाचार्य

[iv] यजुर्वेद भाष्य- महीधर

[v] The Brahma Samaj and Arya samaj in the bearing of Christianity:- A study of Indian Theism by Frank Lillingston (1901), On the Religion and Philosophy of the Hindus by Henry Thomas Colebrooke (1858), Chips from a German Woodshop by Frederick Maxmuller (1875).

[vi] The Myth of the Holy Cow- D.N.Jha(2002)/ पवित्र गाय का मिथक डी.न.झा (2004)

[vii] ऋग्वेद 10/90/16

[viii] शतपथ 1/7/3/5

[ix] तैतरीय संहिता 3/2/1/4

[x] ऋग्वेद 10/44/6, अथर्ववेद 20/94/6

[xi] Refer to Journal of the Asiatic society of Bengal and Indo Aryans by Rajender Lal Mitra 1891

[xii] Buddha, by denying the authority of the Veda, became a Heretic. Refer Page 300 ,Chips from a German Workshop, Volume 2 by Maxmuller

[xiii] ऋग्वेद भाष्य, यजुर्वेद भाष्य - स्वामी दयानंद

[xiv] अध्वर इति यज्ञनाम ध्वरतीहिंसाकर्मा तत्प्रतिषेध:- निरुक्त 2/7 , 1/8

[xv] अश्वमेध यज्ञ में पशु बलि निषेध के सम्बन्ध में महाभारत के प्रमाण

१. एक बार इंद्र ने एक विस्तृत यज्ञ रचाया। ऋत्विजों ने उस यज्ञ में पशु बलि के निमित पशुओं का संग्रह किया। पशुओं के आलम्बन के समय, ऋषियों ने पशुओं को दीन भाव युक्त देखकर इंद्र के समीप जाकर कहा कि हे इंद्र ! यज्ञ कि यह विधि शुभ नहीं है। आप महान धर्म करने के अभिलाषी हुए है, परन्तु आप इसे विशेष रूप से नहीं जानते। क्यूंकि पशुओं से यज्ञ करना विधि विहित नहीं है। जब हिंसा धर्म रूप से वर्णित ही नहीं है, तब आपका हिंसा मय यज्ञ धर्म युक्त कैसे होगा? इसलिए आपका यह समारम्भ धर्मोपघातक है। हे इंद्र, यदि आप धर्म कि अभिलाषा करते है तो ऋत्विगन, आगम (वेद और ब्राह्मण) के अनुसार आपका यज्ञ करे। आपको इस विधि द्वष्ट यज्ञ के द्वारा ही महान धर्म होगा। हे इंद्र! आप हिंसा त्याग कर, तीन वर्षों के पुराने बीजों से ही यज्ञ कीजिये। - महाभारत अश्वमेध पर्व 91 अध्याय।

२. लोभी, लालची और नास्तिक लोगों ने जोकि वेदों के अभिप्राय को नहीं जानते जूठ को सत्य रूप से वर्णित किया है। परन्तु जो सत्पुरुषों के मार्ग के अनुगामी है वे तो बिना हिंसा के ही यज्ञ करते है। वे वनस्पति, औषधि, फलों तथा मूलों से यज्ञ करते है। - महाभारत शांतिपर्व मोक्ष धर्म 264 अध्याय।

३. जिनकी कोई मर्यादा नहीं, जो स्वयं मूढ़, नास्तिक, संशयात्मा और छली कपटी है। उन्होंने स्वयं यज्ञ में हिंसा का वर्णन किया है। धर्मात्मा मनु ने तो सब कामों में अहिंसा धर्म कहा है। परन्तु मनुष्य व्यवहारों में तथा वेदों में अपने काम वश ही हिंसा करते है। - महाभारत शांतिपर्व मोक्ष धर्म 266 अध्याय।

४. यज्ञ और यूप के बहाने ने मनुष्य यदि वृथा मांस खाते है तो यह धर्म प्रशंसित नहीं है। सुरा, मछली, मांस, आसव और कृशरोधन- इनका खाना पीना धूर्तों ने चलाया है, वेदों में इनका जिक्र तक नहीं है। धूर्तों ने, गर्व, अज्ञान, लोभ तथा लालच से यह सब कल्पित कर लिया है। ब्राह्मण लोग सब यज्ञों में विष्णु कि पूजा करते है। और दूध, फल तथा वेदों में वर्णित वृक्षों द्वारा ही उस यज्ञ को करने का विधान है। - महाभारत शांतिपर्व मोक्ष धर्म 266 अध्याय।

इस प्रकार से अनेक उदहारण महाभारत में मिलता हैं जिनका विवरण जानने के लिए प्रसिद्द वैदिक विद्वान एवं अथर्ववेद भाष्यकार श्री विश्वनाथ जी विद्यालंकार जी द्वारा लिखित पुस्तक वैदिक पशु यज्ञ मीमांसा के 12 वें प्रकरण को देख सकते है।

[xvi] सन्दर्भ - निघण्टू 1 /1, शतपथ 13/15/3

[xvii] सन्दर्भ - महाभारत शांतिपर्व 337/4-5